मित्रों,
झारखंड-बिहार एक बार फिर सूखे की दहलीज पर खड़े राज्य हैं. अब क्या होगा? यह बड़ा सवाल है. इस सवाल का हल केवल इस रूप में देखा जाता है कि किसान अपनी किस्मत का रोना रोकर नुकसान उठायेंगे और दूसरा कि सरकार राहत कार्य चलायेगी. सरकार कुछ अनुदान देगी और किसान वैकिल्पक खेती कर नुकसान की कुछ भरपाई कर लेंगे, लेकिन एक तीसरा पक्ष भी है, जो पूरी तरह कृषि और किसानों से जुड़ा हुआ. इस पर हमारी नजर नहीं जाती है, जबकि वह न केवल आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि कानूनी रूप से ऐसे हालात में अपने मुनाफे की एक निश्चित राशि खर्च करने के लिए मजबूर भी है. वह है कृषि कंपनियां. केवल सुखाड़ और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ही नहीं, सभी अनुकूल-प्रतिकुल परिस्थितियों में और केवल कृषि कंपनियां ही नहीं, सभी तरह की बड़ी कंपनियां सामाज की भलाई के लिए भी उत्तरदायी हैं. इसे संक्षेप में सीएसआर कहते हैं. हम यहां इसके बारे में बता रहे हैं, ताकि कंपनियों को सामुदायिक लाभ के क्षेत्र में खर्च करने के लिए आप बाध्य कर सकें.
आरके नीरद
कंपनियों का सामाजिक दायित्व, जिसे अंग्रेजी में कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसिब्लिटी यानी सीएसआर कहते हैं, केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रलय के अधीन आता है. इस संबंध में नियम-परिनियम वही बनाता है. राज्य सरकारें उन नियमों के तहत अपने राज्य के लोगों के सामाजिक लाभ के लिए इन कंपनियों से खर्च कराती है. सीएसआर के नियम को लेकर केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रलय ने इस साल 27 फरवरी को अधिसूचना जारी की है. यह पहली अप्रैल 2014 से लागू किया गया है. यह नियम कुछ नये प्रावधान भी किये गये हैं.
किन कंपनियों पर सीएसआर नियम लागू
इस नये नियम के अनुसार वैसी कंपनियां, जिन्हें भारी मुनाफा होता है, उन्हें अपने मुनाफे का कम से कम 02 प्रतिशत हिस्सा वैसी गतिविधियों पर खर्च करना है, जो उस क्षेत्र के लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, नैतिक और स्वास्थ्य आदि में सुधार के लिए हो तथा जिससे उस क्षेत्र की आधारभूत संरचना, पर्यावरण और सांस्कृतिक विषयों को बढ़ाने में मदद मिल सके. इस तरह की गतिविधियों के जरिये वहां के सामाजिक विषयों के विकास में योगदान करना इस कंपनियों की सामाजिक जिम्मेवारी है. इसे ही एसआर कहते हैं. यानी भारी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को समाज की भलाई में अपनी कमाई को कम से कम दो प्रतिशत खर्च करना है. नये नियम में इन कंपनियों को इस तरह चिह्न्ति किया है :
ऐसी कंपनी, जिसमें कम से कम 500 करोड़ रु पये निवेश हुआ हो.
ऐसी कंपनी, जिसे एक साल में कम से कम पांच करोड़ रु पये का शुद्ध मुनाफा हुआ हो.
ऐसी कंपनी, जो कम से कम 1000 करोड़ रु पये का कारोबार करती हो.
इन सभी कंपनियों को अपनी कमाई का 2} हिस्सा सीएसआर गतिविधियों में खर्च करना है.
मुनाफे में शामिल नहीं
कंपनियों के मुनाफे की गणना करते समय विदेशी शाखाओं से होने वाले लाभ और भारत में दूसरी कंपनियों से मिलने वाले लाभांश को मुनाफे से बाहर रखा गया है. उसी प्रकार सीएसआर गतिविधियों से बचा पैसा कंपनी के मुनाफे का हिस्सा नहीं होगा.
सीएसआर में खर्च की राशि की गणना
नियम के मुताबिक सीएसआर के दायरे में आने वाली कंपनियों को अपने तीन साल के औसत वार्षिक शुद्ध लाभ का 2} हिस्सा इस तरह की गतिविधियों पर हर साल खर्च करना है. साल का मतलब वित्तीय वर्ष है. यानी पहली अप्रैल से 31 मार्च. यानी नया नियम इस वित्त वर्ष से लागू है.
हर कंपनी की सीएसआर
नियम के मुताबिक कंपनियों को अपनी सीएसआर नीति बनानी होती है. उस नीति की उन्हें घोषणा भी करनी है. घोषणा में उन्हें पूरे वित्त वर्ष के लिए अपनी योजनाओं, गतिविधियों, कार्यक्र मों और परियोजनाओं का स्पष्ट उल्लेख करना होता है. उन्हें बताना होता है कि वे अपने लाभ की 2} राशि किस क्षेत्र में, किन के बीच और किस तरह खर्च करेंगी.
दो कंपनियां मिल कर भी चला सकती हैं गतिविधियां
सीएसआर के नये नियम के मुताबिक कोई कंपनी दूसरी कंपनी के साथ मिल कर भी सीएसआर की गतिविधियां चला सकती है. यानी एक से अधिक कंपनियां आपस में मिल कर कोई कार्यक्रम, परियोजना या आयोजन संचालन सम्मिलित रूप से कर सकती हैं, लेकिन उन्हें रिपोर्ट अलग-अलग दिखाना होगा. यानी वे सीएसआर रिपोर्ट अलग-अलग प्रस्तुत करेंगी, जिसमें उनके हिस्से का खर्च भी अंकित होगा.
एनजीओ भी हो सकते हैं भागीदार
कोई कंपनी अपने हिस्से के सीएसआर को पूरा करने के लिए किसी संस्था या ट्रस्ट को भागीदार बना सकती है, लेकिन ऐसी संस्था को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 तथा ट्रस्ट को ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत होना होगा.
राजनीतिक दल को लाभ नहीं
सीएसआर गतिविधि के तहत किसी पंजीकृत संस्था या ट्रस्ट को कोई कंपनी धन दे सकती है. उस संस्था द्वारा कंपनी की सीएसआर नीति और उसके कार्यक्रम के अनुसार वह राशि खर्च की जा सकती है. उसे कंपनी अपनी सीएसआर रिपोर्ट में शामिल करेगी, लेकिन किसी राजनीतिक दल को किसी भी प्रकार से और किसी भी गतिविधि के लिए दी गयी राशि सीएसआर के दायरे में नहीं आयेगी. ऐसा कंपनी, समुदाय के लाभ और राजनीति को अलग-अलग रखने के लिए किया गया है, ताकि कोई सत्तारूढ़ या प्रभावशाली राजनीतिक दल किसी कंपनी से सीएसआर के नाम पर मोटी रकम लेकर उसे अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल न करे.
कर्मचारी पर खर्च भी सीएसआर नहीं
कंपनियों को अपने कर्मचारियों के हितों में कई तरह से बड़ी राशि खर्च करनी होती है. इस खर्च को सीएसआर गतिविधि पर हुआ खर्च नहीं माना गया है. यानी अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, सामाजिक गतिविधि, बोनस, विशेष चिकित्सा और आर्थिक सहायता आदि में कोई राशि खर्च करती है, तो वह यह दावा नहीं कर सकती है कि उसका कर्मचारी समुदाय का सदस्य है.
विदेशों में खर्च भी सीएसआर नहीं
कोई देशी या विदेशी कंपनी भारत के बाहर किसी देश पर अगर कोई सामुदायिक लाभ के कार्य करती है, तो उस खर्च को सीएसआर का हिस्सा नहीं माना जायेगा. नियम में स्पष्ट है कि कंपनी को हर हाल में भारत में ही अपनी सीएसआर गतिविधियां चलानी हैं.
विदेशी कंपनियां भी सीएसआर के दायरे में
नये नियम में उन कंपनियों के लिए भी सीएसआर लागू है, जो विदेशी हैं, लेकिन भारत में पंजीकृत हैं और यहां अपना कारोबार करती हैं.
मानव संसाधन पर खर्च की सीमा है तय
अब एक बड़ा प्रश्न यह कि किसी आयोजन, कार्यक्रम, गतिविधि या परियोजना के संचालन में कंपनी को अपने आदमी भी लगाने होते हैं. ये आदमी उसके कर्मचारी भी हो सकते हैं और किराये पर लगाये गये तात्कालिक सहयोगी भी. कुछ कंपनियां अपनी सीएसआर गतिविधियों के संचालन के लिए एजेंसियां भी बहाल करती हैं. जाहिर है कि इस पर कंपनी का खर्च होता है. इस खर्च को सीएसआर के खर्च में शामिल किया जा सकता है या नहीं? यह मामला पेंचीदा भी है. कंपनी के कर्मचारी या उसके दूसरे मानव संसाधन पर कंपनी का खर्च अधिक हो सकता है. ऐसे में वे समुदाय को होने वाले लाभ के मद में थोड़े-बहुत वास्तविक खर्च को बाकी के खर्च से जोड़ कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का दावा कर सकती हैं. इसलिए नियम में यह स्पष्ट कर दिसा गया है कि किसी सीएसआर गतिविधि में मानव संसाधन और एजेंट कोई कंपनी कितना खर्च कर सकती है या उसके द्वारा पर किये गये कितने प्रतिशत खर्च को उचित माना जायेगा. नियम के मुताबिक कोई कंपनी किसी सीएसआर गतिविधि पर होने वाले कुल खर्च का केवल 5} ही मान संसाधन या एजेंट पर खर्च कर सकती है. बाकी 95 प्रतिशत वास्तविक खर्च समुदाय के लाभ के लिए ही होगा.