ये कीड़े रेशमी हैं…

एक वक्त था जब पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान का हेरात सूबा उस वक्त के सिल्क रूट के ठीक मध्य में पड़ता था. यहाँ लंबे अर्से से रेशम बनाने का काम होता था और यहाँ के बुनकर क़ालीन और रेशमी कपड़े तैयार करते थे. हज़ारों परिवार इससे अपनी रोजी-रोटी चलाते थे. लेकिन दशकों तक चली लड़ाई और अस्थिरता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2014 10:50 AM

एक वक्त था जब पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान का हेरात सूबा उस वक्त के सिल्क रूट के ठीक मध्य में पड़ता था. यहाँ लंबे अर्से से रेशम बनाने का काम होता था और यहाँ के बुनकर क़ालीन और रेशमी कपड़े तैयार करते थे.

हज़ारों परिवार इससे अपनी रोजी-रोटी चलाते थे. लेकिन दशकों तक चली लड़ाई और अस्थिरता नेअफ़ग़ानिस्तान को बहुत नुकसान पहुँचाया.

कभी यहाँ का रेशमी कारोबार खूब फला-फूला जिस पर अफ़ग़ानिस्तान इस पर गर्व कर सकता था. लेकिन अब यहाँ के बुनकर परिवारों को विदेशों से मँगाए जाने वाले सस्ते रेशम की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

अफगानिस्तान और रूस के संघर्ष के दिनों ने इस इलाके़ से रेशम के कारोबार को लगभग ख़त्म ही कर दिया था. तालिबान के दौर में तो हालात और भी बिगड़ गए.

हालांकि अब बदलाव की उम्मीद जगी है. देश के कृषि विभाग ने हेरात सूबे के परिवारों को इस इलाक़े में रेशम का उत्पादन फिर से शुरू करने के लिए मदद की पेशकश की है.

यहाँ के कई ज़िलों में रेशम के कीड़ों को पालने वाले 5,050 बक्से बाँटे गए हैं. कोई 42,500 महिलाएँ और उनके परिवारों को इस परियोजना से जोड़ा गया है.

इस परियोजना का मक़सद उन्हें रोजी-रोटी का साधन देना और देश के रेशम उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से जोड़ने का मौक़ा देना है.

हेरात सूबा रेशम उत्पादन के लिहाज़ से एक आदर्श जगह है. यहाँ शहतूत के पेड़ ख़ूब मिलते हैं जोकि सूखे मौसम में रेशम के कीड़ों को भोजन मुहैया कराते हैं.

ऊन और रेशम से बने पारंपरिक अफ़ग़ानी कालीनों की कीमत हज़ारों पौंड में हो सकती है. अफ़गानी क़ालीन दुनिया भर में मशहूर रहे हैं. इस काम में ज़्यादातर औरतें और बच्चे लगा करते थे.

एक वक़्त था जब देश की आबादी का पाँचवां हिस्सा रेशम के क़ारोबार से किसी न किसी रूप में जुड़ कर अपनी रोज़ी रोटी चलाता था लेकिन अब ये संख्या पहले जैसी नहीं रही.

क़ुदरती रेशम की क़ीमत बढ़कर दोगुनी हो गई और हेरात के लोग सस्ते सिंथेटिक रेशम की चुनौती से निपटने की कोशिश में लगे हुए हैं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

Next Article

Exit mobile version