इस्लामाबाद : अमेरिका-तालिबान वार्ता का बीच में टूट जाना पाकिस्तान के लिए असामयिक झटका है क्योंकि उसने उम्मीद की थी कि आतंकवादियों को वार्ता की मेज पर लाने की उसकी कोशिश से उसे आर्थिक इनाम और कश्मीर को लेकर भारत के साथ चल रहे विवाद में अमेरिकी सहयोग मिलेगा.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस विवादित क्षेत्र में भारत द्वारा उठाये गये कदम को अगले हफ्ते न्यू याॅर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुत बड़ा मुद्दा बनाने का वादा कर रखा है. लेकिन, आतंकवादी संगठनों को सहयोग पहुंचाने के चलते लंबे समय से निशाने पर रहा पाकिस्तान यदि वैश्विक समुदाय के रुख में बदलाव लाना चाहता है तो उसे विश्व का राजनीतिक भरोसा और विश्वास कायम करना होगा. वैसे भी वैश्विक समुदाय कश्मीर को लेकर भारत को चुनौती देने के लिए ऐतिहासिक रूप से अनिच्छुक रहा है. करीब 18 साल की लड़ाई के बाद अफगानिस्तान छोड़ने की अमेरिका की उत्कट इच्छा को पूरा करने में उसे सहयोग पहुंचाने को पाकिस्तान के लिए वाशिंगटन का भरोसा जीतने का एक मौका था. उस (पाकिस्तान) पर सालों तक दोहरेपन का आरोप लगता रहा था.
जुलाई में कुछ समय तक लगा कि उसकी यह कोशिश रंग ला रही है. लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता करने की अपनी इच्छा प्रकट कर खान के चेहरे पर खुशी ला दी थी. सन् 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशक शासन की समाप्ति के बाद से कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान दो लड़ाई लड़ चुके हैं और उनके बीच अनगिनत बार झड़पें हो चुकी हैं. भारत ने बार बार स्पष्ट किया है कि कश्मीर पाकिस्तान के साथ विशुद्धत: उसका द्विपक्षीय मुद्दा है और उसने विदेशी मध्यस्थता की संभावना को खारिज कर दिया. उसके बाद भी पाकिस्तान एक बार फिर मध्यस्थता को लेकर चहक उठा था. लेकिन, उसकी यह खुशी महज कुछ समय के लिए थी.
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर की स्वायत्तता खत्म कर दी थी जिससे पाकिस्तान बुरी तरह भड़क गया था. और जब पाकिस्तान कश्मीर पर अपने रुख पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने की पुरजोश कोशिश में जुटा था तब ट्रंप ने तालिबान से वार्ता अचानक तोड़ दी. इससे समझौते की सालभर की गंभीर कोशिश को झटका लगा. इस समझौते के तहत अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से जाने लगते. कश्मीर आतंकवाद पर विशेषज्ञ मायरा मैक डोनाल्ड ने कहा, जबतक पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान का समाधान नहीं करवा लेता तबतक उसके लिए कश्मीर में भारतीय कार्रवाई पर जवाबी कार्रवाई जारी रखना आसान नहीं है, इसलिए वह अधर में लटक गया है.