बेहद अहम है युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य
दुनिया के विभिन्न समुदायों में युवाओं की शारीरिक बीमारी यानी अस्वस्थता की हालात को जितनी गंभीरता से लिया जाता है, उतना मानसिक स्वास्थ्य को नहीं लिया जाता है, जबकि एक स्वस्थ समाज के लिए यह बेहद जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (12 अगस्त) की इस साल की थीम ‘यूथ एंड मेंटल हेल्थ’ के बहाने युवाओं […]
दुनिया के विभिन्न समुदायों में युवाओं की शारीरिक बीमारी यानी अस्वस्थता की हालात को जितनी गंभीरता से लिया जाता है, उतना मानसिक स्वास्थ्य को नहीं लिया जाता है, जबकि एक स्वस्थ समाज के लिए यह बेहद जरूरी है.
अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (12 अगस्त) की इस साल की थीम ‘यूथ एंड मेंटल हेल्थ’ के बहाने युवाओं की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, इसके लिए जिम्मेवार कारकों और इसके इलाज के अलावा इस दिवस की पृष्ठभूमि के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..
महेश एक मेहनती युवक है और पढ़ने के साथ ही विभिन्न क्रियाकलापों में भी उसकी रुचि है. अपनी क्लास में वह अक्सर फस्र्ट आया है. कॉलेज के ज्यादातर युवा उसकी तरह ही ज्यादा से ज्यादा विधाएं सीखने की कोशिश करते थे.
इस लिहाज से कई युवा उसे अपना आदर्श भी समझते थे. एकाएक उसके जीवन में कुछ बदलाव देखा गया. उसने अपने घर से बाहर निकलना बहुत कम कर दिया. अपनी अधिकतर गतिविधियों को उसने घर के भीतर तक समेट दिया. घर में भी वह अक्सर लेटा रहता और भीतर से दरवाजा बंद ही रखता था. कमरे में न तो वह टीवी देखता, न ही कंप्यूटर पर कुछ काम करता था. बाहर खेलने जाना या टहलना तो उसने लगभग बंद कर ही रखा था.
दरअसल, उन दिनों किसी भी काम को करने में उसकी रुचि नहीं रही और कई बार तो वह खुदकुशी करने के बारे में भी सोचता था. उसका इस तरह का बदला हुआ व्यवहार देख कर उसके माता-पिता बेहद चिंतित थे.
चूंकि महेश के माता-पिता समझदार थे, इसलिए उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उनका बेटा डिप्रेशन यानी अवसाद का शिकार है. बिना देर किये वे महेश को एक अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले गये और उसका उपचार कराया.
अवसाद को समझना जरूरी
वास्तव में महेश पढ़ना तो चाहता था, लेकिन उसे ऐसा महसूस होता था कि उसकी ऊर्जा खत्म हो गयी है. मनोचिकित्सक के अच्छे इलाज और उसके माता-पिता की अच्छी देखभाल से वह पूरी तरह से ठीक हो गया और आज वह किसी अन्य युवक की भांति अपनी दिनचर्या बिता रहा है.
हाल ही में वह परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हुआ है. महेश के मामले में अच्छी बात यह रही कि उसके माता-पिता समय रहते यह समझ गये कि उनका बेटा अवसाद की स्थिति में है और उस हालात से निकालने में यानी उसके इलाज में उन्होंने देर नहीं की. लेकिन आज भी देश-दुनिया में बहुत से ऐसे युवा हैं, जो कई कारणों से अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं और एक तरह से मानसिक मरीज बन जाते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य पर शर्मिदगी
मानसिक स्वास्थ्य हमारे समाज में आज भी हाशिये पर है और लोगों द्वारा इसे दरकिनार किया गया है. साथ ही, इस समस्या की गंभीरता को समझें बिना लोग इसे कम आंकते हैं और ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि शुरुआती दौर में नजरअंदाज करते हैं.
आमतौर पर लोगों को यदि खुद में इस तरह की समस्या दिखती है, तो उसके बारे में ज्यादा बातें करने से वे कतराते हैं या फिर शर्मिदगी महसूस करते हैं. ‘मेंटल’ यानी मानसिक अवस्था जैसे शब्द को आमतौर पर गलत अर्थो में लिया जाता है. जबकि देखा जाये तो मानसिक स्वास्थ्य जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसमें हमारी भावनाएं, मनोदशा और सामाजिक जुड़ाव जैसी चीजें शामिल हैं.
यह हमारे सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है, जिससे हमारे जिंदगी प्रभावित होती है. तनाव से कैसे निबटा जा सकता है, इसे समझने में भी यह हमारे लिए मददगार होता है.
यूथ एंड मेंटल हेल्थ
देश-दुनिया में युवा आज बेहद तेजी से खुद का विकास करने के लिए भाग रहा है. विकास की दौड़ में जहां उन्हें अनेक उपलब्धियां और सुविधाएं हासिल हो रही हैं, वहीं कई चुनौतियां भी सामने हैं. कम समय में ज्यादा पाने की चाहत में बहुत से युवा अनेक व्याधियों का शिकार हो जाते हैं. इन व्याधियों में मौजूदा दौर में मानसिक व्याधियां भी देखी जा रही हैं.
आज बड़ी संख्या में युवा अवसाद के शिकार हो रहे हैं. इन्हीं कारणों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस’ (12 अगस्त) की इस साल की थीम ‘यूथ एंड मेंटल हेल्थ’ को रखा गया है.
हालांकि, ज्यादातर युवा शारीरिक और भावनात्मक रूप से स्वास्थ्य हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि तकरीबन 12.5 फीसदी युवा (यानी आठ में से एक) मानसिक स्वास्थ्य के किसी न किसी प्रारूप से पीड़ित हैं. यूथविज डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि किशोरों और युवाओं में वैश्विक स्तर पर सालाना करीब 20 फीसदी की दर से मानसिक अस्वस्थता के हालात देखे गये हैं.
इनमें भी 85 से 90 फीसदी मामले कम आय वाले देशों में रहनेवालों में देखे गये हैं. इन युवाओं में यह मानसिक बीमारी किसी प्रकार की शारीरिक अक्षमता और/ या अवसाद की गंभीरता को बढ़ाने से जुड़ी हो सकती है. इससे उनमें अस्थायी रूप से शारीरिक अक्षमता बढ़ सकती है.
युवाओं में मानसिक अस्वस्थता के लिए जिम्मेवार कारक
किशोर से वयस्क होने की उम्र के दौरान मानसिक अस्वस्थता युवाओं के विकास और उनके सामाजिक संबंधों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. ऐसे कई कारक हैं, जिनसे 11 से 25 वर्ष की उम्र के बीच नौजवानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
माता-पिता में से किसी का देहांत होना, बाल शोषण का शिकार होना या कठिनाई भरा बचपन बिताये युवाओं को कई बार अवसाद की समस्या से पीड़ित होते पाया गया है. इसके अलावा, कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो बेघर, अनाथ हैं या किशोरवय में अपराध में लिप्त रहे थे, और ऐसे युवाओं में भी मानसिक स्वास्थ्य का जोखिम देखा गया है.
नवहिंद टाइम्स की एक रिपोर्ट में मनोचिकित्सक और काउंसलर पीटर केस्टेलीनो के हवाले से बताया गया है कि मेंटल हेल्थ का तात्पर्य शरीर की एक बेहद महत्वपूर्ण योग्यता से है, जिसे इनसान अपने रोजाना के कार्यो को निबटाने के लिए या मानसिक क्रियाकलापों के लिए इस्तेमाल में लाता है.
इसमें सोचना, महसूस करना, इंटेलीजेंस, प्लानिंग, निर्णय लेना, याददाश्त आदि चीजें शामिल होती हैं. बिना दिमाग के हमारे शरीर की अवधारणा नहीं की जा सकती और हमारे व्यक्तित्व का कोई मतलब नहीं हो सकता.
आज के युग में युवाओं को तमाम चीजों से रूबरू होना पड़ता है. कई बार अविश्वसनीय लक्ष्य को पाने की चाहत में उन पर दबाव बढ़ गया है. इससे जिंदगी की सादगी कम हो रही है और युवाओं में मानसिक रोग बढ़ने का यह भी एक बड़ा कारण माना जाता है. केस्टेलीनो का कहना है कि मौजूदा दौर में युवाओं को तमाम तरह की व्यावहारिक समस्याओं से निबटना पड़ता है, जिससे उनमें डिप्रेशन, एंक्जाइटी, एटेंशन डिफिशिट हाइपरएकक्टिविटी डिजॉर्डर (एडीएचडी), लर्निग डिजॉर्डर, कंडक्ट डिजॉर्डर जैसे मानसिक स्वास्थ्य विकार की समस्याएं देखी जा रही हैं.
कैसे किया जा सकता है इस समस्या का इलाज?
इस मामले में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमें इस बात की पहचान करनी होती है कि आखिर समस्या कहां है और किस तरह की है. यदि व्यवहार में किसी तरह का बदलाव आता है तो उसका मूल्यांकन करने की जरूरत है. यदि किसी तरह के बदले हुए हालात दिखाई दें तो शीघ्र ही किसी संबंधित विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक आदि से मदद ली जा सकती है.
ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि मरीज के सोचने की प्रक्रिया में बदलाव को लोग सामान्य परिघटना के तौर पर देखते हैं और यहीं से गड़बड़ी की शुरुआत होती है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि बिना किसी हिचक के ऐसे लोगों को जल्द विशेषज्ञ तक ले जाना चाहिए.
यूथ एंड मेंटल हेल्थ
युवावस्था एक नाटकीय बदलाव वाली अवधि है, और यदि मानसिक स्वास्थ्य जैसे मसले उभार ले रहे हों तो बचपन से युवावस्था की यात्र बेहद जटिल हो सकती है. इस वर्ष इंटरनेशनल यूथ डे का खास मकसद इसी मसले से जुड़ा हुआ है- यूथ एंड मेंटल हेल्थ.
इसलिए यह अवसर है युवा पुरुषों और महिलाओं के समक्ष आने वाली कठिनाइयों के प्रति जागरूकता पैदा करने का, जिसमें छुआछूत और भेदभाव जैसी समस्याएं भी शामिल हैं, और इस वजह से इन्हें अपने उद्देश्यों को पूरा करने में किसी तरह की मदद नहीं मिल पाती है.
यूनेस्को ने ऑपरेशनल स्ट्रेटजी ऑन यूथ (2014-2021) के दिशानिर्देशों के तहत दुनियाभर में विभिन्न समुदायों में हाशिये पर जी रहे युवा पुरुषों और महिलाओं की जरूरतों पर रेखांकित किया है. इसके लिए स्कूली कार्यक्रमों के साथ सीखने की औपचारिक व अनौपचारिक प्रक्रियाओं के माध्यम से उन्हें मदद मुहैया करायी जा रही है.
इन सभी तक सूचना और संचार तकनीक की ताकत को पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. व्यापक तौर पर यूनेस्को की ओर से युवाओं के लिए समग्र एकीकृत नीतियों को प्रोत्साहित करने की प्रतिबद्धता जतायी गयी है.
युवाओं में कौशल और जरूरी क्षमता के विकास के लिए संबंधित मदद मुहैया करायी जा रही है. इसके लिए यह जरूरी है कि युवाओं को इस पॉलिसी के घटक की तौर पर न देखा जाए, बल्कि उन्हें इसके एजेंट के तौर पर देखा जाना चाहिए. युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य पूरे समाज के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है.
‘युवा’ का क्या है अर्थ
युवाओं के लिए रणनीति तय करते समय यूनेस्को ‘युवा’ शब्द का विभिन्न संदर्भो में विभिन्न प्रकार की परिभाषाओं को इस्तेमाल में लाती है. अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर गतिविधियों के लिए यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र की यूनिवर्सल परिभाषा का उपयोग करती है. इस परिभाषा के मुताबिक, 15 से 24 वर्ष की उम्र के बीच वाले व्यक्ति को ‘युवा’ कहा जाता है. इससे सभी क्षेत्रों में सांख्यिकी संबंधी एकरूपता को निर्धारित करने में मदद मिलती है.
राष्ट्रीय स्तर पर गतिविधियों के लिए उदाहरणस्वरूप जब कोई स्थानीय समुदाय युवा कार्यक्रम की शुरुआत करता है, तो उनके लिए ‘युवा’ के निहितार्थ को ज्यादा लचीले संदर्भो में समझा जा सकता है. ऐसे में यूनेस्को किसी खास सदस्य देश द्वारा ‘युवा’ की खास परिभाषा को अपनायेगा.