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रोहिंग्या लड़की तस्मीदा भारत में रहकर जाएंगी कॉलेज

<figure> <img alt="रोहिंग्या, तस्मीदा" src="https://c.files.bbci.co.uk/C5BB/production/_107491605_screenshot2019-06-21at19.47.57.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>”मैं बीए-एलएलबी ऑनर्स करूंगी. मैं क़ानून की पढ़ाई करना चाहती हूं ताकि ख़ुद के अधिकार जान सकूं और लोगों के अधिकार उन्हें बता सकूं. मुझे मानवाधिकार कार्यकर्ता बनना है ताकि जब अपने देश वापस जाऊं तो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ सकूं.”</p><p>22 साल की तस्मीदा ये […]

<figure> <img alt="रोहिंग्या, तस्मीदा" src="https://c.files.bbci.co.uk/C5BB/production/_107491605_screenshot2019-06-21at19.47.57.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>”मैं बीए-एलएलबी ऑनर्स करूंगी. मैं क़ानून की पढ़ाई करना चाहती हूं ताकि ख़ुद के अधिकार जान सकूं और लोगों के अधिकार उन्हें बता सकूं. मुझे मानवाधिकार कार्यकर्ता बनना है ताकि जब अपने देश वापस जाऊं तो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ सकूं.”</p><p>22 साल की तस्मीदा ये बात कहती हैं तो उनकी आंखें उम्मीद से भर जाती हैं. तस्मीदा भारत में रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या शरणार्थियों में पहली लड़की हैं जो कॉलेज जाएंगी. उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में विदेशी छात्र कोटे के तहत फॉर्म भरा है. </p><p>दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी के किनारे बसे रोहिंग्या बस्ती में तस्मीदा टाट और प्लास्टिक से बने घर में माता, पिता और एक भाई के साथ रहती हैं. अपने छह भाइयों की अकेली बहन तस्मीदा भारत में रोहिंग्या बच्चियों के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं. </p><p>अपनी बात में वो बार-बार म्यांमार हमारा देश कहती हैं, वही म्यांमार जो इन रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक नहीं मानता. </p><figure> <img alt="तस्मीदा, रोहिंग्या" src="https://c.files.bbci.co.uk/113DB/production/_107491607_screenshot2019-06-21at19.51.31.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>कॉलेज तक पहुंचने की लड़ाई तस्मीदा के लिए आसान नहीं रही. वो छह साल की उम्र में म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश आ गईं लेकिन जब हालात बिगड़े तो भारी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश आने लगे. बिगड़ते हालात को देखते हुए तस्मीदा के परिवार ने साल 2012 में भारत में शरण ली.</p><p>अपने देश से निकलकर दो देशों में शरण लेना और अपनी कहानी बताते हुए तस्मीदा कहती हैं, ”हमारे दादा जी और पुरानी पीढ़ियों के पास नागरिगता थी लेकिन शिक्षित ना होने के कारण उन लोगों ने अपने अधिकार नहीं जाने और ये नहीं सोचा कि हमारी आने वाली पीढ़ी का क्या होगा. अब हम दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. हम इस दुनिया के तो हैं लेकिन किसी देश के नहीं हैं.”</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-47015810?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जम्मू छोड़ने लगे हैं रोहिंग्या परिवार</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-46223025?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रोहिंग्या मुसलमान घर वापसी से क्यों डर रहे हैं </a></li> </ul><p>”मुझे बचपन से डॉक्टर बनने का शौक था. मैं जब भारत आई तो 10वीं में एडमिशन के लिए आवेदन भरा लेकिन यहां मेरे पास आधार नहीं था. स्कूलों में एडमिशन नहीं मिला. फिर मैंने ओपेन कैंपस से आर्ट्स का फॉर्म भरा. 10वीं पास करने के बाद मैंने 11वीं और 12वीं में राजनीति शास्त्र विषय चुना और जामिया के स्कूल में एडमिशन लिया. हर दिन मैं बर्मा की ख़बरें देखती हूं वहां ना जाने कितने हमारे जैसे लोगों को मार देते हैं. जला देते हैं. इसलिए मैनें सोचा कि मैं लॉ करूं और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बनूं.”</p><figure> <img alt="रोहिंग्या, तस्मीदा" src="https://c.files.bbci.co.uk/161FB/production/_107491609_screenshot2019-06-21at19.53.08.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>तस्मीदा</figcaption> </figure><h3>नया देश, नई भाषाएं और पढ़ाई की ज़िद</h3><p>कॉलेज में जाने की ख़ुशी उनकी आवाज़ से साफ़ झलकती है, लेकिन जैसे ही वो अपने बीते हुए कल को याद करती हैं तो मानो सारी चमक उदासी में बदल जाती है. </p><p>ये लड़की उन तमाम लोगों का चेहरा है जिनका कोई देश नहीं है. तस्मीदा उस रोहिंग्या समाज की नई पीढ़ी हैं जो दुनिया में सबसे ज़्यादा सताए गए समुदायों में से एक हैं. एक रिफ्यूजी के आलावा उनकी कोई पहचान नहीं है. कोई देश नहीं है. </p><p>लेकिन तस्मीदा अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. </p><p>वो कहती हैं, ”साल 2005 में मैं 6 साल की थी. मेरे पापा बिज़नेस करते थे. वो बाहर से सामान लाते और बर्मा (म्यांमार) में बेचते थे. एक दिन पुलिस हमारे घर पर आई और मेरे पापा को उठा कर ले गई. जब हम उनसे मिलने थाने में गए तो देखा कई लोगों को पुलिस उठा कर लाई थी. पुलिस रोहिंग्या लोगों से पैसे लेती और छोड़ देती.’ </p><p>”इसके दो महीने बाद फिर वो (पुलिस वाले) लोग आए और पापा को लेकर चले गए. जब पापा वापस आए तो उन्होंने कहा कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. मैं तीसरी क्लास में थी, जब मैं अपने परिवार के साथ बांग्लादेश आ गई.” </p><p>”जब हम 2005 में बांग्लादेश पहुंचे तो हमारे पास कोई रिफ्यूजी कार्ड नहीं था. सब कुछ ठीक चल रहा था, वहां स्कूलों में बांग्ला भाषा ज़रूरी थी तो मैंने बांग्ला सीखी, इसके बाद स्कूल में दाखिला लिया.” </p><figure> <img alt="रोहिंग्या, तस्मीदा" src="https://c.files.bbci.co.uk/BA67/production/_107491774_screenshot2019-06-21at20.10.58.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>तस्मीदा कहती हैं, ”पापा मज़दूरी करते थे. सब कुछ ठीक चल रहा था फिर साल 2012 में रोहिग्यां लोगों पर हिंसा म्यांमार में तेज़ हो गई. कई रोहिंग्या म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश आने लगे तो यहां भी शरणार्थियों की जांच होने लगी. हमारे पास कोई कार्ड नहीं था.” </p><p>”जब हालात बिगड़े तो पापा के कुछ जानने वाले भारत में शरण लेकर रह रहे थे. उनसे बात करने के बाद हम भारत आए और हमें संयुक्त राष्ट्र से रिफ्यूजी कार्ड दिया गया.” </p><p>”मैं दिल्ली आई तो साल 2013 से 2015 दो साल तक यहां हिंदी और अंग्रेज़ी सीखी. इसके बाद मैंने अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाने की सोची. मैंने कई कोशिश की कि मुझे साइंस पढ़ने को मिले लेकिन मेरे पास आधार कार्ड नहीं था तो स्कूलों ने एडमिशन नहीं दिया. इसके बाद मैंने ओपेन कैंपस के जरिए 10 वीं की परीक्षा दी. </p><p>मैंने 11वीं-12वीं में राजनीति विज्ञान लिया. इस साल जून में घर वालों को मेरे रिज़ल्ट का इंतज़ार था. मैं पास हुई तो मुझे इस बात की ख़ुशी थी कि अब क़ानून की पढ़ाई करूंगी. दो साल पहले तक मुझे ये भी नहीं पता था कि लॉ क्या होता है, जब इसके बारे में जाना तो लगा यही हमारी ज़िंदगी बेहतर बना सकता है. </p><figure> <img alt="दिल्ली स्थित रोहिंग्या बस्ती" src="https://c.files.bbci.co.uk/5473/production/_107491612_screenshot2019-06-21at20.11.53.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>अब फीस भरने के नहीं हैं पैसे</h3><p>अब तस्मीदा के इरादे बुलंद हैं. उनकी आंखों में कुछ अलग करने की चमक साफ़ दिखती है. इस ख़ुशी को उनकी फ़ीस की चिंता फ़ीका कर देती है. </p><p>वह कहती हैं, ”मैंने फॉरन स्टूडेंट कैटिगरी में आवेदन भरा है. इसकी सालाना फीस हम नहीं दे सकते. मुझे 3600 अमरीकी डॉलर सालाना देना होगा. हम कहां से इतने पैसे लाएंगे?”</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-45354716?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रोहिंग्या संकट: ‘सू ची को इस्तीफा दे देना चाहिए था'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-45013147?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या रोहिंग्या जैसा होगा 40 लाख लोगों का हाल</a></li> </ul><p>तस्मीदा ने बताया कि उनके लिए ऑनलाइन फ़ंड रेज़िंग की जा रही है और अब तक एक लाख 20 हज़ार रुपए ही जुट पाए हैं. मुझे, मेरे परिवार को उम्मीद है कि हमे लोगों की मदद मिलेगी.</p><p>इस बीच बगल में बने टाट के घर से एक लड़की झांक कर रोहिंग्या भाषा में तस्मीदा से कहती है- ”12वीं की अपनी ड्रेस (स्कूल यूनिफॉर्म) दे दे, सिलाई करनी है.”</p><p>हमें पता चला कि वह लड़की 12 वीं में दाखिला ले चुकी है और तस्मीदा की यूनिफॉर्म अब वह पहनेगी. </p><p>तस्मीदा हल्की मुस्कान के साथ रोहिंग्या भाषा में जवाब देती हैं- <strong>धो दिया है शाम को ले जाना.</strong>हम उम्मीदों से भरे दो चेहरे देखकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ चलते हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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