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झारखंड चुनाव : लाल-हरा मैत्री का गवाह बनेगा निरसा-बगोदर !

सिंदरी और धनवार में दोस्ताना संघर्ष की तैयारी गठबंधन को लेकर अब भी सस्पेंस कायम संजीव झा धनबाद : क्या धनबाद-गिरिडीह में एक बार फिर लाल-हरा (वाम दल व झामुमो) के बीच मैत्री होगी. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो निरसा एवं बगोदर सीटें इस दोस्ती का गवाह बन सकती हैं. झामुमो दोनों सीटों को मामस […]

सिंदरी और धनवार में दोस्ताना संघर्ष की तैयारी

गठबंधन को लेकर अब भी सस्पेंस कायम
संजीव झा
धनबाद : क्या धनबाद-गिरिडीह में एक बार फिर लाल-हरा (वाम दल व झामुमो) के बीच मैत्री होगी. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो निरसा एवं बगोदर सीटें इस दोस्ती का गवाह बन सकती हैं. झामुमो दोनों सीटों को मामस एवं माले के लिए छोड़ने की तैयारी में है. बदले में राज्य की कई सीटों पर मासस एवं माले यूपीए का समर्थन कर सकती हैं. वहीं सिंदरी व धनवार में दोस्ताना संघर्ष की उम्मीद जतायी जा रही है. जहां तक चुनाव मेें गठबंधन या संयुक्त प्रचार का सवाल है, तो उस पर मासस एवं झामुमो के वरिष्ठ नेता फिलहाल चुप्पी साधे हैं. कोई भी खुल कर बताने को तैयार नहीं है. संकेत मिल रहे हैं कि निरसा एवं बगोदर में लाल झंडा को यूपीए का समर्थन मिलेगा. सिंदरी एवं धनवार सीट पर दोनों दलों के बीच दोस्ताना संघर्ष हो सकता है.

कहां फंस रहा पेंच : दोनों दलों के बारे में जानकारी रखने वाले राजनीतिक टीकाकारों की मानें, तो मासस एवं माले राज्य में कम से कम चार सीटें निरसा, सिंदरी, बगोदर एवं राजधनवार की मांग यूपीए से कर रही हैं. यूपीए के प्रमुख घटक दल झामुमो अपनी तरफ से निरसा एवं बगोदर सीट छोड़ने को तैयार है. बाकी दो सीटें देने पर बात नहीं पा रही है. झामुमो की तरफ से बुधवार को जारी सूची में निरसा एवं बगोदर सीट से प्रत्याशी नहीं देकर पार्टी ने मासस एवं माले को खुला ऑफर दिया. यह एक प्रकार का संदेश भी है. मासस के अंदर केवल एक सीट को लेकर हंगामा मचा हुआ है. निरसा से मासस विधायक अरूप चटर्जी भी गठबंधन के सवाल पर खुल कर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं. पार्टी का एक वर्ग उन पर सिंदरी सीट को लेकर दबाव बनाये हुए है, लेकिन झामुमो ने यहां से भाजपा के बागी विधायक फूलचंद मंडल को टिकट देकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. ऐसी स्थिति में मासस की चिंता बढ़ गयी है.

बगावत से भयभीत हैं दल
धनबाद जिला की निरसा एवं सिंदरी ही ऐसी सीटें हैं, जहां मासस एवं झामुमो दोनों की मजबूत पकड़ है. भले ही निरसा एवं सिंदरी से झामुमो को कभी जीत नहीं मिल पायी हो, लेकिन यहां किसी भी दल का खेल बिगाड़ने की क्षमता इसके प्रत्याशियों में रहती है. 2014 के चुनाव में निरसा से झामुमो के अशोक मंडल तथा सिंदरी से पार्टी के मनु आलम तीसरे स्थान पर रहे थे. दोनों को 40 हजार से अधिक मत मिले थे. अगर निरसा से झामुमो का समर्थन मासस को मिलता है, तो इसका असर चुनाव पर पड़ना तय है. हालांकि, यहां पार्टी के अंदर बगावत की भी पूरी संभावना है. अशोक मंडल के चुनावी अखाड़ा में उतरने की पूरी संभावना है.
क्या हेमंत करेंगे अरूप के लिए प्रचार
लाल-हरा मैत्री के पैरोकार चाहते हैं कि पार्टी के नेता संयुक्त प्रचार करे. जो स्थिति बन रही है, उसमें बड़ा सवाल पैदा हो रहा है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यहां मासस के पक्ष में प्रचार करने आयेंगे. अगर निरसा में संयुक्त प्रचार होता है, तो सिंदरी में क्या रणनीति होगी. इन सवालों का जवाब आने वाले समय में ही मिल पायेगा. मई में हुए लोकसभा चुनाव में यहां मासस ने खुल कर यूपीए प्रत्याशी कीर्ति आजाद का समर्थन किया था. उस तरह का माहौल अब तक विधानसभा चुनाव में नहीं बन पाया है.

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