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क्या सबकुछ ख़ाक कर सकती है अमेज़न की आग?

<figure> <img alt="अमेज़न" src="https://c.files.bbci.co.uk/8818/production/_108504843_hi056082983.jpg" height="549" width="976" /> <footer>REUTERS/Nacho Doce</footer> </figure><p>जगह – ब्राज़ील का रोंडोनिया प्रांत </p><p>वक़्त- अगस्त का आख़िरी हफ़्ता </p><p>अमेज़न के जंगलों की आग कितनी भयावह है, ये जानकारी करने के लिए बीबीसी संवाददाता विल ग्रांट ने एक हेलिकॉप्टर में उड़ान भरी. </p><p>आग से प्रभावित इलाक़े से गुज़रते हुए उन्होंने बताया, &quot;इस जगह से […]

<figure> <img alt="अमेज़न" src="https://c.files.bbci.co.uk/8818/production/_108504843_hi056082983.jpg" height="549" width="976" /> <footer>REUTERS/Nacho Doce</footer> </figure><p>जगह – ब्राज़ील का रोंडोनिया प्रांत </p><p>वक़्त- अगस्त का आख़िरी हफ़्ता </p><p>अमेज़न के जंगलों की आग कितनी भयावह है, ये जानकारी करने के लिए बीबीसी संवाददाता विल ग्रांट ने एक हेलिकॉप्टर में उड़ान भरी. </p><p>आग से प्रभावित इलाक़े से गुज़रते हुए उन्होंने बताया, &quot;इस जगह से आपको ये समझ आता है कि ये क्षेत्र कितनी बड़ी तबाही का सामना कर रहा है. कई हेक्टेयर जंगल धुएं में तब्दील होते जा रहे हैं. अब तक हज़ारों हेक्टयर जंगल तबाह हो चुके होंगे.&quot; </p><p>सदियों से ब्राज़ील की प्राणवायु माने जाने वाले अमेज़न के जंगल से हज़ारों किलोमीटर दूर बसा है साओ पाउलो शहर. </p><p>यहां मौजूद वरिष्ठ पत्रकार शोभन सक्सेना के पास भी अमेज़न के वर्षावन में लगी आग को लेकर बताने के लिए बहुत कुछ है.</p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=0lOQEqrDlg4">https://www.youtube.com/watch?v=0lOQEqrDlg4</a></p><h1>आंखों में चुभता धुआं </h1><p>शोभन सक्सेना कहते हैं, &quot;अमेज़न का जंगल जहां मैं बैठा हूं साओ पाउलो से क़रीब तीन हज़ार किलोमीटर दूर है. वहां आग लगी हुई थी, धुआं उठ रहा था तो पूरा धुआं साओ पाउलो तक पहुंच गया. साओ पाउलो बहुत बड़ा शहर है. ये क़रीब 2200 फ़ुट की ऊंचाई पर बसा है.&quot; </p><p>&quot;यहां अभी सर्दी के दिन चल रहे हैं. ऐसे में धुआं काफ़ी नीचे आ गया. ये धुआं अब अर्जेंटीना में ब्यूनस आयर्स तक पहुंच गया है. ब्राज़ील के उत्तर में एक शहर है पोर्त वेले, वहां का एयरपोर्ट बंद कर दिया गया है क्योंकि इतना धुआं फैल गया.&quot; </p><p>साओ पाउलो शहर के आसमान को दिन में काला कर देने वाले धुएं को यूरोप के तमाम देशों के लोगों ने टीवी स्क्रीन पर देखा. </p><p>ये धुआं उनकी आंखों में ऐसा चुभा कि वो सड़कों पर उतर आए. </p><p>ब्रिटेन की राजधानी लंदन के अलावा स्पेन की राजधानी मैड्रिड, फ्रांस की राजधानी पेरिस,साइप्रस, कोलंबिया और उरुग्वे में भी लोग सड़कों पर उतरे और अमेज़न के जंगल में लगी आग को लेकर ब्राज़ील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया.</p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=Chy16lGl1us">https://www.youtube.com/watch?v=Chy16lGl1us</a></p><h1>यूरोपीय यूनियन</h1><p>अमेज़न की आग का मुद्दा जी-7 समूह की बैठक में भी उठा और आग से निपटने के लिए ब्राज़ील को वित्तीय मदद देने का एलान किया गया. </p><p>इसके पहले फ्रांस, फिनलैंड और आयरलैंड ने यूरोपीय यूनियन से ब्राज़ील पर सख़्ती करने को कहा. </p><p>जंगल की आग से बोलीविया भी परेशान है लेकिन दुनिया के रडार पर ब्राज़ील ही है. </p><p>फ्रांस और यूरोप के बाक़ी देश अमेज़न के जंगल में लगी आग को लेकर बेवजह फ़िक्र नहीं दिखा रहे हैं. </p><p>दुनिया भर के पर्यावरणविदों की राय में धरती को अगर एक जिस्म माना जाए तो अमेज़न के जंगल उसके फेफड़े और गुर्दे की तरह हैं. </p><h1>अमेज़न रेनफॉरेस्ट</h1><p>इस जंगल की अहमियत बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार शोभन सक्सेना कहते हैं, &quot;अमेज़न दुनिया का सबसे बड़ा रेन फॉरेस्ट है. उसके पेड़ ज़मीन से पानी खींचते हैं. वो पानी भाप बनकर ऊपर जाता है. बाद में बरस जाता है.&quot; </p><p>&quot;वहां पर हमेशा गीला सा मौसम रहता है और बारिश बहुत ज़्यादा होती है, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नदी अमेज़न वहां से निकलती है. इसका कुल क्षेत्र 55 लाख वर्ग किलोमीटर है. भारत के कुल क्षेत्रफल से क़रीब दोगुने में ये जंगल फैला हुआ है. इसे एक कार्बन सिंक कहा जाता है.&quot; </p><p>&quot;यानी दुनिया में जितनी कार्बन डाई ऑक्साइड निकल रही है, उसका क़रीब 20 प्रतिशत ये जंगल सोख लेता है. अगर जंगल यहां कट जाएंगे, यहां से आग लगनी शुरू हो जाएगी तो इसका जो रोल है कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने का, वो ख़त्म हो जाएगा.&quot; </p><p>अमेज़न रेनफॉरेस्ट दक्षिण अमरीका के कई देशों पेरू,कोलंबिया, बोलीविया, इक्वाडोर और गुयाना तक फैला है. लेकिन इसका सबसे ज़्यादा क़रीब साठ प्रतिशत हिस्सा ब्राज़ील में है. </p><h1>आदिम जनजातियां</h1><p>वर्षावनों के इस जंगल में पौधों और जंतुओं की क़रीब तीस हज़ार प्रजातियां हैं. </p><p>विशेषज्ञों के मुताबिक़ इसमें क़रीब 113 ऐसी आदिम जनजातियां हैं, जिनका अभी संपर्क सभ्यता के साथ नहीं हुआ है. </p><p>दशकों से पर्यावरण के क्षेत्र में स्थापित नाम वंदना शिवा अमेज़न से भली भांति परिचित हैं. वो कई बार यहां जा चुकी हैं और कई किताबों में भी इसका ज़िक्र कर चुकी हैं. </p><p>वो कहती हैं, &quot;जितनी जैव विविधता अमेज़न में है, उतनी कहीं नहीं है. सांस्कृतिक विविधता भी है. इंडीजिनस कल्चर अमेज़न में हैं. उनकी तबाही हो रही है. वो रोज विरोध कर रहे हैं. जब ये जंगल जल जाएंगे तो ऑक्सीजन की जगह हमें और कार्बन डाई ऑक्साइड मिलेगा.&quot; </p><p>&quot;ये (जंगल) लिवर है. ये पूरे सिस्टम की सफ़ाई करता है. जब पेड़ जल जाएंगे तो प्रदूषण और बढ़ेगा. क्लाइमेट सिस्टम को रेगुलेट करने के लिए इससे बड़ा कोई एक इको सिस्टम नहीं है. वैसे ही क्लाइमेट की तबाही हो रही है. वैसे ही तापमान बढ़ रहा है. सूखा और बाढ़ बढ़ रहा है.&quot;</p><h1>रियो में अर्थ समिट</h1><p>वंदना शिवा आगाह करती हैं कि अमेज़न को हो रहा नुक़सान पूरी दुनिया की जलवायु पर असर डाल सकता है. </p><p>हालांकि, अमेज़न पर संकट का धुंआ पहली बार नहीं घिरा है. साल 1960 से जंगल की कटाई शुरु हुई और 1990 के दशक में ये चरम पर पहुंच गई. </p><p>वंदना शिवा याद दिलाती हैं कि साल 1992 में अमेज़न को लेकर ही रियो में अर्थ समिट का आयोजन हुआ था. </p><p>वंदना शिवा कहती हैं, &quot;मैं अमेज़न के ऊपर से उड़ान भर रही थी. वहां की पर्यावरण मंत्री दिखा रहीं थीं कि कैसे वहां अवैध पोर्ट बनाए गए थे. जंगल काटे गए थे और लोगों को मारा गया था. एक डोरोथी सैंगर नाम की नन थीं. उन पर गोली चलाई गई थी.&quot; </p><p>&quot;क्योंकि वो आदिवासियों के साथ खड़ी होती थीं. तब क़ानून सख़्त हुआ और वन की कटाई पर रोक लगी. साथ ही साथ इंडीजीनस लोगों के अधिकार तय हुए. अलग से मंत्रालय बना.&quot; </p><p><strong>ख़ून </strong><strong>की </strong><strong>आख़िरी </strong><strong>बूंद</strong></p><p>लेकिन, वही इंडीजीनस यानी आदिम जनजातियों के लोग बोलसोनारो के राष्ट्रपति बनने के बाद से अपने अधिकार छीने जाने की चिंता में घुल रहे हैं. </p><p>उन्हें बोलसोनारो की नीतियां और बयान डरा रहे हैं. </p><p>आदिम जनजाति महिला की एक महिला ने बीबीसी से कहा, &quot;वो (बोलसोनारो) हमारे बारे में ज्यादा नहीं बोलते लेकिन जब हम उन्हें अपने बारे में बोलते हुए सुनते हैं तो वो बातें अच्छी नहीं होती. वो हमारे बारे में हमारे बच्चों के बारे में बुरा बोलते हैं. हम बहुत दुखी हैं.&quot; </p><p>अमेज़न में लगी आग से परेशान एक आदिम जनजाति के नेता रायमुंडो मुरा ने बीबीसी टीम से कहा कि वो कोई भी क़ुर्बानी देने को तैयार हैं. </p><p>उन्होंने कहा, &quot;ये तबाही है. हम इस जगह को बचाने के लिए हर कोशिश करेंगे. ज़रूरत पड़ी तो इस जंगल के लिए मैं अपने ख़ून की आख़िरी बूंद भी दे दूंगा.&quot; </p><p>मौजूदा संकट के लिए यूरोप की सड़कों से लेकर ब्राज़ील के जंगल तक राष्ट्रपति बोलसोनारो को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है. </p><h1>ट्रॉपिकल ट्रंप </h1><p>शोभन सक्सेना कहते हैं, &quot;देखिए ये जो आग लगी या अमेज़न में अभी जो हो रहा है, उसके लिए अगर किसी को दोषी माना जा सकता है तो वो सीधे-सीधे ब्राज़ील के राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो हैं.&quot; </p><p>&quot;उन्होंने जनवरी में पद संभाला था, लेकिन उसके पहले जब चुनाव अभियान चल रहा था तो उन्होंने बोलना शुरू कर दिया था कि वो अमेज़न को खुला कर देंगे. वहां माइनिंग कंपनी जा सकती हैं. खेती हो सकती है. ये भी कहा कि वहां जो जनजाति रहती हैं, उनको वो सभ्य बनाएंगे.&quot; </p><p>पर्यावरण हितों की अनदेखी करने और बयानों के ज़रिए अक्सर विवाद खड़े करने वाले बोलसोनारो की तुलना अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से भी होती है. </p><p>शोभन सक्सेना कहते हैं, &quot;उन्हें कुछ लोग ट्रॉपिकल ट्रंप के नाम से बुलाते हैं. इनकी नीतियां और इनका जो व्यवहार है, इन्होंने अपने आप को डोनल्ड ट्रंप के आधार पर बनाया हुआ है. वो दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं.&quot; </p><p>&quot;ब्राज़ील में 20-25 साल पहले तानाशाही रही है, उसका ये समर्थन करते हैं. पर्यावरण के बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं और डोनल्ड ट्रंप के साथ इनके व्यक्तिगत संबंध काफ़ी अच्छे हैं.&quot; </p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=YAXpB37vHUc">https://www.youtube.com/watch?v=YAXpB37vHUc</a></p><h1>पर्यावरण के हित</h1><p>पर्यावरणविद आंकड़ों के आधार पर दावा करते हैं कि बोलसोनारो के राष्ट्रपति बनने के बाद से जंगल पर क़ब्ज़ा करने वाले बेख़ौफ़ हो गए हैं. वो जंगलों में आग लगा रहे हैं. </p><p>ब्राज़ील नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च यानी आईएनपीई ने एक सैटेलाइट डाटा प्रकाशित किया, जिसके मुताबिक़ इस साल ब्राज़ील में आग की घटनाओं में 85 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है. </p><p>ब्राज़ील में 2019 में 75 हज़ार से ज़्यादा आग की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं. इनमें से ज्यादातर अमेज़न क्षेत्र में लगी आग की हैं. </p><p>हालांकि बोलसोनारो ने आरोप लगाया कि आईएनपीई पेड़ों की कटाई की संख्या में इज़ाफ़े की बात करके उनकी सरकार को कमज़ोर करने की कोशिश में है. </p><p>उधर, वंदना शिवा दावा करती हैं कि राष्ट्रपति सोया और मीट की लॉबी के दबाव में पर्यावरण के हितों से समझौता कर रहे हैं. </p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=eqDY215Hir0">https://www.youtube.com/watch?v=eqDY215Hir0</a></p><h1>खनिज पदार्थ से भरा</h1><p>लेकिन शोभन सक्सेना दावा है कि ब्राज़ील की मौजूदा सरकार की नज़र अमेज़न के जंगलों में छिपे खनिजों पर है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;ये सबको पता है कि अमेज़न तरह तरह के खनिज पदार्थ से भरा हुआ है. इस तरह की बात हो रही है कि राष्ट्रपति ने पहले से ही एक डील कर रखी है, अमरीका और कनाडा की कंपनी के साथ और वो उनको यहां लेकर आना चाहते हैं.&quot; </p><p>&quot;इसीलिए उन्होंने कहा है कि वो अपने बेटे एदुआर्दो बोलसोनारो को ब्राज़ील का राजदूत बनाकर अमरीका भेजना चाहते हैं. ताकि वो सीधे-सीधे अमरीका की कंपनियों के साथ बात कर सकें और उनको अमेज़न में ला सकें.&quot; </p><p>लेकिन राष्ट्रपति बोलसोनारो आलोचनाओं से बेपरवाह दिखते हैं. बीते हफ़्ते उन्होंने जंगल में लगी आग के लिए एनजीओ को ज़िम्मेदार बताया. </p><p>राष्ट्रपति बोलसोनारो ने कहा, &quot;मुझे लगता है कि ये आग एनजीओ ने लगाई होगी. उन्होंने धन की मांग की थी. उनका इरादा क्या था? वो ब्राज़ील के लिए मुश्किलें लाना चाहते हैं.&quot; </p><h1>ब्राज़ील की सेना</h1><p>वंदना शिवा राष्ट्रपति के इन आरोपों को बेतुका बताते हुए कहती हैं, &quot;जंगल में एनजीओ नहीं बैठे हैं. जंगल में आदिवासी बैठे हैं. वो आग रोकते हैं और आग लगाने वालों के सामने आकर अपनी जान ख़तरे में डालते हैं.&quot; </p><p>&quot;आग इनके लोग लगा रहे हैं और ये उसे बढ़ावा दे रहे हैं. पिछली सरकार में मरीना सिल्वा जब पर्यावरण मंत्री थीं, उन लोगों ने जंगल के कटान को रोका और अमेज़न के नुक़सान को रोक पाए. तब एनजीओ सक्रिय थे. रोकने में आदिवासी और एनजीओ एक्टिव हैं.&quot; </p><p>वहीं, शोभन सक्सेना कहते हैं कि राष्ट्रपति के आरोपों में कोई दम नहीं है और बढ़ते दबाव के बाद वो अब जांच भी करा रहे हैं. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर एनजीओ ज़िम्मेदार हैं तो ये सवाल उठता है कि सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की. और अब सरकार ने मान लिया है कि वहां पर जो आग लगा रहे हैं, वो स्थानीय लोग हैं. ब्राज़ील की सेना और वायुसेना वहां जा रही है. उन्होंने एक जांच भी शुरू कर दी है कि आग लगाने के लिए ज़िम्मेदार कौन हैं.&quot; </p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=jhecUotyY0w">https://www.youtube.com/watch?v=jhecUotyY0w</a></p><h1>दुनिया के तंदरुस्त फेंफड़े</h1><p>दुनिया ख़ासकर यूरोप के देश राष्ट्रपति बोलसोनारो को ही ज़िम्मेदार बता रहे हैं. </p><p>हालांकि, ख़ुद बोलसोनारो किसी तरह की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं दिखते. वो फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से सीधे उलझ रहे हैं. </p><p>शोभन सक्सेना दावा करते हैं कि बोलसोनारो जानते हैं अमरीका का समर्थन उनके साथ है. सक्सेना चीन और भारत की चुप्पी पर भी सवाल उठाते हैं. </p><p>&quot;जहां तक अमरीका का सवाल है. डोनल्ड ट्रंप का सवाल है. वो सीधा सीधा समर्थन बोलसोनारो को दे रहे हैं. भारत और चीन जैसे बड़े देशों की ओर से भी कोई बयान नहीं आया है. हालांकि, चीन और भारत दोनों ही ब्राज़ील के साथ ब्रिक्स के सदस्य हैं. इनकी ओर से भी कुछ दबाव पड़ना चाहिए. अमेज़न जंगल सिर्फ़ ब्राज़ील की समस्या नहीं है. ये पूरी दुनिया की समस्या है.&quot;</p><p>और अब इस समस्या का धुआं गहराता ही जा रहा है और इस काले धुएं में दुनिया के तंदरुस्त फेंफड़े भी कमज़ोर और बीमार हो रहे हैं. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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