माता-पिता और भाई-बहन को दें समय

।। दक्षा वैदकर ।। सोशल मीडिया, व्हॉट्सअप, स्मार्ट फोन इन सब चीजों ने जितना हमें बाहर के लोगों के करीब लाया है, वहीं अपनों ने दूर भी कर दिया है. मेरी एक बहुत पुरानी दोस्त है. उसने कुछ हफ्ते पहले ही व्हॉट्सअप पर हम सभी पुराने फ्रेंड्स का ग्रुप बनाया. हम सब उस ग्रुप चैट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 9, 2014 5:09 AM

।। दक्षा वैदकर ।।

सोशल मीडिया, व्हॉट्सअप, स्मार्ट फोन इन सब चीजों ने जितना हमें बाहर के लोगों के करीब लाया है, वहीं अपनों ने दूर भी कर दिया है. मेरी एक बहुत पुरानी दोस्त है. उसने कुछ हफ्ते पहले ही व्हॉट्सअप पर हम सभी पुराने फ्रेंड्स का ग्रुप बनाया. हम सब उस ग्रुप चैट में बहुत बातें करते. एक-दूसरे की खिंचाई करते.

जब मैं ऑफिस में होती, मैं बता देती कि यहां से फ्री हो कर ही मैं चैट में शामिल हो पाऊंगी. इसी तरह अन्य दोस्त भी जब व्यस्त होते, तो चैट से कुछ घंटे गायब रहते, सिवाय इस ग्रुप एडमिन के. वह हर वक्त ऑनलाइन दिखती. कल जब उसके भाई को किसी स्टोरी के सिलसिले में मैंने फोन लगाया, तो उसने बताया कि दीदी केवल आप लोगों से ही ठीक से बात करती है.

चैट करती है. घर वालों के लिए उनके पास समय ही नहीं है. ऑफिस से आते ही अपने कमरे में चली जाती है और दिनभर फोन पर लगी रहती है. कभी हॉल में आ कर हम सभी के साथ नहीं बैठती. न तो उनके पास मम्मी-पापा की किसी बात का जवाब देने का वक्त है, न मुझसे बात करने का.

अगर हमलोग खुद उनके कमरे में जा कर भी बात करने लगें, तो वे फोन में चैट करते हुए ही, ‘हां.. हूं..’ वाले जवाब देती हैं. दोस्त के भाई की यह बात सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ. इस बारे में ऑफिस के सीनियर्स से बात हुई, तो उन्होंने भी बताया कि उनके बच्चे आजकल उनसे बात बहुत कम करते हैं. दिनभर दोस्तों के साथ व्हॉट्सअप, फेसबुक पर लगे रहते हैं. यह एक बहुत गंभीर समस्या है. हम नये दोस्त बनाने के चक्कर में अपनों का ही अपमान कर रहे हैं.

उन्हें अनदेखा कर रहे हैं, जबकि हम पर सबसे पहला हक उनका है. आज हम भले ही इतने काबिल हो गये हैं कि खुद कमा रहे हैं और महंगे फोन खरीद रहे हैं, लेकिन बचपन में हमारे माता-पिता ने अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर हमारी हर बात को सुना है. हम खुद अपने मम्मी-पापा के आगे-पीछे घूमा करते थे, ताकि उन्हें अपनी दिनचर्या बता सकें. आज जब वे हमसे बात करना चाहते हैं, हमसे समय मांग रहे हैं, तो हम फोन पर लगे हुए हैं.

बात पते की..

– जितना वक्त फेसबुक, व्हॉट्सऐप पर बिताते हैं, उतना वक्त परिवारवालों को दें. आपको पता चलेगा कि वे आपसे कितना प्यार करते हैं.

– जिस तरह आप दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाते हैं, वैसे अपने भाई-बहन के साथ जा कर देखें. वे आपके सबसे अच्छे दोस्त साबित होंगे.

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