नयी किताब : शोध की रचनात्मकता

इतिहास और किंवदंतियों के बीच झूलते जायसी के महाकाव्य पद्मावत की विवेचना करती मुजीब रिजवी की किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ को महमूद फारूकी ने शाया कर पुस्तक प्रेमियों को उपकृत किया. उनका यह कहना महत्त्वपूूूर्ण है कि पद्मावत की और प्रेमाख्यानों की पूरी रिवायत की सबसे बड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2019 4:43 AM
इतिहास और किंवदंतियों के बीच झूलते जायसी के महाकाव्य पद्मावत की विवेचना करती मुजीब रिजवी की किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा : पद्मावत और जायसी की दुनिया’ को महमूद फारूकी ने शाया कर पुस्तक प्रेमियों को उपकृत किया. उनका यह कहना महत्त्वपूूूर्ण है कि पद्मावत की और प्रेमाख्यानों की पूरी रिवायत की सबसे बड़ी उपलब्धि और विशेषता यही है कि इसे किसी भी स्तर या रूप में पढ़ा-सुना जा सकता है. इस ग्रंथ मेंं भारतीय काव्य, लोक साहित्यिक, धार्मिक और भाषाई परिभाषाएं अरबी-फारसी के किस्से और कहावतों से ऐसे गुंथा हुआ है कि इन्हें अलगाया नहीं जा सकता.
मुजीब रिजवी साहब ने अपने इस शोध प्रबंध को पांच अध्यायों में सिर्फ पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के लिए नहीं लिखा था, बल्कि एक रचनात्मक कृति के बतौर भी लिखा था. इसमें सिर्फ जायसी के काव्य-संसार की छानबीन भर नहीं है, बल्कि 16वीं शताब्दी के सांस्कृतिक माहौल से भी पाठक परिचित होता है. तभी विश्वनाथ त्रिपाठी भूमिका में कह पाते हैं कि मुझे आभास मिला कि जायसी उन रचनाकारों में से हैं, जो हिंदी जाति या हिंदुस्तानी कौमियत की एकात्मा का निर्माण कर रहे हैं.
इस किताब से यह भी निष्कर्ष निकलता है कि जायसी का दृष्टिकोण समन्वयवादी रहा है और उनका काव्य संसार भव्य है. कबीर, सूर और तुलसीदास के साथ जायसी भी 16वीं सदी के ऐसे सुकवि हैं, मानो हिंदी कविता कामिनी का शृंगार करने के लिए ही जन्मे हों. इनकी रचनाएं तत्कालीन समाज का दर्पण ही नहीं, आज के समय में मार्गदर्शक की भूमिका में भी देखी जा सकती है.
रिजवी शब्दगत बिंबों, पद विन्यास, अर्थ-वैविध्य और वर्ण्य-विषय की दृष्टि से पद्मावत को आखिरी कलाम से पहले की रचना नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि पद्मावत ही जायसी के संपूर्ण जीवन की काव्यसाधना का फल और उनकी व्यापक अनुभूति तथा उन्नत विचारों का कोष है, अतः यह संपूर्ण 16वीं शताब्दी की सांस्कृतिक गतिविधि का आईना है.
जायसी का मानना था कि सुखभोग की स्थिति ही स्वर्ग है और मानसिक-शारीरिक पीड़ा ही नरक है. नरक-स्वर्ग दोनों का अनुभव मनुष्य को इसी संसार में होता है. वे कुरान, कठोपनिषद, गीता और तंत्र-मंत्र के रहस्य भी जानते थे.
यही कारण है कि वे 16वीं शताब्दी में पद्मावत के माध्यम से भावात्मक एकता की वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करते हैं. हिंदी साहित्य और आलोचना दोनों को समृद्ध करनेवाली यह किताब आज के समय में बहुत प्रासंगिक है.
मनोज मोहन

Next Article

Exit mobile version