शनल मिलर: स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में यौन हिंसा की शिकार लड़की की कहानी

<figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/FDC1/production/_109016946_72a78b0b-2452-4615-8b68-6f4c8541a90d.jpg" height="1149" width="976" /> <footer>Jared Stapp/BBC</footer> </figure><p>एमिली डो के बारे में हम क्या जानते हैं? उनके बारे में हम इतना ही जानते हैं कि जनवरी 2015 की एक रात अमरीका के कैलिफ़ोर्निया सूबे की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बाहर एक दोस्ताना पार्टी के बाद वो अर्ध नग्न अवस्था में कचरे के डिब्बे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2019 10:28 PM

<figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/FDC1/production/_109016946_72a78b0b-2452-4615-8b68-6f4c8541a90d.jpg" height="1149" width="976" /> <footer>Jared Stapp/BBC</footer> </figure><p>एमिली डो के बारे में हम क्या जानते हैं? उनके बारे में हम इतना ही जानते हैं कि जनवरी 2015 की एक रात अमरीका के कैलिफ़ोर्निया सूबे की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बाहर एक दोस्ताना पार्टी के बाद वो अर्ध नग्न अवस्था में कचरे के डिब्बे के पास पड़ी पाई गई थीं.</p><p>उन पर ब्रॉक टर्नर नाम के एक शख़्स ने यौन शोषण के इरादे से हमला किया था.</p><p>नशे में धुत एक लड़की के यौन उत्पीड़न और रेप करने की कोशिश के जुर्म में टर्नर को 6 महीने की जेल हुई थी. उसने तीन महीने की सज़ा काटी और तीन साल के लिए उसे निगरानी में रखा गया. निगरानी की ये मियाद इसी महीने के अंत में पूरी हो रही है.</p><p>आरोन पर्स्की नाम के जज ने टर्नर को अच्छे चरित्र का व्यक्ति बताया था. जज ने इतनी कम सज़ा के लिए ये तर्क दिया था कि वो शराब पी रहा था और उसी के नशे में ये जुर्म किया था. हालांकि बाद में जज पर्स्की को उनके पद से हटा दिया था. घटना के वक़्त जो मीडिया कवरेज हुई, उसमें इस बात पर बहुत ज़ोर था कि आरोपी बूर्सू टर्नर एक शानदार तैराक हैं.</p><p>लेकिन हम शनल मिलर के बारे में क्या जानते हैं? शायद आपने अब तक उसके बारे में ज़्यादा न सुन रखा हो. शनल मिलर, एमिली डो का ही काल्पनिक नाम है जो उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए रखा था. जब उन्होंने अपने ऊपर हमला करने वाले ब्रॉक टर्नर को संबोधित करते हुए अपनी आपबीती का एक बयान जारी किया था, तो वो वायरल हो गया था. तब लोग उन्हें एमिली डो के नाम से ही जानते थे.</p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/147EF/production/_108915938_miller3_976.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>ये वो बातें हैं जो आप को शनल के बारे में जाननी चाहिए.</p><p>वो एक बहादुर, बेबाक और साफ़ग़ोई से बात कहने वाली महिला हैं. उन्होंने साहित्य में स्नातक की डिग्री ली है और अपनी लिखी किताब ‘नो माई नेम (Know My Name)’ के लिए जानी जाती हैं. वो आधी चीनी हैं. उनका चीनी नाम झैंग शाओ शा है.</p><p>वो एक क़ाबिल कलाकार हैं, जिन्हें बच्चों की किताबों में ड्राइंग से स्केच बनाना पसंद हैं. उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने की कला भी सीखी है. और स्टैंड-अप कॉमेडी भी कर चुकी हैं.</p><p>शनल को कुत्तों से बहुत प्यार है. वो मिज़ाज से शर्मीली भी हैं और मज़ाक़िया भी हैं. शनल किसी की बेटी हैं, किसी की दोस्त हैं, किसी की बहन हैं तो किसी की गर्लफ़्रैंड हैं. वो कुछ और भी हो सकती थीं.</p><p>शनल की यादें उनकी आज़माइशों से पैदा हुए ग़ुस्से से भरी हैं. अपने सैन फ्रांसिस्को के घर में बैठ कर बातें करते हुए 27 वर्षीय शनल कहती हैं कि, &quot;मैं उस दौर से गुज़री हूं जब सुबह उठने का मन नहीं होता था. मन करता था कि इतनी गहरी नींद आ जाए कि फिर आंख ही ना खुले. हर तरफ़ अंधेरा था. आगे कोई रास्ता नज़र नहीं आता था.&quot;</p><p>&quot;मैं ना तो ड्रॉइंग बनाती थी. ना कुछ लिखने का मन होता था. ऐसा लगता था कि ज़िंदगी जीने का मक़सद ही ख़त्म हो गया था. मुझे इस दौरान उन लड़कियों के दर्द और तकलीफ़ का एहसास हुआ, जो यौन हिंसा की घटनाओं से गुज़री हैं. मन में सवाल उठता रहता है कि कैसे हमने अपने साथ ये सब होने दिया.&quot;</p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/AB8F/production/_108891934_achanelpic3js.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Jared Stapp/BBC</footer> </figure><p><strong>डर, </strong><strong>ग़ुस्सा </strong><strong>और पीड़ा</strong></p><p>शनल बड़ी मज़बूती से अपने तजुर्बे साझा करती हैं. लेकिन अपने बुरे दौर को याद करके उनकी ज़ुबान जज़्बाती हो जाती है. वो बातें साफ़-साफ़ करती हैं लेकिन आवाज़ में डर और गुस्से की लरज़ होती है. उन्हें इस नाइंसाफ़ी पर गुस्सा आता है कि कैसे सारी दुनिया में महिलाओं को ऐसे दौर से गुज़रना पड़ रहा है और सब ख़ामोश हैं. लोगों को ये एहसास तक नहीं होता कि एमिली डो होना होता क्या है.</p><p>शनल कहती हैं, &quot;दुनिया भर में ऐसी अनगिनत लड़कियां हैं जो अपना कल संवारने का जज़्बा रखती हैं. जिनकी आंखों में अपनी क़ाबिलियत के बूते क़िस्मत चमकाने के सपने हैं. जो दुनिया को बहुत कुछ दे सकती हैं लेकिन उनके साथ ये सब हो जाता है.&quot;</p><p>&quot;वो जब घर लौटती हैं, तो शर्मिंदगी साथ लाती हैं और उसे अकेले ही घूंट-घूंट पीती हैं. शर्मिंदगी और पछतावा उन्हें अंदर ही अंदर खा जाते हैं. फिर वो सोचती हैं अगर उन्होंने ख़ुद को घर की चार दीवारी में ही रखा होता तो सब ठीक रहता. अगर वो मुंह नहीं खोलतीं, ख़ामोश रहती तो शायद सब ठीक होता.&quot;</p><p>वो आगे कहती हैं, &quot;शायद उन्हें हक़ ही नहीं कि उन्हें किसी का प्यार मिले, कोई प्यार से उन्हें गले लगाए. उनके साथ रोमांस करे. हम पछतावे में अपने अंदर नकारात्मक सोच पलने देते हैं.&quot;</p><p>&quot;हम ये नहीं कहते कि नहीं, हमें भी जीने का हक़ है. हम भी एक बेहतर भविष्य के हक़दार हैं. और आख़िर में यौन हिंसा की शिकार लड़कियां ये मान बैठती हैं कि शायद उन्हें मोहब्बत पाने का हक़ ही नहीं है.&quot; </p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/4F99/production/_108877302_stapp_bbc_chanel_miller_4-2.jpg" height="649" width="976" /> <footer>Jared Stapp/BBC</footer> </figure><h1>हर 92 सेकेंड में एक लड़की का उत्पीड़न</h1><p>शनल के साथ जब ये हादसा हुआ तो वो यूनिवर्सिटी की छात्रा नहीं थीं. वो अपनी ग्रेजुएशन पहले ही पूरी कर चुकी थीं. उनकी छोटी बहन वीकेंड पर घर आई थीं. उन्होंने छोटी बहन से भी पार्टी में चलने को कहा था.</p><p>शनल की कहानी ने कैंपस रेप की घटना को सुर्ख़ियों में ला दिया. वो स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में बदलाव देखना चाहती थीं. जैसे कि स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कैंपस में फोरेंसिक जांच नहीं हो सकती. इसके लिए पीड़ितों को 40 मील का सफ़र तय करना पड़ता है.</p><p>वो सवाल उठाती हैं कि, &quot;क्या आप ऊबर की कैब में 40 मिनट तक किसी अजबनी के साथ वक़्त बिता सकते हैं? वो भी उन्हीं कपड़ों में जिन्हें पहने हुए आप यौन हिंसा के शिकार हुए? क्या आप अपने दोस्तों को मैसेज कर के वहां बुला सकते हैं?&quot; </p><p>शनल की आपबीती पढ़ने के बाद बहुत सी महिलाएं अपने साथ हुए ऐसे हादसों की कहानी लेकर आगे आईं. RAINN- अमरीका की सबसे बड़ी संस्था है जो बलात्कार, यौन उत्पीड़न और पारिवारिक यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती है.</p><p>इसकी रिपोर्ट के मुताबिक़ अमरीका में हर छठवीं लड़की रेप या रेप की कोशिश का शिकार होती. हर 92 सेकेंड में एक लड़की का यौन उत्पीड़न हो रहा है. हैरत की बात है कि हज़ार में से 995 कुकर्मी आज़ाद घूमते रहते हैं.</p><p>शनल कहती हैं कि ऐसी घटना के बाद अक्सर कहा जाता है, &quot;अरे, रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई? आगे आकर सबको बताया क्यों नही?&quot;</p><p>जबकि सच ये है कि शिकायत दर्ज कराने का कोई सिस्टम ही नहीं है. शनल के केस में टर्नर को जेल तो हुई थी, पर उसके जुर्म को बलात्कार के तौर पर पेश नहीं किया गया था. लेकिन इस केस के बाद कैलिफ़ोर्निया में क़ानून बदल गया. </p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/0561/production/_108877310_chanelsf2017.jpg" height="976" width="976" /> <footer>Chanel Miller</footer> </figure><h1>आपबीती का व्यापक असर</h1><p>शनल की वकील अलालेह कियानर्सी बताती हैं कि अब नए क़ानून के मुताबिक़ अगर नशे की हालत या बेहोशी में किसी के साथ ज़बरदस्ती की जाती है, तो उस जुर्म के लिए तीन साल जेल की सज़ा लाज़मी है. इसके अलावा एक नया क़ानून और बनाया गया जिसमें विस्तार से रेप की परिभाषा लिखी गई है.</p><p>शनल कहती हैं कि बलात्कार की परिभाषा जो भी हो, किसी बेहोश या नशे की शिकार महिला के शरीर के भीतर क्या डाला जा रहा है, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है.</p><p>कोर्ट की कार्रवाई ने शनल को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया था. वो अंदर एक ख़ालीपन महसूस कर रही थीं. ऐसा लगता है कि उनके किरदार को ही सज़ा सुना दी गई है. मुजरिम ब्रॉक टर्नर को सज़ा सुनाए जाने के बाद जब शनल की वकील ने उनसे उनकी आपबीती दुनिया को बताने की इजाज़त मांगी, तो शनल ने सोचा कि कम्यूनिटी फ़ोरम या किसी स्थानीय अख़बार की वेबसाइट पर खबर छप कर ख़त्म हो जाएगी. ये कभी नहीं सोचा था कि इसका इतना व्यापक असर होगा.</p><p>उनकी आपबीती सबसे पहले बज़फीड में प्रकाशित हुई थी. महज़ चार दिन में इसे एक करोड़ दस लाख व्यूज़ मिले थे. शनल को हज़ारों ख़त भेजे गए और दुनिया भर से तोहफ़े मिले. शेनल ने इन सभी को पढ़ा था.</p><p>शनल कहती हैं कि लोगों के इस प्यार ने उन्हें ख़ुद को फिर से जानने और पहचानने का मौक़ा दिया. शनल को एक ख़त व्हाइट हाउस से भी गया था. उस वक़्त के अमरीकी उप-राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा था, &quot;तुमने उन्हें ताक़त दी है जिन्हें लड़ने की ज़रूरत है. मुझे यक़ीन है, तुम ज़िंदगियां बचाओगी.&quot;</p><p>शनल ने पहचान छिपाकर ही अपनी आपबीती बताई थी. किसी को नहीं पता था कि वो ही एमिली डो हैं. शनल के लिए जब भी कोई मैसेज आता उनके दोस्त उन्हें बढ़ा देते. यहां तक कि शनल की थेरेपिस्ट को भी ये बात पता नहीं थी कि वो ही एमिली डो हैं.</p><p>अलबत्ता ये ज़रूर पता था कि वो यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं. वो शनल से पूछती थीं, &quot;क्या तुमने स्टैनफ़ोर्ड पीड़िता की आपबीती पढ़ी है.&quot; </p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/F709/production/_108614236_chanel_portrait.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Mariah Tiffany</footer> </figure><p><strong>जगज़ाहिर </strong><strong>करने की ख्वाहिश क्यों</strong></p><p>शनल के केस जैसे और भी बहुत से मामलों की कोर्ट में सुनवाई चलती है. बस हर केस में पीड़ित और आरोपी के नाम बदल जाते हैं. बाक़ी हालात जस के तस ही होते हैं. फिर शनल के केस में ऐसा क्या था कि इसकी गूंज इतने बड़े पैमाने पर सुनाई दी और सरकार को कानून में बदलाव करना पड़ा?</p><p>शनल कहती हैं, &quot;मुझे लगता है जब दूसरे लोग अपका दर्द समझने लगते हैं. आपके चारों तरफ़ फैले अंधेरे को समझते हैं. तो, लगता है कि आपके साथ जो कुछ हुआ उसे छुपाने की ज़रूरत नहीं.&quot;</p><p>वो कहती हैं कि, &quot;जब आप अपने साथ हुए तजुर्बों के बारे में बताते हैं, तो लोग बुरा सा मुंह बनाते हैं और आप से दूर हो जाते हैं. लेकिन, मैं अपने साथ हुई बुरी घटना को खुल कर कह सकी. मैंने बस अपना क़िस्सा बताया और मुझे उसे बताते हुए ज़रा भी शर्मिंदगी नहीं हुई.&quot;</p><p>कोर्ट की औपचारिकताओं से जूझते हुए शनल ने ये अपनी ज़िम्मदारी समझी कि लोगों को बताया जाए कि ऐसी लड़ाई लड़ना इतना आसान नहीं होता.</p><p>शनल कहती हैं, &quot;मेरे पास मेरी यौन उत्पीड़न की फ़ॉरेंसिक एविडेंस किट थी. मेरे पास पुलिस और नर्स थीं. मुझे एक वकील भी मुहैय्या कराया गया था. मेरे पास वो सब था जो कोर्ट में अपनी बात रखने के लिए किसी पीड़ित के पास होने चाहिए. इसके बावजूद मैं जज़्बाती तौर पर पूरी तरह टूट चुकी थी. मैं सोचती थी मेरे पास वो सब है जो मुझे क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए दरकार है.&quot;</p><p>&quot;लेकिन जिनके पास ये सब नहीं, वो अपनी लड़ाई कैसे लड़ते होंगे. फिर मैंने इसे अपनी ज़िम्मेदारी समझा कि मैं अपने अनुभव को शब्दों में पिरोऊं और लोगों को बताऊं कि बिना खिड़की वाली कोर्ट की दीवारें कैसी लगती हैं. कैसा लगता है कठघरे में खड़ा होना और बेतुकी पूछताछ का हिस्सा बनना.&quot;</p><p>किताब लिखने के दौरान ही कोर्ट के तमाम दस्तावेज़ों और हज़ारों पेज वाली उन प्रतिलिपियों तक उनकी रसाई हो पाई, जो उनके सामने नहीं लाए गए थे. उनके परिवार और दोस्तों ने क्या-क्या देखा और सुना था, ये जानकर उन्हें बहुत तकलीफ़ हुई थी.</p><p>शेनल कहती हैं, &quot;ये सब बहुत मुश्किल था. बहुत लंबे समय तक तो मैंने इसे दूर रखा. लेकिन फिर मैंने सुकून से सोचा और नए सिरे से इस केस को जानना शुरू किया. मैंने ब्रोक के बारे में बहुत पढ़ा और और बचाव पक्ष की दलीलों को भी पढ़ा. ये सब बहुत दम घोंटू था. शब्दों के माध्यम से मुझे एक बार फिर बेपर्दा और नंगा कर दिया गया था. और ये सब कोर्ट रूम में हो रहा था जहां हर कोई ख़ामोशी से बस सुन रहा था. कोई कुछ कर नहीं रहा था.&quot; </p><p>इस हालत ने शनल को गुस्से से भर दिया था. वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं. लेकिन शनल कहती हैं, &quot;कुछ अच्छे पल भी थे जो मेर साथ थे. कोर्ट से नक़ल की जो कॉपी मुझे मिली थी उसमें लिखी हरेक बात मेरे हक़ में थी. इस कॉपी में से मुझे जो शब्द अच्छे लगे, मैंने उन्हें इकट्ठा किया और फिर से एक नई इबारत लिख डाली और इसने मुझे नई ताक़त दी.&quot;</p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/F9AF/production/_108891936_achanelpic2js.jpg" height="1449" width="976" /> <footer>Jared Miller/BBC</footer> </figure><p><strong>पहचान को </strong><strong>ज़ाहिर </strong><strong>करने का </strong><strong>फ़ैसला</strong></p><p>नो माई नेम (Know My Name) किताब शनल की दर्द की दास्तान है. इसमें घटना के बाद शनल के होस में आने से लेकर न्यूज़ रिपोर्ट से जमा की गई उत्पीड़न की एक-एक खबर, परिवार को जानकारी देने और कोर्ट में शनल के संघर्ष की पूरी कहानी है. </p><p>शनल बताती हैं, &quot;किताब लिखने के साथ ही मैंने एक नई दुनिया बनानी शुरू कर दी.&quot; शेनल ने ये किताब 2017 में लिखनी शुरू की थी. लेकिन उन्होंने केवल छह महीने पहले ही उन्होंने अपनी पहचान दुनिया को बताई है.</p><p>वो कहती हैं कि अपनी पहचान छिपाने का बोझ उनके लिए बहुत बोझिल हो गया था. 90 फ़ीसद लोग जो उन्हें जानते थे, उनकी दूसरी पहचान से अनजान थे. उनके दोस्तों को यही लगता था कि वो अभी भी 9-5 ऑफ़िस जॉब कर रही हैं. उनके पुराने सहकर्मी जमा की गई जानकारियों के टुकड़े उन्हें सुनाते थे. </p><p>शनल कहती हैं, &quot;शुरुआत में अपनी निजता को बनाए रखना बहुत अहम होता है. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाता है आप ख़ुद को कमतर और अपमानित महसूस करने लगते हैं. और मेरे ख्याल में मुझे अपना सच पूरी ईमानदारी से जीना चाहिए.&quot; </p><p>शनल ने इसी महीने शुरुआत में जब दुनिया को अपनी पहचान बताई तो उन्हें लग रहा था कि एक भूचाल आ जाएगा. लेकिन जैसे ही उन्होंने दुनिया को अपना सच बताया, उन्हें सुकून और ताक़त मिली. वो कहती हैं कि पिछले साढ़े चार साल में ये दिन उनकी ज़िंदगी का सबसे ज़्यादा शांति वाला दिन था. उन्हें अचानक लगा कि जैसे वो आज़ाद हो गई हैं.</p><p>टर्नर ने ख़ुद पर लगे सभी आरोपों को नकारा दिया था. शनल को नहीं लगता कि टर्नर को ये एहसास भी है कि उसने क्या किया था. वो कहती हैं कि जब टर्नर को सज़ा सुनाई गई तो उसने माफ़ी के सिर्फ़ 10 वाक्य कहे. इसी से शनल के मन में सवाल उठने लगा कि अगर हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली अपराधी को उसकी ग़लती का एहसास तक नहीं करा पाती तो इस सिस्टम का मतलब क्या है. अगर टर्नर ने ख़ुद को बदल लिया होता तो वो भी शायद उसे माफ़ कर देतीं. </p><p>शनल कहती हैं कि, &quot;मेरी दिलचस्पी केवल ख़ुद की बेहतरी में है. और ये समझने में है कि वो इस मामले में रास्ते से भटक गया. ब्रोक टर्नर पर समाज ने कभी इस बात का दबाव नहीं बनाया कि वो आत्ममंथन करे और गंभीरता से ये समझे कि उसने मेरे साथ जो बर्ताव किया है, उसका मेरे ऊपर क्या असर पड़ा है. जिसने मुझे बहुत तकलीफ़ दी.&quot;</p><p>न्यायाधीश आरोन पर्स्की की आलोचना इसलिए हुई कि उन्होंने टर्नर को मामूली सज़ा सुनाई थी. इसके साथ ही देशव्यापी बहस छिड़ गई कि क्या गोरे और पैसे वाले अमरीकियों के साथ वहां की न्याय प्रणाली अलग तरह का बर्ताव करती है.</p><p>स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने बयान में कहा था, &quot;हम शनल मिलर की बहादुरी की तारीफ़ करते हैं कि उन्होंने अपनी दर्द भरी दास्तां सार्वजनिक रूप से सुनाई. हमें इस बात का सख़्त अफ़सोस है कि उन पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कैम्पस में यौन हमला हुआ.&quot;</p><p>&quot;एक यूनिवर्सिटी के रूप में हम यौन हिंसा रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं और जो भी ज़रूरी क़दम हैं वो उठा रहे हैं, ताकि ऐसे अपराधों से सख़्ती से निपट सकें. इसका अंतिम लक्ष्य हमारे समाज से ऐसे अपराधों को पूरी तरह से मिटाना है.&quot;</p><p>&quot;यौन हिंसा से निपटने वाली टीम यानी सेक्सुअल असॉल्ट रिस्पॉन्स टीम की सबसे नज़दीकी जगह सैन योस स्थित वैली मेडिकल सेंटर है. हम लंबे समय से ये मानते रहे हैं कि ऐसे निरीक्षण केंद्र की जगह पास होनी चाहिए.&quot;</p><p>&quot;हमने इस बात का वादा किया है कि हम स्टैनफोर्ड अस्पताल के परिसर में ही यौन पीड़िता के निरीक्षण की सुविधा मुहैया कराने के लिए ज़मीन देंगे. सैंटा क्लारा काउंटी, जो सार्ट प्रोग्राम चलाती है, वो पर्याप्त मात्रा में नर्सो को इस बात की ट्रेनिंग दे रही है कि वो यौन पीड़ितों का मेडिकल परीक्षण कर सकें.&quot;</p><p>शनल कहती हैं कि, &quot;अगर कोई मुजरिम अपनी करतूतों का पीड़ित पर होने वाले असर को मान ले, तो वो कोई विशेषाधिकार हनन का मामला नहीं है. कई अश्वेत युवा अहिंसक अपराधों के लिए लंबे समय तक जेल में रहते हैं, जैसे कि मॉरियुआना रखने के जुर्म में. ये तो हास्यास्पद है.&quot;</p><p>उनका कहना है कि, &quot;मैं ये सोचती रह जाती हूं कि आख़िर ऐसी सजाएं दी क्यों जाती हैं. जब आपको अपने जुर्म के लिए जवाबदेह माना जाता है और आप को रियायत नहीं दी जाती. जब आप की करतूतों से किसी पर बुरा असर नहीं पड़ता और ख़ुद आप पर भी इसका कोई असर नहीं होता. मुझे इस बात से ज़्यादा परेशानी होती है कि जब पूरी प्रक्रिया के दौरान इस बात को तवज्जो नहीं दी जाती की पीड़ित भी घटना से पहले अपनी ज़िंदगी में मसरूफ़ थी.&quot;</p><p>शनल के मुताबिक़, &quot;हर पीड़ित के अपने जीवन के लक्ष्य और एजेंडे होते हैं. और जब भी वो ऐसी घटनाओं की शिकार होती हैं, तो उनकी ज़िंदगी अचानक पटरी से उतर जाती है.&quot;</p><p>&quot;वो इसे बिल्कुल पसंद नहीं करतीं. फिर जब लोग सवाल उठाते हैं कि उसने इसकी शिकायत नहीं की, तो ऐसा लगता है कि लोग ये कह रहे हैं कि आख़िर वो उस जगह पर अपने काम से गई ही क्यों थी, उसे तो जाना ही नहीं चाहिए था.&quot;</p><figure> <img alt="शनल मिलर" src="https://c.files.bbci.co.uk/124D1/production/_109016947_343f3965-50e2-4c16-ae63-8b206b56cba9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>आगे की चाहतें</h1><p>ब्रोक टर्नर ने पिछले साल अपनी सज़ा बदलवाने की कोशिश की थी. लेकिन, उसकी अपील ख़ारिज कर दी गई. वो अभी भी यौन हिंसा करने वालों की लिस्ट में शामिल है. ब्रोक टर्नर के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी कैम्पस में घुसने पर रोक लगा दी गई थी. और अब वो अपने मां-बाप के साथ ओहायो में रह रहे हैं.</p><p>जब शनल से ये पूछा गया कि क्या वो चाहेंगी कि ब्रोक टर्नर और उसका परिवार उनकी किताब पढ़े, तो शनल ने कहा कि, &quot;अगर वो ख़ुद से इसे पढ़ना चाहें और मेरे दर्द को सुनना चाहें, तो मैं हमेशा इसके लिए उनकी हौसलाअफ़ज़ाई करूंगी. मैं हमेशा ये चाहूंगी कि लोग इस घटना से सबक़ लें और महिलाओं के दर्द को समझें.&quot;</p><p>लेकिन, वो ये भी कहती हैं कि, &quot;मैं ने ये स्वीकार कर लिया है कि वो जो कुछ कर रहे हैं, वो मेरे बस के बाहर है. मैं केवल अपना रास्ता चुन कर उस पर ध्यान दे सकती हूं. और मेरी ख़्वाहिश अब आगे बढ़ने की है. मैं ये चाहती हूं कि ये किताब ज़िंदगी के सफर के दौरान मेरी साथी बनी रहे.&quot;</p><p>शनल कहती हैं कि, &quot;मैं इस किताब को ऐसा साथी मानती हूं, जो मुश्किल दौर में मेरा साथ देगी. ये ऐसी चीज़ है, जिसे आप पकड़ सकते हैं. जब आप अकेलापन महसूस करें, तो देर रात को बिस्तर पर लेट कर पढ़ सकते हैं. मैंने हमेशा ये सोचा कि जब मैं मुश्किल दौर से गुज़र रही हूंगी, तो क्या सुनना चाहूंगी?&quot;</p><p>शनल के दिल में स्वीडन के दो छात्रों पीटर जॉनसन और कार्ल फ्रेडरिक आर्न्ट के लिए बहुत सम्मान है. इन्हीं दोनों ने उसके ऊपर हो रहे हमले को रोका था. वो उस वक़्त साइकिल से वहां से गुज़र रहे थे, जब उन्होंने शनल के साथ दुर्व्यवहार होते हुए देखा था.</p><p>अपने ऊपर यौन हमला होने के बाद, शनल ने दो साइकिलों की तस्वीरें बनाईं और उन्हें सिरहाने रख कर सोया करती थीं. ये उनके लिए एक मंत्र जैसा था, जो शनल को यक़ीन दिला था कि अभी उम्मीद बाक़ी है.</p><p>बाद में शनल ने दोनों स्वीडिश छात्रों के साथ डिनर पर भी मुलाक़ात की थी. वो कहती हैं कि, &quot;मैं हमेशा स्वीडिश कहलाना पसंद करती हूं. क्योंकि ये हमें किसी मज़लूम के लिए खड़े होने, उसकी मदद करने और पीड़ितों के साथ उनके बुरे वक़्त में मौजूद होने का फ़र्ज़ याद दिलाता है. मुझे लगता है कि मुझे लोगों ने जो भी कुछ कहा है, उस से ये लगता है कि लोग आज यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ खड़े होना चाहते हैं. वो सही बात के लिए आवाज़ उठाना चाहते हैं. ये बात बहुत हौसला बढ़ाने वाली है.&quot;</p><p>अब जब कि शनल की किताब दुनिया भर में मशहूर हो चुकी है, तो वो अब अपनी ज़िंदगी के नए दौर के बारे में सोचना और उसकी योजना बनाना चाहती हैं. लेकिन, वो ये काम एक उम्मीद से कर रही हैं. उनका यक़ीन है कि दुनिया में अच्छाई अब भी बुराई पर भारी पड़ेगी.</p><p>शनल याद करते हुए बताती हैं कि, &quot;जिस रात मुझ पर हमला हुआ, तो मुझे भी बचा ही लिया गया. जो मेरे साथ हुआ वो बहुत बुरा था. लेकिन एक आश्चर्यजनक बात भी हुई. वो कहती हैं कि आप को अपने नायकों से नहीं मिलना चाहिए. लेकिन ऐसे मामलों में तो आप को उन से ज़रूर मिलना चाहिए.&quot;</p><p>जब हमने शनल से पूछा कि अब उनकी क्या करने की योजना है, तो उन्होंने कहा कि, &quot;मैं बच्चों के लिए किताबें लिखना चाहती हूं. उनके शानदार ज़हन और बड़े दिल, जो अभी काले नहीं हुए हैं, ज़िंदगी की गंभीर दिक़्क़तों से अनजान हैं और मासूम हैं. मेरी ज़िंदगी के कुछ बरस बहुत उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं. लेकिन मुझे अभी बहुत उम्मीद है. मुझे ये महसूस होता है कि मेरी ज़िंदगी अभी शुरू हो रही है.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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