जूट के सामान से बढ़ता आत्मसम्मान

पंचायतनामा डेस्क जूट का उपयोग कई तरह से होता है. इससे कई तरह का सामान बनते हैं. जूट का एक और उपयोग हो रहा है. इससे आधी आबादी अपने जीवन को संवार रही हैं. तरक्की और आधुनिकता के इस दौर में आधी आबादी कई विकल्पों पर काम कर के अपनी कार्यक्षमता को साबित कर रही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2014 8:53 AM

पंचायतनामा डेस्क

जूट का उपयोग कई तरह से होता है. इससे कई तरह का सामान बनते हैं. जूट का एक और उपयोग हो रहा है. इससे आधी आबादी अपने जीवन को संवार रही हैं. तरक्की और आधुनिकता के इस दौर में आधी आबादी कई विकल्पों पर काम कर के अपनी कार्यक्षमता को साबित कर रही है. वैशाली के ग्रामीण इलाके की यह महिलाएं जूट से कई तरह के सामान को बनाकर न केवल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही हैं बल्कि आर्थिक स्तर पर भी खुद को सुदृढ कर रही हैं.

सबल बनाने के लिए सहारा

महिला और उनकी हितों में कार्य करने वाली संस्था से जुड़ी माला बताती हैं, हमारा काम पूरे बिहार में चलता है. ध्येय यही होता है कि ग्रामीण इलाके की वैसी महिलाएं जो प्रतिभा संपन्न हैं, उनकी प्रतिभा को सामने लाया जाये और उन्हें इस तरह से प्रशिक्षण दिया जाये कि वह अपने काम को निखारने के साथ आर्थिक तौर पर भी मजबूत हो सकें. प्रयास यही रहता है कि जिस महिला की जैसे कार्य में रुचि हो, उसी कार्य में उनका सहयोग किया जाये. हमारी संस्था इसके लिए अपने स्तर से उन क्षेत्रों में एक सर्वे कराने के बाद यह निर्णय लेती है कि महिलाएं किस कार्य को करना चाहती हैं. पूरे राज्य में कई जगहों पर कई तरह के कार्य आधी आबादी की उन्नति के लिए हो रहे हैं.

खुद बनायी राह

वैशाली जैसे इलाके में जूट को कार्य कराने को लेकर पूछने पर माला बताती हैं, इसके लिए जब क्षेत्र को चुना गया तो इन सभी महिलाओं से यह जानने की कोशिश की गयी कि वह किस तरह का कार्य करना चाहेंगी? कई विकल्प भी बताये गये थे, सभी ने जूट के कार्य को करने में अपनी सहमति जतायी. तब इस कार्य को आरंभ किया गया. वह कहती हैं, सन् 2002 में इसकी नींव डाली गयी थी. तब करीब 65 महिलाओं को इस काम में जोड़ा गया था. अभी इनकी संख्या में कुछ कमी आई है. फिर भी करीब 30 महिलाएं लगातार इस काम को कर रही हैं.

सरकार भी करती है कला की कद्र

खूबसूरत डिजाइनों से सजी धजी जूट के बैग, टिफिन बैग, बोतल बैग सभी को बखूबी आकर्षित करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि कम कीमत में लोगों को डिजाईनों के कई विकल्प मिल जाते हैं. बैग की कीमत 45 से 350 रुपये के बीच है. यह कीमत जूट के गुणवत्ता और डिजाइन पर निर्भर करता है. इन महिलाओं के द्वारा बनाये गये फाइल फोल्डर की भी मांग हमेशा बनी रहती है. ये फोल्डर जूट से बने होने के कारण पर्यावरण के अनुकूल तो होते ही हैं, साथ ही मजबूत होने के कारण भी खरीदार इसे काफी पसंद करते हैं. माला बताती हैं, राज्य सरकार हमेशा इन महिलाओं के द्वारा बनाये गये फाइल फोल्डर को खरीदती रहती है. सरकार से जब भी आदेश मिलता है, जूट के बने इन फोल्डरों की आपूर्ति कर दी जाती है. वह कहती हैं, ज्यादातर सरकारी विभाग हमारे पास से हमेशा फाइल फोल्डर लेते हैं. इनकी कीमत 110 रुपये से 275 रुपये के बीच होती है. वह कहती हैं, आमतौर पर बाजार के हिसाब से दर तय होता है. पूरे साल में मई से जून तक थोड़ी धीमी गति से कार्य होता है, लेकिन जुलाई महीने से कार्य फिर प्रगति पर आ जात है. इन महीने में ऑर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं. जितना ज्यादा ऑर्डर मिलता है. आमदनी भी उसी रुप में होती है. जूट के पीस के ऊपर भी आमदनी होती है.

कहीं का जूट, कहीं की मेहनत

इन सामानों को बनाने के लिए रॉ मेटेरियल वाले जूट को कोलकाता से मंगाया जाता है. शुरू में यह काम संस्था के स्तर पर होता था, लेकिन जैसे जैसे महिलाओं ने अपनी जिम्मेदारी को संभाला. अपने काम को भी बांट लिया. अब केवल संपर्क करने पर ही रॉ मेटेरियल वाला जूट आ जाता है.

नया प्रयोग खरीदारों को भाया

आकर्षित करने वाले डिजाइन वाले बैग, फोल्डर वैसे तो पहले से ही लोगों को पसंद है. इन महिलाओं ने कुछ नया करने के लिए जूट के साथ कॉटन को मिला कर एक नया प्रयोग किया है, जिसे ‘जोकूकॉटन ’ नाम दिया गया है. इससे डीलक्स डिजाइन वाले बैग बनते हैं. बाजार में इनकी मांग बहुत है.

प्रदर्शनी में दिखाया दम

गांव की महिलाओं को दुनिया के सामने लाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य करने के बाद कुछ और भी पहल की गयी है. इसके बारे में माला बताती हैं, राज्य सरकार और विभागीय स्तर पर जो भी प्रदर्शनी लगती हैं, उनमें महिलाएं अपनी सहभागिता को पूरी ईमानदारी से निभाती हैं. साल में छह – सात बार प्रदर्शनी में हिस्सा लेती हैं. कोई पुरस्कार तो नहीं मिला है लेकिन प्रदर्शन में इस कार्य को लेकर लोगों में काफी आकर्षण बना रहता है.

सामाजिक कार्यो से भी सरोकार

इस काम को करने वाली सभी महिलाएं नाम मात्र के लिए शिक्षित हैं. उनके अंदर शिक्षा की लौ जगाने के लिए भी संस्था द्वारा कार्य किया जाता है. बकौल माला, हमारी यह पूरी कोशिश होती है कि काम करने के साथ सभी महिलाएं शिक्षा के महत्व को भी जाने. इसके लिए समय समय पर शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य किया जाता है. आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से कितना प्रभाव पड़ा है? इसके बारे में उनका कहना है, काम को मिलते उचित दाम से सभी के अंदर आत्मविश्वास आ गया है. पहले जहां वह घर, परिवार की जिम्मेदारी को बमुश्किल उठा पाती थी, वहीं अब घर का खर्च निकालने के साथ अपने बच्चों को शिक्षा दिलवा रही हैं.

मिलता है मेहनत को सम्मान

इस काम में लगी महिलाओं को किस तरह से आर्थिक लाभ मिलता है? इसके बारे में माला बताती हैं, संस्था ने सभी महिलाओं को शेयर होल्डर बना दिया है. पूरे साल में बिक्री से जितनी कमाई होती है, उसे महिलाओं में बांट दिया जाता है. किसने कितना काम किया है? इसका पूरा लेखा – जोखा रखा जाता है. जो महिला जितना कार्य करती है, उसी हिसाब से उसका भुगतान होता है. इनके काम को ग्रामीण इलाके से निकाल कर शहरों तक लाने और लोगों तक सीधी पहुंच बनाने के लिए संस्था के स्तर पर एक और कोशिश की गयी है. इनके द्वारा बनाये गये सामान की बिक्री के लिए पटना शहर में एक आउटलेट भी खोला गया है. माला बताती हैं, अभी तक इसका बढ़िया परिणाम सामने आया है. आगे कुछ और भी आउटलेट खोलने की योजना है.

पाठक ज्यादा जानकारी के लिए इस पते पर संपर्क कर सकते हैं –

वामा स्वावलंबी सहकारी समिति

ग्राम – विदुपोखर, प्रखंड – हाजीपुर

जिला – हाजीपुर, मोबाइल नंबर – 09910306625

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