भारत की अर्थव्यवस्था मंदी से बस चंद क़दम दूर है?- नज़रिया

<figure> <img alt="सब्ज़ी विक्रेता" src="https://c.files.bbci.co.uk/DC0E/production/_110143365_gettyimages-1186281472.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong><em>साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं</em></strong></p><p><strong><em>ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं </em></strong></p><p>न जाने कब और कैसे शायर को अंदाज़ा हो गया था कि एक दिन भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसे मोड़ पर पहुंचना पड़ेगा कि ये शेर ही काम आएगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2019 10:47 PM

<figure> <img alt="सब्ज़ी विक्रेता" src="https://c.files.bbci.co.uk/DC0E/production/_110143365_gettyimages-1186281472.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong><em>साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं</em></strong></p><p><strong><em>ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं </em></strong></p><p>न जाने कब और कैसे शायर को अंदाज़ा हो गया था कि एक दिन भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसे मोड़ पर पहुंचना पड़ेगा कि ये शेर ही काम आएगा. और कोई आसान रास्ता नहीं है इस वक़्त अर्थव्यवस्था और मंदी के रिश्ते को समझाने के लिए. </p><p>हर तरफ़ से जो ख़बरें आ रही हैं, जो आंकड़े निकल रहे हैं वो दिखा रहे हैं कि हालात अच्छे नहीं हैं. जीडीपी ग्रोथ यानी तरक़्क़ी की रफ़्तार, महंगाई, आईआईपी यानी औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े, गाड़ियों की बिक्री से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल यानी फ्रिज टीवी जैसी चीज़ों की बिक्री में गिरावट, जगह-जगह लोगों की नौकरी जाने की ख़बरें. तरह-तरह के उद्योग व्यापार संगठनों के बयान, सभी कुछ ऐसा इशारा कर रहे हैं कि हालात ठीक नहीं हैं. </p><p>लेकिन जब भी आप सरकार से सवाल करें तो जवाब कुछ ऐसा घुमा फिराकर आता है कि अकबर बीरबल का किस्सा याद आ जाए. </p><p>बादशाह अकबर ने किसी दरबारी को एक गाय ईनाम दी, साथ में हिदायत कि इसका पूरा ख़याल रखा जाए. और अगर इसे कुछ हो गया तो ठीक नहीं होगा. यही नहीं अगर कोई इसके मरने की ख़बर लाया तो उसकी जान जाएगी. </p><p>अब किस्मत की मार, वो गाय कुछ दिन बाद मर गई. अब बादशाह को बताए कौन. तो ज़िम्मेदारी बीरबल की. उन्होंने फ़रमाया – हुज़ूर, वो जो गाय आपने उन्हें ईनाम दी थी, वो कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही है. न खाती है, न पीती है, न हिलती है, न आवाज़ करती है, बल्कि सरकार वो तो सांस भी नहीं ले रही. </p><p>राजा ने ग़ुस्से में पूछा – मर गई क्या? जवाब – ये मैं कैसे कह सकता हूं, इस पर तो सज़ा-ए-मौत हो जानी है. </p><figure> <img alt="मज़दूर" src="https://c.files.bbci.co.uk/810A/production/_110143033_gettyimages-1154039678.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>मंदी का नाम लेना गुनाह</h1><p>वहां तो बात आई गई हो गई, बीरबल के नाम एक किस्सा और चढ़ गया. लेकिन यहां हालात उतने आसान भी नहीं हैं. मज़ाक को भी गंभीरता से लिया जा सकता है. सो मंदी का नाम लेना ही गुनाह हो गया है. </p><p>दिक्कत ये है कि हिंदी में मंदी कहो या सुस्ती कहो बात सुनने में एक सी लगती है. चक्का जाम कहो, तब बात में दम आता है और विकास की गाड़ी उलटी दिशा में चल पड़ी कहने पर राजनीतिक नारा लगने लगता है. </p><p>सच तो यही है कि गाड़ी उल्टी तरफ़ चले उसे अंग्रेज़ी में रिसेशन कहा जाता है और बरसों से हिंदी में उसी का अनुवाद मंदी होता है. जैसे सागर की लहरें जब उतार पर होती हैं, उसे रिसीड करना कहते हैं तो वही रिसेशन है. </p><p>समझिए कि कोई उद्योग, या देश के सारे उद्योग धंधे बढ़ने के बजाय उतार पर हों यानी उनका कारोबार कम होने लगे तो ऐसी हालत को उनके लिए तो मंदी ही है न? </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50581090?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’आम आदमी को पुलवामा परोसने से अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50036625?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मंदी में आम जनता की बचत पर क्या असर होता है?</a></li> </ul><figure> <img alt="पैसा" src="https://c.files.bbci.co.uk/32EA/production/_110143031_gettyimages-1187364332.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>कब माना जाए देश में मंदी</h1><p>अभी जो आईआईपी यानी औद्योगिक उत्पादन का आंकड़ा आया है उसमें लगातार तीसरे महीने गिरावट दर्ज हुई है. लेकिन सिद्धांत के हिसाब से ये मंदी की परिभाषा में नहीं बैठता. वजह ये कि अंग्रेज़ों ने यानी इंग्लैंड के अर्थशास्त्रियों ने तय पाया कि जब पूरे देश की जीडीपी लगातार दो तिमाही गिरकर दिखाएगी तभी उसे रिसेशन यानी मंदी माना जाएगा.</p><p>तो क्या हुआ कि 23 में से 17 उद्योग समूह लगातार ग्रोथ में गिरावट नहीं बल्कि कारोबार में गिरावट दिखा रहे हैं. ये गिरावट कहीं-कहीं बीस परसेंट तक की है. लेकिन मंदी के सरकारी एलान होने के लिए अभी कम से कम छह महीने ऐसा हाल चलना चाहिए. </p><p>देश के अनेक जाने-माने अर्थशास्त्री पिछले महीने एक बार आशंका जता चुके हैं कि अगर इस वक़्त तरक़्क़ी पटरी पर नहीं लौटी तो फिर कम से कम इस वित्त वर्ष में यानी मार्च तक तो सुधार की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. </p><p>और इस महीने जब महंगाई चालीस महीने की नई ऊंचाई पर पहुंची और आईआईपी में 3.8 परसेंट की गिरावट भी दिखी तो फिर ये चिंता एक दुधारी तलवार सी बन गई है. वो भी ऐसी जिसका हत्था भी टूटा हुआ हो. जिधर से भी पकड़ो अपना हाथ कटने का ही डर है. </p><p>ख़ासतौर पर बिजली बनने और कैपिटल गुड्स में तेज़ गिरावट चिंताजनक है. इसका साफ़ मतलब है कि खपत भी कम है और नए निवेश के लिए भी मांग नहीं है. </p><p>कैपिटल गुड्स उन चीज़ों को कहा जाता है जिनका इस्तेमाल कोई दूसरी चीज़ बनाने के लिए ही होता है, इन्हें बेचा नहीं जाता. जैसे मशीनें, बिल्डिंग बनाने में काम आनेवाली बड़ी मशीनें और कारख़ानों या दफ़्तरों के फ़र्नीचर जैसी सामग्री. इन दोनों की ही गिरावट अच्छी नहीं है और लंबी चल गई तो ये एक अपशकुन ही है. साफ़तौर पर ग्रहण का संकेत. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50677667?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारत की अर्थव्यवस्था इस हाल में क्यों है</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50682248?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’प्याज़ ही क्यों, लहसुन, मीट सब खाना बंद कर दो’ </a></li> </ul><figure> <img alt="निर्मला सीतारमण" src="https://c.files.bbci.co.uk/12A2E/production/_110143367_gettyimages-1188316429.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>अब किससे है उम्मीद</h1><p>शुक्रवार को वित्तमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वो सब गिनाया जो उन्होंने इकोनॉमी को फिर पटरी पर लाने के लिए किया है. उनके सलाहकार और सचिवों ने भी अपने आंकड़े दिखाकर ये साबित करने की पूरी कोशिश की कि सब कुछ ठीक है. और अगर कुछ ठीक नहीं होगा तो वित्तमंत्री ऐसी स्थिति में दख़ल देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. </p><p>लेकिन अर्थव्यवस्था से उम्मीद क्या रखें इस सवाल के जवाब में सब दाएँ-बाएं हो गए. इस सवाल का भी जवाब नहीं मिल पाया कि इस वक़्त अर्थव्यवस्था जिस हाल में है उसे क्या कहा जा सकता है और इससे उबरने की उम्मीद कब तक करनी चाहिए. </p><p>वित्त मंत्री ने ये ऐलान ज़रूर किया कि जिन उद्योगों को ज़रूरत पड़ेगी उनको मदद देने के लिए सरकार अब भी तैयार है. </p><p>लेकिन ज़्यादातर जानकारों का मानना है कि अब सारा दारोमदार बजट पर ही रहने वाला है. </p><p>वित्त मंत्री ने कहा भी कि इस बातचीत का एक उद्देश्य ये भी है कि अब बजट की तैयारी चल रही है तो उसका भी एक ख़ाका सा बना लिया जाए. पिछले कुछ महीनों में अर्थनीति में जो कुछ बदलाव हुए हैं उनका असर दिखने का वक़्त अब आ रहा है, लेकिन फिर भी बजट पर बहुत बड़ा दबाव रहने वाला है. </p><p>और सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस हाल में सरकार पैसा कहां से लाएगी और अगर कहीं से जुटा भी लाई तो क्या वो पैसा ख़र्च करके हम इस मंदी जैसी स्थिति से उबरने में कामयाब हो जाएंगे, या तब तक इलाज के लिए काफ़ी देर हो चुकी होगी. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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