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शौकत आपा : सेल्फ मेड वूमेन

कुछ लोगों के लिए शौकत आपा और बाकी दुनिया के लिए शौकत कैफी ने बीते 22 नवंबर को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पहचान के लिए लोग उन्हें कैफी आजमी की पत्नी या शबाना आजमी की मां के रूप में संबोधित करते हैं. इन संबोधनों के बीच शौकत की स्टेज और फिल्मों में अदाकारी, […]

कुछ लोगों के लिए शौकत आपा और बाकी दुनिया के लिए शौकत कैफी ने बीते 22 नवंबर को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पहचान के लिए लोग उन्हें कैफी आजमी की पत्नी या शबाना आजमी की मां के रूप में संबोधित करते हैं.

इन संबोधनों के बीच शौकत की स्टेज और फिल्मों में अदाकारी, कोरस में गाना, डबिंग में आवाज देना, काॅस्ट्यूम डिजाइनिंग और सबसे बढ़ कर अपनी जिंदगी की जद्दोजहद को खूबसूरती से रकम करने का दस्तावेज ‘याद की रहगुजर’ की लेखिका के तौर पर उनकी पहचान छूट जाती है.
शौकत हैदराबाद के एक समृद्ध परिवार के हाफ प्रोग्रेसिव माहौल में पैदा हुईं. हाफ प्रोग्रेसिव इसलिए, क्योंकि सिवा अब्बा के घर के बाकी सदस्य अंग्रेजी तालीम के खिलाफ थे. वे जब पहली दफा अम्मा को सहारनपुर के गांव से दिल्ली लाये, स्टेशन पर ही बुर्का उतरवा दिया.
दस भाई-बहनों में एक शौकत को-एड मिशनरी स्कूल में पढ़ती हैं. खूबसूरत. जहीन. इस्मत चुगताई को पढ़नेवाली. मखदूम मुहियुद्दीन की गजलें गुनगुनानेवाली. कपड़े खरीद कर चोली-कुर्ते बनानेवाली. इंद्रधनुषी दुपट्टे रंगनेवाली.
पहनने-ओढ़ने की शौकीन. बचपन से ही एंटीक और यूनीक चीजों की तरफ आकर्षित होनेवाली शौकत प्रोग्रेसिव विचारों वाली मजबूत इरादों की इंसान हैं. महज 17 साल की उम्र में वे कैफी को उनकी मशहूर नज्म ‘औरत’ सुनाते हुए एक मुशायरे में सुनती हैं- ‘उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे…’
मुशायरा खत्म होते ही शौकत को नज्म और नज्मनिगार दोनों से प्यार हो जाता है. वे कैफी की सांवली रंगत और ठाक करती आवाज से ज्यादा उनके विचारों से प्रभावित थीं. उस दौर में क्या, शिया-सुन्नी ब्याह आज भी आसान नहीं. तिस पर किसी की मंगेतर भी थीं. बावजूद, यह उनकी दृढ़-निश्चितता थी कि कैफी से शादी के लिए अपने पिता को राजी कर लिया.
कम्युनिस्ट पार्टी के रेड फ्लैग हाॅल के एक छोटे से कमरे में 40 रुपये माहवार पर रहनेवाले कैफी के साथ शौकत को सब मंजूर था. पूरे कम्यून के लिए एक कॉमन बाथरूम साझा करते हुए गृहस्थी उठानेवाली शौकत एक धर्मपत्नी से ज्यादा कैफी की महबूबा हैं. उनकी तमाम नज्मों, गजलों का मरकज वे ही तो हैं.
कॉमरेड की पत्नियां खाली नहीं बैठतीं, पीसी जोशी के यह कहने पर उन्होंने ड्रामों और कोरस गाने के लिए कैफी को राजी कर लिया. दरअसल, वे घर खर्च और बच्चों की परवरिश में आर्थिक सहयोग करना चाहती थीं. उन्होंने इप्टा के नाटकों में काम किया. छह महीने की शबाना को रोज लेकर पृथ्वी थियेटर जाती थीं. कम खर्च में भी घर को सजाती थीं.
जुहू बीच से छोटे-बड़े पत्थर इकट्ठा कर खाली दीवार पर पेबल आर्ट बनाती थीं. फिर भी उन्होंने हालात और जिंदगी से कभी शिकायत नहीं की. कभी खाने को होता, कभी नहीं, लेकिन अपने अमीर घर वालों से मांगा नहीं कभी. वे जानती थीं, इससे भी बदतर जिंदगी मुल्क की एक बड़ी आबादी गुजार रही है.
महज 15 फिल्मों में अदाकारी करनेवाली शौकत मंजी ऐक्ट्रेस के तौर पर जानी जाती हैं. हकीकत, गर्म हवा, हीर-रांझा, उमराव जान, बाजार, सलाम बॉम्बे उनकी यादगार फिल्में हैं. पृथ्वी थियेटर और इप्टा के डेढ़-दो दर्जन ड्रामे भी.
उनकी अदाकारी का आलम ऐसा कि उमराव जान देखने के बाद कैफी कहते हैं, ‘शौकत ने खानम के रोल में जिस तरह हकीकत का रंग भरा है, अगर शादी से पहले मैंने उनकी अदाकारी का यह अंदाज देखा होता, तो इनका शजरा मंगवा कर देखता कि आखिर सिलसिला क्या है.’
शौकत की निडरता और दृढ़ता रेड फ्लैग हॉल में दो बार नुमाया हुई. पहले बच्चे की एक साल के भीतर बीमारी के चलते गंवा देने के बाद जब वे दोबारा गर्भवती हुईं, तब मुश्किल हालात की वजह से पार्टी ने मां न बनने की सलाह दी.
उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. कहा, मैं अपने बच्चे का खर्चा खुद उठा लूंगी. ऐसे ही, आजादी के बाद जब कम्युनिस्ट पार्टी ने फैसला लिया कि उनके कई मुस्लिम नेता पाकिस्तान जाकर वहां आंदोलन करेंगे, कैफी साहब को भी पाकिस्तान जाने का निर्देश दिया गया, लेकिन शौकत ने पाकिस्तान जाने से साफ इनकार कर दिया.
जिंदगी से मिले इन सब किरदारों से न्याय करनेवाली, बहादुर, धुन की पक्की, नर्म, शौकत ने एक कामयाब भरपूर जिंदगी जी है. उच्च आदर्श मूल्यों से कभी समझौता न करने की प्रवृत्ति ने उनकी जिंदगी को सकारात्मकता का उदाहरण बना दिया. सेल्फ मेड वूमेन शौकत आपा को हमारा सलाम!

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