16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नागरिकता संशोधन क़ानून: उत्तर प्रदेश में इतनी अधिक मौतों के लिए कौन ज़िम्मेदार है?- नज़रिया

<figure> <img alt="उत्तर प्रदेश पुलिस" src="https://c.files.bbci.co.uk/B07A/production/_110287154_gettyimages-1189741749.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर यूपी जैसे बड़े राज्य के कई शहरों में मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिससे सूचनाओं का आदान-प्रदान पूरी तरह ठप हो गया. </p><p>पत्थरबाज़ी करने वालों को लगता है कि वे पथर चलाकर अपनी आवाज़ सत्ता में […]

<figure> <img alt="उत्तर प्रदेश पुलिस" src="https://c.files.bbci.co.uk/B07A/production/_110287154_gettyimages-1189741749.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर यूपी जैसे बड़े राज्य के कई शहरों में मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिससे सूचनाओं का आदान-प्रदान पूरी तरह ठप हो गया. </p><p>पत्थरबाज़ी करने वालों को लगता है कि वे पथर चलाकर अपनी आवाज़ सत्ता में बैठे लोगों तक पहुंचा सकेंगे लेकिन उनकी आवाज़ों को सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है.</p><p>इस वजह से राजनीतिक रूप से सबसे अहम और सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में एक ऐसी आग भड़की है जिसे शांत करना मुश्किल साबित हो रहा है.</p><p>इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के हिंसक रूप लेने से अब तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें बनारस का एक बच्चा भी शामिल है जिसकी मौत लाठीचार्ज के बाद मची भगदड़ से हुई. </p><h3>सरकार का व्यवहार</h3><p>जहां एक ओर सरकार में उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों और लोगों की भाषा और कार्रवाइयों में सत्ता का रौब तो दिखता है लेकिन समस्या सुलझाने की इच्छा नहीं दिख रही.</p><p>वहीं, दूसरी ओर युवाओं का एक वर्ग सड़कों पर विरोध करते हुए उन सभी हदों को पार कर गया. उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनके कदम उनके ही ख़िलाफ़ जाएंगे. </p><p>कुछ मीडिया संस्थानों के ओवी वैनों को आग के हवाले कर दिया गया. कुछ पत्रकारों पर हमला किया गया. और ऐसा करना उनके लिए ही नुकसानदेह साबित हुआ. </p><p>मीडिया की ओर से पूरी सहानुभूति खोने के लिए उन्हें यही करना था. कुछ लोगों को लगता है कि ये सब कुछ किसी साजिश के तहत हुआ है. </p><p>ऐसे लोगों का मानना है कि ये भी प्रदर्शनकारियों को अलग-थलग करने की एक कोशिश हो सकती है क्योंकि इस क़ानून का विरोध करने वाले में ज़्यादातर लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे. और ऐसा माना जा रहा है कि ये क़ानून इस अल्पसंख्यक समुदाय के ही ख़िलाफ़ है. </p><p>लेकिन कुछ भी हो मीडियाकर्मियों पर हमलों ने प्रदर्शनकारियों को बिलकुल अलग-थलग कर दिया.</p><h3>पुलिस का रवैया</h3><p>लखनऊ के पुलिसकर्मियों ने जब अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ के संवाददाता उमर रशीद को पुलिस स्टेशन में बंधक बनाया, उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियां दीं तो इसके बाद भी अगली सुबह लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अख़बारों ने इसे तरजीह नहीं दी जबकि ये प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था. </p><figure> <img alt="उत्तर प्रदेश पुलिस" src="https://c.files.bbci.co.uk/20C4/production/_110288380_gettyimages-1189680285.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>पत्रकार उमर रशीद के लिए उनकी कश्मीरी पृष्ठभूमि एक गुनाह की तरह हो गई. </p><p>टीवी चैनल एनडीटीवी के पत्रकार आलोक पांडे ने उच्च प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके दो घंटे की हिरासत के बाद पुलिस के चंगुल से छुड़ाने में सफलता हासिल की. </p><p>ये घटना कश्मीर वादी के उन दिनों की याद दिलाती है जब वहां हिंसा का दौर शुरू हुआ था. </p><p>इसके बाद जब उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने इसे ‘अनजाने में हुई ग़लती’ बताया. लेकिन वह उमर रशीद के साथ ग़लत व्यवहार करने वाले पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं दिखे. </p><p>जब मैंने ओपी सिंह से कहा कि यूपी पुलिस की ओर से की ये कार्रवाई अक्षम्य और अभूतपूर्व है. तो इसके जवाब में ओपी सिंह ने कहा – &quot;मैं बीते 37 सालों से पुलिस सेवा में हूं, इसलिए मुझे ये नहीं बताएं कि ये पहली बार हुआ है.&quot;</p><p>दो जानी-मानी महिला समाजसेवियों माधवी कुकरेजा और अरुधंति धुरु जब पुलिस हिरासत में लिए गए कुछ साथी समाजसेवियों का हालचाल जानने हजरतगंज पुलिस थाने पहुंचीं तो उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया. </p><p>उत्तर प्रदेश के प्रमुख गृह सचिव अवनीश अवस्थी से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने इन दो महिलाओं को छोड़े जाने से पहले कहा, &quot;वे सीसीटीवी कैमरों में प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ी देखी गई थीं.&quot;</p><p>सामाजिक कार्यकर्ताओं दीपक कबीर और मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता संदीप पांडे और पूर्व आईपीएस अधिकारी डी एस दारापुरी को भी हिरासत में लिया गया. </p><p>दारापुरी का दूर-दूर तक हिंसक घटनाओं में शामिल होने का रिकॉर्ड नहीं है और संदीप पांडे तो जाने-माने गांधीवादी हैं जो सामाजिक मुद्दों के लिए शांति का रास्ता अख़्तियार करने में विश्वास करते हैं. </p><h3>कौन करेगा संवैधानिक मूल्यों की रक्षा</h3><p>अब तक विरोध के स्वरों का दमन करने के लिए इमरजेंसी जैसे कठोर कानून को लागू करने का ऐलान नहीं किया गया है. </p><p>संविधान के लोकतांत्रिक मूल्य शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार देते हैं, यह बात अदालतें अनेक बार कह चुकी हैं, सबसे हाल में मद्रास हाइकोर्ट ने कहा, &quot;जनता को विरोध प्रदर्शित करने से रोकना सही नहीं है क्योंकि यह लोकतंत्र का आधार स्तंभ है. &quot;</p><p>ये वही संविधान है जिसे कोई सरकार नज़रअंदाज नहीं करना चाहेगी. और न ही उसका उल्लंघन करना चाहेगी.</p><figure> <img alt="उत्तर प्रदेश पुलिस" src="https://c.files.bbci.co.uk/1073C/production/_110288376_gettyimages-1189657872.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर क्यों सिर्फ़ चार दिनों के विरोध प्रदर्शनों में 16 लोगों की मौत हो गई. इन मृतकों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया कि ज़्यादातर लोगों की मौत गोली लगने से हुई है. </p><p>ये सवाल भी उठ रहे हैं कि बीजेपी शासित राज्यों में और दिल्ली में ही (जहां पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है) प्रदर्शनकारियों के साथ हिंसा हुई जबकि मुंबई में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए लेकिन कोई हिंसा नहीं हुई.</p><p>21 दिसंबर को पुलिस की ओर से एक प्रेस रिलीज़ जारी की गई जिसमें ये कहा गया कि घायल होने वाले कुल 263 पुलिसकर्मियों में से 57 पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल हुए हैं. </p><p>इस बारे में बीते तीन दिनों में कोई बात क्यों नहीं हुई और ये बात पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सामने आने के बाद ही क्यों की गई? </p><p>प्रेस रिलीज़ में ये भी कहा गया कि पुलिस की ओर से गोलियां नहीं चलाई गई हैं. </p><p>पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे उस वीडियो को अनदेखा कर दिया जिसमें कुछ पुलिसकर्मी आधी रात को पुराने लखनऊ के इलाकों में खड़ी गाड़ियों को तोड़ते हुए नज़र आ रहे हैं. ऐसे वीडियो कई शहरों से आए हैं जिनमें पुलिसकर्मी तोड़फोड़ करते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार उनके बारे में चुप है. </p><h3>कोई कुछ क्यों नहीं बोला?</h3><p>एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक आईपीएस अधिकारी को यह कहते सुना जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है कि हिंसा करने वाले किसी भी व्यक्ति से पूरी सख्ती से निबटा जाए. क्या पुलिस में यह संदेश गया है कि वे प्रदर्शनकारियों के साथ सख्ती से पेश आ सकते हैं. पुलिस को सख्ती की छूट देने पर पुलिस क्या-क्या कर सकती है, ज़्यादातर लोग जानते-समझते हैं. </p><p>लखनऊ में जो कुछ भी हुआ वो प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच संवाद पूरी तरह ख़त्म होने का नतीज़ा था. प्रशासन ने भी विरोध की सभी आवाज़ों को अनदेखा करते हुए उन्हें हर कीमत पर उसे दबाने का मन बना लिया था. </p><figure> <img alt="उत्तर प्रदेश पुलिस" src="https://c.files.bbci.co.uk/1555C/production/_110288378_gettyimages-1189657663.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>मैंने उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में बीते चार दशकों से पत्रकारिता करते हुए इस तरह की तमाम घटनाओं को अपनी आँखों से देखा है और कई मौकों पर प्रशासनिक अधिकारियों को बेहद कुशलता से ऐसी घटनाओं को पैदा होने से पहले ही रोकते हुए देखा है. </p><p>ऐसे में इस बार राजनीतिक स्तर से लेकर प्रशासनिक अमले की ओर से इस तरह की कोशिशें क्यों नहीं की गईं? अगर की गईं तो वे दिखी क्यों नहीं? </p><p>ये बात सही है कि कोई मठाधीश से मुख्यमंत्री बनने वाले योगी आदित्यनाथ से ऐसी लोकतांत्रिक पहल की उम्मीद नहीं कर सकता है लेकिन सरकार में शामिल दूसरे नेताओं ने क्यों किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया? </p><p>लोकतंत्र में आपको विरोध के स्वरों को जगह देने की ज़रूरत होती है. </p><p>शीर्ष पर बैठे लोग किसी भी तरह की बातचीत का रास्ता बंद करके ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हैं जबकि बातचीत से ही कई संकटों को टाला जा सकता है. </p><p>बातचीत का अभाव और संचार की अनुपलब्धता आसानी से हिंसक घटनाओं में बदल सकती है. ऐसी घटनाएं आम समाज के लिए हितों के ख़िलाफ़ होती हैं, चाहें फिर ये कुछ लोगों के सीमित राजनीतिक हितों को पूरा क्यों न करती हों. </p><p>हमने ये सब कुछ कश्मीर में होता देखा है. क्या अब अगला नंबर उत्तर प्रदेश का है?</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें