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प्रकृति और रॉयल राजस्थान का फ्यूजन

डॉ कायनात काजी सोलो ट्रेवलर बारिश की पहली फुहार से ही अरावली पर्वत शृंखला की चोटियां हरी हो जाती हैं. ऐसे में राजस्थान की सौंधी-सौंधी मिट्टी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. अरावली के साथ-साथ बहती बनास नदी बरसातों में अपने पूरे शबाब पर होती है. बनास का मतलब है- बन की आस. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2019 3:01 AM

डॉ कायनात काजी

सोलो ट्रेवलर

बारिश की पहली फुहार से ही अरावली पर्वत शृंखला की चोटियां हरी हो जाती हैं. ऐसे में राजस्थान की सौंधी-सौंधी मिट्टी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. अरावली के साथ-साथ बहती बनास नदी बरसातों में अपने पूरे शबाब पर होती है. बनास का मतलब है- बन की आस. मेरा मन इस बार राजस्थान के वैभव और प्राकृतिक सौंदर्य की ओर खिंचा जा रहा है.
भारत में लगभग आठ हजार से ज्यादा रजवाड़े और रियासतें हैं. कितने ही महल, किले और दुर्ग हैं, जिन्हें अल्ट्रा लग्जरी रिजॉर्ट्स में बदला जा चुका है. राजस्थान में भी ऐसी कई छोटी रियासतें हैं, जिन्हें रिजॉर्ट्स बनाकर लोगों के लिए खोल दिया गया है. आपको ऐसे ही एक रियासत की सैर करवानेवाली हूं.
जयपुर राज घराने की एक रियासत थी पचेवरगढ़, जो टोंक जिले में पड़ता है. यहां तीन सौ वर्ष पुराना एक किला है और बहुत कुछ देखने लायक स्थान हैं. चौबुर्जा किले के नाम से प्रसिद्ध पचेवरगढ़ वर्तमान में देशी-परदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. पचेवरगढ़ की मालकिन राजकुमारी मधुलिका सिंह बताती हैं कि किसी जमाने में कस्बे में खंगारोत राजपूतों का शासन था. ठाकुर अनूप सिंह खंगारोत एक कुशल योद्धा थे.
उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े, जिनमें मराठों से रणथम्भौर के किले पर कब्जा कर पुन: जयपुर शासन को संभाल लिया था. उनके साहस और महाराजा सवाई माधोसिंह के प्रति वफादारी के एवज में 1758 ईस्वी में पचेवर की कछावा राजपूतों को पचेवरगढ़ की मनसबदारी इनाम में दी थी.
जब देश आजाद हुआ, तो सभी रजवाड़ों को सरकार ने कस्टोडियन में ले लिया था. फोर्ट पचेवारगढ़ भी तब सरकार के पास चला गया, लेकिन राजकुमारी मधुलिका सिंह की मां रानी नंदेश्वरी देवी ने हार नहीं मानी और अदालत में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.
पैंतीस वर्ष लंबी कानूनी लड़ाई चली और फैसला इनके हक में आया. लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इतने साल ताला जड़े होने से वह गढ़ चमगादड़ों का घर बन गया था, लेकिन राजकुमारी मधुलिका सिंह ने फिर से उस गढ़ के वैभव को वापस ला दिया.
उसी समय यहां एक कैसल का निर्माण हुआ, जिसमें यहां का शाही परिवार रहता है. उसके एक हिस्से को बतौर रिजॉर्ट लोगों के लिए खोल दिया गया है. जहां रहकर आप एक शाही हॉलिडे का आनंद ले सकते हैं और इस फोर्ट को डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी स्तेमाल कर सकते हैं. आप अपने प्रवास के दौरान शाही रसोइये से उनकी खास रेसिपी भी सीख सकते हैं. खुद राजकुमारी जी कुकरी क्लास का आयोजन करती हैं.
टोंक जिले का एक छोटा सा गांव है पचेवर. वहां रॉयल ट्रीटमेंट के लिए एक आलीशान कैसल मौजूद है, जहां राजस्थान की लोक संस्कृति से रूबरू करवाने के लिए विलेज सफारी का इंतजाम है. पचेवर में ही एक खुबसूरत लेक है, जिसका नाम है पाम्पा सागर लेक. इस लेक के किनारे कछावा राज परिवार की सुंदर छत्रियां बनी हुई हैं, जहां से सनसेट बहुत सुंदर दिखता है. पचेवर से 23 किमी की दूरी पर है मालपुरा, जहां एक भव्य जैन मंदिर है, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं.
पचेवर के नजदीक ही एक और दार्शनिक स्थल है टोडारायसिंह. यहां की सुंदर बावड़ी देखने लायक है. इस जगह पर कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है. यहां राजा टोडरमल का एक भव्य महल भी है. पचेवर के पास बीसलपुर डैम है, जहां स्थानीय लोग पिकनिक मनाने आते हैं. डैम के रास्ते में जगह-जगह पर बरसाती सीजन में कई वाटरफॉल मिल जाते हैं. यहां पास ही एक शिव मंदिर भी है.
पचेवर से मात्र 50 किमी की दूरी पर प्रसिद्ध सांभर साल्ट लेक है. वहां हर साल सर्दियों में सैंकड़ों अप्रवासी पक्षी आते हैं. लोग खास तौर पर वहां गुलाबी रंग के मनमोहक पक्षी फ्लेमिंगो देखने जाते हैं. इस लेक पर फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है.
यहां पर आप नमक की खेती होती देख सकते हैं. जहां एक तरफ पचेवरगढ़ फोर्ट में आपको रॉयल राजस्थान के राजसी पकवान चखने को मिलेंगे, वहीं पचेवर गांव में आपको चूल्हे पर पकी बाजरे की रोटी और खेर सांगरी की सब्जी का देसी स्वाद चखने को भी मिलेगा. अगर आप अपने साथ कुछ यादगार लेकर जाना चाहते हैं, तो नजदीक के घटियाली गांव में बनायी जा रही विश्व प्रसिद्ध ब्लू पॉटरी जरूर खरीदें. विदेशियों को यह पॉटरी बहुत पसंद है.

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