अब तक नहीं भरे हैं बशीरहाट में हुए दंगों के घाव
रीता तिवारीबशीरहाट : पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर 24-परगना जिले के बशीरहाट इलाके में दो साल पहले बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के घाव अब तक नहीं भरे हैं. तब राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर दंगों की आग में घी डालने का आरोप लगाया था. मिली-जुली आबादी […]
रीता तिवारी
बशीरहाट : पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर 24-परगना जिले के बशीरहाट इलाके में दो साल पहले बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के घाव अब तक नहीं भरे हैं. तब राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर दंगों की आग में घी डालने का आरोप लगाया था.
मिली-जुली आबादी वाले जिस इलाके ने पहले कभी सांप्रदायिक दंगे का नाम तक नहीं सुना था, उस हिंसा के बाद इलाके में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई पैदा हो गयी थी. अब तृणमूल के सामने इस खाई को पाटना ही सबसे बड़ी चुनौती है.
तृणमूल पिछले दो लोकसभा चुनावों में बशीरहाट सीट जीत चुकी है, लेकिन अब उसकी राह आसान नहीं है. इससे निपटने के लिए ममता ने आठ साल से बांग्ला फिल्मों की शीर्ष अभिनेत्री नुसरत जहां को मैदान में उतारा है. एक मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने फिल्मों में हिंदू भूमिकाएं भी निभाई हैं.
दूसरी ओर, दो साल पहले की सांप्रदायिक खाई को हथियार बनाकर भाजपा भी नागरिकता (संशोधन) विधेयक और एनआरसी के सहारे अबकी तृणमूल से यह सीट छीनने का दावा कर रही है. इसके लिए पार्टी ने प्रदेश महासचिव सायंतन बसु को यहां मैदान में उतारा है. इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ और पिछड़ापन ही सबसे बड़ा मुद्दा है.
माकपा की गढ़ रही है सीट : यह सीट लगभग तीन दशक तक भाकपा का गढ़ रही है और इंद्रजीत गुप्ता भी यहां से सांसद रह चुके हैं. वर्ष 2009 में तृणमूल उम्मीदवार शेख नुरूल इस्ताम ने भाकपा के अजय चक्रवर्ती को 60 हजार वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया था.