24 घंटों में बदला बोलिविया के 41 फीसदी लोगों का भविष्य
<figure> <img alt="बोलिविया में इवो मोरालेस के समर्थन में रैली" src="https://c.files.bbci.co.uk/2B06/production/_109741011_abae398b-0edf-4643-b34b-02138fb117e2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><p>बीते क़रीब एक महीने पहले बोलिविया में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. लोग 14 साल से राष्ट्रपति रहे इवो मोरालेस के इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे. </p><p>बढ़ते प्रदर्शनों को देखते हुए मोरालेस ने इस्तीफ़ा दे दिया और देश छोड़ […]
<figure> <img alt="बोलिविया में इवो मोरालेस के समर्थन में रैली" src="https://c.files.bbci.co.uk/2B06/production/_109741011_abae398b-0edf-4643-b34b-02138fb117e2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><p>बीते क़रीब एक महीने पहले बोलिविया में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. लोग 14 साल से राष्ट्रपति रहे इवो मोरालेस के इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे. </p><p>बढ़ते प्रदर्शनों को देखते हुए मोरालेस ने इस्तीफ़ा दे दिया और देश छोड़ मैक्सिको में शरण ली. इधर देश की पूर्व डिप्टी स्पीकर जेनीने एनियास ने ख़ुद को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया. </p><p>लेकिन इसके बाद प्रदर्शनों में और ही उग्र रूप ले लिया और मोरालेस के समर्थक, मूल निवासी सड़कों पर उतर आए. </p><h3>उपनिवेशवाद से जुड़ा इतिहास</h3><p>25 अक्तूबर 2019, लैटिन अमरीकी देश बोलिविया में पांच दिन पहले यानी 20 अक्तूबर को हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे सामने आए जिसमें राष्ट्रपति इवो मोरालेस को अपने प्रतिद्वंदी कार्लोस मेसी से 10 फीसदी अधिक वोट मिले थे. </p><p>लेकिन जीत की घोषणा के चंद पलों बाद ही सैंकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी ये कहते हुए सड़कों पर उतर आए कि चुनावों में हेरफेर हुआ है.</p><p>दक्षिण अमरीका का पांचवा बड़ा देश बोलिविया बीते क़रीब एक महीने से लगातार सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण चर्चा में है. एक करोड़ से अधिक आबादी वाला ये देश पूर्व में पेरू और चिली, पश्चिम में ब्राज़ील और दक्षिण में अर्जेंटीना और पराग्वे से घिरा है. </p><p>बोलिविया का नाम बोलिविया कैसे पड़ा ये कहानी भी दिलचस्प है. बात है 16वीं सदी की है जब लैटिन अमरीका के कई देश स्पेन के उपनिवेश हुआ करते थे. 1538 में स्पेन ने उस इलाके पर कब्ज़ा कर लिया जिसे आज हम बोलिविया के नाम से जानते हैं और इसे पेरू का हिस्सा बना लिया गया. </p><figure> <img alt="सिमोन बोलिवर" src="https://c.files.bbci.co.uk/13370/production/_109740787_8a27e9b6-fb1a-4d99-9715-a756154c9147.jpg" height="750" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>सिमोन बोलिवर को द लिबरेटर यानी आज़ादी दिलाने वाले के नाम से भी जाना जाता है</figcaption> </figure><p>1808 में जब नेपोलियन ने <a href="https://www.history.com/this-day-in-history/french-defeated-in-spain">स्पेन पर आक्रमण </a>किया. उस वक्त कई लैटिन अमरीकी देश स्पेन से आज़ादी की जंग शुरू कर रहे थे. </p><p>वेनेज़ुएला के सैन्य नेता सिमोन बोलिवर के नेतृत्व में एक के बाद एक लैटिन अमरीकन देश आज़ाद होते गए- पहले वेनेज़ुएला, फिर इक्वाडोर, पेरू, कोलंबिया और फिर पनामा. </p><p>सिमोन बोलिवर के विश्वासपात्र मार्शल एंटोनियो खोसे डी सूक्रे के नेतृत्व में पेरू की आज़ादी की जंग लड़ी गई. </p><p>आख़िरकार 1825 में पेरू स्वतंत्र हुआ. जहां पेरू में सिमोन बोलिवर ने सत्ता की कमान संभाली, बोलिविया में छह महीने के शासन के बाद उन्होंने सत्ता सूक्रे के हाथों में सौंप दी. सूक्रे ने तय किया कि सिमोन बोलिवर की याद में देश का नाम बोलिविया होगा. </p><h3>आज़ादी मिली लेकिन मूल निवासियों की स्थिति नहीं बदली</h3><figure> <img alt="एंटोनियो खोसे डी सूक्रे" src="https://c.files.bbci.co.uk/18190/production/_109740789_87c3b67a-d208-44cc-91c2-1341e56923a9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> <figcaption>बोलिविया के दूसरे राष्ट्रपति मार्शल एंटोनियो खोसे डी सूक्रे की मूर्ति</figcaption> </figure><p>स्पेन से आज़ादी तो मिली लेकिन बार-बार झगड़ों में उलझने के कारण और देश के भीतर मूल निवासियों के बड़े समुदाय की अनदेखी के कारण न तो विकास का काम ही हो सका और न ही सत्ता में स्थायित्व रहा. </p><p>1825 के बाद से यहां अधिकतर वक्त सैन्य सत्ता और अधिकतर राष्ट्रपतियों का तख्तापलट हुआ. 19वीं सदी के आख़िर में स्थितियां थोड़ी बदलीं और मतदान के ज़रिए राष्ट्रपति चुने जाने लगे, हालांकि देश का नेतृत्व अधिकतर सैन्य अधिकारियों के हाथों में ही रही. </p><p>दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ़ फॉरेन स्टडीज़ के रिटारयर्ड प्रोफ़ेसर अब्दुल नाफ़े बताते हैं, "बोलिविया में अब तक 37-40 सैन्य तख़्तापलट हुए हैं. इसका कारण ऐसे समझा जा सकता है कि ऐतिहासिक रूप से बोलिविया एक बदकिस्मत देश है. जब ये आज़ाद हुआ तो स्पेन के गोरे हारे लेकिन यहां जो पैदा हुए गोरे थे उन्होंने सत्ता अपने हाथों में संभाल ली." </p><p>"ये एक अजीब आज़ादी मिली थी बोलिविया को जिसमें वहां के मूल निवासियों की कोई जगह ही नहीं थी. उनकी ज़मीनें हड़प कर ली गई, उनकी भाषाओं को ख़त्म कर दिया गया. लेकिन मूल निवासियों की संख्या इतनी अधिक थी कि वो उन्हें पूरी तरह ख़त्म नहीं कर पाए."</p><figure> <img alt="इवो मोरालेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/4CF8/production/_109740791_7ad30477-0418-457b-afa3-c153bae3e1f5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>साल 2012 में हुई <a href="https://www.iwgia.org/en/bolivia">जनगणना के अनुसार</a> बोलिविया में 41 फीसदी लोग मूल निवासी है और यहां क़रीब 36 समुदाय के लोग रहते हैं. </p><p>लेकिन इस विशाल समुदाय को देश की सत्ता में जगह और उनकी भाषा को पहचान 2006 के बाद ही मिली.</p><p>2006 में <a href="https://www.theguardian.com/world/2006/feb/09/features11.g2">गार्डियन को दिए एक इंटरव्यू</a> में इवो मोरालेस ने मूल निवासियों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में कहा था. </p><p>उन्होंने कहा था, "देश में मूल निवासियों के साथ बहुत भेदभाव होता था. जब मैं शहर के स्कूल में गया, तो वहां मुझे बदसूरत कहा जाता था. मैं स्पैनिश भाषा नहीं जानता था. लोग मुझ पर और मेरी भाषा पर हंसते थे. आज से 80-90 साल पहले पढ़ाई करने वाले आयमरा समुदाय के लोगों की आंखे निकाल ली जाती थीं. जो लिखना सीख गए थे उनक उंगलियां काट दी गईं, मेरी दादी और उनके साथ के लोग स्कूल नहीं गए. पचास साल पहले की बात होती तो मैं प्लाज़ा पेद्रो चौराहे पर भी नहीं निकल सकता था."</p><p><strong>इवो मोरालेस</strong><strong>:</strong><strong>वामपंथी विचारधारा का उभार</strong><strong> या वक्त की ज़रूरत</strong></p><figure> <img alt="कोका की पत्तियां" src="https://c.files.bbci.co.uk/9B18/production/_109740793_2444a7bb-56fa-4812-9058-f9ca147971ef.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p><a href="https://www.nationalgeographic.com/magazine/2019/02/lithium-is-fueling-technology-today-at-what-cost/">बोलिविया की अर्थव्यवस्था</a> टिन, चांदी, जस्ता, सोना, स्मार्टफ़ोन की बैटरी बनाने में इस्तेमाल होने वाले लिथियम और नैचुरल गैस पर निर्भर है.</p><p>साथ ही अर्थव्यवस्था में <a href="https://www.unodc.org/unodc/en/data-and-analysis/bulletin/bulletin_1952-01-01_2_page005.html">कोको की खेती</a> का अहम योगदान है. कोको से कोकेन नाम का नशीला पदार्थ बनता है और इसकी पत्तियां चाय की तरह उबाल कर भी पी जाती हैं. 2000-2002 के दौरान बोलिविया दुनिया में कोको की तीसरा बड़ा उत्पादक था.</p><p>1980 के बाद से <a href="https://www.nytimes.com/1986/07/16/world/us-sends-troops-to-aid-bolivians-in-cocaine-raids.html">अमरीका ने बोलिविया में कोको की खेती ख़त्म</a> करने की कोशिशें तेज़ कीं. अमरीका का कहना था कि नशीले पदार्थों की सप्लाई में बोलिविया की भूमिका अहम है. इसका विरोध किया आयमारा समुदाय के इवो मोरालेस ने. </p><p>किसानों के परिवार में जन्मे मोरालेस ने कोचाबाम्बा में कोको किसानों का यूनियन बनाया. 2002 में मोरालेस राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए लेकिन जीत नहीं मिली. <a href="https://www.youtube.com/watch?v=E-6LWpLehxU">2006 में आख़िरकार वो राष्ट्रपति बने</a>, वो देश के इतिहास के पहले मूल निवासी हैं जो इस गद्दी तक पहुंचे.</p><figure> <img alt="बोलिविया में इवो मोरालेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/3CB1/production/_109773551_gettyhi057917894.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>अपनी वामपंथी विचारधारा के लिए जाने जाने वाले मोरालेस की दोस्ती क्यूबा के फिदेल कास्त्रो और वेनेज़ुएला के ह्यूगो चावेज़ से थी. वो बोलिविया के काफ़ी लोकप्रिय नेता रहे हैं और लगातार चुनाव जीतते रहे. वो कुल 13 साल 9 महीनों तक बोलिविया के राष्ट्रपति रहे. </p><p>ग़रीबी से लड़ने और अर्थव्यवस्था में सुधार की उनकी नीतियों की काफ़ी प्रशंसा भी हुई. हालांकि कोको की खेती के मामले में कोई समझौता न करने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना भी झेलनी पड़ी.</p><p>गोवा यूनवर्सिटी में डिपार्टमेन्ट ऑफ़ इंटरनेशनल रिलेशन्स की हेड ऑफ़ डिपार्टमेन्ट अपराजिता गंगोपाध्याय कहती हैं, "आर्थिक स्तर पर बोलिविया की हालत बेहद ख़राब थी. जब मोरालेस आए तो सबसे पहले उन्होंने मूल निवासियों को पहचान दिलाई, मुख्यधारा में उनके लिए जगह बनाई और साथ साथ उन्होंने सभी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया. उनके आने से पहले आलम ये था कि पीने का पानी तक निजी हाथों में था."</p><figure> <img alt="बोलिविया में चुनाव" src="https://c.files.bbci.co.uk/15F9E/production/_109741009_b638744e-93c3-4eb6-91c5-0a6b10b11241.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>2019 </strong><strong>चुनाव के बाद बढ़ा तनाव</strong></p><p>लेकिन मामला तब बिगड़ा जब मोरालेस ने चौथी बार चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया, जिसकी देश का संविधान इजाज़त नहीं देता. </p><p>राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें जीत तो मिली लेकिन उन पर लगातार दबाव बढ़ रहा था. इस दौरान मतगणना के 24 घंटों ने इवो मोरालेस का भविष्य हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. </p><p>84 फीसदी मतों की गणना के बाद गणना अचानक रोक दी गई और उसके ठीक <a href="https://www.reuters.com/article/us-bolivia-election-explainer/how-did-bolivia-end-up-in-democratic-crisis-idUSKBN1XK0EC">24 घंटों बाद मतगणना के नतीजे</a> पेश किए गए. जहां पहले इवो मोरालेस, के प्रतिद्वंदी आगे बढ़ते दिख रहे थे वहीं अब मोरालेस को विजयी घोषित कर दिया गया.</p><p>अब्दुल नाफ़े कहते हैं, "मैं मानता हूं कि मोरालेस से ख़ुद गलती हुई है. 2016 में देश में जनमतसंग्रह हुआ था जिसके बाद देश में आम राय था कि संविधान के तहत उन्हें चौथी चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं था. पहले तो इनको चुनाव लड़ना नहीं था. दूसरा 24 घंटों के लिए मतों की गिनती रुक गई जिसेसे लोगों के मन में शंका पैदा हुआ कि चुनावों में हेराफेरी हो रही है". </p><p>"इस पर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ अमेरिकन स्टेट्स (ओएएस) की भी रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया चुनाव में भारी गड़बड़ियां मिली हैं. इसके बार मोरालेस के समर्थक भी उनके ख़िलाफ़ हो गए कि पहले आप चुनाव लड़ रहे हों और फिर उसमें हेराफेरी भी कर रहे हो."</p><figure> <img alt="पूर्व डिप्टी स्पीकर जेनीने एनियास" src="https://c.files.bbci.co.uk/E938/production/_109740795_e72dcc77-2252-46ea-8183-cd74568fa559.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>पूर्व डिप्टी स्पीकर जेनीने एनियास</figcaption> </figure><p>आख़िर 10 नवंबर को सेना प्रमुख जनरल विलियम्स कलिमन ने हस्तक्षेप किया और मोरालेस से राष्ट्रपति के पद से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा. </p><p>जनरल कलिमन ने कहा, "देश के भीतर की स्थिति को देखते हुए हम राष्ट्रपति से गुज़रिश करते हैं कि वो पद त्याग दें और शांति बनाए रखने में मदद करें. बोलिविया के स्थायित्व के लिए यही बेहतर होगा."</p><p>अपराजिता गंगोपाध्याय कहती हैं कि बोलिविया से ऊपर वेनेज़ुएला है, वहां भी राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की सत्ता पर संकट गहराया था. वहां विपक्षी नेता ख्वान गोइदो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद मिली लेकिन देश में सेना ने मादुरो का समर्थन किया. लेकिन बोलिविया में सेना इवो मोरालेस के विरोध में थी. </p><figure> <img alt="बोलिविया में लिथियम" src="https://c.files.bbci.co.uk/7926/production/_109741013_10e9e2ba-bdbd-4f3f-9691-8ba6dcd94ce3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>वो कहती हैं बोलिविया में जो हो रहा है उसमें लिथियम की भूमिका के मद्देनज़र भी देखा जाना ज़रूरी है जिसका इस्तेमाल स्मार्टफ़ोन और बैटरियों में किया जाता है. बोलिविया ने 2019 में <a href="https://www.reuters.com/article/us-bolivia-lithium-china/bolivia-picks-chinese-partner-for-2-3-billion-lithium-projects-idUSKCN1PV2F7">लिथियम के खदानों</a> के लिए चीन से करार किया था सेना जिसके विरोध में थी.</p><p>वो कहती हैं, ""बोलिविया में लिथियम बहुतायत में पाया जाता है. सच कहें तो दक्षिण अमरीका में बोलिविया, चिली और अर्जेंटीना को लिथियम ट्राएंगल कहा जाता है. इसमें सेना का विरोध रहा है और सेना कंज़र्वेटिव होती है और दक्षिणपंथी झुकाव वाली होती है. कई लोग ये भी कह रहे हैं कि अमरीका भी इसके विरोध में है क्योंकि लिथियम की खदानों पर अधिक नियंत्रण चीन का रहा तो ये अमरीका के लिए अच्छा नहीं होगा."</p><p>मोरालेस ने इस्तीफ़ा दे दिया और कहा कि दक्षिणपंथियों ने उनका तख्तापलट किया है. इसके बाद मोरालेस देश छोड़ शरण लेने के लिए मैक्सिको पहुंचे. </p><p>12 नवंबर को मोरालेस ने दावा किया कि उग्र भीड़ ने उनके घर में लूटपाट की और उसे जला दिया है. </p><p>उन्होंने कहा, "उन्होंने मेरी बहन का घर जला दिया एक दिन पहले उन्होंने कोचाबाम्बा में मेरा घर जला दिया था. लेकिन मेरे पड़ोसी मेरे बचाव में सामने आए जिनका मैं शुक्रिया करता हूं. मैं दिल से उनका आभारी हूं."</p><p><a href="https://twitter.com/evoespueblo/status/1194057736071323650">https://twitter.com/evoespueblo/status/1194057736071323650</a></p><p>12 नवंबर को पूर्व डिप्टी स्पीकर जेनीने एनियास ने ख़ुद को देश का अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया. जेनीने 2006 में संविधान को फिर से लिखने वाली संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं, वो मोरालेस की कट्टर विरोधी रही हैं.</p><p>प्रोफ़ेसर अपराजिता गंगोपाध्याय बताती हैं कि जेनीने के उनके दक्षिणपंथी झुकाव और <a href="https://www.theguardian.com/commentisfree/2019/nov/14/what-the-coup-against-evo-morales-means-to-indigenous-people-like-me">मूल निवासियों के ख़िलाफ़ बोलने</a> के लिए जाना जाता है.</p><p>साल 2013 में वो अपने एक <a href="https://www.theguardian.com/commentisfree/2019/nov/14/what-the-coup-against-evo-morales-means-to-indigenous-people-like-me">ट्वीट के कारण चर्चा में आई थीं</a> जिसमें उन्होंने कहा था कि, "मैं बोलिविया को शैतानी आदिवासी रिवाज़ों से आज़ाद देखना चाहती हूं. ये शहर आदिवासियों के लिए नहीं है, उन्हें चाको में ही रहना चाहिए."</p><p><a href="https://twitter.com/Marwa__Osman/status/1194497747929485312">https://twitter.com/Marwa__Osman/status/1194497747929485312</a></p><h3>कब तक बनेगी नई सरकार?</h3><p>जेनीने ने ये भी कहा है मोरालेस देश वापिस आए तो चुनाव में धांधली करने और उनकी सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के कारण उन्हें क़ानून का सामना करना पड़ेगा. </p><p>लेकिन मामला यहां थमता नहीं दिखता. बोलिविया की सड़कों पर रविवार और सोमवार को इवो मोरालेस के समर्थक, मूल निवासी उतरे. उन्होंने कई शहरों में पूरी तरह चक्का जाम कर दिया. पुलिस के साथ उनकी झड़पें हुईं जिनमें 9 लोगों की मौत हुई. </p><p>प्रोफ़ेसर अब्दुल नाफ़े कहते हैं उन्हें लंबे अरसे तक मुख्यधारा से बाहर रखा गया था और उनकी अनदेखी करना अब इतना आसान नहीं होगा. </p><p>वो कहते हैं, "बोलिविया में भय और डर का माहौल है. मोरालेस चले गए थे तो उप राष्ट्रपति तो थे. मुझे लगता है कि हिंसा होगी, पिछले 20 दिनों में वो सब बातें हुई हैं जो पिछले 10 सालों में होनी चाहिए थी. कोचाबाम्बा जैसे कई इलाके मूल निवासियों का गढ़ हैं वहां इसकी आबादी अधिक है. वहां मुझे लगता है कि काफी विरोध होगा और हिंसा होगी."</p><figure> <img alt="बोलिविया में इवो मोरालेस के समर्थन में रैली" src="https://c.files.bbci.co.uk/1117E/production/_109741007_f46a72a3-39ff-4bd9-8815-4f4cccfe19c5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>बोलिविया में इवो मोरालेस के समर्थन में रैली</figcaption> </figure><p>प्रोफ़ेसर अपराजिता गंगोपाध्याय कहती हैं कि मूल निवासियों का विरोध तो पहले से हो रहा था लेकिन इवो मारालेस के इस्तीफ़ा देने तक ये प्रदर्शन हिंसक नहीं हुए थे. </p><p>वो कहती हैं कि सालों तक मूल निवासियों की अपेक्षा हुई है लेकिन अब आगे ऐसा करना मुश्किल हो सकता है, "आप उनको बाहर नहीं रख सकते, आप उनको अलग नहीं कर सकते. आप उनको ये नहीं कह सकते कि आप इस देश के लिए नहीं है. ये जो हिंसा है उसका स्वरूप काफी अलग है."</p><p>अंतरिम राष्ट्रपति जेनीने एनियास ने वादा किया है कि मोरालेस के इस्तीफ़े के 90 दिनों के भीतर देश में पारदर्शी तरीके से चुनाव करवाए जाएंगे. </p><p>अपराजिता मानती हॆ कि अगर वाकई चुनाव हुए और उनमें इवो मोरालेस की पार्टी जीत कर आती है तो बाज़ी पलट सकती है. </p><p>उन्हीं के शब्दों में, "अगर जेनीने खुद चुनाव में खड़ी होती हैं तो "कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि उनकी नीतियां मूल निवासी विरोधी हैं. लेकिन 40 फीसदी से बड़ी आबादी को पूरी तरह अनदेखा नहीं किया जा सकता लेकिन कितनी हद तक उन्हें पहचान मिलेगी ये देखना होगा."</p><p>बोलिविया में फिलहाल संघर्ष पहचान का है, मूल निवासियों की पहचान का – जो जनसंख्या का 41 फीसदी हैं.</p><p>आगे सरकार किसकी बनेगी और उसका झुकाव किस तरफ रहेगा ये कहना मुश्किल है लेकिन उम्मीद फिर भी बाक़ी है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>