पाकिस्तान: पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने फांसी की सजा के खिलाफ किया लाहौर हाईकोर्ट का रूख
इस्लामाबाद: साल 2007 में संविधान को निलंबित कर आपातकाल लगाने के मामले में देशद्रोह का आरोप तय होने के बाद विशेष अदालत के हाथों फांसी की सजा पाए पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने इस फैसले के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती याचिका दायर की है. बता दें कि विशेष अदालत के इस […]
इस्लामाबाद: साल 2007 में संविधान को निलंबित कर आपातकाल लगाने के मामले में देशद्रोह का आरोप तय होने के बाद विशेष अदालत के हाथों फांसी की सजा पाए पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने इस फैसले के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती याचिका दायर की है. बता दें कि विशेष अदालत के इस फैसले की पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भी आलोचना की थी और इसे बदले की कार्रवाई बताया था.
आपातकाल लगाने की वजह से चला देशद्रोह का मामला
परवेज मुशर्रफ ने साल 1999 में तात्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर सत्ता हथिया ली थी. हालांकि इस दौरान किसी भी प्रकार का रक्तपात नहीं हुआ था. साल 2001 में परवेज मुशर्रफ विधिवत पाकिस्तान के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. वो इस पद पर साल 2008 तक बन रहे. इसी साल महाभियोग की प्रक्रिया से बचने के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया. अपने कार्यकाल में परवेज मुशर्रफ ने साल 2007 में देश के संविधान को निलंबित कर दिया और आपातकाल लगा दिया.
इसी मामले में उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया. साल 2014 में देशद्रोह के मामले में मुशर्रफ पर आरोप तय किये गए. इसी बीच 2016 में परवेज मुशर्रफ इलाज के लिए विदेश चले गए. इसके बाद कभी सुरक्षा तो कभी स्वास्थ्य का हवाला देकर वापस ही नहीं लौटे. वो फिलहाल दुबई में हैं.
इस्लामाबाद की विशेष अदालत ने सुनाई थी मौत की सजा
लंबे वक्त से चल रहे देशद्रोह के मामले में इसी माह 17 दिसंबर को इस्लामाबाद की एक विशेष अदालत के तीन सदस्यीय पीठ ने दो-एक के मत से पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई थी. बता दें कि मुशर्रफ देश के पहले ऐसे सैन्य तानाशाह हैं जिन्हें अब तक इतिहास में मौत की सजा सुनाई गयी है. बता दें कि विशेष अदालत की जो तीन सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी, उसकी अध्यक्षता पेशावर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ कर रहे थे. पीठ में शामिल अन्य दो जज सिंध उच्च न्यायालय के नजर अकबर और लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहिद करीम शामिल थे.
देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा मौत की सजा पर असहमति जताए जाने और परवेज मुशर्रफ द्वारा रिव्यू पिटीशन दायर करने के बाद लाहौर हाईकोर्ट कुछ नरमी बरतती है या सजा को बरकरार रखती है. इधर पाकिस्तान की सरकार का कहना है कि वो कानूनी नजरिये से इस मसले को देखने के बाद ही कोई टिप्पणी करेगी.