उत्तर भारत में, खासकर गर्मियों में, बिजली की समस्या काफी गंभीर हो जाती है. राज्यों की विद्युत उत्पादन क्षमता काफी सीमित है. ऐसे में केंद्रीय पूल से निर्धारित किये गए कोटे से ही राज्यों को मिलने वाली बिजली पर संतोष करना पड़ता है.
कभी-कभी तो इसमें भी कटौती की जाने लगती है. ऐसे में बिजली कटौती, लोगों का जीना मुहाल कर देती है. ज्यों- ज्यों विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तरक्की की है, बिजली से चलने वाली उपकरणों का हमारे जीवन में दखल बढ़ गया है. बिजली के बिना, आज के ज़माने में जीने की कल्पना नहीं की जा सकती. ऐसे में जिस तरह बिजली की खपत बढ़ रही है, उसकी तुलना में उत्पादन सीमति है. इस स्थिति में उर्जा के वैकिल्पक स्रोतों का महत्व काफी बढ़ जाता है. ऊर्जा के वैकिल्पक स्रोतों में सौर ऊर्जा का महत्व काफी अधिक है. लेकिन इस ओर सरकार एवं अन्य संगठनों का पर्याप्त ध्यान नहीं जाने के कारण, इसका पर्याप्त प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है.
ऊर्जा को संचित करके रखा जा सकता
सौरमंडल में सूर्य ऐसा तारा है, जो ऊर्जा का अतुलनीय भंडार है. इससे ही कई ग्रह प्रकाश तथा ऊर्जा पाते हैं. पृथ्वी का तो जीवन ही इसी से चलता है. सूर्य की ऊर्जा सर्व सुलभ तथा सस्ती है. इसके लिए अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है. मनुष्यों ने ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रकृति का इतना दोहन किया है कि आज उसके पास साधन नाममात्र के लिए बचे हैं. ऐसे में मनुष्य को ऐसे स्रोत की आवश्यकता पड़ी जो कभी समाप्त न हो और मनुष्य की समस्त आवश्यकता उससे पूर्ण हो जाए. सूर्य ऐसे विकल्प में सर्वोत्तम जान पड़ा. कुछ उपकरणों के माध्यम से इसकी ऊर्जा को संचित करके रखा जा सकता है और उससे बहुत से कार्य किए जा सकते हैं. इस पर अब वैज्ञानिक ध्यान देने लगे हैं और बहुत से ऐसे उपकरण बन गए हैं, जिनसे इसकी ऊर्जा का इस्तेमाल करना सरल हो गया है. आने वाले समय में मनुष्य के लिए यह बहुपयोगी साबित होगी.
स्रोत को बनाती आकर्षक
सूर्य के दिव्य शक्ति स्रोत, शांत एवं सुहृद प्रकृति के कारण इससे उत्पन्न,नवीकरणीय सौर ऊर्जा को लोगों ने अपनी संस्कृति एवं जीवन यापन के तरीके के समरूप पाया है.विज्ञान व संस्कृति के एकीकरण तथा संस्कृति व प्रौद्योगिकी के उपस्करों के प्रयोग द्वारा सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय उर्जा का स्रोत साबित होने वाली है. सूर्य से सीधे प्राप्त होने वाली ऊर्जा में कई खास विशेषताएं हैं. जो इस स्रोत को आकर्षक बनाती हैं. इनमें इसका अत्यधिक विस्तारित होना, अप्रदूषणकारी होना व अक्षुण होना प्रमुख हैं. सम्पूर्ण भारतीय भूभाग पर 5000 लाख करोड़ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मी. के बराबर सौर ऊर्जा आती है, जो कि विश्व की संपूर्ण विद्युत खपत से कई गुना अधिक हैं. साफ धूप वाले (बिना धुंध व बादल के) दिनों में प्रतिदिन का औसत सौर-ऊर्जा का सम्पात चार से सात किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर तक होता है. देश में वर्ष में लगभग से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है.सौर ऊर्जा वह उर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है. सौर उर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है. यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है. वैसे तो सौर उर्जा के विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है. सूर्य की उर्जा को दो प्रकार से विद्युत उर्जा में बदला जा सकता है.
सौर ऊर्जा का उपयोग
सौर ऊर्जा, जो रोशनी व उष्मा दोनों रूपों में प्राप्त होती है, का उपयोग कई प्रकार से हो सकता है. सौर उष्मा का उपयोग अनाज को सुखाने, जल उष्मन, खाना पकाने,जल परिष्करण तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है. फोटो वोल्टिक प्रणाली द्वारा सौर प्रकाश को बिजली में रूपान्तरित करके रोशनी प्राप्त की जा सकती है, प्रशीतलन का कार्य किया जा सकता है, दूरभाष, टेलीविजन, रेडियो आदि चलाए जा सकते हैं, तथा पंखे व जल-पम्प आदि भी चलाए जा सकते हैं. जल का उष्मन सौर-उष्मा पर आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग घरेलू, व्यापारिक व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जल को गरम करने में किया जा सकता है. देश में पिछले दो दशकों से सौर जल-उष्मक बनाए जा रहे हैं. लगभग 4,50,000 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के सौर जल उष्मा संग्राहक संस्थापित किए जा चुके हैं जो प्रतिदिन 220 लाख लीटर जल को 60-70 प्रतिशत तक गरम करते हैं. भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रलय इस ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए प्रौद्योगिकी विकास, प्रमाणन, आर्थिक एवं वित्तीय प्रोत्साहन, जन-प्रचार आदि कार्यक्र म चला रहा है. इसके फलस्वरूप प्रौद्योगिकी अब लगभग परिपक्वता प्राप्त कर चुकी है तथा इसकी दक्षता और आर्थिक लागत में भी काफी सुधार हुआ है. वृहद् पैमाने पर क्षेत्र-परिक्षणों द्वारा यह साबित हो चुका है कि आवासीय भवनों, रेस्तराओं, होटलों, अस्पतालों व विभिन्न उद्योगों (खाद्य परिष्करण, औषिध, वस्त्र, डिब्बा बन्दी, आदि) के लिए यह एक उचित प्रौद्योगिकी है.
सौर फोटोवोल्टिक तरीके से ऊर्जा
सौर फोटोवोल्टिक तरीके से ऊर्जा, प्राप्त करने के लिए सूर्य की रोशनी को सेमीकन्डक्टर की बनी सोलर सेल पर डाल कर बिजली पैदा की जाती है. इस प्रणाली में सूर्य की रोशनी से सीधे बिजली प्राप्त कर कई प्रकार के कार्य सम्पादित किये जा सकते हैं. भारत उन अग्रणी देशों में से एक है जहां फोटोवोल्टिक प्रणाली प्रौद्योगिकी का समुचित विकास किया गया है एवं इस प्रौद्योगिकी पर आधारित विद्युत उत्पादक इकाईयों द्वारा अनेक प्रकार के कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं. देश में नौ कम्पनियों द्वारा सौर सेलों का निर्माण किया जा रहा है एवं बाइस द्वारा फोटोवोल्टायिक माड्यूलों का. लगभग 50 कम्पनियां फोटो वोल्टिक प्रणालियों के अभिकल्पन, समन्वयन व आपूर्ति के कार्यक्र मों से सक्रि य रूप से जुड़ी हुयी हैं. भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रलय सौर लालटेन, सौर-गृह, सौर सार्वजनिक प्रकाश प्रणाली, जल-पम्प, एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एकल फोटोवोल्टायिक ऊर्जा संयंत्रों के विकास, संस्थापना आदि को प्रोत्साहित कर रहा है. इनका रख रखाव व परिचालन सुगम है. साथ ही ये पर्यावरण सुहृद हैं. दूरस्थ स्थानों, रेगिस्तानी इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, द्वीपों, जंगली इलाकों आदि, जहां प्रचिलत ग्रिड प्रणाली द्वारा बिजली आसानी से नहीं पहुंच सकती है, के लिए यह प्रणाली आदर्श है. अतएव फोटोवोल्टिक प्रणाली दूरस्थ दुर्गम स्थानों की दशा सुधारने में अत्यन्त उपयोगी है.
क्षमता 1.25 किलोवाट
फोटोवोल्टिक सेलों पर आधारित बिजली घरों से ग्रिड स्तर की बिजली ग्रामवासियों को प्रदान की जा सकती है. इन बिजली घरों में अनेकों सौर सेलों के समूह, स्टोरेज बैटरी एवं अन्य आवश्यक नियंत्रक उपकरण होते हैं. बिजली को घरों में वितरित करने के लिए स्थानीय सौर ग्रिड की आवश्यकता होती है. इन संयंत्रों से ग्रिड स्तर की बिजली व्यक्तिगत आवासों, सामुदायिक भवनों व व्यापारिक केन्द्रों को प्रदान की जा सकती है. इनकी क्षमता 1.25 किलोवाट तक होती है. अबतक लगभग एक मेगावाट की कुल क्षमता के ऐसे संयंत्र देश के विभिन्न हिस्सों में लगाए जा चुके हैं. इनमें उत्तर प्रदेश, देश का उत्तर पूर्वी क्षेत्र, लक्षद्वीप, बंगाल का सागर द्वीप, व अन्डमान निकोबार द्वीप समूह प्रमुख हैं.
ग्रामीण इलाकों में उपयोग
ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्थानों एवं गलियों, सड़कों आदि पर प्रकाश करने के लिए ये उत्तम प्रकाश स्रोत है. इसमें 74 वाट का एक फोटोवोल्टिक माड्यूल, एक 75 अम्पीयर-घंटा की कम रख-रखाव वाली बैटरी तथा 11 वाट का एक फ्लुओरेसेन्ट लैम्प होता है. शाम होते ही यह अपने आप जल जाता है और प्रात:काल बुझ जाता है. देश के विभिन्न भागों में पंचायतों के माध्यम से ये बड़े पैमाने पर लगाये जा रहे हैं. घरेलू सौर प्रणाली के अन्तर्गत इसके उपयोग के लिए आपके पास एक अच्छी बैट्री एवं इनवर्टर का होना जरूरी है,तभी सोलर पैनल से बैट्री को चार्ज करके इसे उपयोग में लाया जा सकता है.अन्यथा सीधे सोलर पैनल से चलने वाले उपकरण(बल्ब,पंखे) खरीदने पड़ेंगे.
सब्सिडी की है जरूरत
पर्याप्त प्रचार,प्रसार नहीं होने एवं महंगे होने के कारण ये अभी तक सर्वसुलभ नहीं हो पाए हैं.एक अच्छी कंपनी के 80-80 वाट के दो सोलर पैनल के लिए मुङो 13 हजार रूपये खर्च करने पड़े. अन्य उपकरण जैसे – स्टैंड,तार वगैरह को लेकर एक हजार अतिरिक्त. इस तरह कुल चौदह हजार रूपये का खर्च.हालांकि,बिजली नहीं रहने या ब्रेकडाउन की स्थिति में इससे बैट्री पूरी तरह चार्ज हो जाती है. लेकिन,यह आसानी से समझा जा सकता है कि इतने महंगे उपकरण खरीदने में कितने लोगों की रूचि होगी.आज जरूरत इस बात की है कि सोलर पैनल की कीमतें कम की जाय,सरकार द्वारा सब्सिडी देकर इसे लोगों तक पहुंचाया जाय,तभी इसका व्यापक उपयोग हो सकेगा. सौर ऊर्जा की कई परेशानियां भी हैं. व्यापक पैमाने पर बिजली निर्माण के लिए पैनलों पर भारी निवेश करना पड़ता है. दूसरा, दुनिया में अनेक स्थानों पर सूर्य की रोशनी कम आती है, इसलिए वहां सोलर पैनल कारगर नहीं हैं. तीसरा, सोलर पैनल बरसात के मौसम में ज्यादा बिजली नहीं बना पाते. फिर भी विशेषज्ञों का मत है कि भविष्य में सौर ऊर्जा का अधिकाधिक प्रयोग होगा.