‘कॉरपोरेट 360’ के सीइओ वरुण ने हर दुश्वारी को हराया
केरल के कोल्लम जिले के पाडम गांव में जन्मे वरुण चंद्रन कहते हैं- ‘‘उन दिनों मेरी निगाह में बस एक हीरो था, आइएम विजयन. एक ऐसा शख्स, जिसने बचपन में स्टेडियम में सोडा बेचते और और नंगे पांव खेलते हुए शुरुआत की और आगे चल कर देश का सबसे बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी बना.
मेरे कमरे में उनकी तसवीर लगी थी, और मैच के दिन मैं अपने अच्छे प्रदर्शन के लिए उनसे दुआ मांगता था. एक तरह से वह मेरे भगवान थे.’’ एक खिलाड़ी को हीरो माननेवाले 34 वर्षीय वरुण आज खुद बहुतों के लिए हीरो हैं.
एक निर्धन परिवार से निकल कर करोड़ों की तकनीकी कंपनी खड़ी करनेवाले वरुण जिस गांव में पैदा हुए वह गरीबों और भूमिहीनों का गांव था. गांववालों की रोजी-रोटी पास के जंगल पर ही टिकी थी. तब वरुण के सपनों की उड़ान भी उस जंगल के पार नहीं जा पाती थी. हां, कभी-कभी वह अपने चाचा की तरह सेना में भरती होने का ख्वाब देख लिया करता था. वरुण बताते हैं : ‘‘मेरे गांव में लोग अनपढ़, पर मेहनती थे.
मेरे पिता भी उन सब की तरह धान के खेतों में काम करते और जंगल में लकड़ियां काटते. मां घर में ही किराने की छोटी-सी दुकान चलातीं, पर उनके सपने बड़े थे. अपने बच्चों को पास के शहर के अंगरेजी स्कूल में पढ़ाने पर उनका खासा जोर रहता था.’’
वरुण कहते हैं कि अगर हम स्कूल जा पाये, तो मां की वजह से ही. लेकिन, उनके लिए राह आसान नहीं थी. बिजली अक्सर गुल रहती थी. ढिबरी की रोशनी में पढ़ना पड़ता. घर में पैसे की किल्लत थी.
कर्ज चुकाते हुए घर का सारा सामान चला गया था. जमीन पर सोना पड़ता था. वरुण बताते हैं, ‘‘मेरे स्कूल की फीस 25 रुपये महीना थी, जो महीनों बकाया रहती थी. इसके चलते कई बार मुझे कक्षा से बाहर खड़ा कर दिया जाता. शर्मिदगी का यह सिलसिला बोर्डिग स्कूल में भी जारी रहा. मेरे वार्डेन बार-बार मुझे एहसास दिलाते कि मैं गरीब घर से हूं. मैं जीवन में पैसे का मोल समझ चुका था. मेरे काले रंग की वजह से मुझे काला कौवा पुकारा जाता. एक बार इस पर मैं खूब रोया.’’
फुटबॉल में खोजा सहारा
इन सब दुश्वारियों से ध्यान हटाने के लिए वरुण ने फुटबॉल का रुख किया. उसने अपनी जैसी पृष्ठभूमि से आनेवाले मलयाली फुटबॉल खिलाड़ी आइएम विजयन से प्रेरणा ली. वरुण की मेहनत रंग लायी और जल्द ही वह अपनी स्कूल टीम के कप्तान बन गये और स्कूल को अंतर-विद्यालय ट्रॉफी दिलायी.
वरुण कहते हैं, ‘‘यह उन सभी लोगों से मेरा प्यारा-सा बदला था, जो बात-बात पर मुझे शर्मिदा करते थे. इसके बाद मेरे लिए उनका रवैया बदल गया. लेकिन तब तक ये बातें मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती थीं. मैं उसी शिद्दत से फुटबॉल खेलता गया. जल्द ही, मुझे त्रिवेंद्रम के एक कॉलेज में खेल के लिए सरकारी छात्रवृत्ति मिली.’’ कॉलेज के पहले साल में उन्होंने केरल राज्य अंडर-16 फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया.
इसके लिए वह अपनी टीम के साथ उत्तर प्रदेश गये, जो उनकी पहली ट्रेन यात्र थी. बाद में वह केरल विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के कप्तान बने. यहीं से उनका जीवन बदलना शुरू हुआ. वरुण कहते हैं, ‘‘मैंने असल मायने में बाहरी दुनिया को देखा, समझा और जाना. नये दोस्त बनाये, नयी भाषाएं सीखीं.’’
कॉल सेंटर में नौकरी की
एक दिन, फुटबॉल के अभ्यास के दौरान वरुण के कंधे की हड्डी टूट गयी. उसे गांव लौटना पड़ा. कॉलेज की पढ़ाई छूट गयी और साथ ही फुटबॉल भी. घर की माली हालत खराब थी. वरुण बताते हैं, ‘‘मेरी मां ने मुझे अपने कंगन और तीन हजार रुपये देते हुए कुछ काम ढूंढ़ने की सलाह दी. मैं बेंगलुरु चला गया. वहां मेरे गांव के एक ठेकेदार रहते थे. उन्होंने अपने मजदूरों के साथ मेरे रहने का इंतजाम कर दिया. मुझे अंगरेजी नहीं जानने और काले रंग की वजह से बहुत भटकना पड़ा.
आखिरकार, मेरी कोशिश रंग लायी और एक कॉल सेंटर में नौकरी पा ली.’’ इस दौरान उन्होंने जम कर पढ़ाई की. नतीजा यह हुआ कि उन्हें हैदराबाद की एक कंपनी ‘एंटिटी डेटा’ में बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव का काम मिल गया. कंपनी ने उनके काम से खुश होकर उन्हें तीन महीने बाद अमेरिका भेज दिया. कुछ समय बाद वरुण ने सैप और फिर सिंगापुर में ऑरेकल जॉइन किया.
सिलिकॉन वैली ने दी सपनों को उड़ान
सिलिकॉन वैली में काम करते हुए वरुण में अपना काम शुरू करने की ललक जगी. वरुण कहते हैं, ‘‘मैंने कई ऐसे लोगों की जीवनियां पढ़ी थीं, जिन्होंने अपना उद्यम शुरू करने का सपना देखा और उसमें सफल भी हुए. मुझे मालूम था कि सफल होने के लिए, मुझे ऐसा कुछ बनाना होगा, जो समस्याएं सुलझा सके, लोगों की जिंदगी आसान कर सके और जिसे लोग पाना चाहें.’’
इस दौरान वरुण ने ऐसे उत्पाद विकसित करने शुरू किये, जो कंपनियों को बता पायें कि उनके उत्पादों को ग्राहक कब, कितना और कैसे इस्तेमाल करते हैं और बाजार में उनकी मांग क्या रहती है. कुछ सालों तक उन्होंने अपने उत्पादों का कंपनियों के साथ परीक्षण किया और उन्हें दिखाया कि ये कैसे काम करते हैं. नतीजों से संतुष्ट होने के बाद वरुण ने 2012 में सिंगापुर में घर से ही अपना काम शुरू कर दिया.
पहला ऑर्डर 500 डॉलर का मिला
सिंगापुर से ही उन्होंने अपने उद्यम को पंजीकृत कराया. वरुण कहते हैं कि 30 मिनट के अंदर कंपनी की वेबसाइट भी बन गयी. कंपनी का नाम रखा, ‘कॉरपोरेट 360’. इसके पीछे उनका तर्क है कि हम कंपनियों के 360 डिग्री मार्केटिंग प्रोफाइल का जिम्मा लेते हैं. वरुण ने ‘टेक सेल्स क्लाउड’ नामक उत्पाद तैयार किया है.
यह एक ऐसा सेल्स और मार्केटिंग औजार है, जो बड़े डेटा सेट्स का इस तरह विेषण करता है जिससे कंपनियों की सेल्स और मार्केटिंग टीम के लिए अपने ग्राहकों को लक्षित करना आसान हो जाता है. वरुण की कंपनी को ब्रिटेन के एक ग्राहक से पहला ऑर्डर 500 डॉलर का मिला था. इसे पाने के बाद वरुण खुशी से झूम उठे थे. उस साल उनकी कंपनी को ढाई लाख डॉलर की आमदनी हुई. इसके बाद वरुण ने अपनी कंपनी को विस्तार देने की योजना बनायी. इसके लिए उन्होंने केरल और मनीला में सात-सात कांट्रैक्टर रखे. 2012 तक कंपनी के 50 ग्राहक बन चुके थे और आमदनी छह लाख डॉलर तक पहुंच गयी.
वरुण ने अपनी कंपनी का ‘ऑपरेशंस सेंटर’ बेंगलुरु और हैदराबाद की जगह अपने गांव के पास पथनापुरम में स्थापित किया, जहां 17 लोगों को रोजगार मिला है. फिलहाल लगभग 10 लाख डॉलर की कंपनी के मालिक वरुण का लक्ष्य 2017 तक अपनी कंपनी को 50 लाख डॉलर की आमदनी तक पहुंचाना है.
यह कहानी है केरल के एक देहाती लड़के की. उसकी गरीबी, गंवईपन और काले रंग ने उसकी राह में बहुत रोड़े अटकाये. कई बार तो किस्मत भी धोखा देती लगी. उसे अपने परिवार के लिए फुटबॉल का कैरियर छोड़ना पड़ा. लेकिन, आज वह करोड़ों की कंपनी का सीइओ है.