फोटोग्राफी का सफरनामा, विश्व फोटोग्राफी दिवस आज

फोटोग्राफी की आधिकारिक शुरुआत आज से 175 साल पहले, वर्ष 1839 में हुई थी. फ्रांस सरकार ने 19 अगस्त, 1839 को इस आविष्कार को मान्यता दी थी. इसलिए 19 अगस्त को अब विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर फोटोग्राफी के इतिहास और विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 19, 2014 9:13 AM

फोटोग्राफी की आधिकारिक शुरुआत आज से 175 साल पहले, वर्ष 1839 में हुई थी. फ्रांस सरकार ने 19 अगस्त, 1839 को इस आविष्कार को मान्यता दी थी. इसलिए 19 अगस्त को अब विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाता है.

इस मौके पर फोटोग्राफी के इतिहास और विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.

विश्व फोटोग्राफी दिवस आज

विश्व फोटोग्राफी दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष आज के दिन यानी 19 अगस्त को किया जाता है. दरअसल, 9 जनवरी, 1839 को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस ने डेगुएरोटाइप प्रोसेस को मान्यता प्रदान करने की घोषणा की थी. वर्ल्ड फोटोटुडे डॉट ओआरजी की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 अगस्त, 1839 को डेगुएरा द्वारा इजाद की गयी फोटोग्राफी तकनीक (डेगुएरोटाइप प्रोसेस) को फ्रांस सरकार ने मान्यता दी थी और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था.

हालांकि, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि डेगुएराटाइप पहली स्थायी फोटोग्राफ इमेज नहीं थी. 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कै द किया था. 19 अगस्त को विश्व फोटो दिवस चुने जाने का मकसद व्यावहारिक फोटोग्राफिक प्रक्रिया डेगुएराटाइप का इसी दिन अस्तित्व में आना और फ्रांस सरकार द्वारा इसी दिन इसका पेटेंट खरीदना बताया गया है.

बचपन में शायद आपके मन में यह सवाल उठा होगा कि महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि सरीखे देशभक्तों व महापुरुषों की तसवीरें हमारे यहां मौजूद हैं, लेकिन उनसे कुछ सदी पूर्व पैदा हुए प्रमुख देशभक्तों या महापुरुषों की तसवीरें क्यों नहीं हैं. धीरे-धीरे आपको यह बात समझ में आ गयी होगी कि पूर्व में हमारे पास फोटो खींचने वाला कैमरा नहीं होने के चलते प्राचीनकाल के महापुरुषों की तसवीरें नहीं हैं.

फोटोग्राफी का आविष्कार

फोटोग्राफी का आविष्कार और विकास किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया, बल्कि यह चरणबद्ध तरीके से विकसित होता गया और इस प्रक्रिया में कई लोगों की हिस्सेदारी बेहद अहम मानी जाती है.

यानी कहा जा सकता है कि यह किसी का व्यक्तिगत आविष्कार न होकर एक अत्यंत लंबी प्रक्रिया का परिणाम रहा है. फोटोग्राफी और कैमरे के विकास के क्रम में कैमरा, लेंस, स्थिर चित्र, स्थिर चित्र का निगेटिव हासिल करना, निगेटिव से स्थायी चित्र प्राप्त करने का बहुत लंबा इतिहास है.

फोटोग्राफी एक ग्रीक शब्द है, जिसकी उत्पत्ति फोटोज (लाइट) और ग्राफीन यानी उसे खींचने से हुई है. 1839 में वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया था. यह मैथड किसी संवेदनशील सामग्री पर प्रकाश की कार्रवाई या संबंधित रेडिएशन की प्रक्रिया द्वारा इमेज की रिकॉर्डिग करने से जुड़ा है.

लालटेन का खास योगदान

शुरुआती दौर में चित्रों में गतिशीलता लाने के लिए विभिन्न तरीके प्रयोग में लाये जाते रहे. मसलन, कांच की पट्टी पर चित्र अंकित कर उसे एक विशेष उपकरण के सामने लगा कर पीछे से लालटेन लगा दी जाती थी. इस प्रक्रिया के उपरांत परदे पर एक धुंधला चित्र दिखाई देने लगता था.

लालटेन को उस आधारभूत उपकरण के तौर पर माना जाता है, जिससे वैज्ञानिकों ने फिल्म प्रॉजेक्टर का विकास किया. इसके बाद गतिशील ड्रम तथा डिस्क द्वारा भी चित्रों में गतिशीलता पैदा करने की कोशिश कि गयी, जो सफल रही.

आधुनिक फोटोग्राफी का जन्म

फोटोग्राफी की पहली व्यावहारिक प्रक्रिया को इजाद करने का श्रेय लुइस डेगुएरा को दिया गया है. वर्ष 1829 में उन्होंने जोसेफ नाइसफोर के साथ साझेदारी में इसे विकसित किया था. नाइसफोर की मृत्यु के कुछ वर्षो बाद 1839 में डेगुएरा ने ज्यादा प्रभावी और विकसित फोटोग्राफी का विकास किया.

इनवेंटर्स एबाउट डॉट कॉम पर इनवेंटर्स एक्सपर्ट मेरी बेलिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डेगुएरा ने सिल्वर-प्लेटेड कॉपर की शीट पर स्थायी इमेज हासिल करने की प्रक्रिया विकसित की थी. सिल्वर को पॉलिश करते हुए उन्होंने उस पर आयोडीन की परत चढ़ायी और प्रकाश के प्रति संवेदी सतह की रचना की. इसके बाद उन्होंने कैमरे में प्लेट लगायी और कुछ मिनटों तक उसे छोड़ दिया. इस प्रक्रिया को अंजाम देने के बाद उन्होंने सिल्वर क्लोराइड के विलयन से तसवीरें हासिल की.

वर्ष 1839 में डेगुएरा और नाइसफोर के पुत्रों ने इस पूरी प्रक्रिया का वर्णन करते हुए एक पुस्तक का प्रकाशन किया और डेगुएरोटाइप के नाम से इस प्रक्रिया को बेचने का अधिकार फ्रांस सरकार से हासिल किया. फ्रांस की सरकार ने 7 जनवरी, 1839 को एक सार्वजनिक घोषणा करते हुए लुई डेगुएरा को फोटोग्राफी के आविष्कारक के रूप में मान्यता प्रदान की थी.

नेगेटिव से पोजिटिव प्रक्रिया

एक नेगेटिव से ढेरों पोजिटिव पिंट्र्स हासिल करने की प्रक्रिया को इजाद करने का श्रेय हेनरी फॉक्स टालबोट को दिया जाता है. टालबोट एक अंगरेज बॉटनिस्ट और मैथमैटिशियन थे. टालबोट ने सिल्वर सॉल्ट सोलुशन के माध्यम से इस प्रक्रिया को अंजाद दिया था. काले पृष्ठभूमि वाले नेगेटिव का इजाद उन्होंने ही किया था, जिससे ढेरों पोजिटिव पिंट्र्स लेना मुमकिन हुआ. इस पेपर नेगेटिव प्रक्रिया को केलोटाइप का नाम दिया गया.

एक अंगरेज शिल्पकार फ्रेडरिक स्कॉफ आर्चर ने 1851 में वेट प्लेट नेगेटिव का आविष्कार किया. प्रकाश के प्रति उच्च संवेदी सिल्वर सॉल्ट और कॉलोडियोन के विलयन से उन्होंने इसका इजाद किया था. चूंकि इसमें कागज के स्थान पर ग्लास का इस्तेमाल किया गया था, इसलिए भीगे हुए प्लेट से ज्यादा स्थिर और व्यापक नेगेटिव की रचना की गयी.

1879 में ड्राइ प्लेट का आविष्कार किया गया. इसमें ग्लास नेगेटिव प्लेट के लिए सूखे जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया. सूखे प्लेट को ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल में लाया जा सकता था. इस तकनीक के इजाद से फोटोग्राफी के लिए अंधेरे कमरे में जरूरत नहीं रह गयी और न ही फोटोग्राफी के लिए तकनीकी माहिरों की जरूरत रह गयी. इस तकनीक ने आम आदमी द्वारा आसानी से इस्तेमाल में लाये जा सकने वाले कैमरे के इजाद को मुमकिन बनाया.1889 में जॉर्ज इस्टमैन ने लचीले और मोड़े जा सकने वाली फिल्म का इजाद किया. यह तकनीक सेलुलोज नाइट्रेट पर आधारित थी.

फोटोग्राफी के विकास में अमेरिका के एक पादरी रेवरेंड हन्नीबल विल्लिस्टन गुडविल का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 1898 में इन्होंने ही रोल फिल्म बनायी थी. हाल के वर्षो तक इन्हीं रोल फिल्मों का व्यापक तौर पर इस्तेमाल होता रहा है. वैसे आज भी इसका इस्तेमाल पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.

रंगीन फोटोग्राफी

1940 के दशक के आरंभिक दिनों में कारोबारी तौर पर खपायी जाने वाली रंगीन फिल्में बाजार में बिक्री के लिए मुहैया करायी इन फिल्मों में ड्राइ-कपल्ड कलर्स की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें रासायनिक प्रक्रिया को तीन सूखे लेयर में कनेक्ट किया गया था, ताकि सुंदर रंगीन तसवीर हासिल की जा सके.

आप बटन दबाइये, बाकी हम करेंगे

आज भले ही डिजिटल कैमरे का युग है, लेकिन फिल्म लपेट कर नेगेटिव और उससे पोजिटिव पिंट्र्स तैयार करने वाले कोडक कैमरे को शायद सभी लोग भलीभांति जानते होंगे. वर्ष 1888 में जॉर्ज इस्टमैन ने सूखे, पारदर्शी, लचीले फोटोग्राफिक फिल्म (जिसे लपेट कर कैमरे में लगाया जाता है) और कोडक कैमरे का आविष्कार किया था, जिसमें इस नयी फिल्म का इस्तेमाल किया गया.

जॉर्ज इस्टमैन एक महान फोटोग्राफर और इस्टमैन कोडक कंपनी के संस्थापक थे. उन्होंने ही कोडक कैमरा लॉन्च किया था और विज्ञापन के तौर पर उन्होंने वादा किया था, ‘आप बटन दबाइये, बाकी काम हम करेंगे.’ इस्टमैन ऐसे कैमरे को बाजार में लाना चाहते थे, जिससे गैर-प्रशिक्षित लोग भी आसानी से कैमरे को संचालित कर सकें. कोडक कैमरे से फोटो खींचना और इसे कहीं लेकर जाना आसान था. जॉर्ज इस्टमैन को ऐसे पहले अमेरिकी उद्योगपति के रूप में गिना जाता है, जो पूर्णकालिक शोध वैज्ञानिक थे.

कैमरा फोन से खतरे में फोटोग्राफी कला!

मशहूर फोटोग्राफर अंटोनियो ओल्मास नेएक इंटरव्यू में कहा था कि मौजूदा दौर में फोटोग्राफी का दायरा बहुत बड़ा हो गया है. अब तक इतने फोटोग्राफ कभी नहीं लिये गये, लेकिन फोटोग्राफी की कला लगातार मर रही है. आज के दौर में कैमरा फोन की वजह से प्वाइंट एंड शूट कैमरा खत्म होने के कगार पर हैं.

किसी चीज का फोटो खींचने का मतलब यह है कि हम उसे याद रखना चाहते हैं, बजाय इसके कि उसे हम अपनी आंखों से देखें और महसूस करें. लेकिन जब लोग उसे याद रखने के लिए तकनीक का सहारा लेते हैं तो उस अनुभव से दूर हो जाते हैं. जैसे, रेस्टोरेंट में भोजन को इंज्वाय करने के बजाय कुछ लोग उसका फोटो खींचने में लगे रहते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कैमरा फोन लोगों को उसके वास्तविक अनुभवों से दूर कर रहा है. इसका मतलब केवल यह नहीं कि फोटोग्राफी का महत्व कम हो रहा है, बल्कि फोटोग्राफी की कला भी मर रही है.

हवा में घोड़े के पैर

फोटोग्राफी का इजाद होने के बावजूद किसी गतिशील कार्य या गतिविधि की एक खास क्षण में स्थिर तसवीर लेना अपनेआप में बड़ी चुनौती थी. बताया जाता है कि अमेरिका में घोड़ों की दौड़ में दिलचस्पी रखनेवाले धनाढ्य वर्ग में इस बात को लेकर चर्चा हुई कि घोड़े जब दौड़ते हैं, तो एकाध क्षण की स्थिति ऐसी आती है, जब उनके चारों पैर हवा में होते हैं. सभी लोगों का इस विषय पर अलग-अलग मत था.

इस तथ्य को सही तरीके से जानने की कोशिश की गयी. इसी क्रम में कैलिफोर्निया के गवर्नर लीलेंड स्टेंफोर्ड ने 1872 में यह जानने की कोशिश की और इस दिशा में प्रयोग शुरू किया गया. सैनफ्रांसिस्को के फोटोग्राफर एडवर्ड मेब्रिज को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गयी. मेब्रिज ने कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए, क्योंकि शुरुआत में हासिल किये गये चित्र इतने धुंधले और अस्पष्ट थे की कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता था.

करीब पांच वर्ष के बाद उन्होंने एक इंजीनियर की मदद से एक नया प्रयोग किया. इस प्रयोग के तहत 24 कैमरों को एक पंक्ति में सेट किया गया और सभी को बिजली के तार से जोड़ दिया गया. बटन दबाने पर उनमें बिजली सप्लाइ होती थी, जिससे प्रत्येक कैमरे के शटर उसी क्रम में खुलते और बंद होते थे.

इसके बाद बटन दबाते ही घोड़े के गति के साथ-साथ विद्युत प्रवाहित होने के कारण सभी कैमरे एक के बाद एक स्पष्ट छायाचित्र लेने में सफल हो सके. इसीलिए कैमरे उस क्षणांश को पकड़ने में कामयाब हो सके जब घोड़े के चारों पैर हवा में थे. हालांकि, तमाम कोशिशों के बावजूद इंसान इस स्थिति या परिघटना को अपनी आंखों से नहीं देख पाया था.

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