भारत और नेपाल के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध इतिहास के पहले अध्याय से विद्यमान हैं. प्रत्येक संबंध की तरह इसमें भी उतार-चढ़ाव के दौर रहे हैं, परंतु अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में देखें, तो भारत और नेपाल के संबंध बहुत बेहतर रहे हैं. मोदी की यह यात्रा 17 वर्षो के बाद किसी प्रधानमंत्री की पहली नेपाल यात्रा थी.
नेपाली नेतृत्व और जनता के स्वागत तथा मोदी द्वारा भरोसे की अभिव्यक्ति संबंधों के नये आयामों का संकेत हैं. इस यात्रा से बनी और बढ़ी उम्मीदों के विविध पक्षों को विश्लेषित करने का प्रयास करती आज के नॉलेज की प्रस्तुति..
भारत और नेपाल के बीच गहन ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं रही हैं, जो दोनों देशों को एकदूसरे की ओर खींचती रही हैं. लेकिन स्वातंत्रयोत्तर भारत के साथ सामरिक जरूरतें जुड़ीं, जिससे नेपाल भारत के लिए सामरिक महत्व का देश भी बन गया.
इसे ही ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने 1950 में संसद में दिये गये अपने एक भाषण में कहा था कि ‘हम नेपाल को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं और उसकी बेहतरी की कामना करते हैं.
लेकिन यहां तक कि एक बच्चा भी जानता है कि भारत से होकर गुजरे बिना कोई नेपाल नहीं पहुंच सकता. इसलिए किसी अन्य देश के साथ नेपाल के उतने घनिष्ठ संबंध नहीं हो सकते, जितने हमारे साथ.’
हालांकि, नेहरू का वक्तव्य भारत के लिए नेपाल की महत्ता को रेखांकित कर रहा था, लेकिन संभवत: यह स्थिति कायम नहीं रह पायी? अगर यह स्थिति कायम रही होती, तो नेपाल में चीन निर्णायक स्थिति प्राप्त करने में सफल न रहा होता अथवा पाकिस्तान अपनी हरकतों को वाया नेपाल अंजाम देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.
लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ है, इसलिए क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि भारत की नेपाल नीति असफल रही है? क्या अब यह उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के बाद स्थितियां पूरी तरह से बदल जायेंगी?
मोदी का काठमांडू में जिस तरह से स्वागत हुआ, स्वाभाविक तौर पर उससे उनका आशावाद प्रबल हुआ होगा. बड़ी बात यह रही कि नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए हवाईअड्डे पर उनकी अगवानी की. लेकिन क्या इस तरह का स्वागत व्यावहारिक स्थिति प्राप्त कर पायेगा? वैसे यह केवल समझौतों और भाषणों से तय नहीं हो पाता, फिर भी यह देखना होगा कि मोदी ने नेपाली संसद में जो कहा उसका भारत के सामरिक हितों के लिहाज से मूल्य क्या है? नेपाली संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने जो भाषण दिया उसके केंद्र में जिन विषयों की झलक दिखी, वे संस्कृति, सहयोग, सामंजस्य, समझौता आदि से जुड़े रहे. सामरिक विषयों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया और न ही उन चुनौतियों को रेखांकित किया गया जो वाया नेपाल भारत के समक्ष पेश होती रहती हैं.
नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले नेपाल की सांस्कृतिक आत्मा को स्पर्श करने की कोशिश की ताकि सांस्कृतिक संबंधों का नवीनीकरण किया जा सके. इसी नीति के मद्देनजर उन्होंने नेपाली संसद में कहा कि आपने शस्त्र छोड़, शास्त्र का रास्ता अपनाया है. युद्ध त्याग, बुद्ध का मार्ग अपनाया है.
पूरा विश्व नेपाल की ओर देख रहा है कि हिंसा छोड़ किस तरह शांति और समझदारी से मसले सुलझाये जा सकते हैं. उन्होंने बुद्ध, और जनक-जानकी की धरती को नमन कर बनारस और पशुपति नाथ के बीच पूजा की परंपरा के जरिये एक सेतु बनाने की कोशिश भी की. इस सेतु को पुख्ता करने के लिए नेपाल की जरूरतों में सहयोग की भी आवश्यकता थी. इसलिए प्रधानमंत्री ने नेपाल के लोगों को यह भरोसा दिलाया कि हम यहां आपके आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए नहीं आये हैं, बल्कि हम आपको विकसित होने में मदद के लिए हैं. प्रधानमंत्री ने संसद में ही नेपाल को एक अरब डॉलर के आसान ऋण की पेशकश की.
बाद में नेपाली वित्त मंत्री ने मीडिया को बताया कि भारतीय प्रधानमंत्री ने इस आसान ऋण की पेशकश की, जिसे हमने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया. दोनों देशों के अधिकारी बाद में एक बैठक में परियोजनाओं तथा ब्याज दर पर फैसला करेंगे. उन्होंने यह भी बताया कि इस राशि का उपयोग सड़क और पनबिजली परियोजना सहित ऐसी परियोजनाओं के लिए किया जायेगा, जिस पर दोनों देशों की सहमति हो.
हो सकता है कि इस ऋण की राशि मोदी द्वारा पेश किये गये ‘हिट’ (एचआइटी) में प्रयुक्त हो, जिसके अंतर्गत हाइवेज (एच), आइवेज यानी इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी (आइ) तथा ट्रांसवेज यानी ट्रांसमिशन (टी) में प्रयुक्त हो. इससे नेपाल के विकास को गति मिलेगी. अब तक इसकी गति काफी धीमी रही थी, क्योंकि भारत ने नेपाल को 35 करोड़ डॉलर का ही आसान ऋण दिया है, जिसकी शुरुआत 2006 में हुई थी.
सामंजस्य की दृष्टि से उन्होंने नेपाल को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि भारत बिग ब्रदर की हैसियत से नहीं, बल्कि दोस्त की हैसियत से नेपाल का सहयोग करना चाहता है. इसका कारण यह है कि न केवल नेपाल बल्कि भारत के अधिकांश पड़ोसी देश अक्सर यह शिकायत करते रहे हैं कि भारत बिग ब्रदर जैसा व्यवहार करता है. हालांकि इस बात में सच्चाई कम ही है.
अगर ऐसा होता तो शायद प्रत्येक राष्ट्र भारत के सामने आंखें नहीं तरेर पाता. इसके बावजूद नरेंद्र मोदी ने संसद में नेपाल को यह भरोसा दिलाया कि भारत उसका दोस्त है, बिग ब्रदर नहीं. हालांकि, नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया इस प्रकार का भरोसा भारत की परंपरागत विदेश नीति के मूल तत्वों से भिन्न है.
समझौते के लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी ने सिंह दरबार सचिवालय में नेपाली प्रधानमंत्री सुशील कोईराला के साथ बैठक की, जिसमें दोनों देशों के बीच तीन करार पर हस्ताक्षर हुए. पहले करार के तहत भारत ने आयोडिन युक्त नमक की खरीद और वितरण के लिए नेपाल को साढ़े छह करोड़ रुपये का अनुदान दिया.
इस नमक को नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों में वितरित किया जायेगा. दूसरा करार महाकाली नदी पर 5,600 मेगावाट की पंचेश्वर बहुद्देश्यीय परियोजना से संबद्ध है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में पंचेश्वर परियोजना नेपाल के विकास की कुंजी है. आखिरी करार के तहत दूरदर्शन और नेपाल टेलीविजन के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी.
प्रधानमंत्री मोदी ने उसी रास्ते पर अलकतरे की परत चढ़ायी है, जिसे कुछ दिन पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पक्का कर आयीं थीं. अपनी तीन दिन की नेपाल यात्रा के दौरान सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के मद्देनजर एक रोडमैप तैयार कर दिया था. उन्होंने 23 वर्षो बाद भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक की सह अध्यक्षता की थी, जिसके बाद दोनों पक्ष भारत और नेपाल शांति तथा मैत्री संधि की समीक्षा और समायोजन पर सहमत हुए थे.
इस संयुक्त आयोग का गठन 1987 में हुआ था और विदेश मंत्रियों के स्तर पर आधारित इस आयोग का उद्देश्य दोनों देशों के मध्य आपसी समझ और सहयोग बढ़ाने के उपाय तलाशना था. इस बार संयुक्त आयोग की बैठक में विचार विमर्श पांच अलग-अलग समूहों में हुआ. इनमें राजनीतिक, सुरक्षा और सीमा से जुड़े मुद्दे पर एक समूह, आर्थिक सहयोग और ढांचागत परियोजनाओं के बारे में दूसरे समूह, व्यापार और पारगमन पर तीसरे समूह, बिजली और जल संसाधन पर चौथे समूह तथा संस्कृति, शिक्षा और मीडिया पर पांचवें समूह में बातचीत हुई.
इसलिए इस लिहाज से तो यह माना जा सकता है कि यह यात्रा भावुकता की अभिव्यक्ति के लिहाज से तो ठीक रही, लेकिन इसमें उन चुनौतियों के समाधान संबंधी कोई कदम नहीं उठाये गये, जिन्हें चीन नेपाल के जरिये पेश कर रहा है या पेश करने वाला है. जरूरत है कि भारत नेपाल में उन शक्तियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करे, जो माओवाद के विकल्प के रूप में हैं.
नेपाल की उस आबादी को, जिसका भारत से कहीं अधिक सरोकार है, उसे भी भरोसा दिलाने की जरूरत थी ताकि भारत नेपाल में एक मजबूत ताकत खड़ी कर सके. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न ही भारत की तरफ से ऐसी सांस्कृतिक रणनीति की शुरुआत की जा सकती है, जो चीन की ट्रैक-2 नीति को निष्क्रिय कर सके. कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी ने नेपाल को भावानात्मक शब्दों से लेकर विकास के नुस्खे और सहयोग का वचन दिया ही है, तात्कालिक प्रतिफल के रूप में पाया कुछ नहीं. ऐसे में यह यात्रा उपलब्धियों से संपन्न तो नहीं दिखती. हां, संबंधों के पुनरुज्जीवन के लिहाज से महत्वपूर्ण अवश्य माना जा सकता है.
गेट्रर नेपाल का स्वप्न
भारत और नेपाल सांस्कृतिक रूप से चाहे जितने नजदीक रहे हों, लेकिन नेपाल में एक वर्ग ऐसा भी है, जो भारत विरोधी विषय-वस्तु को कुछ इस तरह से प्रस्तुत करता रहता है, जिससे वहां भारत विरोधी माहौल निर्मित हो सके. ग्रेटर नेपाल की महत्वाकांक्षा इसी प्रकार का एक हथियार है.
‘नेपाल को सिमाना’ नाम की एक पुस्तक में नेपाली किंगडम की कुल सीमा 2,889.47 किमी दर्शायी गयी है, जिसमें 1,111.47 किमी चीन के साथ और 1,778.00 किलोमीटर सीमा भारत के साथ. इस पुस्तक में भिन्न-भिन्न समय में नेपाल की जो सीमा रही है, उसे प्रदर्शित किया गया है. उदाहरण के तौर पर ग्रेटर नेपाल (तीस्ता-कांगड़ा) की सीमा 4,816 किमी और क्षेत्रफल 3,67,575 वर्ग किमी प्रदर्शित किया गया है.
इसके बाद के नेपाल (तीस्ता-सतलज) की सीमा 3,776 किमी और उसका क्षेत्रफल 2,04,917 वर्ग किमी है, जबकि वर्तमान नेपाल (मेची-महाकाली) की सीमा 2,889 किमी और इसका क्षेत्रफल 1,47,181 वर्ग किमी दिखाया गया है. इस पुस्तक के मुताबिक, सुगौली की संधि (1816) द्वारा नेपाल की एक-तिहाई सीमा का नुकसान हुआ था, क्योंकि काली नदी नेपाल की वास्तविक सीमा रेखा थी. पुस्तक में इस बात का हवाला दिया गया है कि सीमा स्तंभ मेची युग के स्तंभों से यह बात स्पष्ट होती है कि काली नदी ही वास्तविक सीमा थी और भारत ने 53 स्थानों पर नेपाली सीमा का अतिक्रमण किया है.
नेपाल से जुड़े कुछ तथ्य
भू-भाग के हिसाब से दुनिया का 93वां सबसे बड़ा और आबादी के हिसाब से 41वां बड़ा राष्ट्र है. मई, 2006 तक यह एक हिंदू राजतंत्र (हिंदू किंगडम) रहा, लेकिन 18 मई, 2006 को प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव) ने सर्वसम्मति से राजा की शक्तियों को सीमित कर नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य (सेक्यूलर स्टेट) घोषित कर दिया.
28 दिसंबर, 2007 को संसद ने एक विधेयक पास कर संविधान के अनुच्छेद 159 में संशोधन किया और प्रॉविजन्स रिगार्डिग द किंग के स्थान पर प्रॉविजन्स ऑफ द हेड ऑफ स्टेट को स्थापित करते हुए नेपाल को संघीय गणराज्य (फेडरल रिपब्लिक) घोषित किया गया और राजतंत्र समाप्त कर दिया गया.
1950 में भारत और नेपाल के मध्य शंति व मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर हुए और इस संधि के पश्चात नेपाल की उत्तरी सीमा पर भारत ने सैनिक चौकियां स्थापित की ताकि तिब्बत व भूटान की ओर के दर्रो से नेपाल की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. अब तक तिब्बत में चीन की गतिविधियां बढ़ने से नेपाल की सुरक्षा के मामले में भारतीय दृष्टिकोण में चिंता का पुट था.
वर्ष 2011 में नेपाली प्रधानमंत्री की नयी दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने पुराने निकट, हार्दिक और वृहत्तर संबंधों पर संतोष व्यक्त किया और 22 सूत्री घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये, जिसमें 1950 की शांति और मैत्री संधि को रिव्यू, एडजस्ट और अपडेट करने की जरूरत महसूस की गयी थी.
आइएसआइ के लिए निर्मित हो रहा रास्ता
नेपाल में धीरे-धीरे मुसलिम आबादी बढ़ रही है. इसलिए आइएसआइ को अपेक्षित मानव समूह मुहैया होने की उम्मीदें बढ़ रही हैं. उल्लेखनीय है कि 1981 में नेपाल में करीब दो प्रतिशत मुसलमान थे, जो 1991 में बढ़कर 3.5 प्रतिशत हो गये और अब 4.2 प्रतिशत हो चुके हैं. चूंकि चीन नेपाल के प्रति नरम रवैया रखता है, इसलिए आइएसआइ के मंसूबे भी आसानी से पूरे हो सकते हैं.
चीनी माओवाद और पाकिस्तानी कट्टरपंथ अपने-अपने हितों के मद्देनजर नेपाल की स्थितियों को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं. इन स्थितियों में भारतीय राजनय को अधिक सक्रिय और रणनीतिक बनना होगा. इन्हीं का सहारा लेकर आइएसआइ अपनी आतंकी गतिविधियां और नकली मुद्रा को प्रवेश कराने में सफल हो जाती है.
जातीय समस्या
नेपाली राष्ट्र को यदि सांस्कृतिक/ नृजातीय आधार पर देखें, तो यह एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश है. इसमें एक भाग का संबंध पहाड़ी क्षेत्र के उन निवासियों का है जो नेपाली या खास नेपाली बोलते हैं और दूसरे का संबंध मैदानी क्षेत्र के उन नेटिव मधेशियों से है, जो हिंदी, मैथिली, भोजपुरी, थारू, उर्दू, अवधी बोलते हैं. 60 जातियों और नृजातीय (एथनिक) लोगों में से 29 इन्हीं मैदानी भागों में रहते हैं.
इस प्रकार 143 भाषायी समूहों में से 48 मैदानी भाग में रहते हैं. कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 32.2 फीसदी है. नेपाल की सरकार रणनीतिक ढंग से हिंदी भाषियों की संख्या कम कर रही है. उदाहरण के तौर पर 1971 की जनगणना में भाषायी आधार पर इनकी संख्या 50 लाख थी, लेकिन 2001 जनगणना में इसे घटाकर 2 लाख 70 हजार कर दिया गया. दूसरी ओर नेपाली भाषियों की संख्या को नाटकीय ढंग से बढ़ाया गया.
नेपाल में प्राय: हिंदी विरोध उभरता है, जिसके पीछे मूलत: दो कारण हैं. पहला हिमालयी वरिष्ठता और दूसरा चीनी कारक, जो हिंदी विरोध के जरिये भारत विरोध को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रहा है.
नेपाली माओवाद
माओवादियों ने 13 जनवरी 1996 को कथित जनयुद्ध का ऐलान किया था. एक दशक तक चले इस जनयुद्ध में दसियों हजार नेपालियों को मौत के घाट उतारा गया. नेपाल की जड़ों तक घुसी गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी ने माओवाद के लिए व्यापक आधार तैयार किया. नेपाल के माओवादी दरअसल पेरू के ‘शाइनिंग पाथ’ आंदोलन की प्रेरणा से उपजे हैं. उन्होंने वही झंडा और वही ढर्रा अपनाया, जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पेरू और शाइनिंग पाथ आंदोलन के नेता अबीमेल गुजमान ने अपनाया था.
अबीमेल गुजमान ने 1960 में उग्रपंथी माओवाद की नींव डाली थी और स्वयं को प्रेसीडेंट गोंजेले के नाम से लोकप्रिय बनाने के सारे उपाय अपनाये थे. पेरू के शाइनिंग पाथ आंदोलन ने कमोबेश 35,000 से अधिक लोगों की जानें ली थीं.