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सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए बजट में इन सुधारों पर जोर दे सकती हैं वित्त मंत्री…

बिजनेस डेस्क एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश का दूसरा बजट पेश करेंगी. फिलहाल, स्थिति चुनौतीपूर्ण है. देश की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी है और जीडीपी ग्रोथ एक दशक के निचले स्तर पर पहुंच गया है. बजट से आम अवाम के साथ-साथ अमीर-उमरांव, कारोबारी और उद्योगपतियों को उम्मीदें बंधी हैं. देश की आम जनता […]

बिजनेस डेस्क

एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश का दूसरा बजट पेश करेंगी. फिलहाल, स्थिति चुनौतीपूर्ण है. देश की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी है और जीडीपी ग्रोथ एक दशक के निचले स्तर पर पहुंच गया है. बजट से आम अवाम के साथ-साथ अमीर-उमरांव, कारोबारी और उद्योगपतियों को उम्मीदें बंधी हैं. देश की आम जनता में इस बात की उम्मीद है कि वित्त मंत्री आर्थिक सुधार के जरिये अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और आमजन को महंगाई, बेरोजगारी आदि से राहत देने का काम कर सकती हैं. आइए, हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आगामी एक फरवरी को वित्त मंत्री किन-किन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करके अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास कर सकती हैं…

डीएफआई बनाने पर विचार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल जुलाई में वित्त वर्ष 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जीडीपी के 3.3 फीसदी पर रखा था. इस बार के बजट में वित्त मंत्री वित्तीय घाटे और आठ बुनियादी उद्योगों की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बजट में विकास वित्त संस्थान यानी एफआई के गठन का ऐलान किया जा सकता है. इसके लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में राहत देने, सरकारी संपत्तियों की बिक्री को बढ़ावा देने और विनिवेश आदि के जरिये 2 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी की वसूली की जा सकती है. कर्ज के साथ रकम जुटाने का यह आंकड़ा 18-20 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाया जा सकता है.

जीएसटी को बनाया जा सकता है सरल

वित्त वर्ष 2019-20 में जीएसटी वसूली में कमी को देखते हुए सरकार ने पिछले साल के दिसंबर महीने में ही शेष महीनों के लिए मासिक जीएसटी वसूली का लक्ष्य बढ़ाकर 1.10 लाख करोड़ रुपये कर दिया. इसके साथ ही, इनमें से किसी एक महीने के लिए वसूली का लक्ष्य 1.25 लाख करोड़ रुपये रखा गया. चालू कारोबारी साल के दिसंबर तक पिछले आठ महीनों में सिर्फ एक महीना अप्रैल में वसूली 1.10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रही. बाकी के महीनों में वसूली एक लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ऊपर या नीचे रही. विशेषज्ञों की राय के मुताबिक, जीएसटी में जटिलता की वजह से वसूली में गिरावट को देखते हुए सरकार इसे और सरल बनाने का ऐलान कर सकती है.

नकदी के लिए रिजर्व बैंक पर बढ़ सकती है निर्भरता

इस समय बाजार में नकदी का संकट व्याप्त है. बैंकों में तरलता की कमी है. सरकार के खजाने में भी नकदी संकट बरकरार है. ऐसे में, इस समय बाजार में नकदी की उपलब्धता बढ़ाना जरूरी है. इसकी जिम्मेदारी देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई के कंधों पर है. वित्त मंत्रालय की भूमिका यह सुनिश्चित करने की है कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आये. देश में काम करने वाली कंपनियां आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए बैंकों से फंड मांगती हैं और बैंक नकदी का रोना रोते हैं. ऐसे में, सरकार बाजार में नकदी और बैंकों में तरलता बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक पर नकदी उपलब्ध कराने का दबाव बना सकती है. बैंकों में पैसा डालने के लिए रिजर्व बैंक से पैसों की मांग का इस बजट में प्रावधान किया जा सकता है.

निजी और संस्थागत निवेश पर दिया जा सकता है जोर

सुस्त अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इस बार के बजट में निजी और संस्थागत निवेश के साथ-साथ विदेशी निवेश पर भी जोर दिया जा सकता है. रणनीतिक निवेश के तहत सरकार घाटे में चल रही सार्वजनिक कंपनियों को हिस्सेदारी बेचने का ऐलान कर सकती है. इसके साथ ही, निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कर नियमों में ढील भी दी जा सकती है. विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के संदर्भ में आकर्षक घोषणाएं की जा सकती हैं.

वित्त मंत्री के सामने पांच अहम चुनौतियां

1. देश में आर्थिक दर 11 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है. ऐसे में, आगामी बजट में क्या शामिल होगा, ये बहुत महत्वपूर्ण है. सरकार का खाजाना तेजी से खाली होने की वजह से रिजर्व बैंक से 45 हजार करोड़ मदद की तलाश की जा रही है. वहीं, देश में आर्थिक गतिविधि ठप है और बेराजगारी दर चरम पर है. ऐसे में, देखना यह होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इन मुद्दों को कैसे संभालती है.

2. आर्थिक सुधार के लिए लाये गये जीएसटी से सरकार को उम्मीद के मुताबिक आमदनी नहीं हो रही है. इससे होने वाले लाभ के अनुमान से अर्थव्यवस्था काफी पीछे खिसक गयी है. किसान मानधन योजना जैसी कई नयी लोकलुभावनी योजनाओं की शुरुआत करने से सरकार के कंधों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. इन वजहों से राजकोषीय घाटा बढ़ा है. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अंदर रख पाने में कठिनाई हो रही है. ऐसे में देखना यह होगा कि सरकार इस चुनौती से कैसे पार पाती है.

3. वर्ष 2019 में बजट की घोषणा के बाद वित्त मंत्री ने उद्योग जगत की मांग को मानते हुए कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया था. इससे सरकारी खजाने पर हर साल करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का बोझ बढ़ गया है. वर्ष 2020 बजट में कॉरपोरेट टैक्स को बरकरार रख पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. चालू वित्त वर्ष में सरकार ने 19.6 लाख करोड़ खर्च का लक्ष्य रखा है, लेकिन राष्ट्रीय खजाना खाली होने की वजह से फंड नहीं मिल पा रहा. ऐसे में, सरकार एक बार फिर रिजर्व बैंक से मदद की उम्मीद कर रही है.

4. माना जा रहा है कि इस बजट में सरकार का पूरा ध्यान देश की आर्थिक स्थिति सुधारने पर केंद्रित होगा. इस समय मांग में सुस्ती बनी हुई है, जो आर्थिक तौर पर सबसे बड़ा कारण है. इस बजट के दौरान सरकार की पूरी कोशिश मांग में तेजी लाने की हो सकती है. इसके लिए माना यह भी जा रहा है कि सरकार टैक्स स्लैब में कटौती और बदलाव कर सकती है.

5. सुपर रिच टैक्स को लेकर लिये गये फैसले को भी बाद में वापस ले लिया गया, क्योंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भागने लगे थे और वे बाजार से लगातार निकासी करने लगे थे. इससे भी सरकार की आमदनी घटी है. इस बार के बजट में इसमें भी सुधार की जा सकती है. स्टार्टअप्स को राहत देते हुए एंजल टैक्स को वापस लिया गया था. हालांकि, इसका फायदा उठाने के लिए स्टार्टअप्स को डीपीआईआईटी में रजिस्टर होना जरूरी है. सरकार के लिए यह भी एक बड़ी चुनौती है कि इस बार के बजट में इसकी भरपाई के लिए वह क्या उपाय करेगी.

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