चुनाव परिणामः पहली बार हारा कांग्रेस का ये दिग्गज, 11 लोकसभा चुनावों में मारी थी बाजी

नयी दिल्लीः मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस में एक ऐसा नाम है जिनकी जीत को लेकर पार्टी हमेशा से निश्चिंत रही. ये ऐसे नेता हैं जिन्होंने जहां से चुनाव लड़ा जीत का परचम लहराया लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में मुंह की खानी पड़ी. कर्नाटक के गुलबर्गा सीट से ताल ठोकने वाले खड़गे को जिंदगी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 24, 2019 8:26 AM
नयी दिल्लीः मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस में एक ऐसा नाम है जिनकी जीत को लेकर पार्टी हमेशा से निश्चिंत रही. ये ऐसे नेता हैं जिन्होंने जहां से चुनाव लड़ा जीत का परचम लहराया लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में मुंह की खानी पड़ी. कर्नाटक के गुलबर्गा सीट से ताल ठोकने वाले खड़गे को जिंदगी में पहली बार हार का सामना करना पड़ा है. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उमेश जाधव ने उन्हें शिकस्त दी है. जाधव ने 95 हजार से अधिक वोटों से खड़गे को चुनाव में हराया है. बता दें कि उमेश जाधव कांग्रेस के ही विधायक थे और कुछ महीने पहले बागी होकर भाजपा में शामिल हो गए थे.
यह वही खड़गे हैं जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भी गुलबर्गा सीट से जीत हासिल की और कांग्रेस संसदीय दल के नेता बने. यूपीए सरकार में वे रेल मंत्री, श्रम और रोजगार मंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं. वे गुलबर्गा से दो बार सांसद भी रहे. इतना ही नहीं लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता भी हैं. खड़गे स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं. कर्नाटक की राजनीति में खड़गे को दलित नेता के तौर पर माना जाता है. 2013 में मल्लिकार्जुन खड़गे सीएम की रेस में भी थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्य की कमान सौंपने के बजाय राष्ट्रीय राजनीति की जिम्मेदारी सौंपी. 1969 में कांग्रेस का दामन थामने वाले खड़गे पहले गुलबर्गा के कांग्रेस शहर अध्यक्ष बने.
इसके बाद 1972 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद 2008 तक लगातार वे 9 बार लगातार विधायक चुने जाते रहे. इसके बाद 2009 में गुलबर्गा लोकसभा सीट से संसदीय चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे.कर्नाटक में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन का सूपड़ा साफ कर दिया है. भगवा पार्टी को राज्य की कुल 28 लोकसभा सीटों में से 25 पर जीत मिली है. भाजपा के इस जोरदार प्रदर्शन के बाद राज्य की एच डी कुमारस्वामी सरकार की स्थिरता सवालों से घिर गयी है.

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