ठोकरों से नजरिया बदले सकारात्मक सोच नहीं

।। दक्षा वैदकर ।।10वीं, 12वीं के रिजल्ट आ चुके हैं. मम्मी-पापा कम नंबर पानेवाले बच्चों को ताने दे रहे हैं कि तुमसे पीछे रहनेवाला बच्चा तुमसे कितने ज्यादा नंबर ले आया. अब तुम्हें अपनी पसंद का कॉलेज, पसंद के विषय नहीं मिलेंगे. तुम्हारा भविष्य तो अब अंधकारमय हो गया है.. और न जाने क्या-क्या. यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:46 PM

।। दक्षा वैदकर ।।
10वीं, 12वीं के रिजल्ट आ चुके हैं. मम्मी-पापा कम नंबर पानेवाले बच्चों को ताने दे रहे हैं कि तुमसे पीछे रहनेवाला बच्चा तुमसे कितने ज्यादा नंबर ले आया. अब तुम्हें अपनी पसंद का कॉलेज, पसंद के विषय नहीं मिलेंगे. तुम्हारा भविष्य तो अब अंधकारमय हो गया है.. और न जाने क्या-क्या. यह बात बिल्कुल ठीक नहीं है. जो हो गया है, उसे बदला नहीं जा सकता है. हां, यह जरूरी है कि बच्चे को उसकी लापरवाही का एहसास कराया जाये, लेकिन उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए सब कुछ भूल कर उसे उत्साहित करना होगा. उसे नयी राह तलाशने में मदद करनी होगी.

मेरी एक स्कूल फ्रेंड थी अनीता. उसके पापा सिविल इंजीनियर थे और बड़े भैया सॉफ्टवेयर इंजीनियर. सभी का दबाव था कि वह भी इसी क्षेत्र में जाये, क्योंकि वह मैथ्स में बहुत अच्छी थी. सभी ने कहा कि तुम कोई कठिन विषय लो और उसमें टॉप करो. सभी ने मिल कर उसे बीएससी (आइटी) में ग्रेजुएशन करने को कहा. उसने बुझे मन से हामी भर दी.

11 विषयों की कठिन पढ़ाई का बोझ वह सहन नहीं कर पायी और पहले ही साल फेल हो गयी. माता-पिता और बड़े भैया ने उसे खूब डांटा. वह इतने तनाव में आ गयी कि एक रात उसने ढेर सारी दवाइयां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की. इस घटना से उसके माता-पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने अनिता से पूछा, ‘तुम क्या करना चाहती हो?’ अनिता ने कहा, ‘फैशन डिजाइनिंग.’

परिवार में कभी कोई इस क्षेत्र में नहीं गया था, इसलिए वे डर रहे थे कि यह किस तरह का पेशा चुन रही है अनीता. लेकिन, उन्होंने बेटी की खुशी के लिए हामी भर दी. आज अनीता का खुद का बुटीक है. पिछले दिनों उसने अपने ड्रेस कलेक्शन के साथ एक फैशन शो में हिस्सा लिया, जहां उसे बहुत सराहा गया.

अनीता के माता-पिता और भैया अब उस पर गर्व करते हैं और अपने गलत निर्णय पर पछताते हैं. असफलता को एक सबक मानें, लेकिन उससे इतना विचिलत न हों कि दूसरे रास्ते दिखने बंद हो जायें. ठोकरें हमारे नजरिये को बदलें, सकारात्मक सोच को नहीं. इसलिए बीती हुई बातों को भूल जायें और आगे गंभीरता से प्रयास करें.

– बात पते की
* भगवान एक दरवाजा बंद करता है, तो दूसरा खोल देता है. हम बंद दरवाजे को देख शोक मनाते रह जाते हैं, जबकि दूसरी मंजिल राह देखती रहती है.
* असफलता को एक सबक मानें. पर उससे इतना विचलित न हों कि दूसरे रास्ते भी दिखने बंद हो जायें. बीती बातों को भूल आगे बढ़ने का प्रयास करें.

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