<p>मैंने ‘अर्जुन रेड्डी’ तभी देख ली थी जब ये अमेज़न प्राइम पर आई थी. फ़िल्म पर मर्दवाद पूरी तरह हावी था लेकिन चूंकि फ़िल्म तेलुगू में थी इसलिए शायद मैं इससे उस तरह कनेक्ट नहीं कर पाई. </p><p>मगर जब ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक ‘कबीर सिंह’ रिलीज़ हुई, इस पर चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी और फ़िल्म के डायरेक्टर संदीप रेड्डी का इंटरव्यू वायरल होने लगा तब मैं वापस अपने उस अतीत में जा पहुंची, जहां सिर्फ़ दर्द था. </p><p>अपने पार्टनर के हाथों हिंसा का शिकार होने का दर्द.</p><p>संदीप ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि ‘अगर दो लोगों के बीच एक दूसरे को थप्पड़ मारने, एक-दूसरे को गाली देने की आज़ादी नहीं है तो शायद ये सच्चा प्यार नहीं है.'</p><p>उनके इस बयान ने मेरी पुरानी कड़वी यादों और लगभग भर चुके ज़ख़्मों को एक बार फिर हरा कर दिया है.</p><h1>अब आप मेरी कहानी सुनिए. सौ फ़ीसदी सच्ची कहानी:</h1><p>मेरे एक्स बॉयफ़्रेंड ने मुझसे ज़बरदस्ती की थी. मेरे बार-बार ‘ना’ करने और उसे धक्का देने के बावजूद. ये हमारे रिश्ते के शुरुआत भर थी और मैं सेक्स के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी.</p><p>मैं रो रही थी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी सेक्स का मेरा पहला अनुभव ज़बरदस्ती का हो. कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा. मुझे रोते हुए देख उसने बस इतना कहा, "बेबी, कंट्रोल नहीं हो रहा था."</p><p>उसके मन में हमेशा ये शक था कि मैं पहले भी किसी रिश्ते में रह चुकी हूं. वो कई बार मुझसे ऐसी बातें कह देता था जिससे मुझे बहुत ठेस पहुंचती थी. उसे सहमति से हुए सेक्स और यौन शोषण में कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आता था.</p><p>इस शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा ने मुझ पर ऐसा असर डाला कि मुझे ख़ुदकुशी के ख्याल आने लगे और मुझे लगने लगा था कि इस हालत से निकलने का एकमात्र रास्ता आत्महत्या है. वो किसी भी वक़्त मेरे पास आ जाता था, मेरा अपना कोई स्पेस नहीं रह गया था, कोई प्राइवेसी नहीं बची थी. अगर मैं कभी उसके बजाय ख़ुद को प्राथमिकता देने की कोशिश भी करती तो वो मुझे ग्लानि से भर देता था. हालात इतने ख़राब हो गए कि मुझे काउंसलर के पास जाना पड़ा. डॉक्टर ने बताया कि मैं डिप्रेशन और ‘बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर’ से जूझ रही थी. लगातार थेरेपी के बाद आख़िरकार मैं इस रिश्ते से बाहर निकल पाई.</p><p>इस बीच वो भी दूसरे शहर चला गया था. ये रिश्ता ख़त्म होने के बाद मुझे पता चला कि वो मुझे धोखा दे रहा था. जब वो मेरे साथ रिलेशनशिप में था, उस वक़्त वो और भी कई लड़कियों के साथ रिश्ते में था. जब मैंने उसे फ़ोन करके सफ़ाई मांगी तो उसने मुझे ‘यूज़ ऐंड थ्रो’ मैटेरियल कहा. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48738372?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’कबीर सिंह’ को देखकर क्यों तालियां पीट रहे हैं लोग?</a></li> </ul><h1>मैं रिश्ते में क्यों रही?</h1><p>अब आप शायद सोच रहे होंगे कि इतना सबकुछ होने के बावजूद मैं ऐसे रिश्ते में क्यों रही? </p><p>इस रिश्ते से निकलना इसलिए मुश्किल था क्योंकि वो मुझे रोकने के लिए किसी भी हद तक चला जाता था. वो मेरे पीजी तक चला आता था, मेरे सामने गिड़गिड़ाता था और मुझसे माफ़ी मांगता था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे माता-पिता या पीजी के लोग किसी भी तरह इन सबमें शामिल हों. </p><p>मेरे साथ जो कुछ हुआ, मैं उसे काफ़ी वक़्त तक हिंसा मान ही नहीं पाई. मैं उसकी हरकतों का बचाव करती रही, अपने तर्कों के सामने और अपने उन दोस्तों के सामने भी, जो मुझे उसकी असलियत दिखाने की कोशिश करते थे.</p><p>अब आप सोच रहे होंगे कि इतना कुछ होने के बाद भी मैं उस रिश्ते में क्यों रही?</p><p>मैं उसकी कही बातों को ‘आख़िरी सच’ मानने लगी थी. जितनी बार वो मुझे नालायक़ कहता, उतनी बार मैं उसका यक़ीन कर लेती थी.</p><p>भारतीय समाज में औरतों को ‘परिवार की इज़्ज़त’ समझा जाता है. हम अपने प्यार और रिश्तों को छिपाने को रोमैंटिक समझते हैं. प्रेम, रिश्तों और सेक्स के बारे में स्वस्थ्य और खुली बातचीत बहुत कम होती है.</p><p>हम फ़िल्मों से प्यार करने का तरीक़ा सीखते हैं और चूंकि फ़िल्मों की पहुंच बहुत दूर तक है, वो युवाओं के मन में प्यार के उस कॉन्सेप्ट को जन्म देती हैं. उस प्यार के बारे में, जिसके बारे में असल ज़िंदगी में बात नहीं होती.</p><p>ये काफ़ी हद तक वैसा ही है जैसे ज़्यादातर मर्द पॉर्न देखकर सेक्स के बारे में एक संकीर्ण समझ बना लेते हैं. वो समझ अधपकी और असलियत से दूर होती है क्योंकि सेक्स के बारे में भी असल ज़िंदगी में बहुत कम चर्चा होती है.</p><p>डायरेक्टर संदीप रेड्डी ने अनुपमा चोपड़ा को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘ग़ुस्सा सबसे असली जज़्बात है और रिश्तों में लोगों को अपने पार्टनर को जब चाहे छूने, किस करने, गाली देने और थप्पड़ मारने की आज़ादी होती है.’ रेड्डी की ये बातें मुझे मूल रूप से महिला विरोधी लगीं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48761540?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कबीर सिंह: चाकू दिखाते ‘आशिक’ के नाम खुला ख़त</a></li> </ul><h1>’औरतें, जो चुपचाप ये सब भुगतती हैं'</h1><p>यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसी चीज़ें अक्सर मर्द ही करते हैं. चाहे वो पार्टनर को जब मन चाहे छूना हो या थप्पड़ मारना और ये सब झेलने वाली होती हैं औरतें. औरतें, जो चुपचाप ये सब भुगतती हैं.</p><p>रेड्डी इसे ‘नॉर्मल’ बताने की कोशिश कर रहे हैं. </p><p>जो लोग कबीर सिंह के किरदार का यह कहकर बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके मन में कभी ऐसा कुछ करने की चाहत नहीं हुई या वो कभी ऐसा नहीं करेंगे, ये लोग शायद उन मर्दों को नहीं जानते जो सचमुच ऐसा करते हैं. </p><p>कबीर सिंह का बचाव करने वाले वो सुविधासंपन्न लोग हैं जिन्होंने ख़ुद कभी क़रीबी रिश्तों में हिंसा नहीं झेली है और शायद कभी झेलेंगे भी नहीं. </p><p>संदीप रेड्डी के दर्शक फ़िल्म का पूरा लुत्फ़ उठाते हैं. जब कबीर प्रीति को थप्पड़ मारता है, तब वो तालियां बजाते हैं. जब कबीर अपनी कामवाली बाई को दौड़ाता है तब वो हंसते हैं, वो उस स्थिति पर हंसते हैं जब एक ग़रीब औरत को कांच का ग्लास तोड़ने के लिए पीटने के लिए दौड़ाया जा रहा है.</p><p>वो सीन पर खिलखिलाते हैं जब कबीर किसी लड़की को चाक़ू दिखाकर उससे कपड़े उतारने को कहता है.</p><p>उन्हें किसी लड़की से बिना पूछे उसे किस करने में कुछ ग़लत नज़र नहीं आता. उनकी ज़ुबान पर ‘फ़ेमिनिस्ट’ शब्द ही नफ़रत के साथ आता है. वो फ़िल्म में दिखाई गई हिंसा की ओर ध्यान दिलाने वालों को ‘सूडो’ कहते हैं, जैसा कि डायरेक्टर संदीप रेड्डी ने कहा.</p><p>रेड्डी मानते हैं कि प्यार ‘अन्कंडीशनल’ होता है यानी उसमें कोई शर्त नहीं होती, कोई सीमा रेखा नहीं होती. वो बार-बार कहते हैं जो लोग फ़िल्म की बुराई कर रहे हैं उन्हें कभी किसी से ‘अन्कंडीशनल लव’ हुआ ही नहीं.</p><p> मगर मैं ऐसी कई औरतों को जानती हूं, ऐसी कई लड़कियों को जानती हूं जिन्होंने रेड्डी के कॉन्सेप्ट वाले ‘अन्कंडीशनल लव’ को झेला है. वो औरतें जिन्हें चोटें आईं, जिन्हें तेज़ाब से जलाया गया, जिनके शरीर और आत्मा को चोट पहुंचाई गई. </p><p>प्यार ‘अन्कंडीशनल’ या बिना शर्तों के नहीं होना चाहिए. इसमें कुछ शर्तें होनी ही चाहिए. जैसे कि- एक दूसरे के लिए सम्मान, सहमति और स्पेस. इन सबके बिना प्यार कुछ और नहीं बल्कि हिंसा को जारी रखने का एक बहाना भर है.</p><p><em>(बीबीसी की संपादकीय नीति के तहत लेखिका की निजता का ध्यान रखते हुए उनकी पहचान ज़ाहिर नहीं की गई है)</em></p><h1>देखिए वीडियो कबीर सिंह की क्यों हो रही है आलोचना?</h1><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=47uX4qwlVnQ">https://www.youtube.com/watch?v=47uX4qwlVnQ</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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कबीर सिंह फ़िल्म पर विवाद: प्रेम संबंध में हिंसा झेलने वाली लड़की की आपबीती
<p>मैंने ‘अर्जुन रेड्डी’ तभी देख ली थी जब ये अमेज़न प्राइम पर आई थी. फ़िल्म पर मर्दवाद पूरी तरह हावी था लेकिन चूंकि फ़िल्म तेलुगू में थी इसलिए शायद मैं इससे उस तरह कनेक्ट नहीं कर पाई. </p><p>मगर जब ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक ‘कबीर सिंह’ रिलीज़ हुई, इस पर चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी और फ़िल्म […]
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