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एक गांव जहां लड़कों से दोगुनी लड़कियां

हरियाणा में दलितों का गांव रेनवाली दिखा रहा है रास्ता वर्ष 2011 की जनगणना में हरियाणा में छह वर्ष तक के बच्चों के लिंगानुपात का जो आंकड़ा सामने आया वह चिंता में डालने वाला था. 1000 लड़कों पर महज 834 लड़कियां थीं. राज्य में यह स्थिति पिछले कई दशकों से है. लेकिन, कुछ गांवों से […]

हरियाणा में दलितों का गांव रेनवाली दिखा रहा है रास्ता

वर्ष 2011 की जनगणना में हरियाणा में छह वर्ष तक के बच्चों के लिंगानुपात का जो आंकड़ा सामने आया वह चिंता में डालने वाला था. 1000 लड़कों पर महज 834 लड़कियां थीं. राज्य में यह स्थिति पिछले कई दशकों से है. लेकिन, कुछ गांवों से ऐसी खबरें आयी हैं जो हालात बदलने की उम्मीद पैदा करती हैं.

लिंग अनुपात के मामले में देश में सबसे बुरी स्थिति हरियाणा की है. यहां लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं. कितने तो कुंवारे रह जाते हैं. कुछ पैसे के बूते बिहार, बंगाल, झारखंड, ओड़िशा जैसे राज्यों से गरीब परिवारों की लड़कियां खरीद कर ले जाते हैं.

मानव तस्करी का नेटवर्क इसमें उनकी मदद करता है. सामंती सोच व मिजाज ने हरियाणा को इस मुकाम पर पहुंचाया. हालांकि, अब लोगों में बदलाव आना शुरू हुआ, पर लिंगानुपात दो-चार महीने या दो-चार साल में सुधरने वाली चीज नहीं. यह नुकसान लंबे समय में हुआ, तो इसकी भरपाई में भी लंबा वक्त लगेगा. वैसे, उम्मीद की किरणों दिखायी देने लगी हैं.

अगर हरियाणा के नेता और समाज के अगुवा लोग अपने राज्य के फतेहाबाद जिले के रेनवाली गांव से सबक लें, तो शायद उन्हें चुनाव जीतने के लिए ऐसे बयान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि वे कुंवारे लड़कों के लिए बिहार से लड़कियां लेकर आयेंगे. पंजाब राज्य की सीमा से लगे रेनवाली गांव में बेटियों की संख्या बेटों की तुलना में दुगने से भी अधिक है. जी हां, इस गांव में 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 2,750 है.वैसे यह सिर्फ अनुपात है. गांव की कुल आबादी बस 1800 के करीब है.

लिंगानुपात से जुड़ा एक अहम तथ्य यह है कि, पिछड़ी, दलित और आदिवासी आबादी में यह बेहतर है. और, जो तबका खुद को जागरूक कहते नहीं थकता, उसमें लिंगानुपात चिंताजनक है. यह बात रेनवाली में भी सच दिखती है. इस गांव में ज्यादातर दलित और पिछड़े वर्ग के लोग हैं. दिलचस्प बात यह है कि रेनीवाल के सरपंच गुरकीरत सिंह लिंगानुपात के मामले में अपने गांव की इस उपलब्धि से अनजान थे.

जब उन्हें इस बारे में बताया गया, तो उन्होंने इसका श्रेय सरकारी अधिकारियों को दिया. वह कहते हैं, ‘‘यहां कोई डॉक्टर जोखिम मोल नहीं लेना चाहता.. वे अल्ट्रासाउंड जांच को लेकर भी पूरी सावधानी बरतते हैं. गांव सरपंच के दस्तखतवाले आवेदन पर ही डॉक्टर यहां किसी का अल्ट्रासाउंड करते हैं.’’ सिंह कहते हैं, ‘हम अपनी बेटियों को बेटों की तरह ही प्यार करते हैं.’ वह 1982 से ग्राम सरपंच का चुनाव लड़ रहे हैं और सिर्फ एक बार हारे हैं.

फतेहाबाद के सिविल सजर्न डॉ एसबी कंबोज कहते हैं कि सरकार गांव की तीन मेधावी छात्राओं को क्रमश: 50,000 रुपये, 30,000 रुपये और 20,000 रुपये देकर सम्मानित करेगी. ऐसी योजनाएं लिंग अनुपात में सुधार के प्रति लोगों को जागरूक करेंगी. कंबोज कहते हैं कि लिंग अनुपात सुधारने के मकसद से सरकार वर्षो से यह राशि किन्हीं दो गांवों को देती रही है.

पहले यह राशि ग्राम पंचायत को विकास कार्यो के नाम पर दी जाती था. यह पहला मौका है, जब सीधे लड़कियों को पुरस्कार दिया जा रहा है. नकद पुरस्कार की योजना सिर्फ उसी गांव के लिए है, जहां एक साल में कम से कम 25 प्रसव हुए होंगे.

उनके मुताबिक, इससे निश्चित तौर पर लोगों में जागरूकता बढ़ेगी. कंबोज ने कहा कि पढ़े-लिखे लोग ही लिंग अनुपात बिगाड़ते हैं. जो अमीर हैं, जिनके पास तमाम जमीन-जायदाद है, वे ही कन्या भ्रूणहत्या कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर लिंग जांच रोकने के लिए हमने और सख्त कदम उठाये हैं.

पुरस्कार के लिए जिस दूसरे गांव को चुना गया है, वह भी फतेहाबाद जिले का ही खान मोहम्मद गांव है. इस गांव में भी पिछड़े वर्ग की आबादी की बहुलता है. यहां 1,000 बेटों की तुलना में 2,000 बेटियां हैं. इसके अलावा कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, अंबाला, रोहतक, पलवल, कैथल और फरीदाबाद जिलों में भी ऐसे गांव हैं, जहां लिंग अनुपात काफी बेहतर है.

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