अनाज को जंगली क़िस्में बचाएंगी जलवायु परिवर्तन की मार से
<p>जलवायु परिवर्तन का असर अनाज वाली फसलों पर भी पड़ा है और आशंका जताई जाती रही है कि पृथ्वी का तापमान और बढ़ा तो खाद्यान्न की पैदावार में कमी आ सकती है.</p><p>मगर गेहूं की एक जंगली क़िस्म के अध्ययन से उम्मीद बंधी है कि अनाज वाली फसलों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाया जा […]
<p>जलवायु परिवर्तन का असर अनाज वाली फसलों पर भी पड़ा है और आशंका जताई जाती रही है कि पृथ्वी का तापमान और बढ़ा तो खाद्यान्न की पैदावार में कमी आ सकती है.</p><p>मगर गेहूं की एक जंगली क़िस्म के अध्ययन से उम्मीद बंधी है कि अनाज वाली फसलों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है.</p><p>गेहूं और अन्य खाद्यान्नों की जंगली क़िस्मों में ऐसा जेनेटिक मटीरियल यानी आनुवांशिक जानकारियां पाई गई हैं जो बताती हैं कि समय के साथ इन्होंने ख़ुद को जलवायु परिवर्तन के हिसाब से बदला है. </p><p>28 वर्षों तक किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि जंगली गेहूं में कुछ फ़ायदेमंद बदलाव हुए हैं जिनमें बढ़े हुए तापमान के अनुसार ढलना शामिल है.</p><p>शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे हमें यह भी पता चला है कि लगातार गर्म हो रही पृथ्वी पर पौधों की प्रतिक्रिया कैसी है. </p><p>इस शोध के नतीजे <a href="https://www.pnas.org/cgi/doi/10.1073/pnas.1909564116">प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज़</a> में प्रकाशित किए गए हैं. </p><figure> <img alt="गेहूं" src="https://c.files.bbci.co.uk/7E83/production/_108878323_54474936-7bda-4667-9661-a18da2adcafa.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>क्या कहते हैं वैज्ञानिक</h1><p>’एग्रीकल्चर एंड एग्री-फ़ूड कनाडा’ के एक वैज्ञानिक और इस शोध के मुख्य लेखक योंग-बी फ़ू कहते हैं, "हमें कुछ बहुत ही उत्साहजनक नतीजे देखने को मिले हैं."</p><p>वह कहते हैं, "हम बता सकते हैं कि 28 वर्षों के दौरान 28 पीढ़ियों में पौधों की जंगली किस्मों ने जैविक बदलाव संबंधित अधिक जानकारियां ख़ुद में इकट्ठा की हैं. हमने पाया कि इनमें से अधिकतर बाहरी बदलाव के हिसाब से ख़ुद को ढालने में सक्षम हैं." </p><p>हालांकि टीम ने अध्ययन में पाया कि अलग-अलग नमूनों ने अलग-अलग तरह से प्रतिक्रया दी. इनमें कुछ गर्म वातावरण और उससे जुड़ी परिस्थितियों में नहीं बच सके जबकि कुछ ऐसे थे जो गर्म परिस्थितियों का सामना करने और उनमें पूरी तरह से ढलने में सक्षम थे.</p><p>इस अध्ययन के तहत इसराइल में एमर गेहूं की 10 अलग फसलें शामिल की गई थीं.</p><p>डॉ. फ़ू का कहना है कि तीन दशकों में पृथ्वी के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है.</p><h1>क्या फ़ायदा होगा</h1><p>शोध के नतीजों को लेकर डॉ फ़ू ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "यह काफ़ी उत्साहवर्धक है क्योंकि इसका मतलब है कि फसलें अच्छा म्यूटेशन कर सकती हैं यानी ख़ुद में फ़ायदेमंद बदलाव ला सकती हैं." </p><p>"यह म्यूटेशन महत्वपूर्ण है, और हम देख सकते हैं कि हमें जंगली व प्राकृतिक जगहों पर फसलों की विविधता को बचाए रखने के लिए बहुत प्रयास करने की ज़रूरत है."</p><p>टीम का कहना है कि इस शोध के नतीजे हमें यह बताने में मदद करते हैं कि पौधे किस तरह से भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ख़ुद को ढाल सकते हैं.</p><figure> <img alt="गेहूं" src="https://c.files.bbci.co.uk/5773/production/_108878322_7cf265a8-1bdb-4e1f-951b-90f9f11eca0d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>डॉ. फ़ू ने ग्रेट ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के काम का भी ज़िक्र किया जो खेतों में उगाई जाने वाली फसलों में बीमारियों के लिए प्रतिरोधक क्षमता लाने के लिए उनकी जंगली क़िस्मों से रोग-प्रतिरोधक जीन क्लोन करने की कोशिश कर रहे हैं.</p><p>उन्होंने कहा कि यही तरीका अपनाकर जंगली क़िस्मों से जलवायु परिवर्तन रोधी जीन्स को क्लोन करके या खाद्यान्न पैदा करने वाली मौजूदा फसलों को भी जलवायु परिवर्तन रोधी बनाया जा सकता है. यह काम क्रॉस-ब्रीडिंग से भी हो सकता है.</p><h1>गेम चेंजर हो सकता है शोध</h1><p>संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 2050 तक गेहूं के उत्पादन को 60% तक बढ़ाने की ज़रूरत है.</p><p>2016 में रॉयल सोसाइटी बायोलॉजी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में दुनिया के लिए पर्याप्त भोजन उगाने की क्षमता पर सवाल उठाते हुए जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए जोखिम पर प्रकाश डाला गया था.</p><figure> <img alt="गेहूं" src="https://c.files.bbci.co.uk/CCA3/production/_108878325_404d782b-7d83-4d3f-9763-daaebe174e77.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>अमरीकी शोधकर्ताओं की टीम ने पाया था कि 2070 तक जलवायु में बहुत जल्दी बदलाव होंगे, घास और फसलों की प्रजातियां नई परिस्थितियों के हिसाब से ख़ुद को ढाल नहीं पाएंगी. </p><p>भविष्य में इस तरह के ख़तरे का सामना करने वाली प्रजातियों में गेहूं, मक्का, चावल और चारा शामिल हैं. ये सभी फसलें इंसानों द्वारा ली जाने वाली कैलरी के आधे हिस्से को पूरा करती हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong> </strong><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>