पाकिस्तानी सेना ने पत्रकारों को कभी तालिबान का गढ़ रहे उत्तरी वज़ीरिस्तान के मीरानशाह क़स्बे का दौरा कराया. भुतहा लगने वाले मीरानशाह में हर तरफ़ तबाही और जंग के निशान नज़र आए.
यहां पाकिस्तानी सेना ने कुछ रोज़ पहले संदिग्ध चरमपंथी ठिकानों पर हवाई हमले और थलसैनिक कार्रवाई की थी.
सेना का दावा है कि यहां तालिबान का नियंत्रण लगभग ख़त्म कर दिया गया है.
हालांकि मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार ज़्यादातर चरमपंथी नेता सैन्य कार्रवाई से पहले ही इलाक़ा छोड़कर जा चुके थे.
पढ़ें बीबीसी उर्दू संवाददाता हारून रशीद की रिपोर्ट
उत्तरी वज़ीरिस्तान इलाक़े के इस क़स्बे के ऊपर जब हमारा हेलीकॉप्टर मंडरा रहा था, तो बाज़ारों में एक भी शख़्स नज़र नहीं आ रहा था.
लगा कि स्थानीय नागरिक और दुकानदार जल्दबाज़ी में ग़ायब हो गए हैं. बाज़ार में ज़्यादातर दुकानों के शटर आधे खुले थे.
दुकानों पर सामान भी सामने ही पड़ा था. लग रहा था जैसे सारे दुकानदार नमाज पढ़ने या किसी फ़ौरी छुट्टी के लिए कहीं गए हैं.
सैनिकों और पत्रकारों के अलावा कोई और जीव वहां नज़र आ रहा था, तो तनहा खड़ा एक गधा था.
चरमपंथियों का गढ़
कुछ दिन पहले तक मीरानशाह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का मुख्यालय था.
सेना का कहना है कि इलाक़े की यह हालत चरमपंथियों के रॉकेट हमलों और गुप्त हमलों के लिए रखे गए विस्फोटकों की वजह से हुई है.
सेना का कहना है कि उसने मीरानशाह के 80 प्रतिशत इलाक़े से चरमपंथियों को निकाल दिया है.
सैन्य दल का नेतृत्व कर रहे मेजर जनरल ज़फ़र ख़ान ने बीबीसी को बताया कि चरमपंथियों के मुख्यालय को भारी क्षति पहुंची है.
वो कहते हैं, "किसी इलाक़े का 100 प्रतिशत घेराव संभव नहीं लेकिन कोई यहां से भाग गया है, तो भी उसे किसी भी हाल में वापस नहीं आने दिया जाएगा."
मेजर जनरल ख़ान ने यह बताने से इनकार कर दिया कि सेना का अभियान कब तक चलेगा.
जल्दबाज़ी में गए लोग
पत्रकारों को एक मस्जिद के तहखाने में तहस-नहस हो चुके आईईडी (इंप्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बनाने के कारखाने और रिहाइशी जगहें दिखाईं गईं.
इन्हें देखकर लगता है कि इन्हें छोड़कर जाने वाली काफ़ी जल्दी में थे.
सैन्य अधिकारी हमें यहां के मुख्य बाज़ार के पीछे एक कटरे में ले गए. यहां दर्जनों दुकानें थीं.
सभी में बम बनाने के औज़ार और रसायन पड़े थे. यहां तक कि आत्मघाती जैकेट भी बिक्री के लिए उपलब्ध थीं.
लेटरहेड
हमें यहां ‘इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान’ का एक लेटरहेड पड़ा मिला. तालिबान ने अपने शासन को यही नाम दिया था.
हालांकि यह साफ़ नहीं कि इसका हक़्क़ानी नेटवर्क से कोई वास्ता है या नहीं. यह नेटवर्क नेटो और अफ़ग़ान सैन्य बलों को विशेष तौर पर निशाना बनाता रहा है.
पाकिस्तान सरकार ने बहुत पहले ही इस नेटवर्क को किसी तरह की मदद देने की बात से इनकार किया था.
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