शाह पर नहीं थी भागवत की टिप्पणीः आरएसएस

चुनावी जीत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों में क्या कोई संबंध है? या ये सिर्फ़ एक इत्तिफ़ाक है. चुनाव में जीत के लिए नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को ‘मैन ऑफ़ द मैच’ कहा था जबकि मोहन भागवत के अनुसार जीत किसी एक व्यक्ति ने नहीं जनता ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2014 11:33 AM

चुनावी जीत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों में क्या कोई संबंध है? या ये सिर्फ़ एक इत्तिफ़ाक है.

चुनाव में जीत के लिए नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को ‘मैन ऑफ़ द मैच’ कहा था जबकि मोहन भागवत के अनुसार जीत किसी एक व्यक्ति ने नहीं जनता ने दिलाई.

इस बारे में बीबीसी ने बात की संघ प्रवक्ता मनमोहन वैद्य से.

मोदी ने चुनाव में जीत का श्रेय अमित शाह को दिया. भागवत का इशारा कहीं उन पर तो नहीं?

बिल्कुल नहीं क्योंकि पार्टी के फ़ोरम में जो कहा गया, वह भी सही है. अमित शाह का जीत में बहुत बड़ा योगदान रहा है.

पार्टी स्तर पर सफलता के लिए किसी एक व्यक्ति को ‘मैन ऑफ द मैच’ कहना ग़लत नहीं है. ये बातें दो अलग-अलग दिनों में कही गई हैं.

यानी इन बातों के बीच आपस में कोई संबंध नहीं है?

फ़ोरम अलग है, घटनाएं अलग हैं. कोई संबंध नहीं है. हां, अगर दोनों एक ही मंच पर बोलते, तो उसका संबंध जोड़ा जा सकता था.

यानी अमित शाह की भूमिका को संघ भी स्वीकार करता है.

बिल्कुल, सभी लोग मानते हैं.

हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदू क्यों नहीं, भागवत के इस बयान से क्या अल्पसंख्यकों को डर नहीं लगेगा.

हिंदू शब्द को एक धर्म के नाते नहीं देखना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू जीवन पद्धति है, मज़हब नहीं है.

इस विचार को विवेकानंद, अरविंद, टैगोर, विनोबा भावे, राधाकृष्णन सभी ने व्यक्त किया है. और मुस्लिम और ईसाई यहीं की संतान हैं. उनके पूर्वज एक ही हैं. मज़हब बदलने से जीवन का दृष्टिकोण तो नहीं बदलता.

दूसरे, दुनिया और भारत में पारसी या यहूदी भी हैं. उनके साथ कभी बदसुलूकी नहीं हुई है. वे आज भी अपने मज़हब का पालन कर रहे हैं. यहां तक कि वे खुद को अल्पसंख्यक नहीं कहलाना चाहते. इसलिए किसी को भय की आवश्यकता नहीं है.

(बीबीसी संवाददाता अनुभा रोहतगी से बातचीत पर आधारित)

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