नि:शक्तों को सरकार दे रही स्मार्ट गैजेट

सरकार ने पुरानी योजना को दिया आधुनिक स्वरूप नयी-नयी खोजों के परिणामस्वरूप, आज ऐसे अनेक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र आ गये हैं, जिनसे नि:शक्तों की जिंदगी पहले से आसान हो सकती है. ये यंत्र आसानी से जरूरतमंदों को मिल सकें, इसके लिए केंद्र सरकार ने नि:शक्तों की पुरानी सहायता योजना में कुछ बदलाव किये हैं. बीते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2014 5:19 AM

सरकार ने पुरानी योजना को दिया आधुनिक स्वरूप

नयी-नयी खोजों के परिणामस्वरूप, आज ऐसे अनेक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र आ गये हैं, जिनसे नि:शक्तों की जिंदगी पहले से आसान हो सकती है. ये यंत्र आसानी से जरूरतमंदों को मिल सकें, इसके लिए केंद्र सरकार ने नि:शक्तों की पुरानी सहायता योजना में कुछ बदलाव किये हैं.

बीते मंगलवार को मुंबई के पांच कॉलेजों के 50 दृष्टिहीन छात्रों के बीच सरकार की ओर से कुछ ऐसे उपकरण बांटे गये, जो उनकी जिंदगी को पहले से आसान बनाने में मदद करेंगे. इनमें से एक का नाम है स्मार्ट केन. यह दृष्टिहीन लोगों को चलने में मदद करनेवाली छड़ी की तरह ही है, पर इसमें सेंसर लगे हैं.

आइआइटी दिल्ली द्वारा तैयार किया गया यह स्मार्ट केन, रास्ते में किसी बाधा के आने पर वाइब्रेट करने लगता है. ऐसा ही एक अन्य स्मार्ट गैजेट है, प्लेक्स-टॉक. बेंगलुरु स्थित एक जापानी-भारतीय कंपनी द्वारा निर्मित यह उपकरण एक डिजिटल रीडर है, जो डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध अंगरेजी और हिंदी के पाठ को पढ़ने में दृष्टिहीन लोगों की मदद करता है.

स्मार्ट केन की कीमत तीन हजार रुपये है और प्लेक्स-टॉक की 12 हजार रुपये. केंद्र सरकार की संशोधित योजना के तहत इन्हें जरूरतमंद छात्रों को मुफ्त में दिया गया.

बदली 81 की योजना

सामाजिक न्याय और सशक्तता मंत्रालय के नि:शक्तता मामलों के विभाग ने सन 1981 में ‘नि:शक्त जनों की सहायता योजना’ शुरू की थी. इस योजना के तहत समाज के कमजोर तबके से आनेवाले नि:शक्त जन सरकार की ओर से उपकरण पा सकते हैं और कुछ मूलभूत शल्य चिकित्सा सुविधाओं का लाभ मुफ्त में या रियायती दरों पर उठा सकते हैं.

अब तक इस योजना के तहत ज्यादातर हाथ से चलनेवाली व्हीलचेयर, कृत्रिम अंग, छड़ियां, प्लास्टिक की ब्रेल स्लेट और साधारण कान की मशीन ही बांटी जाती रही है. नि:शक्त जनों के लिए काम करनेवाले संगठन इस योजना में बदलाव चाह रहे थे. उनकी मांग थी कि इसमें आधुनिक उपकरणों को भी शामिल किया जाये. संबंधित मंत्रालय ने इस साल यह मांग मानते हुए पुरानी योजना में एक बड़ा बदलाव किया.

नि:शक्तों को दी जानेवाली सहायताओं की सूची में मेकैनिकल उपकरणों के साथ आधुनिक तकनीक पर आधारित उपकरणों को भी जोड़ा गया है. इनमें इलेक्ट्रॉनिक व्हीलचेयर तथा ट्रायसाइकिल से लेकर आधुनिक श्रवण यंत्र, स्मार्टफोन और लैपटॉप तक शामिल हैं. पहली बार, इस योजना में कुष्ठ रोगियों की सहायता के लिए भी कुछ चीजें शामिल की गयी हैं.

आधुनिक तकनीक है मददगार

एक अप्रैल 2014 से चालू इस नवीनीकृत योजना के बारे में नि:शक्तता मामलों के विभाग के संयुक्त सचिव अवनीश अवस्थी कहते हैं कि नि:शक्तों और उनके लिए काम करनेवाली संस्थाओं की ओर से आधुनिक और उच्च तकनीक के यंत्रों की मांग दिनोंदिन बढ़ी है और इसे पूरा करने की हमारी हरसंभव कोशिश रहती है. विदेशों से कई मामले हमारे सामने आ चुके हैं, जिनसे हमने जाना है कि आधुनिक तकनीक वाले उपकरण किसी की नि:शक्तता के असर को काफी हद तक कम कर सकते हैं.

पिछले दिनों, केंद्र सरकार का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी नि:शक्त जनों के सहायतार्थ चलायी जानेवाली योजना को आज की तारीख से जोड़ने की जरूरत पर बल दिया था.

देश में 2.68 करोड़ नि:शक्त

2011 की जनगणना के अनुसार, हमारे देश में दो करोड़ 68 लाख नि:शक्त हैं. इनमें से अधिकतर कम आमदनीवाले परिवारों से हैं. इस योजना के तहत ऐसे नि:शक्त लोग, जिनके परिवार की मासिक आय 15 हजार रुपये से कम है, वे 12 हजार रुपये तक के उपकरण बिल्कुल मुफ्त पा सकते हैं. वहीं, जिनकी पारिवारिक आय 15 हजार से 20 हजार रुपये के बीच है, वे 50 प्रतिशत सब्सिडी पाने के हकदार हैं.

अवनीश कहते हैं कि हमारे देश में कई लोगों को इस योजना और इसके जरिये मिलनेवाले लाभ के बारे जानकारी नहीं है. लोगों को जागरूक होने की जरूरत है कि इस योजना का लाभ उठा कर किसी नि:शक्त की जिंदगी कैसे आसान की जा सकती है.

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