कंचन चौधरी: नहीं रहीं ‘उड़ान’ की ख़्वाहिशें जगाने वाली भारत की पहली महिला डीजीपी

<figure> <img alt="कंचन चौधरी भट्टाचार्य" src="https://c.files.bbci.co.uk/39F8/production/_108504841_a2a029ca-8b0a-4607-a12b-3fe4c1d3ed5f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Twitter//uttarakhandcops</footer> </figure><p>देश की पहली पुलिस महानिदेशक कंचन चौधरी भट्टाचार्य का 72 साल की उम्र में निधन हो गया. </p><p>वो लंबे समय से बीमार थीं और मुंबई के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था जहां उन्होंने सोमवार देर रात आख़िरी सांस ली. वो 1973 बैच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2019 10:40 PM

<figure> <img alt="कंचन चौधरी भट्टाचार्य" src="https://c.files.bbci.co.uk/39F8/production/_108504841_a2a029ca-8b0a-4607-a12b-3fe4c1d3ed5f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Twitter//uttarakhandcops</footer> </figure><p>देश की पहली पुलिस महानिदेशक कंचन चौधरी भट्टाचार्य का 72 साल की उम्र में निधन हो गया. </p><p>वो लंबे समय से बीमार थीं और मुंबई के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था जहां उन्होंने सोमवार देर रात आख़िरी सांस ली. वो 1973 बैच की आईपीएस थीं. </p><p>90 का दशक शुरू हुआ ही चाहता था, रामायण और महाभारत धारावाहिक अपना जलवा बिखेरकर रवाना हो चुके थे. </p><p>1989 में दूरदर्शन पर रात में एक धारावाहिक शुरू हुआ. नाम था &quot;उड़ान.&quot; </p><p>एक पुलिस अधिकारी कल्याणी सिंह की कहानी- विकट हालात के बीच जूझती लड़ती एक दुस्साहसी महिला. ये किरदार कविता चौधरी ने निभाया था. </p><p>सीरियल की निर्माता भी वहीं थी और कहानी भी उनकी ही थी. लिखी हुई भी और शायद बहुत नज़दीक से देखी, भुगती और समझी हुई भी. </p><p>क्योंकि धारावाहिक उड़ान मोटे तौर पर उनकी बड़ी बहन कंचन चौधरी की पुलिस ज़िंदगी पर आधारित था. </p><p><a href="https://twitter.com/IPS_Association/status/1166175602862243840">https://twitter.com/IPS_Association/status/1166175602862243840</a></p><p>धारावाहिक बहुत पसंद किया गया. हम सब भाई बहन, पूरा परिवार एक साथ उसे देखते, रोमांचित होते, कल्याणी के साहस की दाद देते और सामाजिक विसंगतियों और संघर्षों का एक धुंधला सा सबक़ भी शायद सीखते रहते थे. </p><p>एक दो साल चलकर सीरियल ख़त्म हुआ. लोगों ने धीरे-धीरे अन्य धारावाहिकों का रुख़ किया, टीवी बदलने लगा, दूरदर्शन भी एक दूर की याद की तरह ज़ेहन में कुछ समय और टिमटिमाता रहा. अर्थव्यवस्था और राजनीति के नये दरवाज़े खुल चुके थे.</p><p><a href="https://twitter.com/abhishek1nd1g0/status/1166263297315762177">https://twitter.com/abhishek1nd1g0/status/1166263297315762177</a></p><h1>उत्तराखंड की पुलिस महानिदेशक</h1><p>साल 2000 में उत्तराखंड बना. </p><p>2004 में जब कंचन चौधरी उत्तराखंड की तीसरी पुलिस महानिदेशक बनकर आईं तो लोगों को लगा जैसे उड़ान की कल्याणी अपने किरदार से निकल कर आ गई हो. </p><p>इतनी आत्मीयता, ख़ुद्दारी, आकर्षण और रोमांच था उनकी शख्सियत में. सौम्यता और सख्ती के साथ उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई. </p><p>पद संभालते वक़्त उनके तेवर देखते हुए बीबीसी ने उनसे एक बातचीत में पूछा था कि क्या वो सख्त अफ़सर होंगी. उनका जवाब थाः सख्त नहीं संवेदनशील. </p><p>डीजीपी का पद संभालते ही वो देश दुनिया में चर्चा में आ गई. इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला पुलिस अधिकारी. </p><p>आईपीएस के रूप में किरण बेदी के बाद वो दूसरी महिला थीं. </p><p><a href="https://twitter.com/prachikhurana8/status/1166301608008749056">https://twitter.com/prachikhurana8/status/1166301608008749056</a></p><h1>हरिद्वार से चुनाव</h1><p>साल 2004 में जब उन्होंने कुर्सी संभाली कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एनडी तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री थे. </p><p>दो साल पहले ही वो राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया चुने गए थे. </p><p>डीजीपी के रूप में कंचन चौधरी के लिए अपराध और क़ानून व्यवस्था के लिहाज़ से बहुत कड़ी चुनौतियां तो नहीं थीं लेकिन पुलिस प्रशासन में सुधार, पुलिस नौकरियां, महिला पुलिस, पुलिसकर्मियों की आर्थिक बेहतरी, उनके लिए आवास और बच्चों के लिए शिक्षा जैसे मुद्दे उनके सामने थे और सबसे बड़ी बात ये थी कि उत्तराखंड पुलिस की एक विशिष्ट पहचान बनाने का काम भी उनके ज़िम्मे थे. </p><p>उत्तराखंड के पुलिसकर्मी और उनके परिवार उन्हें यूं ही सहृदया और उदार अधिकारी के रूप में याद नहीं करते. </p><p>कंचन चौधरी भट्टाचार्य पत्रकारों के सवालों के जवाब एक ख़ास रुहानियत और आर्दता के साथ देती थीं. धीरे-धीरे, शब्दों को उनके अर्थ गांभीर्य के साथ बोलती हुईं. उनके जवाब ज़ाहिर है सधे हुए होते थे लेकिन वे कन्विन्स करते थे, ओढ़ाए हुए नहीं रहते थे. </p><p>साल 2007 तक वो डीजीपी रहीं और उसके बाद हरिद्वार में अपना आवास बनाया. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर हरिद्वार संसदीय सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं. लेकिन पार्टी पॉलिटिक्स से उन्होंने जल्द ही किनारा भी कर लिया.</p><p><a href="https://twitter.com/dotcomfolk/status/1166194169284481024">https://twitter.com/dotcomfolk/status/1166194169284481024</a></p><h1>मूल रूप से हिमाचल की</h1><p>कंचन चौधरी मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार से थी. अमृतसर से अधिकांश पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया. </p><p>साल 2004 में मेक्सिको में हुई इंटरपोल की बैठक में उन्होंने भाग लिया था. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान का भी दौरा किया था. </p><p>साल 1997 में उन्हें प्रेसिडेंट मेडल से सम्मानित किया गया था. पहले यूपी और बाद में उत्तराखंड कैडर लेने से पहले कंचन चौधरी मुंबई में सीआईएसएफ में कार्यरत थीं. उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी कुछ समय काम किया. </p><p>आप की उम्मीदवार के रूप में उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपने पुलिस अनुभवों से जुड़ी एक व्यथा का ज़िक्र करते हुए कहा था कि पुलिस के पास पावर तो है लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं होने दिया जाता. ऐसा कहकर कंचन चौधरी शायद सत्ता राजनीति, अफसरशाही और सिस्टम से जुड़ी विसंगतियों और द्वंद्वों की ओर भी इशारा कर रही थीं. </p><p>कंचन चौधरी ने अपने डीजीपी कार्यकाल में भले ही बहुत बड़ी सफलताएं न अर्जित की हों लेकिन महिला सशक्तीकरण के एक प्रतीक की तरह तो उन्हें देखा ही गया. उनका उस पद पर होना आश्वस्ति और प्रेरणा का संकेत था- अपने अपने संघर्षों में जूझतीं पहाड़ से लेकर मैदान तक की लड़कियों और महिलाओं के लिए- वो ख़्वाहिशों की उड़ान थीं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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