बांग्लादेश के पूर्व सैन्य तानाशाह मोहम्मद इरशाद का निधन

ढाका : बांग्लादेश के पूर्व सैन्य तानाशाह हुसैन मोहम्मद इरशाद का उम्र संबंधी परेशानियों के कारण रविवार को ढाका के एक अस्पताल में इंतकाल हो गया. अधिकारियों ने बताया कि वह 91 वर्ष के थे. उनके परिवार में पत्नी रौशन इरशाद, एक बेटा और दो दत्तक पुत्र हैं. जातीय पार्टी के प्रमुख और संसद में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 14, 2019 4:38 PM

ढाका : बांग्लादेश के पूर्व सैन्य तानाशाह हुसैन मोहम्मद इरशाद का उम्र संबंधी परेशानियों के कारण रविवार को ढाका के एक अस्पताल में इंतकाल हो गया. अधिकारियों ने बताया कि वह 91 वर्ष के थे. उनके परिवार में पत्नी रौशन इरशाद, एक बेटा और दो दत्तक पुत्र हैं.

जातीय पार्टी के प्रमुख और संसद में विपक्ष के नेता इरशाद को 22 जून को कम्बाइंड मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस का कहना है कि रविवार सुबह पौने आठ बजे पूर्व राष्ट्रपति ने अंतिम सांस ली. वह पिछले नौ दिन से अस्पताल के आईसीयू में जीवन रक्षक प्रणाली पर थे. जातीय पार्टी के नेता और इरशाद के छोटे भाई जीएम कादीर ने यहां पत्रकारों से कहा, पहले वह आंखों से इशारों से बात कर रहे थे, लेकिन शनिवार को उन्होंने अपनी पल्के नहीं झपकायीं.

राष्ट्रपति अब्दुल हामिद, प्रधानमंत्री शेख हसीना और संसद की अध्यक्ष डॉक्टर शिरिन शर्मिन चौधरी ने इरशाद के निधन पर शोक जताया और उनकी मगफिरत (गुनाहों की माफी) की दुआ की. जातीय पार्टी के महासचिव मोशी उर रहमान रंगा ने यहां पत्रकारों से कहा कि आर्मी सेंट्रल मस्जिद में जोहर (दोपहर) की नमाज के बाद इरशाद की नमाज-ए-जनाजा पढ़ी गयी. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति के लिए तीन और नमाज-ए-जनाजा अदा की जायेंगी. उनकी दूसरी नमाज-ए-जनाजा सोमवार सुबह 10 बजे संसद भवन की साऊथ प्लाजा में अदा की जायेगी. इसके बाद उनकी मय्यत को ककरेल रोड पर स्थित पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में ले जाया जायेगा जहां कार्यकर्ता और आम लोग उन्हें श्रद्धांजलि देंगे. मंगलवार को, इरशाद के जनाजे को रंगपुर में पुश्तैनी गृह जिले में ले जाया जायेगा. इसके बाद जनाजा उसी दिन शाम में वापस ढाका आयेगा और बनानी सैन्य कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया जायेगा.

पूर्व सेना प्रमुख इरशाद 1982 में तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति बने थे और आठ साल तक इस पद पर रहे. 1990 में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के बाद उन्हें पद छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था. इसके बाद, कई इल्जामों में इरशाद को जेल भेज दिया गया, लेकिन वह 1990 के दशक में एक ताकतवर सियासी शख्सियत के रूप में उभरे तथा उनकी जातीय पार्टी तीसरा सबसे बड़ा दल बन गयी. वह कई बार संसद के लिए निर्वाचित हुए. एक बार तो वह जेल से संसद के लिए निर्वाचित हुए थे. उनके शासनकाल में ही इस्लाम को आधिकारिक रूप से धर्मनिरपेक्षक बांग्लादेश का राजकीय मजहब बनाया गया था.

इरशाद का जन्म 1930 में कूचबिहार के उपमंडल दिनहाटा में हुआ था जो अब भारत के पश्चिम बंगाल में है. उनके पिता मकबूल हुसैन और मां माजिदा खातून भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के एक साल बाद 1948 में बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) आये गये थे. वह 1952 में पाकिस्तानी फौज में शामिल हुए थे, तब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था.

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