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हैदराबाद एनकाउंटर की ‘कहानी’ में कितना दम: नज़रिया

<figure> <img alt="पुलिस रिवॉल्वर की फाइल फोटो" src="https://c.files.bbci.co.uk/C1E2/production/_110043694_057160099-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>हैदराबाद पुलिस फिलहाल एक अजीबोगरीब परिस्थिति से जूझ रही है. कई लोगों को लग रहा है कि एक महिला के बलात्कार के चार अभियुक्तों के &quot;एनकाउंटर&quot; की कहानी झूठी है. </p><p>हैदराबाद पुलिस ने दावा किया है कि महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और […]

<figure> <img alt="पुलिस रिवॉल्वर की फाइल फोटो" src="https://c.files.bbci.co.uk/C1E2/production/_110043694_057160099-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>हैदराबाद पुलिस फिलहाल एक अजीबोगरीब परिस्थिति से जूझ रही है. कई लोगों को लग रहा है कि एक महिला के बलात्कार के चार अभियुक्तों के &quot;एनकाउंटर&quot; की कहानी झूठी है. </p><p>हैदराबाद पुलिस ने दावा किया है कि महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और उनकी हत्या के चार अभियुक्त &quot;एनकाउंटर&quot; में मारे गए.</p><p>कुछ हलकों में इन अभियुक्तों के मारे जाने पर जश्न मनाने वाले लोगों को भी लगता है कि यह सुनियोजित &quot;एनकाउंटर&quot; था. हालांकि वे इसे सही ठहरा रहे हैं. </p><p>यह हमें उन लोगों की मानसिकता मे बारे में कुछ बताता है जो सोचते हैं कि चार निहत्थे अभियुक्तों की हत्या (जिनका अपराध अभी साबित नहीं हुआ था) एक तरीके से सही थी.</p><p>हालांकि यह सोचने वाली बात है कि वास्तव में क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए शिक्षित किए गए पुलिस अधिकारियों को हिंसा के ऐसे कृत्यों का सहारा लेना क्यों पड़ा.</p><p><strong>कौन होते हैं शिकार</strong><strong>?</strong></p><p>अब तक क​ई लोगों ने उल्लेख किया है कि ऐसे &quot;एनकाउंटर किलिंग&quot; में आमतौर पर सुविधा से वंचित दलितों, आदिवासियों, पिछड़े मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है.</p><p>भारत में सत्ता में किसी पद पर आसीन या विशेषाधिकार प्राप्त कोई भी व्यक्ति पुलिस के हाथों ऐसी हत्याओं का ​कभी शिकार नहीं होता है. उन्हें शिकार होना भी नहीं चाहिए. हालांकि पीड़ितों की पहचान का तरीका हमें आपराधिक न्याय प्रणाली की स्थिति​ के बारे में काफी कुछ कहता है. </p><p>क़ानून के तहत जब ख़ाकी वर्दी वाले, यानी पुलिसकर्मी कोई अपराध करते हैं तो उन्हें क़ानूनन कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करता.</p><p>भारतीय दंड संहिता 1860 के वि​शेष प्रावधानों के मुताबिक़, क़ानून का उल्लंघन करने वाले पुलिस​कर्मियों के ख़िलाफ़ कठोर सज़ा का प्रावधान किया गया है. </p><p>उदाहरण के तौर पर धारा 330 और 331 के अनुसार क़बूलनामे के लिए अगर ज़बर्दस्ती की गई हो तो सात साल तक और दस साल जेल की सज़ा का प्रावधान है.</p><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/17010/production/_110042249_8f3a4452-593c-4a72-bc90-a979857a7a3a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>पीयूसीएल वर्सेज महाराष्ट्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में &quot;एनकाउंटर&quot; हत्याओं के बाद क्या होना चाहिए, इसकी प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट तौर पर लिखा है.</p><p>कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की हत्याओं की जांच स्वतंत्र तरीके से होनी चाहिए. इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट दायर की जानी चाहिए और उस आधार पर दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए.</p><p>इस मामले में कोर्ट के फ़ैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अदालतें और कानून पुलिसकर्मियों के दावों जैसे अभियुक्तों ने &quot;उनके हथियार छीनने के प्रयास किए&quot; या किसी ​तरीके से उन पर हमला करने के प्रयास किए, इन बातों पर आंख मूंदकर यक़ीन नहीं करना चाहिए.</p><p>अगर ज़रूरत पड़ी तो एक उचित जांच की जानी चाहिए और पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ आपराधिक सुनवाई होनी चाहिए. </p><p>हालांकि, इस तरह के मामलों में न्यायिक प्रणाली की कमज़ोरी के कारण पुलिसकर्मियों को उनके अपराधों के लिए सज़ा नहीं मिलती और उन्हें एक तरह से सुरक्षा ही मिलती है.</p><p><strong>आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ में क्या हुआ</strong></p><p>इस सप्ताह की शुरूआत में, छत्तीसगढ़ में साल 2012 में सुरक्षाबलों के हाथों आदिवासियों की मौत की न्यायिक जांच अपने निष्कर्ष तक पहुंची कि मारे गए लोग माओवादी नहीं थे और यह पूरी तरह से हत्या का मामला था. </p><p>कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि घटना के सात साल के बाद यह फ़ैसला सामने आया है और हत्यारों के ख़िलाफ़ अभी औपचारिक सुनवाई शुरू होना बाक़ी है.</p><p>आंध्र प्रदेश पुलिस ने साल 2015 में तमिलनाडु के 20 लोगों को गोलियों से मार दिया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि वो कुल्हाड़ियों और आरियों से लाल चंदन के पेड़ों को काट रहे थे. </p><p>यह कहानी पूरी तरह से ​अविश्वसनीय मानी गई और हत्याकांड को लेकर तमिलनाडु में लोगों की उग्र प्रतिक्रिया सामने आई और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच शुरू की. </p><p>रिपोर्ट में पुलिस के कदम की आलोचना की गई लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई. आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में ये मामला अभी भी लंबित है. </p><p>न्याय अदालतों से मिलता तो है, लेकिन यह इतनी देरी से मिलता है कि आश्चर्य होता है कि किसी को सज़ा पाने के लिए जिंदा क्यों छोड़ रखा है. </p><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/8998/production/_110042253_6026a713-ad05-49bd-b03f-a4604db6c2cc.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>सांकेतिक तस्वीर</figcaption> </figure><p><strong>क्या था महाराष्ट्र का मामला</strong><strong>?</strong></p><p>सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में यशवंत वर्सेज महाराष्ट्र सरकार के मामले में मुंबई में पुलिस कस्टडी में एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या की कड़ी निंदा की थी. </p><p>यह जानते हुए भी कि वह व्यक्ति निर्दोष है, पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए पकड़ लिया था, उसे प्रताड़ित किया और उसकी पिटाई की. बाद में हिरासत में उसकी मौत हो गई. </p><p>सुप्रीम कोर्ट ने घटना के दौरान थाने में मौजूद सभी पुलि​सकर्मियों को दोषी मानने के निचले अदालत के फ़ैसले को बरकरार रखा और ऐसे मामलों में एक संदेश देने के लिए उनकी सज़ा तीन साल से बढ़ाकर सात साल कर दी. </p><p>यह एक सराहनीय मामला था. हालांकि ध्यान देने वाली बात ये है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला सुनाने से पूरे 25 साल पहले यह अपराध साल 1993 में हुआ था.</p><p>निचली अदालत में सुनवाई पूरी होने में दो साल का समय लगा और कोर्ट ने अभियुक्त पुलिसकर्मियों को तीन साल जेल की सज़ा सुनाई थी. </p><p>बॉम्बे हाई कोर्ट में यह मामला 13 साल तक चला और सुप्रीम कोर्ट में भी काफ़ी वक्त लगा.</p><p>न्याय मिलने में देरी का मतलब शायद यही था कि सुप्रीम कोर्ट का संदेश कड़ा को था लेकिन शायद कमजोर हो गया था.</p><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/C494/production/_110042305_49d0b253-2c84-4d3f-939a-b0e8e3ae45df.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>न्यायिक अधिकारी पर क्या है दायित्व</strong><strong>?</strong></p><figure> <img alt="न्याय की मांग" src="https://c.files.bbci.co.uk/D2A4/production/_110042935_25491ae5-86a6-466d-bdcf-853fdbce4df8.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने हैदराबाद में चार अभियुक्तों के मारे जाने का मुद्दा उठाया है और तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी इसका संज्ञान लिया है. </p><p>यह देखना सुखद है कि कम से कम न्यायिक अधिकारी तो संतुष्ट होकर चुप नहीं बैठे हैं और अपनी कार्यप्रणाली को जनता के ​विचारों से प्रभावित नहीं होने दे रहे हैं.</p><p>हालांकि उन पर इस बात का दायित्व भी है कि वह तेजी से जांच पूरी करें और उचित सज़ा दें. इसके बाद ही अदालत के कड़े संदेश का व्यापक असर होगा. </p><p><strong>ये भी पढ़ेंः</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50694017?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नौ दिसंबर तक सुरक्षित रखें अभियुक्तों के शव : हाई कोर्ट </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50694223?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">उन्नाव रेप पीड़िता की मौत पर बहन क्या बोलीं</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50682497?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हैदराबाद: अभियुक्तों के मारे जाने की पूरी कहानी</a></li> </ul><p><strong>(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है)</strong></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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