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अब रोबोट ‘आर्मी’ यानी ‘किलोबोट’

रोबोट आर्मी (छोटे रोबोट का झुंड) निकट भविष्य में ‘रोबोटिक्स’ (विज्ञान की वह शाखा जिसमें रोबोट का अध्ययन होता है) में नया अध्याय जोड़ेगी. हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज, मैसाच्युसेट्स के वैज्ञानिकों ने एक हजार सूक्ष्म रोबोटों की मजबूत ‘आर्मी’ (इन्हें किलोबोट नाम दिया गया है) बनाने में कामयाबी हासिल की है. इस […]

रोबोट आर्मी (छोटे रोबोट का झुंड) निकट भविष्य में ‘रोबोटिक्स’ (विज्ञान की वह शाखा जिसमें रोबोट का अध्ययन होता है) में नया अध्याय जोड़ेगी. हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज, मैसाच्युसेट्स के वैज्ञानिकों ने एक हजार सूक्ष्म रोबोटों की मजबूत ‘आर्मी’ (इन्हें किलोबोट नाम दिया गया है) बनाने में कामयाबी हासिल की है.

इस रोबोट आर्मी से ऐसे कई कामों में बड़ी मदद मिलने की उम्मीद है, जिनमें मनुष्य अब तक खुद को लाचार महसूस कर रहा था. क्या है यह किलोबोट, कैसे काम करता है और किस तरह उपयोगी होगा, ऐसे ही पहलुओं पर नजर डाल रहा है नॉलेज.

।। ब्रह्मानंद मिश्र ।।

नयी दिल्ली : इंसान की हमेशा से यह ख्वाहिश रही है कि उसका जीवन ज्यादा से ज्यादा सुखी हो और उसके सभी काम आसानी से पूरे हो जायें. इसके लिए वह लगातार नयी-नयी सुविधाओं की तलाश में रहा है.

निरंतरता, सुगमता और उत्पादकता ने ही इंसान को मशीन जैसे अविष्कारों के लिए प्रेरित किया. सीधे-सपाट शब्दों में कहा जाये तो मशीनों के आविष्कार ने धीरे-धीरे इंसान के हर काम को बेहद आसान बना दिया है. विज्ञान की भाषा में बात करें तो एक साधारण मशीन, बल की दिशा या परिमाण को परिवर्तित करने का सबसे सरल माध्यम है.

मशीन की तकनीक को सतत रूप से बेहतर बनाते हुए इंसान ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की तकनीक तक पहुंचा और इसी तकनीक का परिणाम है ‘रोबोट’. आज रोबोट ने इंसान के लिए दुष्कर समझे जाने वाले कई तरह के कार्यो को बेहद आसान बना दिया है. अब इससे एक कदम और आगे बढ़ते हुए ‘रोबोट आर्मी’ दुनिया के सामने होगी.

रोबोट आर्मी (यानी ढेर सारे रोबोट का झुंड) का सिद्धांत निकट भविष्य में ‘रोबोटिक्स’ (विज्ञान की वह शाखा जिसमें रोबोट का अध्ययन होता है) में एक नया अध्याय जोड़ेगी. हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज, मैसाच्युसेट्स के वैज्ञानिकों ने एक हजार सूक्ष्म रोबोटों की मजबूत आर्मी बनाने में कामयाबी हासिल की. इसका नाम ‘किलोबोट’ दिया गया है.

प्रत्येक सूक्ष्म रोबोट को इन्फ्रा-रेड सेंसर और दो मोटरों (जिनसे उनके पैर वाइब्रेट होते हैं, यानी वे सक्रिय होते हैं) से सुसज्जित किया गया. ये रोबोट एक-दूसरे से संचालित होते हैं और आसानी से अलग-अलग तरह के कॉम्पलेक्स-शेप (जटिल आकार) बनाने में सक्षम होते हैं.

क्या है ‘किलोबोट’

बेहद छोटे आकार वाले (लगभग सिक्के जितने) रोबोट आपस में मिल कर आसानी से थ्री-डी आकार बना लेते हैं. ये किलोबोट आपस में महज दो सेंटीमीटर की दूरी पर खड़े किये जा सकते हैं. ये किलोबोट चींटियों, मधुमक्खियों या सूक्ष्मजीवों की तरह जटिल संरचना बना पाने में सक्षम होते हैं.

सैकड़ों की संख्या में किलोबोट एक साथ काम कर सकते हैं. वैज्ञानिकों ने एडवांस्ड एल्गोरिथम (उच्च गणितीय कलन विधि) के माध्यम से प्रत्येक रोबोट के लिए प्रोग्रामिंग तैयार की. इस प्रोग्रामिंग की मदद से किलोबोट स्वत: संचालित होते हैं और आसपास के रोबोटों के बीच कमांड यानी दिशानिर्देश ट्रांसफर करते हैं.

किलोबोट प्रोजेक्ट में शामिल रहे हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के मुख्य शोधकर्ता माइकल रुबेंस्टीन के मुताबिक, रोबोट अन्य उपकरणों की तरह स्टेट-ऑफ-द-आर्ट हार्डवेयर से बने होते हैं और विभिन्न सेंसरों से मुक्त होते हैं. जबकि किलोबोट के फंक्शन बहुत सीमित होते हैं, ये सीधी लाइन में नहीं चल सकते हैं.

इसी वजह से इनका निर्माण आसान व सस्ता होता है. किलोबोट एक साथ मिल कर थ्री-डी आकार बना सकते हैं. रुबेंस्टीन के अनुसार इस पर रिसर्च अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन भविष्य में इनके कई तरह के अत्यंत उपयोगी व्यावहारिक प्रयोग सामने आयेंगे.

भविष्य का रोबोट है किलोबोट

किलोबोट की तकनीक निश्चित तौर पर आने वाले समय में रोबोटिक्स के क्षेत्र में वैज्ञानिकों के सामने नयी संभावनाएं लायेगी. मुख्य शोधकर्ता रुबेंस्टीन के अनुसार, जब आप प्रोग्रामेबल रोबोट पर काम कर रहे होते हैं, तो रोबोट एक संवाहक तार (फिलामेंट) की तरह काम करता है. दूसरे शब्दों में कहें तो इन रोबोटों का झुंड आपके द्वारा दिये गये कमांड के मुताबिक आकार लेने में सक्षम होता है. किलोबोट एक साथ मिल कर तीन विमीय (थ्री-डी) वस्तु का निर्माण कर सकते हैं.

प्रोग्रामेबल रोबोट औसत थ्री-डी प्रिंटर की क्षमता में आसानी से बढ़ोतरी कर सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इन्हीं वजहों से एक समय ऐसा आयेगा, जब किलोबोट का इस्तेमाल अंतरिक्ष में भी किया जा सकेगा. अंतरिक्ष विज्ञान के रिसर्च क्षेत्र में और अंतरिक्ष में जाने वाले एस्ट्रोनॉट (अंतरिक्षयात्री) के लिए यह काफी मददगार साबित होगा.

माइकल रुबेंस्टीन का मानना है कि मंगल आदि ग्रहों पर जानेवाले अंतरिक्ष यात्रियों को अपने साथ टूल-बॉक्स ले जाना जरूरी होता है. सामान्य तौर पर अंतिरक्ष यात्री जरूरतों के मुताबिक बहुत बड़े टूल-बॉक्स को साथ ले जाते हैं.

यदि बड़े टूल-बॉक्स को ले जाने के बजाय रोबोट का एक छोटा बॉक्स ही काफी हो और इन रोबोट की मदद से अपने काम को बेहद आसानी से अंजाम दिया जा सके, तो इसकी महत्ता और बढ़ जायेगी. फिलहाल, कई वैज्ञानिक ऐसी कलन विधि (एल्गोरिथम) को विकसित करने में लगे हैं, जिससे किलोबोट अंतरिक्ष यात्र को और भी आसान बना सके.

आम आदमी की जिंदगी से जुड़ेगा किलोबोट!

‘ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ तकनीक भविष्य की विभिन्न जरूरतों के लिए एक सशक्त माध्यम साबित होगी. रोबोट एक ओर जहां ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का साकार रूप है, तो वहीं किलोबोट ‘कलेक्टिव ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की मजबूत तकनीक है. इस तकनीक से ऑर्टिफिशियल कॉम्पलेक्स मशीन का सपना साकार होगा. खास बात यह है कि इस कॉम्पलेक्स मशीन का निर्माण छोटे रोबोट मिल कर खुद कर लेंगे. वैज्ञानिकों के अनुसार, रोबोटों की संख्या को बढ़ा कर अन्य अपेक्षित परिणाम भी हासिल किये जा सकते हैं.

मसलन, सैकड़ों रोबोट एक साथ मिल कर पर्यावरण सफाई और आपदा से निपटने में सक्षम हो सकते हैं. इसके अलावा इनकी मदद से राजमार्गो पर लाखों सेल्फ ड्राइविंग कारों के सपने साकार होने की उम्मीदें जगी हैं.

वास्तविक दुनिया में भौतिक रूप से पारस्परिक प्रभाव और विभिन्नताएं अंतर पैदा करती हैं. उम्मीद है कि किलोबोट के आविष्कार के साथ वास्तविक रोबोट पर कलन प्रक्रिया (एल्गोरिथम) कुछ नये और आश्चर्यजनक परिणाम सामने लायेगी. खासकर बड़ी समस्याओं से निपटने और दुश्वारियों से बचने के लिए हमारी समझ बढ़ेगी. फिलहाल, छोटे रोबोटों के इस झुंड से विभिन्न आकार बनाने में कामयाबी मिली है. अगले चरण में इंटेलीजेंस की इस प्रक्रिया को बेहतर बनाते हुए और भी छोटे रोबोट को विकसित किया जा सकता है.

रोबोट ऑर्मी की ताकत

गणितीय कलन पर आधारित रोबोट आर्मी (किलोबोट) की संरचनात्मक प्रकृति इसे खास बनाती है. टेक्सॉस यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर जेम्स मैक्लरकिन ने ‘लाइव साइंस’ के साथ एक इंटरव्यू में बताया है कि रोबोट समूहों के साथ काम करने के कारण समस्याओं को मूल रूप से अलग तरीके से हल किया जा सकता है.

रोबोटिक्स के रिसर्च की कड़ी का अगला लक्ष्य सामान्य पारस्परिक क्रियाओं और जटिल सामूहिक क्रियाओं के बीच के संबंधों को समझना है. मैक्लरकिन का मानना है कि अकेले और टीम प्लेयर, दोनों तरीकों से काम कर सकनेवाले रोबोट केवल अकेले काम कर पाने वाले रोबोट की तुलना में ज्यादा ताकतवर और बहुपयोगी साबित होगा.

जैसे, टीम के रूप में काम करनेवाले रोबोट का अपेक्षाकृत मुश्किल कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इस प्रकार के रोबोट पानी के भीतर जाकर जांच-पड़ताल करने के साथ-साथ बेहद मुश्किल क्षेत्रों में होनेवाले अनुसंधान कार्यक्रमों के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं.

इसके अलावा, भूकंप या अन्य आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ितों या हताहतों को खोजने और राहत कार्यो के लिए ये अच्छा माध्यम बनेंगे. हालांकि, रोबोट आर्मी के लिए कुछ काम मुश्किल भी हैं- जैसे बड़़े भौगोलिक दुर्गम क्षेत्रों में अन्वेषण का कार्य, निर्माण संबंधी कार्य.

कैसे काम करता है किलोबोट

प्रत्येक किलोबोट संरचना की दृष्टि से बहुत ही छोटा होता है. किलोबोट आसानी से अपने पैरों को घुमा सकता है और अन्य रोबोटों से इन्फ्रारेड ट्रांसमीटरों (अवरक्त प्रेषकों) और रिसीवरों के माध्यम से संपर्क स्थापित कर सकता है.

सैकड़ों-हजारों की संख्या वाले झुंड में किसी एक किलोबोट का महत्व बहुत ज्यादा नहीं होता है. ऐसे में अगर एकाध रोबोट काम करना बंद कर दे या खराब हो जाये, तो इसका ज्यादा असर नहीं होता है, क्योंकि इससे उनका सामूहिक कार्य तकरीबन अप्रभावित रहता है.

दूसरी सबसे अहम बात है कि एक साथ सैकड़ों रोबोट को व्यवस्थित व संचालित करने के लिए सॉफ्टवेयर और इंन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है. कुछ रोबोटों को सामूहिक रूप से संचालित करने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती है, लेकिन अगर संख्या हजारों में हो, तो तेजी से प्रबंधन कर पाना मुश्किल होता है. खासकर एक साथ हजारों रोबोटों को चार्ज करने की समस्या सामने आ सकती है. एक हजार रोबोट को मैनुअली चार्ज करने के लिए एक हजार प्लग की जरूरत होगी.

हॉर्वर्ड के वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए नयी तकनीक का इस्तेमाल किया. प्रत्येक रोबोट को प्लग से जोड़ने के बजाय दो मेटल शीटों (धात्विक परतों) के बीच में उन्हें बंद करके करेंट प्रवाहित किया. आइइइइ स्पेक्ट्रम वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, किलोबोटों की प्रोग्रामिंग के लिए वैज्ञानिकों ने इन्फ्रारेड सिग्नल का इस्तेमाल किया. इस तकनीक से एक साथ कई रोबोट को मैनेज किया जा सकता है.

यहां तक कि उतने ही समय में और बड़े आकार के समूह को भी मैनेज किया जा सकता है. जैविकीय तंत्र में सामान्य नियमों के अनुसार, समूह स्वयं को एकत्रित और व्यवस्थित करते हैं. जिस तरह से मछलियां अपने सबसे नजदीकी पड़ोसी की तरफ तेजी से मुड़ती हैं, ठीक इसी सिद्धांत पर किलोबोट भी निर्धारित कलन विधि के आधार पर काम करता है.

किलोबोट के काम करने की प्रक्रिया

सिरा अनुगमन : रोबोट समूह के सिरों (आगे का हिस्सा) की दूरी के आधार पर स्थानांतरित होते हैं. रोबोट सिरों से दूरी को भांप लेते हैं.

समानुपातिक तारतम्यता : मुख्य रोबोट ग्रेडिएंट वैल्यू मैसेज भेजते हैं, जो समूह में अनुपातिक क्रम में आगे बढ़ता है. इसी के आधार पर प्रत्येक रोबोट स्नेत से जियोडेसिक डिस्टेंस (गणित के मुताबिक दो बिंदुओं के बीच निर्धारित दूरी) पर मैनेज होता है.

लोकलाइजेशन (स्थानीकरण): परस्पर संप्रेषण के माध्यम से लोकल कोऑर्डिनेट सिस्टम का निर्माण कर सकते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक रोबोट अपनी पड़ोसी रोबोट से एक निर्धारित अनुपातिक दूरी को बरकरार रखते हैं.

लोकलाइजेशन की प्रक्रिया इनमें सबसे जटिल और महत्वपूर्ण है. रोबोट सतह की इन्फ्रारेड लाइट ऑफ कर एक-दूसरे से बात कर सकते हैं. इन्फ्रारेड लाइट की चमक के आधार पर ये बता सकते हैं कि वे अपने नजदीकी रोबोट से कितनी दूरी पर हैं. एक बार खुद को एडजस्ट करने के बाद ये रोबोट अपेक्षित आकार को अपना सकते हैं.

इस तकनीक के सफलतापूर्वक परीक्षण के साथ रोबोटिक्स की दुनिया में उम्मीदों का दायरा बढ़ा है. उच्च गणितीय कलन विधि से रोबोट में आनेवाली चुनौतियों का हल निकाला जा सकेगा. इसके अलावा, बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकेगा.

कुछ और खास प्रकार के रोबोट

स्नेक-बोट : एसीएम-आर5 नामक यह एक सांप की तरह का रोबोट है, जो सूखी सतह पर रेंग सकता है और पानी में तैर सकता है. जमीन और पानी दोनों ही पर मूव करने में सक्षम इस रोबोट का विकास जापान की एक कंपनी हाइबोट ने किया है. जरूरत के मुताबिक यह पानी में खुद को मोड़ने में भी सक्षम है.

नाओ रोबोट : फ्रांस की कंपनी एल्डबेरन रोबोटिक्स ने इस स्वायत्त और प्रोग्रामैबल रोबोट का विकास किया है, जिसे नाओ के नाम से जाना जाता है. इस रोबोट में दृश्य और श्रव्य की क्षमता होने के साथ इसकी गति भी तेज है.

यह रोबोट विभिन्न सतहों पर चल सकता है, वस्तुओं की पहचान करने के साथ उसे खोज भी सकता है. साथ ही छूने पर या मौखिक कमांड देने पर अपनी ओर से प्रतिक्रिया देने में भी सक्षम है. इतना ही नहीं, यह गंगनम स्टाइल में डांस भी कर सकता है.

कुराता रोबोट : रोबोटिक्स की दुनिया में कुछ आविष्कार कल्पना के मुकाबले ज्यादा विचित्र रहे हैं. जापान की सुइडोबाशी हेवी इंडस्ट्री द्वारा निर्मित यह रोबोट एक 13 फीट ऊंचे मशीन के सहारे खड़ी की जाती है और यह मशीन गन तथा रॉकेट लॉन्चर से लैस है. इस तरह के कुराता रोबोट को हॉलीवुड की कुछ प्रख्यात फिल्मों ‘ट्रांसफॉर्मर्स’ और ‘रीयल स्टील’ में देखा जा सकता है. इसके हाथों में हथियार होने से देखने में यह खतरनाक प्रतीत होता है. इस बड़े रोबोट को इसके भीतर बने कॉकपिट में बैठ कर मैनुअली या फिर स्मार्टफोन की सहायता से रिमोट के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है. इस रोबोट रूपी मशीन की कीमत 1.35 मिलियन बतायी गयी है.

बिग डॉग : बोस्टन डाइनामिक्स ने वर्ष 2005 में चार पैरों वाले इस रोबोट का आविष्कार किया, जिसे बिग डॉग नाम दिया गया. अमेरिकी रक्षा विभाग की एक शाखा डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी द्वारा प्रायोजित इस रोबोट को सेना की सहायता के लिए विकसित किया गया था. चार पैरों वाला यह रोबोट सेना को उस प्रकार की सतह पर चलने में मदद करने के लिए बनाया गया था, जिस पर सेना के वाहन नहीं चल सकते. यह रोबोट अपने साथ डेढ़ क्विंटल तक का वजन ढोने में सक्षम है.

(स्नेत : लाइवसाइंस डॉट कॉम)

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