काटजू के आरोप गंभीर, पर 10 साल बाद?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बातें लंबे समय से सुनने में आ रही हैं लेकिन भारत के तीन पूर्व न्यायाधीशों पर लगाए गए जस्टिस मार्कंडेय काटजू के ताज़ा आरोप बेहद गंभीर हैं. मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस काटजू ने इन तीनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर आरोप लगाया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2014 10:06 AM

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बातें लंबे समय से सुनने में आ रही हैं लेकिन भारत के तीन पूर्व न्यायाधीशों पर लगाए गए जस्टिस मार्कंडेय काटजू के ताज़ा आरोप बेहद गंभीर हैं.

मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस काटजू ने इन तीनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर आरोप लगाया है कि उन लोगों ने कथित तौर पर एक भ्रष्ट जज को उनके पद पर बनाए रखने के लिए समझौता किया.

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में काटजू का लेख छपा है जिसमें उन्होंने ये दावा किया है, जो बेहद गंभीर है और न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस दावे की गहन छानबीन ज़रूर होनी चाहिए.

लेकिन यहां सवाल उठता है कि जस्टिस काटजू ने इतने अहम आरोप लगाने में 10 साल क्यों लगा दिए? जबकि इन दिनों में वो देश हित से जुड़े तमाम मुद्दों पर अक्सर सार्वजनिक मंचों पर अपनी बातें रखते रहे हैं.

सरकार से नज़दीकी!

काटजू के आरोप गंभीर, पर 10 साल बाद? 2

जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपने बयानों को लेकर कई बार विवादों में रहे हैं

इस बारे में जब एक टेलीविज़न चैनल ने उनसे पूछा तो वो बातचीत को बीच में ही छोड़कर चले गए. दरअसल इस सवाल के प्रति उनकी बेरुख़ी ने उन आशंकाओं को ही बल दिया जिनकी वजह से उनकी प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े होते हैं.

ओडिशा हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इशरत मसरूर क़ुद्दूसी ने बीबीसी से बातचीत में आरोप लगाया कि जस्टिस काटजू के ये बयान उनके निजी विचार हैं और इसका मक़सद केंद्र में बनी नई सरकार से नज़दीकी बनाना है.

उनका कहना था, “यूपीए सरकार ने जस्टिस काटजू को प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया का चेयरमैन बनाया था, जिस पर वो अभी भी तैनात हैं. हो सकता है कि वो इस पद पर अभी बने रहना चाहते हों और इसके लिए वो एनडीए सरकार को ख़ुश करना चाहते हैं.”

निश्चित तौर पर इस सवाल का जवाब देने के लिए जस्टिस काटजू को ख़ुद आगे आना चाहिए कि न्यायपालिका में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने में उन्हें इतना समय क्यों लग गया.

वो बेहतर तरीक़े से ये बता सकते हैं कि इस बात को उजागर करने के लिए उन्होंने यही समय क्यों चुना?

खंडन

इस बीच, जिन तीन जजों पर उन्होंने आरोप लगाए हैं, उनमें से एक ने आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि जस्टिस काटजू का बयान नाकाफ़ी है.

न्यायपालिका एक ऐसी संस्था है जिसकी आम लोगों में काफ़ी इज़्ज़त और विश्वसनीयता है. यह न्याय पाने का अंतिम स्थान होता है.

संभव है जस्टिस काटजू के इन आरोपों के बाद न्यायिक सुधार की ज़रूरत को लेकर होने वाली बहस को फिर हवा मिले.

जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक आयोग के गठन का मामला चल रहा है. जस्टिस क़ुद्दूसी कहते हैं कि सरकार को जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम सिस्टम को तुरंत ख़त्म करके जल्दी से जल्दी न्यायिक आयोग के गठन का रास्ता साफ़ करना चाहिए.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Next Article

Exit mobile version