<figure> <img alt="कश्मीर में सेना की तैनाती" src="https://c.files.bbci.co.uk/94C1/production/_108218083_fd1d87ef-8ed8-4390-9d6b-d6b827994bc4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के मोदी सरकार के फ़ैसले का विरोध उसी की एक सहयोगी पार्टी ने किया है.</p><p>नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इस मामले में सदन में वोट करने के बजाय वॉक आउट करने का फ़ैसला किया. </p><p>इस मामले में जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी का कहना है कि पार्टी राम मनोहर लोहिया के विचारों को मानती है और इसका पालन करती है और इस कारण 370 को बरक़रार रखने के पक्ष में है न कि उसे निरस्त करने के.</p><p>उनके इस बयान ने यह चर्चा छेड़ दी है कि आख़िर लोहिया कश्मीर मुद्दे पर, ख़ास तौर पर अनुच्छेद 370 पर क्या विचार रखते थे. </p><p>राम मनोहर लोहिया पर लंबे अरसे तक काम कर चुके <strong>बीबीसी के पूर्व संवाददाता कुर्बान अली </strong>बताते हैं कि हिन्दी में नौ और अंग्रेज़ी में कुल नौ खंडों में ‘लोहिया के विचार’ प्रकाशित हुए हैं. इनमें कश्मीर पर एक पूरा चैप्टर है लेकिन कहीं भी उन्होंने अनुच्छेद 370 लगाए जाने का विरोध नहीं किया है.</p><p>वो बताते हैं कि "कश्मीर के मुद्दे पर लगातार उनका यही स्टैंड रहा है कि कश्मीर के लोगों की रज़ामंदी के ख़िलाफ़ कोई भी काम नहीं होना चाहिए. उनको पाकिस्तान में रहना है या फिर हिंदुस्तान में ये उनका फ़ैसला होना चाहिए."</p><p><a href="https://books.google.co.in/books?id=sctwuur-nmAC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false">’लोहिया के विचार'</a> में राम मनोहर लोहिया ख़ुद लिखते हैं "मेरा बस चले तो मैं कश्मीर का मामला बिना इस महासंघ के हल नहीं करूंगा. उनका कहना था कि हिंदुस्तान पाकिस्तान का महासंघ बनना चाहिए जिसमें कश्मीर चाहे किसी के साथ हो या फिर अलग इकाई बने, लेकिन महासंघ में आए."</p><h3>शेख़ अब्दुल्ला का साथ</h3><figure> <img alt="शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला" src="https://c.files.bbci.co.uk/12D19/production/_108218077_gettyimages-3416750.jpg" height="700" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>’शेर-ए-कश्मीर’ कहे जाने जाने वाले शेख़ मोहम्मद अब्दुल्लाह ने ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी जिसे बाद में जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस का नाम दिया गया.</p><p>उन्होंने भारत की आज़ादी के बाद कश्मीर के पाकिस्तान में चले जाने का विरोध किया था. साल 1948 में वो जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने. क़ानूनी रूप से भारत के साथ कश्मीर की स्थिति क्या होगी, इस पर नेहरू के साथ उनकी लंबी चर्चा चली. इसी के बाद अनुच्छेद 370 अस्तित्व में आया. </p><p>क़ुर्बान अली बताते हैं कि "लोहिया ने बहुत सफ़ाई के साथ शेख़ अब्दुल्लाह का समर्थन किया है."</p><p>वो कहते हैं, "उनका संबंध लगातार शेख़ अब्दुल्लाह से बना रहा. लोहिया की मौत पर शेख़ अब्दुल्लाह उन्हें श्रद्धांजलि देने आए थे. उस वक़्त उन्होंने कहा था कि लोहिया अकेला ऐसा आदमी था जो कश्मीरी लोगों का दर्द समझता था."</p><p>उन्होंने संसद में भी इसका विरोध किया. 17 सितंबर 1963 को उन्होंने विदेश नीति पर बोलते हुए कश्मीर का ज़िक्र किया था.</p><figure> <img alt="राम मनोहर लोहिया" src="https://c.files.bbci.co.uk/15429/production/_108218078_7e91fe16-3714-44ab-a5b8-9849bd0d497e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>LOHIA TRUST</footer> </figure><p>लोहिया का कहना था कि भारत और पाकिस्तान का महासंघ बनना चाहिए जिसमें कश्मीर की मर्ज़ी शामिल होनी चाहिए.</p><p>अपनी किताब <a href="https://books.google.co.in/books?id=-nVqCwAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false">’डॉ राममनोहर लोहिया और सतत समाजवाद'</a> में कन्हैय्या त्रिपाठी लिखते हैं कि अपने जीवन के अंत तक लोहिया को लगता रहा कि भारत, पाकिस्तान और कश्मीर का एक महासंघ संभव है. वो इस महासंघ को भारत-पाकिस्तान के विभाजन के विकल्प के तौर पर देखते थे. </p><p>लोहिया का मानना था कि कश्मीर मुददे पर उस दौर की सरकार और संवेदनशील हो सकती थी और इसे एक अलग स्वायत्त राज्य के रूप में भी रहने दिया जा सकता था.</p><h3>नेहरू से मतभेद</h3><p>कश्मीर को लेकर नेहरू और लोहिया के विचारों में मतभेद की बात जगज़ाहिर है. </p><p>राममनोहर लोहिया पर अपनी किताब में कुमार मुकुल लिखते हैं कि लोहिया के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री ने 1957 के चुनाव में कश्मीर पर जितने भाषण दिए उतने अपने सारे जीवन में नहीं दिए थे.</p><figure> <img alt="नेहरू" src="https://c.files.bbci.co.uk/17B39/production/_108218079_08c793a0-5825-4e52-8a48-f4f984500be3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>क़ुर्बान अली बताते हैं कि "जब नेहरू सरकार ने 1953 में शेख़ अब्दुल्लाह सरकार को बर्ख़ास्त किया तो लोहिया ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था. और जब शेख़ अब्दुल्लाह जम्मू की जेल में थे तो उन्होंने अपने दो सांसदों कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया और राम सेवक यादव को उनसे मिलने भेजा. उन्होंने उन्हें एक ख़त दिया था."</p><p>"इस ख़त को बाद में अर्जुन सिंह भदौरिया ने बाद में अपनी आत्मकथा में प्रकाशित किया था. इस ख़त में लिखा था ‘शेख़ साहब हम आपके साथ हैं. हम चाहते हैं कि आप पूरे देश का नेतृत्व करें."</p><p><strong>भारत-पाकिस्तान </strong><strong>एकीकरण के हिमायती</strong></p><p>राम मनोहर लोहिया का मानना था कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान एक धरती के दो टुकड़े ही हैं और सोच-समझ कर काम करें तो 10-15 साल में फिर से एक हो सकते हैं. </p><figure> <img alt="भारत-पाकिस्तान विभाजन" src="https://c.files.bbci.co.uk/46A1/production/_108218081_5648eb6e-ff30-4682-a2bc-a68646e60ce5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p><a href="https://books.google.co.in/books?id=sctwuur-nmAC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false">’लोहिया के विचार'</a> में वो ख़ुद लिखते हैं "कश्मीर का सवाल अलग से हल करने की बात चलती है मैं कुछ भी लेने-देने को तैयार नहीं हूं. मेरा बस चले तो मैं कश्मीर का मामला बिना इस महासंघ (भारत पाकिस्तान के महासंघ) के हल नहीं करूंगा. मैं साफ़ कहना चाहता हूं कि अगर हिंदुस्तान-पाकिस्तान का महासंघ बनता है तो चाहे कश्मीर हिंदुस्तान में रहे, चाहे पाकिस्तान के साथ रहे. चाहे कश्मीर एक अलग इकाई बन कर हिन्दुस्तान-पाकिस्तान महासंघ में आए. पर महासंघ बने कि जिससे हम सब लोग फिर एक ही ख़ानदान के अंदर बने रहें."</p><p>इस बारे में और रोशनी डालते हुए क़ुर्बान अली कहते हैं, वो बंटवारे के पक्ष में नहीं थे.</p><p>वो बताते हैं, "लोहिया ने कहा है कि ये जो बंटवारा हुआ वो अप्राकृतिक था और कभी न कभी वो वक़्त आएगा कि जब भारत और पाकिस्तान मिलेंगे क्योंकि दोनों का एक ही इतिहास, भूगोल और संस्कृति है."</p><p>लोहिया का मानना था कि जब तक ये दोनों देश न मिल सकें तब तक इसका एक महासंघ बनना चाहिए.</p><p>कन्हैया त्रिपाठी लिखते हैं कि लोहिया का मानना था कि दुनिया के अगले दौर की बुनियाद एकीकरण की नींव पर ही रखी जा सकती है. </p><p>उनके अनुसार भारत-विभाजन की वजह से इस्लाम पर आधारित सांप्रदायिकता को एक भौगोलिक व ठोस रूप दिया जा चुका है, जिसके निरस्त होने से ही इस्लाम और हिंदू सांप्रदायिकता के पैरों तले की ज़मीन खिसकाई जा सकती है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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कश्मीर पर राम मनोहर लोहिया क्या सोचते थे?
<figure> <img alt="कश्मीर में सेना की तैनाती" src="https://c.files.bbci.co.uk/94C1/production/_108218083_fd1d87ef-8ed8-4390-9d6b-d6b827994bc4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के मोदी सरकार के फ़ैसले का विरोध उसी की एक सहयोगी पार्टी ने किया है.</p><p>नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इस मामले में सदन […]
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