असम NRC लिस्ट- ‘पहले पत्नी का नाम नहीं था, अब पूरे परिवार का नहीं’: ग्राउंड रिपोर्ट
<figure> <img alt="अब्दुल हलीम" src="https://c.files.bbci.co.uk/9962/production/_108566293_abdulhalimmaumdar.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>अब्दुल हलीम मज़ूमदार और उनके परिवार का नाम एनआरसी की अंतिम लिस्ट में नहीं</figcaption> </figure><p>पैंतालीस साल के अब्दुल हलीम मज़ूमदार के हाथ में एक क़ाग़ज़ का टुकड़ा है. वो हैरान परेशान खड़े हैं. उनके पांच लोगों के परिवार में चार का नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी […]
<figure> <img alt="अब्दुल हलीम" src="https://c.files.bbci.co.uk/9962/production/_108566293_abdulhalimmaumdar.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>अब्दुल हलीम मज़ूमदार और उनके परिवार का नाम एनआरसी की अंतिम लिस्ट में नहीं</figcaption> </figure><p>पैंतालीस साल के अब्दुल हलीम मज़ूमदार के हाथ में एक क़ाग़ज़ का टुकड़ा है. वो हैरान परेशान खड़े हैं. उनके पांच लोगों के परिवार में चार का नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी में नहीं है. </p><p>असम में शनिवार को एनआरसी की अंतिम सूची प्रकाशित हुई है. </p><p>असम के कामरूप ज़िले के टुकड़ापाडा एनआरसी केंद्र पर लोगों ने अब्दुल की परेशानी को भांप लिया है और वो उन्हें ढांढ़स बंधाने की कोशिश कर रहे हैं.</p><p>बीती शाम से अब्दुल जिस डर और आंशका के माहौल में थे उसे बताते हुए उनकी आवाज़ गले में ही दबी रह जाती है. वो कहते हैं, "मेरे परिवार के सभी लोगों के नाम दिसंबर 2017 और जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी की मसौदा सूची में थे. सिर्फ मेरी पत्नी का नाम नहीं था. उसके नाम के ख़िलाफ़ एक आपत्ति थी जिसके जवाब में हमने दस्तावेज़ जमा करा दिए थे."</p><p>"आज सुबह में जब उठा तो मैं परेशान, चिंतित और घबराया हुआ था. मैं अपनी पत्नी को लेकर ज़्यादा चिंतित था, अपने और अपने बच्चों को लेकर नहीं. अब मेरे हाथ में हम चारों का एनआरसी का रिजेक्शन पत्र है, मैं नहीं जानता अब क्या करूं?"</p><p>असम में शनिवार सुबह दस बजे एनआरसी की नई सूची का प्रकाशन हुआ. आवेदनकर्ता सुबह से ही अपने पास के एनआरसी केंद्रों पर जुटने लगे थे. ताकि वो ये पता कर सकें कि उनका नाम इस नागरिकता रजिस्टर में है या नहीं.</p><p>60 वर्षीय मोहम्मद ख़ादिम बेहद ख़ुश हैं. उनके परिवार के सभी छह लोगों का नाम एनआरसी में है. अपना एनआरसी दस्तावेज़ दिखाते हुए वो कहते हैं, "बहुत लंबे समय बाद, आख़िरकार अब मैं चैन की सांस ले सकता हूं."</p><p>लेकिन सभी ख़ादिम अली जैसे ख़ुशकिस्मत नहीं है. एनआरसी की अंतिम सूची में 19 लाख से अधिक लोगों के नाम नहीं है.</p><p>20 साल के मोइनउल हक़ का नाम भी एनआरसी में नहीं है. उनसे भी मेरी मुलाक़ात टुकड़ापाडा एनआरसी केंद्र के बाहर ही हुई. वो हाथ में दस्तावेज़ लिए एनआरसी केंद्र के बाहर खड़े थे. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49533526?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में NRC की फ़ाइनल लिस्ट जारी, 19 लाख से अधिक लोग बाहर</a></li> </ul><p>अपने चेहरे से पसीना और आंसू पोंछते हुए वो कहते हैं, "मेरे परिवार के सभी छह लोगों का नाम नागरिकता रजिस्टर में नहीं है."</p><p>सरकार ने घोषणा की है कि जिन लोगों के नाम एनआरसी में नहीं हैं वो अगले 120 दिनों में विदेशी ट्रिब्यूनल में अर्ज़ी दे सकते हैं. ये जानकारी अभी उन तक नहीं पहुंची है. ना ही उन्हें इस बात की जानकारी है कि सरकार उन लोगों को क़ानूनी मदद देगी जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है. ये मदद ज़िला क़ानूनी सहायता प्राधिकरण के ज़रिए दी जाएगी. </p><figure> <img alt="ख़ादिम अली" src="https://c.files.bbci.co.uk/135A2/production/_108566297_khadimali.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>ख़ादिम के परिवार का नाम एनआरसी लिस्ट में है इसलिए वे राहत महसूस कर रहे हैं</figcaption> </figure><p>मोइनुल हक़ के पास ही अंसार अली खड़े हैं जिनकी पत्नी रबिया ख़ातून का नाम रजिस्टर में नहीं है. अंसार को भी नहीं पता है कि अब क्या करना है और किस चौखट पर दस्तक देनी है.</p><p>जब मैंने उन्हें बताया कि वो विदेशी ट्रिब्यूनल में अर्ज़ी दे सकते हैं तो उन्होंने कहा कि मैंने इसका नाम तो नहीं सुना है लेकिन उन्हें नहीं पता कि वहां अर्ज़ी कैसे देनी है और किससे बात करनी है.</p><p>ये स्पष्ट है कि जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं है, उनके लिए की गईं सरकारी मदद की घोषणाएं अभी लोगों तक नहीं पहुंची है. विदेशी ट्रिब्यूनल में कैसे जाना है इस बारे में जागरूकता की कमी हर ओर दिखाई देती है</p><p>असम में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किए गए हैं. लोगों से अफ़वाहों और फ़ेक न्यूज़ के जाल में न फंसने की अपील की गई है. अभी तक राज्य के किसी हिस्से से हिंसा की कोई ख़बर नहीं है.</p><p>असम के पुलिस प्रमुख डीजीपी कुलाधर सैकिया ने एक बयान में कहा है कि पुलिस सोशल मीडिया की गतिविधियों पर नज़रें बनाए हुए हैं. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49185265?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी से जुड़ा तनाव लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है?- बीबीसी विशेष</a></li> </ul><p>उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया के ज़रिए अफ़वाहें फैलाने की कोशिश करने वालों, नफ़रत भरे या धार्मिक टिप्पणियां करने वालों को बख़्शा नहीं जाएगा."</p><p>राज्य के गृह विभाग ने कहा है कि जिन लोगों के नाम सूची में नहीं है उन्हें तब तक विदेशी नहीं माना जाएगा और न ही उन्हें हिरासत में लिया जाएगा जब तक विदेशी ट्रिब्यूनल उन्हें विदेशी घोषित न कर दे. </p><p>जिन लोगों के नाम सूची में नहीं है उनकी ट्रिब्यूनल में दावा करने की समय-सीमा को 60 दिनों से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है.</p><p>यदि वो ट्रिब्यूनल के फ़ैसले से भी संतुष्ट न हों तो वो भारत की उच्च अदालतों में अर्ज़ी दाख़िल कर सकते हैं.</p><figure> <img alt="मोइनुल हक" src="https://c.files.bbci.co.uk/E782/production/_108566295_moinulhaque.png" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>20 साल के मोइनुल हक के परिवार का नाम भी एनआरसी लिस्ट में नहीं है</figcaption> </figure><p>लेकिन अब्दुल हलीम जैसे लोगों के लिए नागरिकता रजिस्टर से बाहर होना किसी क़ाग़ज़ के टुकड़े पर नागरिकता से बाहर होने से कहीं अधिक है.</p><p>उनके चेहरे पर दुख स्पष्ट नज़र आता है. वो बमुश्किल कह पाते हैं, "मैं असम में पैदा हुआ. मेरे पिता भी यहीं पैदा हुए और मेरे बच्चे भी. हम सारा जीवन यहीं रहे हैं. मैं बैंक मैं काम करता हूं और मेरे बच्चे पढ़े लिखे हैं. अब उन्हें अपनी नौकरियों और भविष्य के बारे में सोचना था. लेकिन अब हमें एक लंबी क़ानूनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी."</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48996969?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी के डर से मूल निवासियों का रजिस्टर बना रहा है नगालैंड?</a></li> </ul><p>"मैं अभी बहुत परेशान हूं लेकिन मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है. हम विदेशी ट्रिब्यूनल जाएंगे. मुझे विश्वास है हमारे नाम जुड़ जाएंगे. क्योंकि हम यहीं के हैं. हम यहां से कहां जाएंगे?" </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a 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