खिलाड़ी जो बनना चाहते हैं ‘हीरो’
सुशांत एस मोहन बीबीसी संवाददाता, दिल्ली हाल ही में आई फ़िल्म ‘फ़गली’ से भारत के एक और खिलाड़ी ने बॉलीवुड में अपने करियर का आग़ाज़ किया. भारत के ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह ने फ़िल्मी दुनिया का रुख़ किया. इससे भले ही विजेंदर का एक शौक़ पूरा हो गया लेकिन भारतीय खिलाड़ियों को वो एक […]
हाल ही में आई फ़िल्म ‘फ़गली’ से भारत के एक और खिलाड़ी ने बॉलीवुड में अपने करियर का आग़ाज़ किया.
भारत के ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह ने फ़िल्मी दुनिया का रुख़ किया. इससे भले ही विजेंदर का एक शौक़ पूरा हो गया लेकिन भारतीय खिलाड़ियों को वो एक सपना दिखा गए कि वो हीरो बन सकते हैं.
भारत की ओर से पहली बार कॉमनवेल्थ में हिस्सा लेने जा रहे खिलाड़ियों में पवन कुमार, सत्यव्रत जैसे खिलाड़ी हैं जो कोई मेडल जीतने के बाद फ़िल्मों में काम करना चाहेंगे. वहीं 57 किलोभार वर्ग में विश्व के नंबर नौ खिलाड़ी अमित कुमार दहिया फ़िल्मों के लिए ख़ुद को तैयार मानते हैं.
बीबीसी से एक ख़ास मुलाक़ात में अमित ने कहा, "अब भारत में खेल भी पॉपुलर हो गए है, लोग हमें पहचानते हैं और यह हमें अच्छा लगता है. हमारी इस लोकप्रियता के लिए कोई हमें फ़िल्मों में लेना चाहे तो ज़रूर करेंगे."
रिश्ता पुराना
वैसे बॉलीवुड और खेलों का रिश्ता काफ़ी पुराना है. क्रिकेट से आए कई खिलाड़ी सिने पर्दे पर भी नज़र आए, जैसे विनोद कांबली, अजय जडेजा और सलिल अंकोला.
क्रिकेट से बाहर लिएंडर पेस, ग्रेट खली, दारा सिंह, प्रवीण कुमार और विंजेदर सिंह ताज़ा उदाहरण हैं. वहीं भारत के स्टार खिलाड़ी सुशील कुमार भी छोटे पर्दे पर नज़र आए.
इसमें कोई बुराई भी नहीं, लेकिन तब तक जब तक इससे खेल प्रभावित नहीं होते.
पटियाला में कार्यरत भारतीय खेल प्राधिकरण के निदेशक (उत्तर भारत) एस एस रॉय ने बीबीसी से ख़ास मुलाक़ात में नई जानकारी दी.
उन्होंने बताया, "ख़िलाड़ी अब चोट का बहाना बनाकर शूटिंग के लिए जाने लगे हैं. (बिना कोई नाम लिए) वो फ़िल्म के प्रमोशन के लिए नेशनल कैंप मिस कर रहे हैं."
क्या इसे ठीक नहीं किया जा सकता? इस पर उनका कहना था, "यह काम फ़ेडरेशन का है हमारा नहीं. हां यह हमारी नज़र से बाहर नहीं है."
अपवाद
ऐसा नहीं कि सभी खिलाड़ी ग्लैमर की चकाचौंध से प्रभावित हैं. कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें इससे बिलकुल फ़र्क नहीं पड़ता.
ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त कहते हैं, "मुझे टीवी-फ़िल्मों में आने का शौक नहीं है. मेरे लिए कुश्ती पहली प्राथमिकता है और बच्चों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए."
एशिया के नंबर तीन पहलवान बजरंग का भी यही मानना था. "मेरा पूरा ध्यान कुश्ती पर है. यह सब करने के लिए अभी बहुत वक़्त है."
ग्लैमर की चकाचौंध से हर कोई प्रभावित होता है, मगर क्या इस चमक में खेलना भूल जाना सही है?
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