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मुद्दे और मसाले के बीच सफलता की तलाश

विनोद अनुपम वरिष्ठ फिल्म समीक्षक बीते वर्ष हिंदी सिनेमा के दर्शकों की पसंद और इस वर्ष आनेवाली फिल्मों पर नजर डालेंगे तो, आसानी से कहा जा सकता है आज बाॅलीवुड में एक ही चीज चलती है, वह है- सुर्खियां. कभी देवानंद साहब ने कहा था कि वे अपनी फिल्मों के विषय अखबारों की सुर्खियों में […]

विनोद अनुपम
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक
बीते वर्ष हिंदी सिनेमा के दर्शकों की पसंद और इस वर्ष आनेवाली फिल्मों पर नजर डालेंगे तो, आसानी से कहा जा सकता है आज बाॅलीवुड में एक ही चीज चलती है, वह है- सुर्खियां. कभी देवानंद साहब ने कहा था कि वे अपनी फिल्मों के विषय अखबारों की सुर्खियों में ढूंढते हैं.
आज लगता है हर दूसरी फिल्म और हर दूसरा फिल्मकार सुर्खियों में कहानी ढूंढ रहा हो. फर्क बस इतना ही कि कोई ‘पानीपत’ की तरह इतिहास की सुर्खियों में, तो कोई ‘आर्टिकल 15’ की तरह अखबारों की सुर्खियों में. सफलता के सूत्र ‘छपाक’ जैसी संवेदनशील कहानी में ढूंढे जा रहे हैं, तो गुमनाम रहे ऐतिहासिक चरित्र ‘तान्हा जी’ में भी. पहले 100 करोड़ की कमाई हिट होने की सीमा मानी जा रही थी, इस वर्ष 10 से अधिक फिल्मों ने 200 करोड़ से अधिक की कमाई की. यशराज की एक्शन फिल्म ‘वार’ की कमाई तो 500 करोड़ के आसपास बतायी गयी. साल 2019 हिंदी दर्शकों में आये इस बदलाव के लिए भी याद रखा जायेगा कि आमतौर पर सितारों से ही नहीं, सेक्स से भी यह तौबा करती दिखी.
यह कमाल ही माना जायेगा कि ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘लस्ट स्टोरिज’ और ‘गंदी बात’ की सीरीज वर्षभर चर्चा में रहे, लेकिन दर्शकों ने बड़े परदे पर ‘गली ब्वॉय’ और ‘सुपर30’ जैसी फिल्मों के प्रति अपनी प्राथमिकता जाहिर की, साथ ही पूरे वर्ष में शायद ही ऐसी कोई फिल्म दिखी, जिसमें सेक्स का अतिरेक हो. सुखद यह कि दर्शकों की अच्छी फिल्मों के प्रति प्रतिबद्धता कमोबेस पूरे वर्ष दिखती रही.
हिंदी सिनेमा में सफलता की एक मान्यता यह भी है कि छुट्टियों के सीजन में रिलीज होने से फिल्म की सफलता की उम्मीद बढ़ जाती है.
आश्चर्य नहीं कि ईद, दशहरा, दिवाली से लेकर पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी और क्रिसमस तक की तारीखें बड़े सितारों की बड़ी फिल्मों के लिए साल भर पहले से तय कर ली जाती हैं. इस वर्ष भी हिंदी दर्शक सफलता की इस मान्यता को साकार करते दिखे. क्रिसमस और नये साल की छुट्टियों का लाभ लेने के उद्देश्य से रिलीज हुई सलमान खान की ‘दबंग 3’ सीरीज की सबसे कमजोर फिल्म मानी जाने के बावजूद अपने दर्शकों को सिनेमाघर तक खींच लाने में सफल रही.
साल के अंतिम शुक्रवार को रिलीज अक्षय कुमार की ‘गुड न्यूज’ भी नयेपन और जीवंत काॅमेडी के बल पर दर्शकों के बीच लंबे समय तक टिकी रहेगी, उम्मीद की जा सकती है.
आश्चर्य नहीं कि रणबीर सिंह और आलिया भट्ट के बावजूद ‘गली ब्वॉय’ जैसी फिल्म अपने कथानक के लिए याद की जाती है. वास्तव में हिंदी सिनेमा ने सौंदर्य की अपनी एक परिभाषा गढ़ रखी है, जिससे किसी भी हाल में रहें, किसी भी भूमिका में रहें, समझौता नहीं किया जा सकता. जब सिनेमा का सरोकार सिर्फ दर्शकों की आंखों तक से रखने की कोशिश की जाती है, तो ऐसे सौंदर्य के प्रति समर्पण सिनेमा की मजबूरी भी बन जाती है.
यह वह सिनेमा है जिसका न तो दिल से सरोकार है, न ही दिमाग से. इसे ‘देवदास’ भी सुंदर चाहिए और ‘दाउद’ भी. हाल के वर्षों में मल्टीप्लेक्स के रूप में सिनेमा को नया बाजार मिलने के साथ जब नये फिल्मकारों की आमद बढ़ी, तो नयी कहानियां भी आयीं, नयी परिकल्पना भी. इनके लिए सिनेमा का मतलब सितारे नहीं थे, कहानी थी. साल 2019 में हिंदी सिनेमा के बी सेंटर के रूप में देखे जानेवाले शहरों में सिनेमाघरों की स्थिति और भी बुरी होती देखी. बिहार,झारखंड और उत्तर प्रदेश ही नहीं, लगभग तमाम हिंदी प्रदेश के छोटे शहरों में सिनेमा घर नहीं रहे. बड़े शहरों में उनका स्थान मल्टीप्लेक्सों ने ले लिया, जबकि छोटे शहरों में मोबाइल ने.
इसी के साथ वेब सीरीज एक बड़ी चुनौती के रूप में सिनेमा के सामने आता दिख रहा है, जिसकी घबराहट विषयों के चयन और प्रस्तुति में भी देखी जा रही है. शायद यही कारण है कि 2019 में ऐतिहासिक व्यक्तित्व और घटनाओं के प्रति फिल्मकारों का मणिकर्णिका, पानीपत, केसरी, तान्हा जी के रूप में लगाव बढ़ता दिखा. इतिहास की जो भव्यता बड़े परदे पर दिखती है, वह मोबाइल के छोटे परदे पर नहीं दिख सकती.
बीता वर्ष सलमान खान, अक्षय कुमार, ऋतिक रोशन और शाहिद कपूर का माना जा सकता है. ‘दबंग 3’ के साथ साल का अंत सलमान का रहा, तो गर्मी की छुट्टियों में आयी सलमान की ‘भारत’ ने भी उनके प्रति उसके प्रशंसकों की प्रतिबद्धता साबित की. ऋतिक रोशन ने एक ओर ‘वार’ जैसी एक्शन थ्रिलर और दूसरी ओर अंतराष्ट्रीय ख्याति के कोचिंग संचालक आनंद कुमार के बायोपिक ‘सुपर30’ में सरल-सहज आनंद कुमार को साकार कर साबित किया कि उनकी अभिनय क्षमता की परीक्षा अभी शेष है.
अक्षय कुमार इस साल अपनी सभी फिल्म में नये अवतार में दिखे, चाहे वह केशरी हो, मिशन मंगल हो या फिर गुड न्यूज. नूतन की पोती और मोहनीश बहल की बेटी प्रनूतन बहल को सलमान ने ‘नोटबुक’ में लाॅन्च किया, लेकिन उसका पता भी नहीं चला. वहीं चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे ‘स्टूडेंट आॅफ द ईयर-2’ और ‘पति पत्नी और वो’ के साथ दर्शकों के बीच पहचान बनाने में सफल रहीं.
साल 2020 की ‘छपाक’ जैसी फिल्म से शुरुआत एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए, जब एसिड अटैक पीड़िता की भूमिका निभाने के लिए दीपिका पादुकोण जैसी ग्लेमरस और सफल अभिनेत्री तैयार होती है.
इस वर्ष पात्र के अनुसार लुक के प्रति हिंदी सिनेमा की अतिरिक्त सजगता जयललिता की बायोपिक ‘थलवई’, कपिलदेव पर बन रही ‘83’ और ‘गुलाबो सिताबो’ जैसी फिल्म में भी देखी जा सकती है. मल्टीप्लेक्स के विस्तार के साथ हिंदी सिनेमा के लिए विविधता अनिवार्य शर्त बन गयी है, जो आमतौर पर बायोपिक में ढूंढने की कोशिश की जाती है. इस वर्ष पृथ्वीराज चौहान, सरदार उधम सिंह, गुंजन सक्सेना, तान्हा जी, छपाक, शकुंतला देवी, थलवई के रूप में दर्शकों को कई क्षेत्र के चर्चित लोगों को जानने-पहचानने के मौके मिलते रहेंगे.
इस वर्ष सड़क2, भूलभुलैया2, हंगामा2, सत्यमेव जयते2, बागी3 जैसी फिल्मों के सिक्वल और कुली नं1 जैसी फिल्म के रीमेक से दर्शकों को जोड़ने की कोशिश जारी रहेगी. इसी कड़ी में रोहित शेट्टी की ‘सूर्यवंशी’ को भी देखना दिलचस्प होगा, जिसे ‘सिंघम’ और ‘सिंबा’ के आगे की कड़ी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
कभी सफलता के पर्याय माने जानेवाले शाहरुख खान और आमिर खान शायद इस वर्ष भी अपने प्रशंसकों के लिए परदे पर उपलब्ध नहीं हो सकेंगे. हां, लंबे अंतराल के बाद रणबीर कपूर जरूर ‘समशेरा’ में नये लुक के साथ दिखेंगे. कहा जा सकता है 2019 की तरह ही हिंदी सिनेमा इस वर्ष भी मुद्दे और मसाले के बीच सफलता के समीकरण का हल ढूंढता दिखायी देगा.

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