22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार

Getty Images इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन से कटी कश्मीर घाटी में कई लोगों को 27 सितंबर का इंतज़ार है. दुकानदार हों, स्थानीय पत्रकार हों, हमारे होटल में काम करने वाली गोरखपुर की एक महिला हो या फिर क़स्बों, दूर गांव में आम लोग- कोई सवाल पूछिए तो जवाब मिलेगा, देखते हैं 27 सितंबर के बाद […]

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 27
Getty Images

इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन से कटी कश्मीर घाटी में कई लोगों को 27 सितंबर का इंतज़ार है.

दुकानदार हों, स्थानीय पत्रकार हों, हमारे होटल में काम करने वाली गोरखपुर की एक महिला हो या फिर क़स्बों, दूर गांव में आम लोग- कोई सवाल पूछिए तो जवाब मिलेगा, देखते हैं 27 सितंबर के बाद क्या होता है.

27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली (यूएनजीए) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इमरान ख़ान के भाषण होने हैं.

अफ़वाहों से भरे कश्मीर में एक वर्ग को लगता है कि शायद भारत 27 सितंबर के बाद अनुच्छेद 370 को वापस बहाल कर दे. कुछ को आशंका है कि पाकिस्तान की ओर से हमला होगा. कुछ को लगता है कि 27 सितंबर के बाद चरमपंथी हमले होंगे. कुछ को ये भी लगता है कि 27 सितंबर के बाद कश्मीर ‘आज़ाद’ हो जाएगा.

इन अफ़वाहों का क्या आधार है, ये साफ़ नहीं क्योंकि हमारी अधिकारियों से बात नहीं हो पाई.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 28
Getty Images

पाँच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस ले लिया गया था. राज्य को दो हिस्सों में बांटा गया, इंटरनेट और मोबाइल सुविधा काट दी गई.

इस बात को 50 दिन हो चुके हैं लेकिन लोगों में इस फ़ैसले पर ग़म, ग़ुस्सा, दुविधा, अनिश्चितता, डर बना हुआ है. ‘सब कुछ ठीक है’ बताने वाली भारतीय मीडिया को लोग ‘झूठ का पुलिंदा’ बता रहे हैं "जो सच नहीं दिखाता".

कश्मीर होटल एसोसिएशन के प्रमुख मुश्ताक़ चाय के मुताबिक़ ये पहली बार है जब घाटी की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण यात्रियों और पर्यटकों से कहा गया कि वो घाटी छोड़ दें.

एक दुकानदार ने मुझसे कहा, "लोग शांत हैं. कुछ हो नहीं रहा है. यही चिंता की बात है."

कश्मीर में पिछले 50 दिन कैसे गुज़रें हैं, ये समझने के लिए मैंने श्रीनगर के अलावा उत्तरी और दक्षिणी कश्मीर में कई दूर-दराज़ इलाक़ों, गांवों का दौरा किया.

शिक्षा, व्यापार, न्याय व्यवस्था, छोटे उद्योग, खाद्य सामानों की क़ीमतें, ट्रांसपोर्ट की आवाजाही, एक्सपोर्ट इंडस्ट्री, कश्मीर में सरकार के फ़ैसले पर जारी ‘हड़ताल’ ने ज़िंदगी के हर पहलू को प्रभावित किया है.

दुकानें बंद हैं, बिज़नेस ठप है, हज़ारों होटल ख़ाली हैं, शिकारे और हाउसबोट ख़ाली हैं और डल झील और सड़कों से पर्यटक नदारद. सड़कों पर सुरक्षाकर्मी बड़ी संख्या में तैनात हैं, और ज़्यादातर लोग अपने घरों में बंद.

कनेक्टिविटी न होने के वजह से लोग अपने रिश्तेदारों, साथियों, काम करने वालों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं. मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल टाइम देखने और वीडियो गेम के लिए हो रहा है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेताओं के नज़रबंद होने के बाद कई पार्टी कार्यकर्ता अंडरग्राउंड हैं या डरे हुए हैं या जम्मू सहित दूसरे इलाक़ों में भाग गए हैं.

और एक व्यक्ति के मुताबिक़ – ‘प्रशासन और प्रभावित लोगों के बीच संपर्क नहीं है, बातचीत नहीं हो रही है, इसलिए समझ नहीं आता है कि आगे का रास्ता क्या है.’

इंडस्ट्री ठप

कश्मीर चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक आंकड़े के मुताबिक़ कश्मीर की अर्थव्यवस्था को पाँच अगस्त से अब तक 10 हज़ार करोड़ रुपए का नुक़सान हो चुका है, घाटी में उभर रही और इंटरनेट पर निर्भर आइटी कंपनियों के मालिक गुड़गांव या चंडीगढ़ में किराए पर जगह ढूंढ रहे हैं और अकेले क़ालीन उद्योग में 50-60 हज़ार नौकरियां जा चुकी हैं.

चैंबर के प्रमुख और कार्पेट उद्योग से जुड़े शेख़ आशिक़ कहते हैं, "जुलाई-अगस्त और सितंबर वक्त होता है जब हमें एक्सपोर्ट ऑर्डर मिलते हैं ताकि हम क्रिसमस या न्यू इयर तक सप्लाई कर पाएं. बंद इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन के कारण हम अपने आयातकों और कारीगारों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं."

कश्मीर की अर्थव्यस्था टूरिज़्म, हॉर्टिकल्चर और छोटे उद्योग जैसे कार्पेट या बैट बनाना, इन पर निर्भर है.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 29
BBC
श्रीनगर का होटल रैडिसन

ये पूरी कहानी शुरू हुई तीन अगस्त शुक्रवार की दोपहर से.

श्रीनगर के रैडिसन होटल के मालिक मुश्ताक़ चाय होटल में ही थे जब जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक ‘सिक्योरिटी एडवाइज़री’ उनके पास पहुंची.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 30
BBC
कार्पेट उद्योग से जुड़े शेख आशिक़

इस एडवाइज़री में अमरनाथ यात्रा पर चरपमंथी ख़तरे की बात थी और अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को सलाह दी गई थी कि वो घाटी तुरंत छोड़ दें.

90 कमरों और 125 लोगों के स्टाफ़ वाले रैडिसन होटल में उस दिन 70 प्रतिशत कमरे गेस्ट्स से भरे थे. बिज़नेस के लिहाज़ से सीज़न उम्मीदों से भरा था क्योंकि 2016 के बुरहान वानी मामले के बाद हिंसा और बंद, पुलवामा हमला, बालाकोट हमले के बाद घाटी में पर्यटकों की संख्या फिर बढ़ रही थी.

मुश्ताक़ कश्मीर में होटल एसोसिएशन के प्रमुख हैं और उनके सोनमर्ग, गुलमर्ग, पहलगांव में भी होटल हैं.

जब मैं उनसे मिला तो ख़ाली पड़े होटल के रिसेप्शन पर इक्का-दुक्का लोग थे, ज़्यादातर होटल अंधेरे में डूबा हुआ था और कुछ स्टाफ़ साफ़ सफ़ाई में जुटे थे.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 31
BBC

रिसेप्शन के सामने एक सोफ़े पर बैठे मुश्ताक़ के मुताबिक़ तीन अगस्त को एडवाइज़री पर अमल कराने के लिए प्रशासन के अधिकारी, पुलिसकर्मी होटल तक पहुंच गए थे.

‘हालात से बेबस’ मुश्ताक़ बताते हैं, "होटल छोड़ने की बात सुनकर गेस्ट्स परेशान और नाराज़ थे. (हमने उनसे कहा) जल्दी निकल जाइए मेहरबानी करके. सोनमर्ग, गुलमर्ग, पहलगाम से मुझे फ़ोन पर लोग पूछ रहे थे कि वो क्या करें हमारे लोगों को (गेस्ट्स की) पैकिंग करनी पड़ी." अगले दिन शनिवार तक होटल ख़ाली हो गया.

स्थानीय लोगों के मुताबिक़ कई यात्री और पर्यटक बेहद डरे थे कि क्या होगा. बस अड्डे, एअरपोर्ट पर भीड़ के बीच लोग हैरान परेशान थे.

एक आंकड़े के मुताबिक़ इस एडवाइज़री का ये असर हुआ कि बिहार या अन्य राज्यों से कश्मीर में काम करने वाले क़रीब तीन से चार लाख लोग बाहर निकल गए. उनके भागने के कारण बाल काटने, कारपेंटरी, पेंटिंग, इलेक्ट्रिशियन, पैकिंग, ब्यूटी पार्लर, पैकिंग जैसे काम करने वालों की घाटी में भारी कमी हो गई है.

एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक़ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को समझाना और निकालना, उनके लिए टिकट की व्यवस्था करना बेहद मुश्किल था और उनकी टीम अगले एक हफ़्ते तक 24 घंटे की ड्यूटी पर रही. यहां तक कि पहाड़ पर गए पर्यटकों को वापस बुलाने के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 32
BBC

इस पर बारामुला के बंद मार्केट के बीच आधे शटर की खुली नाई की एक दुकान में बैठे एक ग्राहक ने मुझसे पूछा, "मैं भी तो आपका नागरिक हूं. जिस तरह अमरनाथ यात्री, पर्यटकों से कहा गया कि आप चले जाए, हम क्या उनके नागरिक नहीं थे? हमें भी बोलना चाहिए था कि हमें ये क़दम उठाना है."

उस घटना को 50 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं. मुश्ताक़ के मुताबिक़ तबसे और उसके बाद पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 को वापस लेने की घोषणा के बाद कश्मीर घाटी के क़रीब तीन हज़ार होटलों को दो से तीन हज़ार करोड़ रुपए का नुक़सान हो चुका है.

गाइड्स, ट्रैवल एजेंट्स, घोड़ेवाले, टैक्सी वालों को जोड़ें तो कश्मीर घाटी की होटल इंटस्ट्री से क़रीब छह से सात लाख लोगों की रोज़ी रोटी चलती थी.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 33
BBC

घाटी में कुछ अधिकारियों, असरदार लोगों के मोबाइल बिना इंटरनेट के चालू हैं. मुश्ताक़ भी उनमें से हैं.

क़रीब 35 साल से होटल इंडस्ट्री में रहे मुश्ताक़ कहते हैं, "कई लोगों ने क़र्ज़ लिए हैं. उनका ख़र्च जारी है. सरकार को इस बारे में सोचना होगा, आप हमारा क़ुसूर तो बताइए, ये तमाशा कभी नहीं देखा है."

देर रात कई सौ लड़कों को घरों से उठाने, उन्हें कथित यातना देने को लेकर सुरक्षा बलों पर लगे गंभीर आरोपों के बीच कश्मीर में हाउसबोट्स भी ख़ाली हैं.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 34
Getty Images
श्रीनगर में हाउसबोट्स

श्रीनगर की डल झील, निगीन झील, झेलम झील और चिनार बाग़ झील में क़रीब 950 हाउसबोट्स हैं. आज ये सभी ख़ाली हैं. इस काम से क़रीब एक लाख लोगों की रोज़ी रोटी चलती थी. अगस्त से अब तक हाउसबोट मालिकों का कुल घाटा 200 करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 35
BBC
हामिद वांगनू

श्रीनगर के निशात इलाक़े में अपने घर में हाउसबोट ओनर्स एसोसिएशन के हामिद वांगनू कहते हैं, "हाउसबोट चलाने वाले परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का ये एकमात्र साधन है. आज कई परिवार भुखमरी के शिकार हैं. लकड़ी से बने हाउसबोट बेहद नाज़ुक होते हैं, हर हाउसबोट का सालाना मेंटेंनेंस तीन से पाँच लाख रुपए है. अब उनका भविष्य अनिश्चित है."

एडवाइज़री के कारणों पर हमारी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से बात नहीं हो पाई लेकिन एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक़, "वापस मुड़कर देखता हूँ और ख़ुद से पूछता हूं कि उस एडवाइज़री में कितना सच था. इस भारी नुक़सान से निपटने के लिए हमें अब केंद्र सरकार के पैकेज का इंतज़ार है."

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 36
Getty Images

‘हड़ताल’ और व्यापार

कई लोगों ने ज़ोर देकर मुझसे कहा कि "अगर हड़ताल महीनों भी चली तब भी विरोध जारी रहेगा क्योंकि ‘कश्मीरी इसके आदी हैं और मुसीबत में वो एक दूसरे की मदद करते हैं". कुछ ने सवाल किया, "कमाई और रोटी के बिना हम जिएंगे कैसे," ख़ासकर जिस तरह व्यापार ठप है.

एक उदाहरण है शोपियां से दुनिया भर की मंडियों में पहुंचने वाले मशहूर सेब जो पेड़ों पर ही लटके हैं क्योंकि कोई उन्हें उतारने को तैयार नहीं है. कुछ किसान सेब लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं लेकिन "छिप-छिप कर". डर है कि कहीं चरमपंथी या फिर ‘हड़ताल’ समर्थक हमला न कर दें.

शोपियां में मंडी, कोल्ड स्टोरेज बंद हैं. सेब के पेड़ों से घिरे एक शानदार घर में कारपेट पर बैठे और दीवार पर पीठ टिकाए एक व्यापारी ने मुझे बताया कि पिछले साल शोपियां मंडी का कुल कारोबार 1400 करोड़ रुपए का था और घाटी में सेब का सालाना व्यापार तीन हज़ार करोड़ रुपए का है, और अगर 10 अक्तूबर तक सेबों को नहीं तोड़ा गया तो फसल बेकार होनी शुरू हो जाएगी.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 37
BBC

"इसी सेब व्यापार से लोगों के सपने पूरे होते है. परिवारो की साल भर की रोज़ी-रोटी चलती है. ट्रांसपोर्ट बंद है. अभी तक पैकिंग का काम शुरू हो जाना चाहिए था लेकिन लोगों में डर है. पेड़ से लटके सेबों को देखकर मुझे इतना दर्द होता है कि मैं बाग़ में भी नहीं जाता हूँ."

हमें अनंतनाग की बटेंगू सेब मंडी में काफ़ी तादाद में सेब की पेटियां दिखीं, जहां केंद्रीय एजेंसी नैफ़ेड के अधिकारी राज्य के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के माध्यम से किसानों से "सरकारी भाव" पर सेब ख़रीद रहे थे लेकिन एक अधिकारी ने कहा, वो इस बात की पब्लिसिटी नहीं चाहते.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 38
BBC

शिक्षा व्यवस्था पर असर

दक्षिणी कश्मीर के शोपियां के एक गांव में एक ठंड दोपहर में छायादार पेड़ों के नीचे एक सरकारी मिडिल स्कूल के बाहर मुझे कुछ बच्चे खेलते मिले. स्कूल बंद था.

मैं सातवीं कक्षा के एक बच्चे से बात कर रहा था कि तभी पास ही गुज़र रहे एक कार वाले ने गाड़ी रोकी और कहा, "ये बच्चे ख़ुश हैं कि आज छुट्टी है. इनको नहीं पता कि इनके भविष्य का क्या होगा. बच्चे दिन भर टहलते हैं. हिंदुस्तान यही चाहता है कि ये बच्चे न पढ़ें."

सरकार ने कई बार प्रेस वार्ताओं में प्राइमरी और हाइस्कूलों के खोलने की घोषणा की लेकिन सुरक्षा को लेकर चिंता के कारण बच्चे स्कूल नहीं पहुंचे.

मां-बाप के सामने चुनौती है कि बच्चों को घरों में व्यस्त कैसे रखा जाए ताकि उनकी पढ़ाई का नुक़सान न हो. बोर्ड की परीक्षाएं, गेट, आईआईटी आदि की परीक्षाएं नज़दीक हैं और ट्यूशन सेंटर्स भी बंद हैं.

ऐसे ही एक स्कूल में मैं पहुंचा जहां स्कूल तो बंद था लेकिन मां-बाप और रिश्तेदार बच्चों के साथ आ-जा रहे थे. किसी के हाथ में चॉकलेट तो किसी के हाथ में आइसक्रीम.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 39
BBC

स्कूल के रिसेप्शन से गुज़रते हुए मैं एक कमरे में पहुंचा जहां लगी दो बड़ी मल्टीफंक्शनल मशीनें और दो छोटी ज़ेरॉक्स मशीनों से लगातार काग़ज़ छपने की आवाज़ आ रही थी.

इन मशीनों पर बच्चों के लिए हर विषय के असाइनमेंट की कॉपियों के सेट तैयार हो रहे थे ताकि वो घर में अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.

बड़ी मशीन पर हर मिनट 125 कॉपी छप रही थी जबकि ज़ेरॉक्स मशीन 50-60 कॉपी प्रति मिनट. मशीनों के ऊपर कश्मीरी, उर्दू, हिंदी के कई असाइनमेंट सेट रखे थे.

हर सेट पर बच्चों के लिए इंस्ट्रक्शंस थे ताकि वो हफ़्ते या दो हफ़्ते बाद असाइनमेंट को पूरा करके स्कूल में टीचर को दिखा सकें.

स्कूल के अध्यापकों ने बच्चों के लिए वीडियो लेसन रेकॉर्ड किए थे जिन्हें वो घर पर देख सकें.

एक अधिकारी के मुताबिक़ वो अभी तक एक ट्रक से ज़्यादा पन्नों का इस्तेमाल कर चुके हैं. लेकिन घर और स्कूल की पढ़ाई की खाई को पाटना आसान नहीं, ख़ासकर अगर बच्चा किसी बड़ी कक्षा में पढ़ता हो जहां पढ़ाई आसान नहीं.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 40
Getty Images

सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बेटी के लिए असाइनमेंट लेने आए एक नाराज़ पिता ने मुझसे कहा, "ऐसा लग रहा है कि हम 60 के दशक में हैं… मैं पढ़ा लिखा हूं तो अपने बच्चों की मदद कर सकता हूं. उनका सोचिए जो ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं. वो साइंस, गणित कैसे पढ़ाएंगे? ऊंची क्लास की पढ़ाई को समझना भी नामुमकिन है. कभी-कभी हम कुछ लोगों को साथ बुला लेते हैं ताकि वो साथ में पढ़ें. यहां लोकतंत्र सिर्फ़ काग़ज़ पर है."

स्कूल की सीढ़ियों पर कक्षा छह के एक बच्चे और उनके पिता मिले. उनके एक असाइनमेंट का पन्ना छूट गया था जिसके लिए उन्हें स्कूल के दो चक्कर काटने पड़े.

वो कहते हैं, "मेरा बच्चा आईटी विषय में एक सवाल पर फंस गया था. स्कूल में आप टीचर से पूछ सकते हैं, घर पर नहीं. हम किसी तरह मामले को चला रहे हैं."

प्रतियोगिता परीक्षाओं के फॉर्म भरने वाले छात्रों की समस्याएं भी कम नहीं.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 41
BBC

श्रीनगर के केंद्र में टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर के एक बड़े हॉल में फॉर्म भरने के लिए पाँच कंप्यूटर्स रखे थे. पूरे शहर में छात्रों के लिए इंटरनेट से जुड़े यही पाँच कंप्यूटर हैं. साथ ही, मदद के लिए एक व्यक्ति जिसके पास ओटीपी और ऑनलाइन पेमेंट के लिए मोबाइल फोन और क्रेडिट कार्ड रखा था.

जेईई मेंस की परीक्षा का फॉर्म भरने आए 18 साल के करतार सिंह पहले अपने "लेक्चर ऑनलाइन देखते थे लेकिन अब किताब पढ़ने में ज़्यादा वक़्त लगता है. स्थानीय लोगों ने ट्यूशन सेंटर बंद करवा दिया इसलिए समस्या ज़्यादा है."

हॉल के भीतर एक सोफ़े पर बैठी 23 वर्ष की सईदा कहती हैं, "मैं किताब खोलती हूं तो दिमाग़ में आता है कि न्यूज़ देखूं कि क्या हो रहा है. अब हमारा मुक़ाबला दिल्ली, बैंगलोर के छात्रों से हैं. वो आगे निकल जाएंगे जबकि हम पीछे छूट रहे हैं."

सईदा के सामने एक सोफ़े पर ख़ाली बैठे कुछ ट्रैवल एजेंट हमारी बातचीत सुन रहे थे.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 42
BBC
जावेद अहमद

जैसे ही बातचीत ख़त्म हुई, जावेद अहमद नाम के एक व्यक्ति ने पास आकर कहा, "घाटी में क़रीब पांच हज़ार ट्रैवल एजेंट हैं. उनकी उम्र 35-38 के बीच है. सरकार कहती है कि युवाओं को रोज़गार दो. हम युवा हैं और बेरोज़गार हैं. हमें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. हमें काम चाहिए, पूरे कश्मीर में फ़्लाइट बुकिंग, कैंसल, दोबारा शेड्यूल करने के लिए यहां मात्र पांच काउंटर हैं. मान लीजिए कोई मेडिकल इमर्जेंसी हो, किसी को कैंसर हो, वो कैसे बुकिंग करेगा?"

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 43
BBC
सत्र न्यायालय

अदालतों का हाल

श्रीनगर में बार एसोसिएशन के प्रमुख मियां अब्दुल क़य्यूम और पूर्व प्रमुख नज़ीर अहमद रोंगा की गिरफ़्तारी उन पर पीएसए (पब्लिक सेफ़्टी ऐक्ट) लगाने से क़रीब डेढ़ हज़ार वकीलों ने काम ठप कर रखा है.

ट्रांसपोर्ट नहीं होने से लोगों के अदालतों तक पहुंचने में भी दिक़्क़तें हैं.

एक वकील के मुताबिक़ लोग मामलों में ख़ुद जज के सामने पेश होते हैं, इसलिए न कोई जिरह होती है और उन्हें अगली तारीख़ दे दी जाती है.

जिन मामलों में पीएसए (पब्लिक सेफ़्टी ऐक्ट) लगता है, उनमें पहले याचिका दाख़िल करनी होती है जिसके बाद सरकार को नोटिस दिया जाता है, और फिर जवाब के बाद अदालत में बहस होती है लेकिन पीएसए मामलों को देख रहे एक वकील के मुताबिक़ ऐसी दर्जनों याचिकाओं पर अभी तक नोटिस नहीं भेजी गई है, यानी याचिकाकर्ताओं के लिए आगे की राह आसान नहीं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता कश्मीर में पीएसए के कथित दुरुपयोग पर आवाज़ उठाते रहे हैं. इस क़ानून के अंतर्गत पुलिस किसी व्यक्ति को बिना ट्रायल या आधिकारिक कारण के जेल में रख सकती है और उसे अगले 24 घंटों में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की भी ज़रूरत नहीं होती.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 44
BBC
वरिष्ठ वकील रफ़ीक बज़ाज़

हाईकोर्ट में ही बारामूला से आए अल्ताफ़ हुसैन लोन बैठे थे जिनके 10 साल से सरपंच और नेशनल कॉन्फ़्रेंस कार्यकर्ता भाई शब्बीर अहमद लोन को भी "पुलिस उनके सरकारी क्वार्टर से ले गई और अगले दिन जब हम पुलिस के पास गए तो हमें कहा कि उस पर पीएसए लगा हुआ है."

अल्ताफ़ हुसैन ने भी पीएसए हटाने के लिए अदालत में याचिका दी हुई है लेकिन उन्हें वकील नहीं मिल रहा था.

अल्ताफ़ हुसैन कहते हैं, "वो श्रीनगर सेंट्रल जेल में हैं. वहां पर मिलने की सुविधा नहीं है. बीच में जाली वग़ैरह होती है. आप ही बताइए सर हम क्या कर सकते हैं, घर में उनकी बीवी, दो बच्चे – एक पांच साल का, एक दो साल का, मैं उनका घर चलाता हूं."

"पार्लियामेंट चुनाव में हमारे परिवार ने भी वोट डाला. उसका बदला ये मिला हमें? जब भाई बंद हुआ तो चुनाव का बहिष्कार करने वाले ख़ुश हुए. (उन्होंने कहा) अच्छा हुआ ये हिंदुस्तान के साथ था. वो लोग हमारे साथ बात नहीं कर रहे हैं. बोल रहे हैं. आप इसी के लायक़ हैं. हमारे साथ ज़ुल्म हुआ, हम तो हिंदुस्तान के साथ चल रहे थे अच्छी तरह से."

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 45
BBC

हाईकोर्ट के निकट लोअर कोर्ट सुनसान पड़ा था. वहां पर वरिष्ठ वकील रफ़ीक़ बजाज के मुताबिक़ ट्रांसपोर्ट में समस्या के कारण लोग अदालतों तक पहुंच भी नहीं पा रहे हैं.

वो कहते हैं, "हमारा क्लाइंट के साथ कनेक्शन नहीं हो पा रहा है. शुरुआत में कुछ नहीं था, स्टैंप लाना होता है, काग़ज़ लाना होता है, बेल ऐप्लिकेशन हम सिंपल काग़ज़ में लिखते थे, क्योंकि पकड़ धकड़ हुई थी. लोग पुलिस थानों में रिपोर्ट लाने के लिए पैदल जाते थे. वैसे (ही हमने) काम चलाया. पीएसए में पेटिशन बनाने के लिए हमारे पास स्टेनोग्राफ़र्स नहीं हैं. नेट की सुविधा नहीं क्योंकि उससे हमें पता चलता है कि गिरफ़्तारी का आधार क्या है."

रफ़ीक़ बजाज के मुताबिक़ कई लोगों को धारा 107 के अंतर्गत भी पकड़ा गया है जिसका मतलब है अगर किसी को शांति के लिए ख़तरा समझा जाए.

पकड़े गए कई नेताओं को डल झील से सटे सेंटॉर होटल में रखा गया है.

यहां अंदर जाने के लिए चार चरणों की सुरक्षा है. जम्मू और कश्मीर के एक पुलिसकर्मी ने बताया कि अंदर 36 नेता बंद हैं "जो जब मन चाहे अपने पसंद का खाना, चिकन खा सकते हैं और बाहर घूम सकते हैं."

होटल के बाहर मुझे फ़ैज़ान अहमद भट्ट मिले जो पूर्व एमएलए और पीडीपी सदस्य नूर मोहम्मद शेख़ के रिश्तेदार हैं और उनसे एक हॉल में मिल कर बाहर निकल रहे थे.

फ़ैज़ान के मुताबिक़ नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीडीपी कार्यकर्ता घरों में डर के मारे बैठे हैं.

वो कहते हैं, "महबूबा जी कोई आतंकवादी तो नहीं है. उन्होंने हिंदुस्तान का झंडा हाथ में लिया था, सलामी ली थी."

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 46
BBC
मोथल गांव

इंटरनेट, मोबाइल सेवा और चरमपंथ

सरकार का कहना है कि इंटरनेट और मोबाइल सेवा बंद करने का मक़सद लोगों की जान बचाना है क्योंकि इससे चरपमंथियों के हैंडलर उनके संपर्क में नहीं हैं.

उधर दक्षिणी कश्मीर के एक जानकार ने कहा कि मोबाइल सेवा बंद होने से चरमपंथी ख़ुश हैं क्योंकि अब उन्हें ट्रैक करना, उनके बारे में पुलिस को ख़ुफ़िया जानकारी देना आसान नहीं रहा है और "अब तो मोबाइल टावरों को उड़ाने की बात भी सुनने में आ रही है". इस जानकार के मुताबिक़ नौकरी और काम पर जाने वाले लोगों पर निगाह रखी जा रही है ताकि ये दिखे कि ‘हड़ताल’ मुकम्मल है.

श्रीनगर में ट्रांसपोर्ट सड़क पर थोड़ा वापस लौटा है. सुबह और शाम कुछ दुकानें खुलती हैं. कहीं-कहीं बिज़नेस एक चौथाई खुले शटर के पीछे चलता है. कभी-कभी लोग बंद दुकान के बाहर ग्राहकों का इंतज़ार करते हैं, और ग्राहक आने पर दुकान के अंदर चले जाते हैं. उत्तर और दक्षिणी कश्मीर के दूर-दराज़ इलाक़ों तक मेडिकल या कहीं-कहीं कुछ दुकानों के अलावा सभी दुकानें बंद दिखीं और सड़कें सुनसान.

कश्मीर में कई लोग सरकारी फ़ैसले का विरोध और "हड़ताल’ का समर्थन करते हैं. कुछ लोगों ने इसलिए भी दुकाने बंद रखी हैं कि अकेले दुकान खोलने पर वो समाज में अलग-थलग पड़ जाएंगे. चरमपंथियों और ‘हड़ताल’ समर्थकों की ओर से हमलों का डर भी बंद का कारण है. कुछ दिनों पहले ही एक दुकानदार की हत्या से भी लोग सहमे हैं.

बीबीसी के श्रीनगर में हमारे सहयोगी माजिद जहांगीर के मुताबिक़ चरमपंथियों की ओर से छापे गए पोस्टरों में लोगों से कहा गया है कि वो ट्रांसपोर्ट, दुकानें, पेट्रोल पंप, काम बंद रखें.

दक्षिणी कश्मीर में जलाई गई एक दुकान के पास हम पहुंचे तो वहां रेनोवेशन का काम चल रहा था. इक्का-दुक्का लोगों के अलावा सड़कें सुनसान थीं. इस घटना से सहमें आसपास के लोगों ने कई दिनों तक दुकानें बंद रखी थीं. इंश्योरेंस न होने के कारण दुकानदार को क़रीब चार लाख का नुक़सान हुआ था. यहां डर न सिर्फ़ चरमपंथियों का है बल्कि सुरक्षाबलों का भी कि कहीं उन्हें गिरफ़्तार कर दूर आगरा या लखनऊ न भेज दिया जाए.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 47
BBC

दोनों ओर घने पेड़ के बीच बनी कच्ची सड़कों से होते हुए हम एक और गांव में पहुंचे जहां एक और दुकान को दो बार जलाया गया था. एक मेडिकल की दुकान के अलावा सभी के शटर बंद थे जिसके बाहर लड़के या तो बैठे बात कर रहे थे या वीडियो गेम खेल रहे थे. एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि हम गांव से तुरंत निकल जाएं क्योंकि वहां चरमपंथी मौजूद हैं.

चरमपंथ प्रभावित दक्षिणी कश्मीर में एक व्यक्ति के मुताबिक़, "हम कहां कश्मीर में जनमत संग्रह की बात सोच रहे थे. अनुच्छेद 370 को हटाकर सरकार ने तो हमें ज़ीरो पर लाकर खड़ा कर दिया." एक दूसरे व्यक्ति ने कहा, "हम ख़ुद को हिंदुस्तानी मानते थे. सब कुछ ठीक चल रहा था फिर हुकूमत ने ऐसा क्यों किया?"

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 48
BBC

केंद्रीय श्रीनगर में एक पुलिसकर्मी ने हमें फोटो खींचने से रोका और फिर कहा, "हमारे दिल ज़ख्मी हैं लेकिन हम वर्दी पहन कर ग़द्दारी नहीं करेंगे."

एक तबक़े तो ये भी कहता है कि इस फ़ैसले से "आज़ादी" की मांग मुखर होगी और पढ़ा लिखा वर्ग भारत से और दूर होगा.

फ़ैसले का समर्थन करने वाली कुछ आवाज़ें भी हैं लेकिन विरोध की तीव्रता के बीच ये आवाज़ें चुप हैं. चरमपंथ प्रभावित दक्षिणी कश्मीर के एक व्यक्ति ने उम्मीद जताई कि इस फ़ैसले से बेरोज़गारी कम होगी. श्रीनगर मे एक व्यक्ति ने ख़ुशी जताई और कहा, "क्या ये कश्मीर हमारा नहीं है? हम इस फ़ैसले से ख़ुश हैं. जिस तरह सरकार ने फ़ैसला लागू किया, और कोई चारा नहीं था. अगर ऐसा न होता तो न जानें कितनी जान जातीं."

एलओसी पर फॉयरिंग से लोग परेशान

एलओसी से सटा उड़ी उन इलाक़ों में से है जहां सबसे ज़्यादा वोट पड़ते रहे हैं. उनके सियासी और सामाजिक मामले बाक़ी की घाटी से अलग रहे हैं. लेकिन अनुच्छेद 370 पर सरकार के फ़ैसले के बाद यहां भी बाज़ार बंद थे.

पहाड़ी रास्ते से ऊंचाई पर हम मोथल गांव पहुंचे जहां से दूर पहाड़ों पर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गांव नज़र आते हैं.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 49
BBC
एलओसी पर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच शेलिंग में टूटी छत

गांव वालों के मुताबिक़ पाँच अगस्त से एलओसी पर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच शेलिंग जारी है.

बीच दोपहर थी. धूप के साथ-साथ रिमझिम बारिश भी हो रही थी. पहाड़ पर बनाए गए संकरे रास्ते से, पत्थरों पर ख़ुद को संभालते, चढ़ते हम लतीफ़ा बेगम के घर पहुंचे.

पिछली रात जब वो अपने आठ साल के बेटे बिलाल के साथ पड़ोस की हफ़ीज़ा के घर में थीं तब टीन की चादर तोड़ते मोर्टार का एक छोटा सा टुकड़ा बिलाल और उन पर गिरा.

रात के अंधरे में दोनो को उड़ी के अस्पताल ले जाया गया जहां उनका एक्सरे हुआ. बिलाल के सिर और छाती और हाथ में चोट लगी जबकि लतीफ़ा को पांव में.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 50
BBC
मोथल गांव से दूर पहाड़ों पर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गांव नज़र आते हैं

लतीफ़ा कहती हैं, "रात में गोलीबारी होती है तो हम छिप जाते हैं. हम कहां जाएं? एलओसी से लगे हुए गांवों का यही हाल है. डरते कांपते, अंधेरे में छिपते हमारी रात कटती है. भागने की कोई गुंजाइश नहीं होती. रात में इतनी आवाज़ होती है कि बच्चे रोने लगते हैं. अनुच्छेद 370 को हटाना सरकार का फ़ैसला है हम क्या कर सकते हैं. स्कूल खुलते हैं, फायरिंग होती है बंद हो जाते हैं."

गांव में छिपने के लिए बंकर भी नहीं है.

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 51
BBC
आठ साल के अपने बेटे बिलाल के साथ लतीफ़ा बेगम

पड़ोस में हफ़ीज़ा के घर में शेलिंग से बच्चे इतने डर गए थे कि उन्होंने दोपहर तक कुछ नहीं खाया था.

पास के दर्दकोट गांव के फ़ारुक़ अहमद कहते हैं, "इधर से मोदी तंग कर रहे हैं, उधर से इमरान ख़ान. हम कहां जाएंगे. जीना मुश्किल हो गया है हमारा. हम अपने बच्चों को कहां छिपाएं. मैं म़ज़दूर हूं, घांस काटता हूँ तो फ़ायर आने लगता है. उड़ी में प्याज़ 50 रुपए किलो, आलू 40 रुपए किलो, 10 किलो के आंटे का थैला 350 रुपए, दाल 120-150 रुपए किलो पर पहुंच गई है. 200 रुपए दिन का कमाने वाला मज़दूर कैसे खाएगा."

Undefined
कश्मीर से 370 हटने के 50 दिन, लेकिन सबको है 27 सितंबर का इंतज़ार 52
BBC
शेलिंग में चोटिल बिलाल

लगातार गोलीबारी के कारण गांव में रहने वाले लोग अपने बच्चों, मां-बाप को सुरक्षित इलाक़ों में ले जा रहे हैं.

यहां किसी को 27 सितंबर का इंतज़ार नहीं है. क्योंकि यहां पता नहीं कब उनकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो.

(कहानी में कुछ लोगों के नाम और जगह सुरक्षा कारणों से बदले गए हैं)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

]]>

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें