फ्लैश बैक: सत्तू-चूड़ा बांधकर चुनाव प्रचार में निकलते थे गोखुल महरा

अमरनाथ पोद्दार चुनाव प्रचार में 15 दिनों तक नहीं आये थे घर, मधुपुर-सारठ के पहले चुनाव में ही कांग्रेेस को हराया देवघर : आजाद भारत में 1951 की पहली विधानसभा चुनाव में मधुपुर-सारठ मिलाकर संयुक्त विधानसभा सीट थी. मधुपुर-सारठ आरक्षित सीट से पहले चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गोखुल महरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 24, 2019 8:04 AM

अमरनाथ पोद्दार

चुनाव प्रचार में 15 दिनों तक नहीं आये थे घर, मधुपुर-सारठ के पहले चुनाव में ही कांग्रेेस को हराया
देवघर : आजाद भारत में 1951 की पहली विधानसभा चुनाव में मधुपुर-सारठ मिलाकर संयुक्त विधानसभा सीट थी. मधुपुर-सारठ आरक्षित सीट से पहले चुनाव में झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गोखुल महरा ने उस दौर में कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा दिया था, जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर चल रही थी. 1951 के चुनाव में गोखुल महरा ने कांग्रेस के प्रत्याशी सूर्य प्रसाद मिर्धा को 2,339 वोटों के अंतर से हराया था. गोखुल महरा को कुल 15,555 व सूर्य प्रसाद मिर्धा को 13,216 वोट प्राप्त हुए थे. मोहनपुर प्रखंड के दासडीह गांव के रहने वाले गोखुल महरा का जन्म 15 जनवरी 1926 को हुआ था.
गोखुल महरा के पुत्र जयदेव महरा बताते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में वह महात्मा गांधी जी के साथ मधुपुर की बैठक में शामिल हुए थे. चमड़िया कोठी में डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ बैठक में आंदोलन की रणनीति बनायी थी. साथ ही सुभाषचंद्र बोस के साथ देवघर से घोरमारा तक पैदल मार्च किया था. त्रिकुट पहाड़ के गुफा में महीनों तक रहकर स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बनाते थे. आजादी के बाद पहले चुनाव में देवघर सीट रिजर्व नहीं थी और मधपुर-सारठ मिलाकर दो विधानसभा सीट थी. इसमें एक सामान्य व दूसरा आरक्षित था.
आरक्षित सीट से उन्हें झारखंड पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया. पुत्र जयदेव के अनुसार उनके पिता बताते थे कि 1951 के चुनाव में संसाधन का बिल्कुल अभाव था. चुनावी क्षेत्र बड़ा रहने के बाद भी पिताजी साइिकल से मधुपुर-सारठ व पालोजोरी तक चुनाव प्रचार में जाते थे. पिताजी बताते थे कि वे गांव के ही दो-तीन लोगों के साथ साइकिल पर 15 दिनों का सत्तू-चूड़ा बांधकर चुनाव प्रचार में निकल जाते थे. इस दौरान 15 दिनों तक दिन भर प्रचार होता था व भोजन के बाद रात्रि में कार्यकर्ता व अन्य पुराने साथी के घर पर रूकते थे. 15 दिनों में घर आकर फिर गांव-गांव मांगकर सत्तू-चूड़ा इकठ्ठा चुनाव प्रचार में निकल जाते थे.
घर का मुर्गा चुनाव तक रखा था साथ
पुत्र जयदेव ने बताया कि चुनाव में झारखंड पार्टी का चुनाव चिह्न मुर्गा छाप था. पिताजी कहते थे कि उस समय पम्पलेट का प्रचलन नहीं था. घर में मुर्गा पालन होता था, इसलिए अपने साथ घर का ही एक मुर्गा साथ ले गये थे. पूरे चुनाव तक गांव-गांव में मुर्गा को चुनाव चिन्ह के रूप में दिखाकर प्रचार करते थे. पिताजी का कहना था कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह आंदोलनकारियों के लिए जासूसी काम बूट पॉलिश के जरिये करते थे. अंग्रेजों के घर, थाने व कार्यालय में वे पहुंचकर बूट पॉलिश कर अंग्रेजों की रणनीति व उनकी तैयारी के बारे में आंदोलनकारियों को बताते थे. जासूसी में पकड़ने जाने पर 1946 में उन्हें अंग्रेजों ने दुमका सेंट्रल जेल में बंद कर दिया था. आजादी के बाद उनकी रिहाई हुई थी. चुनाव में भी नामांकन खर्च बूट पॉलिश कर जुगाड़ किये थे.

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