रामपुर का लजीज तार कोरमा
पुष्पेश पंत जब तक भारत आजाद नहीं हुआ था, अंग्रेजों के राज में भी लगभग पोने छह सौ ऐसी रियासतें और रजवाड़े थे, जो अंग्रेजों की प्रभुता को तो स्वीकार करते थे, लेकिन कमोबेश स्वाधीन थे- निरंकुश राजतंत्र इन्हीं में से एक रामपुर की रियासत थी, जो दिल्ली और लखनऊ से लगभग समान दूरी पर […]
पुष्पेश पंत
जब तक भारत आजाद नहीं हुआ था, अंग्रेजों के राज में भी लगभग पोने छह सौ ऐसी रियासतें और रजवाड़े थे, जो अंग्रेजों की प्रभुता को तो स्वीकार करते थे, लेकिन कमोबेश स्वाधीन थे- निरंकुश राजतंत्र इन्हीं में से एक रामपुर की रियासत थी, जो दिल्ली और लखनऊ से लगभग समान दूरी पर स्थित होने के कारण आकार में छोटी होने के बावजूद काफी मशहूर थी.
इसकी शौहरत के अनेक कारण रहे, जिनमें संगीत का रामपुर घराना और रजा पुस्तकालय के बहुमूल्य लघुचित्र और दुर्लभ पांडुलीपियां विश्व-विख्यात हैं.
इसी तरह रामपुर के बावर्ची भी अपने को किसी कलाकार से कमतर नहीं समझते थे. रामपुर का खाना अवध, भोपाल या हैदराबाद के खानों से होड़ लेता है. जाड़े के मौसम में हमें अक्सर रामपुर के वे लजीज व्यंजन अनायास याद आते हैं, जो बचपन के दिनों में ही ननिहाल जाने के दौर से हमारी जुबान पर चढ़े हैं. हमारी नानी बरसों रामपुर में रही थीं और वहीं से कुछ नायाब नुस्खों का संग्रह उन्होंने किया था, जिनमें कुछ ऐसे मांसाहारी व्यंजन थे, जिनकी तासीर ठंड भगानेवाली होती थी.
रामपुर की उत्तरी सरहद उत्तर प्रदेश के उन पहाड़ी जिलों से सटी हुई है, जो आज उत्तराखंड का हिस्सा हैं. वैसे भी तराई के इलाके में जाड़े के मौसम में कड़ाके की ठंड पड़ती है और बर्फीली हवाएं बुजुर्गों के चूल-चूल ढीले कर देती हैं. गर्म तासीर वाले खाने के बारे में एक जनश्रुति यह भी है कि ऐसे व्यंजन उन लोगों के बदन में गर्मी की लहर दौड़ा देते हैं, जो अतिशय भोग-विलास के कारण जवानी में ही बूढ़ा जाते हैं.
अधिकांश राजा-रजवाड़ों और नवाबों के बारे में यह माना जाता रहा है कि अपने पौरुष को अक्षुण्ण रखने के लिए इन व्यंजनों को हकीमों की राय के अनुसार शाही दस्तरखान में खास जगह मिलती थी.
अभी हाल में हमारे एक मित्र ने नोएडा के रेडीसन होटल में रामपुर व्यंजन महोत्सव किया, जिनमें उन्होंने तार-कोरमा पेश किया. यह एक ऐसा कोरमा है, जिसमें चिकनाई इतनी अधिक मात्रा में इस्तेमाल की जाती है कि उसमें चीनी की चाशनी की तरह एक तार नजर आता है, इसमें इस्तेमाल किये जानेवाले मसालों में लौंग-दालचीनी और तेजपात के अलावा जावित्री-जायफल भी डाले जाते हैं. बुजुर्गों का कहना है कि गुजरे जमाने में जब तक यह पदार्थ वर्जित नहीं थे, तब तक और भी अधिक ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करनेवाले कस्तूरी जैसे तत्वों का पुट भी इसमें पड़ता था.
हमारे एक शेफ मित्र ओसामा जलाली का मानना है कि जाड़े के मौसम में ऐसे ही कुछ और पौष्टिक व्यंजन लखनऊ में भी तैयार किये जाते थे, जिन्हें मुहल्लम कहते थे. पटियाला घराना मौजिकी में रामपुर से होड़ लेने के साथ-साथ मेजबानी में भी शाही मुकाबला करने को कमर कसे रहता था. वहां का पिस्ते का सालन भी काफी गरम तासीर वाली चीज माना जाता है.
हकीमों और वैद्यों का ऐसा मानना है कि घी-तेल जैसी चिकनाई का जाड़ों में अधिक मात्रा में उपयोग सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं, क्योंकि हमारा शरीर इस ऋतु में गरिष्ठ भोजन को आसानी से पचा सकता है.
दिलचस्प बात यह है कि तार कोरमे के रोगन में जो डरावनी चिकनाई नजर आती है, उसे निथारकर आप इस जायकेदार व्यंजन का भरपूर आनंद ले सकते हैं. हमारी राय यह है कि यदि आप इस नुस्खे को घर में आजमाना चाहते हैं, तो प्रेशर कूकर का इस्तेमाल कतई न करें. मंद आंच पर धीमी रफ्तार से पके तार कोरमे का मजा ही कुछ और है. वैसे भी ठंड में ठिठुरने से बेहतर है रसोई में आंच के आस-पास गर्मी सोखते हुए भूख खोलना!
रोचक तथ्य
रामपुर का तार कोरमा एक ऐसा कोरमा है, जिसमें चिकनाई इतनी अधिक मात्रा में इस्तेमाल की जाती है कि उसमें चीनी की चाशनी की तरह एक तार नजर आता है. हसमें लौंग-दालचीनी और तेजपात के अलावा जावित्री-जायफल भी डाले जाते हैं. बुजुर्गों का कहना है कि गुजरे जमाने में जब तक यह पदार्थ वर्जित नहीं थे, तब तक और भी अधिक ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करनेवाले कस्तूरी जैसे तत्वों का पुट भी इसमें पड़ता था.