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कितने सुरक्षित हैं भारत के बांध?

नितिन श्रीवास्तव बीबीसी संवाददाता भारत में बांध बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और पिछले 50 वर्षों में ही देश के विभिन्न राज्यों में 3,000 से ज़्यादा बड़े बांधों का निर्माण हुआ है. एक ऐसे देश में, जहाँ आधी से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है वहां 95% से ज़्यादा बांधो का उपयोग सिंचाई के […]

भारत में बांध बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और पिछले 50 वर्षों में ही देश के विभिन्न राज्यों में 3,000 से ज़्यादा बड़े बांधों का निर्माण हुआ है.

एक ऐसे देश में, जहाँ आधी से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है वहां 95% से ज़्यादा बांधो का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है.

हाल ही में भारतीय संसद में सरकार ने माना था कि देश के कुल 5,000 बांधों में से 670 ऐसे इलाके में जो भूकंप संभावित ज़ोन की उच्चतम श्रेणी में आते हैं.

सवाल ये उठता है कि भूकंप संभावित इलाकों में मौजूद ये बांध आखिर कितने सुरक्षित हैं.

पढ़िए पूरी कहानी विस्तार से

भारत में बांधो का निर्माण और उनकी मरम्मत की निगरानी केंद्रीय जल आयोग करता है.

आयोग के साथ सरकारें भी दोहराती रहीं हैं कि सभी बांधो की सुरक्षा जांच होती रही है और भूकंप संभावित ज़ोन में आने वाले बांध भी किसी आपदा को झेल सकने में सक्षम हैं.

2011 में जापान में आए भूकंप और सुनामी से फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के आस-पास मची तबाही के बाद से सुरक्षा संबंधी सवाल और तेज़ होते गए हैं.

कई विशेषज्ञों का मत है कि भारत में सैंकड़ों बांध अब पुराने हो चले हैं और असुरक्षित होते जा रहे हैं

उनका कहना है कि पुराने बांधों को गिराकर उसी इलाके में नए और ज़्यादा मज़बूत बांधों का निर्माण आवश्यक है.

‘साऊथ एशिया नेटवर्क ऑफ डैम्स’ के प्रमुख हिमांशु ठक्कर कहते है कि तमाम सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं गया है.

ठक्कर ने बीबीसी को बताया, "मौजूदा समय में उपयोग किए जाने वाले 100 से ज़्यादा बांध 100 वर्ष से भी पुराने हैं. मोरबी बांध के ढह जाने बाद भी हम सचेत नहीं हुए हैं. बांध पर बांध बने जा रहे हैं बिना ये सोचे की अगर ऊपर का एक बांध टूट गया तो नीचे किस तरह की प्रलय आ जाएगा."

भारत के के पड़ोसी देशों में भी बांधो से जुड़ी दुर्घटनाएं असाधारण नहीं रहीं हैं. साल 2005 में पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में ज़बरदस्त बारिश की वजह से शकीडोर बांध टूट गया था.

भारत में भी साल 1979 में गुजरात का मोरबी बांध भारी बारिश और बाढ़ से प्रभावित होकर टूट गया था जिससे, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 5,000 लोगों की मौत हुई थी.

इसके अलावा छह साल पहले भारत-नेपाल सीमा पर कोसी नदी पर बना बांध टूट गया था. इस वजह से हज़ारों लोगों को बेघर होना पड़ा.

मुल्ला पेरियार विवाद

भारत में मुल्ला पेरियार बांध बीते कुछ वर्षों से विवादों की वजह से सुर्खियों में रहा है. ये बांध 117 साल पुराना है और इसकी वजह से केरल और तमिलनाडु में तनाव रहा है.

केरल का कहना है कि यह बांध सुरक्षित नहीं है और इसे बंद कर देना चाहिए.

लेकिन पड़ोसी राज्य तमिलनाडु का कहना है कि बांध एकदम सुरक्षित है.

विवाद का निपटारा हुआ और फैसला तमिलनाडु के पक्ष में गया. लेकिन केरल की आशंका सही हुई तब क्या होगा?

मामले से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि भारत में किसी बांध का इस्तेमाल बंद कर देना इतना भी आसान नहीं है और उसे बंद करने से पहले विकल्प की तलाशने की ज़रूरत होती है.

भारत के ‘सेंट्रल वॉटर कमीशन’ के प्रमुख अश्विन पंड्या को लगता है कि भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है जहां आबादी का दबाव तेज़ी से बढ़ रही है, साथ ही सिंचाई और ऊर्जा संबंधी ज़रूरतें बढ़ती जा रही हैं.

भारत में कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें देश के सभी बांधों के निरीक्षण और मरम्मत की बात कही गई थी. यह प्रस्तावित क़ानून अभी तक संसद से पारित नहीं हुआ है.

हालांकि भारत में नई बनी मोदी सरकार में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीबीसी से कहा है, ”हम हर बांध की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और उसी हिसाब से उनकी समीक्षा की जाएगी.”

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