बिहारः जदयू-राजद नए मोर्चे की तैयारी में

मनीष शांडिल्य पटना से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए 16वीं लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. उसकी चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं. मगर इस राजनीतिक लड़ाई का एक मोर्चा ऐसा भी है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2014 11:48 AM

16वीं लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. उसकी चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं.

मगर इस राजनीतिक लड़ाई का एक मोर्चा ऐसा भी है, जहां लगता है कि जदयू और राजद ने भाजपा को ‘वॉकओवर’ दे दिया है.

यह मोर्चा है सोशल मीडिया. जी हां, एक राजनीतिक लड़ाई फ़ेसबुक और ट्विटर पर लड़ी जा रही है.

सक्रियता

भाजपा की हालिया जीत का सेहरा उसकी सोशल मीडिया रणनीति को भी दिया जा रहा है. तो बिहार के तीन बड़े राजनीतिक दलों में जदयू और राजद सोशल मीडिया परिदृश्य से लगभग गायब हैं.

हालांकि दोनों के मुख्य चेहरे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय हैं.

पर वहां पार्टी कम उनकी व्यक्तिगत छवि ही हावी रहती है.

जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन के अनुसार जल्द उनकी पार्टी का आधिकारिक फ़ेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल होगा.

वहीं राजद के मीडिया प्रभारी मृत्युंजय तिवारी बताते हैं कि उनकी पार्टी सोशल मीडिया पर है पर सक्रिय नहीं है.

वर्चुअल मोर्चेबंदी

क्या इस मोर्चे पर पीछे रहना भी चुनाव में हार की वजह बना?

मृत्युंजय इसे एक बड़ा ‘फ़ैक्टर’ मानते हैं जिसकी वजह से उनकी पार्टी पिछड़ गई. मगर राजीव के मुताबिक़ भाजपा ने इस माध्यम का ज़बर्दस्त दुरुपयोग किया.

मगर दोनों पार्टियां सोशल मीडिया का महत्व समझते हुए वर्चुअल स्पेस में भी मोर्चे मज़बूत करने की तैयारी में हैं.

राजद के मुताबिक़ वो जल्द ही इसके लिए नए सेल का गठन कर इससे जुड़े लोगों को तकनीकी रूप से लैस करेगी.

कमज़ोर खिलाड़ी

जदयू जल्द से जल्द अपना सोशल मीडिया सेल संगठित करने की कोशिश में है.

उधर, बीजेपी बिहार इकाई का अपना आधिकारिक फ़ेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल तो है मगर सूचनाएं अपडेट होने में कभी-कभी काफ़ी वक़्त लगता है.

बिहार भाजपा के आईटी और मीडिया सेल प्रमुख संजय चौधरी के मुताबिक़ इसके लिए सेल में कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ानी पड़ेगी.

तो क्या आने वाले चुनाव में बिहार का वोटर वर्चुअल अखाड़ों में खेले जा रहे पैंतरों से प्रभावित होकर फ़ैसला करेगा?

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