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कीनिया के सांसद ने 30 साल बाद भारत आकर चुकाया 200 रुपये का क़र्ज़

ये बात सिर्फ़ भारत के किसानों के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के किसानों के लिए कही और मानी जाती है कि उनकी संस्कृति, उनकी मिट्टी से है. 75 साल के काशीनाथ मार्तंडराव गवली महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले के वानखेड़ेनगर के निवासी हैं. उनके घर के निचले माले पर किराने की दुकान है और […]

ये बात सिर्फ़ भारत के किसानों के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के किसानों के लिए कही और मानी जाती है कि उनकी संस्कृति, उनकी मिट्टी से है.

75 साल के काशीनाथ मार्तंडराव गवली महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले के वानखेड़ेनगर के निवासी हैं. उनके घर के निचले माले पर किराने की दुकान है और ऊपर के चार माले में वो और उनका परिवार रहता है.

रविवार की शाम, क़रीब सात बजे कशीनाथ अपने घर लौटे. घर लौटकर उन्होंने कुछ देर आराम किया और उसके बाद क़रीब साढ़े सात बजे वो रात के खाने के लिए बैठ गए.

उम्र ज़्यादा हो चली है इसलिए वो रात का खाना थोड़ा जल्दी ही खा लेते हैं. जिस वक़्त काशीनाथ अपना रात का खाना खा रहे थे उनके पुत्र नंदकुमार ने उन्हें फ़ोन किया और उन्हें बताया कि कोई उनसे मिलने आया है.

लेकिन काशीनाथ ने फ़ोन सुनने के बाद भी यह सोचा कि वो पहले अपना खाना ख़त्म करेंगे और उसके बाद कहीं जाकर किसी से मिलेंगे. उन्हें खाना ख़त्म करने में क़रीब दस-पंद्रह मिनट का वक़्त लगा और उसके बाद ही वो सीढ़ी उतरकर नीचे आए.

अधेड़ उम्र का एक विदेशी शख़्स दुकान पर ही काशीनाथ का इंतज़ार कर रहा था.

उस शख़्स के साथ एक महिला भी थी. काशीनाथ उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ गए.

काशीनाथ को देखकर उनसे मिलने आए दोनों लोगों की आंखों में आंसू भर गए. शुरू के सात मिनट तक हर कोई ख़ामोश ही रहा. किसी ने कुछ नहीं कहा और वे सिर्फ़ काशीनाथ को देखकर रोते रहे.

काशीनाथ उन लोगों को देखकर पहचान नहीं पा रहे थे ऐसे में वो समझ ही नहीं पा रहे थे कि ये सब हो क्या रहा है. लेकिन उन्हें रोता देख वो भी इमोशनल हो गए.

लेकिन कुछ वक़्त बाद जब उस अधेड़ उम्र के शख़्स ने काशीनाथ को अपने बारे में बताया, उन्हें सब कुछ याद आ गया.

इस कहानी की शुरुआत साल 1985 में हुई थी तब जब औरंगाबाद में मौलाना आज़ाद कॉलेज के नज़दीक वानखेड़ेनगर कॉलोनी बस रही थी. लोगों को घर बांटे जा रहे थे. लेकिन बहुत से लोगों ने अपने घरों को पास के ही कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को किराए पर भी दे रखा था. इनमें से बहुत से बाहरी देशों से आए छात्र भी थे.

रिचर्ड न्यगका टोंगी भी उन्हीं छात्रों में से एक थे. रिचर्ड साल 1985 में कीनिया से पढ़ाई करने के लिए औरंगाबाद आए थे. वो काशीनाथ की दुकान के पास में ही एक घर किराए पर लेकर रहते थे.

इस दौरान कई बार ऐसा होता था कि उन्हें कीनिया से उनका परिवार सही समय पर पैसे नहीं भेज पाता था. तो वो कई बार काशीनाथ की दुकान से उधार में ज़रूरी सामान ले आया करते थे.

और काशीनाथ भी रिचर्ड को दूध, ब्रेड, अंडा जैसी ज़रूरी चीज़ें बिना किसी संकोच के उधार दे दिया करते थे.

इसके बाद पढ़ाई पूरी करके रिचर्ड साल 1989 में वापस कीनिया लौट गए लेकिन वहां पहुंचकर एक दिन जब वो भारत में रहने के दौरान अपने ख़र्चों का लेखा-जोखा देख रहे थे तब उन्हें याद आया कि उन्होंने काशीनाथ से दो सौ रुपये लिए थे. उस वक़्त से उनके ज़हन में ये एक बात लगातार चल रही थी कि उन्हें काशीनाथ के दो सौ रुपये लौटाने हैं.

इत्तेफ़ाक़ से वक़्त और किस्मत दोनों बदले. रिचर्ड ने राजनीति का रुख़ कर लिया और वो कीनिया की संसद के सदस्य भी बन गए. कीनिया में एक लोकप्रिय राजनेता बनने के बावजूद उनके मन से कभी भी ये बात नहीं गई कि उन्हें काशीनाथ के दौ सौ रुपये लौटाने हैं.

वो अपनी पत्नी से भी अक्सर कहा करते थे, "अगर मैंने उनका उधार नहीं चुकाया तो मैं ईश्वर का सामना कैसे करूंगा?" वो हमेशा दुआ किया करते थे कि उन्हें मौक़ा मिले ताकि वो भारत जा सकें.

तीस साल बाद भारत लौटना

…. और आख़िर में क़रीब 30 साल बाद रिचर्ड को बीते हफ़्ते ये अवसर मिल भी गया. फ़िलहाल वो कीनिया की संसद में कमिटी फ़ॉर डिफ़ेस एंड फॉरेन अफ़ेयर्स के उपाध्यक्ष हैं. हाल ही में वो कीनिया के एक शिष्टमंडल के साथ भारत आए.

दिल्ली में अपना सारा काम निपटाने के बाद वो बीते रविवार औरंगाबाद गए. उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं, जोकि एक डॉक्टर हैं. उसी पुराने मोहल्ले में जाकर उन्होंने काशीनाथ का घर तलाशा. सब कुछ पहले की तुलना में बदल चुका था. उन्हें काशीनाथ का सिर्फ़ उपनाम गवली ही याद था. इस उपनाम को भी वो सही से नहीं बता पा रहे थे और गवाया कहकर लोगों से काशीनाथ के बारे में पूछ रहे थे. ऐसे में लोगों को भी समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर उन्हें मिलना किससे है.

इसके बाद जब उन्होंने लोगों को काशीनाथ के घर के नक्शे और लोकेशन के बारे में कुछ-कुछ बताया तब कहीं जाकर लोगों को समझ आया कि रिचर्ड किसे तलाश कर रहे हैं. इत्तेफ़ाक ही था कि जिस वक़्त रिचर्ड लोगों से बात कर रहे थे, काशीनाथ के चचेरे भाई वहीं थे. वो ही फिर रिचर्ड को लेकर काशीनाथ के घर पहुंचे.

किसान का बेटा

रिचर्ड और काशीनाथ दोनों ही एक-दूसरे से मिलकर बहुत ख़ुश हुए. काशीनाथ, रिचर्ड को अपने साथ अपने घर ले गए ताकि उन्हें चाय पिला सकें. काशीनाथ, रिचर्ड से मिलकर भावुक हो गए थे और इस बात से काफ़ी ख़ुश भी थे कि रिचर्ड कीनिया जाकर एक राजनेता बन चुके हैं. रिचर्ड क़रीब तीन घंटों तक काशीनाथ के घर पर रहे. बातचीत के दौरान रिचर्ड ने काशीनाथ को बताया कि उन्होंने काशीनाथ से दो सौ रुपये लिए थे.

रिचर्ड ने काशीनाथ को 250 यूरो ऑफ़र किये लेकिन काशीनाथ ने कोई भी पैसा लेने से साफ़ मना कर दिया. उन्होंने कहा कि पैसे से ज़्यादा वो इस बात को लेकर खुश हैं कि रिचर्ड वापस आए और उनसे मुलाक़ात की. लेकिन रिचर्ड ने ज़बरदस्ती उन्हें पैसे दिए.

रिचर्ड ने कहा, "आपने मुश्किल समय में मेरा साथ दिया. मैं ये बात कभी भी नहीं भूलूंगा. मैं एक किसान का बेटा हूं. मैं कभी भी बिना उधार चुकाए नहीं रह सकता. अगर मैंने आपका उधार नहीं चुकाया तो मैं भगवान को क्या मुंह दिखाऊंगा."

इसके बाद काशीनाथ ने पैसे ले लिए. रिचर्ड ने काशीनाथ और उनके पूरे परिवार को कीनिया आने का न्योता दिया.

काशीनाथ ने बहुत से छात्रों की मदद की है

काशीनाथ ने बहुत से ग़रीब छात्रों की मदद की है. छात्र भी उन्हें जब-जब उनके पास पैसा होता गया उधार चुकाते रहे. आज के समय में भी बहुत से छात्र हैं जो उनसे मिलने आते हैं.

काशीनाथ कहते हैं, "ये सभी छात्र दूर-दराज़ से पढ़ने के लिए यहां आकर रह रहे थे. मैं उनका दुख जानता हूं इसलिए रियायत दिया करता था. उस वक़्त हम ग़रीब थे इसलिए हम से जो हो पाता था हम करते थे. "

वो कहते हैं, "हमारी सभ्याता कहती है कि अतिथि भगवान समान होता है. मैंने उन्हीं शर्तों को माना. मैंने हर ग़रीब छात्र की मदद करने की कोशिश की. इन छात्रों के साथ-साथ हम भी आगे बढ़े. हमारा घर तैयार हो गया. हमने एक होटल शुरू किया. ये हमारा सौभाग्य है कि हम आज ऐसे दिन देख रहे हैं. हो सकता है कि ये सब हमारे कर्मों का परिणाम हो जो हमने इन छात्रों के लिए उस समय किया हो उसी का नतीजा."

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