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प्रधानमंत्री से अपेक्षाएं, पढ़ें प्रभात खबर की विशेष प्रस्तुति

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। खनिजों (कोयला, लोहा, बॉक्साइट) से भरा पड़ा देश का एक छोटा राज्य झारखंड विकास के लिए तड़प रहा है. 14 साल पहले इस सपने के साथ झारखंड, बिहार से अलग हुआ था कि यह देश का सबसे समृद्ध राज्य होगा. हालात यह है कि झारखंड 32 हजार करोड़ रुपये के […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

खनिजों (कोयला, लोहा, बॉक्साइट) से भरा पड़ा देश का एक छोटा राज्य झारखंड विकास के लिए तड़प रहा है. 14 साल पहले इस सपने के साथ झारखंड, बिहार से अलग हुआ था कि यह देश का सबसे समृद्ध राज्य होगा. हालात यह है कि झारखंड 32 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है.

राज्य के हालात बेहतर नहीं हैं. लोग निराश हो चुके हैं. आधे से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. एक शाम खा कर जिंदा हैं. पेट पालने के लिए यहां की लड़कियों को दिल्ली-पंजाब में दूसरे के घरों में काम करना पड़ रहा है. प्रकृति ने झारखंड को सबकुछ दिया है- प्राकृतिक सौंदर्य से लेकर खनिज पदार्थ तक, फिर भी यह दुर्दशा.

सच यह है कि नक्सलवाद से प्रभावित यह राज्य बगैर केंद्रीय सहायता के आगे नहीं बढ़ सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस राज्य को अपेक्षाएं हैं. उन्होंने गुजरात को समृद्ध गुजरात बनाया. झारखंड को कौन समृद्ध बनायेगा? क्या झारखंड के लोगों की किस्मत बदलेगी?

यहां के लोगों का भी सपना है कि झारखंड गुजरात बने, महाराष्ट्र बने, कर्नाटक बने, तमिलनाडु बने. इस सपने को साकार करने के लिए झारखंड अब प्रधानमंत्री की ओर बड़ी उम्मीद के साथ देख रहा है.

प्रधानमंत्री लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के पक्षधर रहे हैं. झारखंड की स्थिति यह है कि यहां 40-40 साल में भी परियोजनाएं पूरी नहीं हो पायी हैं. कहीं फंड का अभाव है, तो कहीं फॉरेस्ट क्लियरेंस को लेकर काम बंद है. केंद्र से टीम आती रही है, शिकायत की जाती रही है, आश्वासन भी मिलता रहा है, लेकिन काम नहीं होता.

रेल की ही बात करें, तो जो झारखंड हर साल 6500 करोड़ रुपये का राजस्व (कोयला-लोहा की ढुलाई की बड़ी भूमिका है) केंद्र को देता है, वहां की छह में से पांच परियोजनाएं अधूरी हैं. दस साल से ज्यादा हो गये. केंद्र सरकार ने झारखंड जैसे छोटे राज्य पर ध्यान ही नहीं दिया. अब उम्मीद जगी है.

झारखंड के लोग किससे अपनी पीड़ा कहें. 14 साल में यहां के लोगों को सिर्फ निराशा ही मिली है. ऐसी बात नहीं कि इसके लिए केंद्र सरकार ही दोषी है. गंठबंधन की सरकार ने राज्य को इस हालात में ला दिया है. झारखंड विधानसभा ने पांच बार प्रस्ताव पारित किया कि झारखंड में विधानसभा की सीटें बढ़ायी जायें. इसके बगैर राज्य का भला नहीं हो सकता.

केंद्र की ओर से कोई पहल नहीं की गयी. जिस बिहार से झारखंड अलग हुआ, 14 साल बाद भी उसकी देनदारी में यह राज्य फंसा हुआ है. हर साल पेंशन के लिए बड़ी राशि बिहार को देनी पड़ती है. जिस झारखंड पर खुद 32 हजार करोड़ का कर्ज है, वह कहां से कर्ज चुकाने के लिए पैसा लायेगा? टीवीएनएल, बिस्कोमान, बिहार स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का विवाद 14 साल में भी नहीं सुलझ सका है. केंद्रीय गृह मंत्रलय को यह काम करना है. वह भी नहीं हो पा रहा. बिहार से झारखंड को जमीन के नक्शे नहीं मिल पा रहे.

झारखंड की आय का स्नेत कृषि नहीं है, बल्कि खनिज पदार्थ है. रायल्टी पर झारखंड जिंदा है. इसमें भी झारखंड के साथ भेदभाव किया जाता है. ऊर्जा मंत्री ने कहा कि रायल्टी बढ़ाने के लिए उत्पादन बढ़ाना होगा. खेती होती नहीं, उद्योग लग नहीं रहे, रोजगार मिल नहीं रहा, ऐसे में राज्य कैसे चलेगा, कहां से पैसा आयेगा.

बगैर आर्थिक पैकेज के अब झारखंड नहीं चल सकता. यह भी सच है कि झारखंड को जितना पैसा मिलता भी है, उसका उपयोग नहीं होता. सही व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता. भ्रष्टाचार इसका बड़ा कारण है. गवर्नेस की गड़बड़ी है. लेकिन आम आदमी क्या करे? वह युवा क्या करे, जिसकी नौकरी पाने की उम्र खत्म हो गयी है.

जमीन का मामला गंभीर है. जमीन और फॉरेस्ट क्लियरेंस के कारण झारखंड में 1.44 लाख करोड़ की योजना लंबित पड़ी है. अगर कुछ कंपनियां आ गयी होती, तो रोजगार तो मिलता. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा. ऐसी बात नहीं कि हर मामला केंद्र से जुड़ा हुआ है. अनेक मामले राज्य सरकार के अधीन हैं.

लेकिन झारखंड के आम आदमी को रोजगार चाहिए, नौकरी चाहिए. सुविधा चाहिए. तमाम प्रयास के बावजूद झारखंड में आइआइटी नहीं खुला. आइएसएम को आइआइटी का दरजा देने का मामला लंबित है.

एम्स के लिए केंद्र तैयार है,पर झारखंड जमीन नहीं तय कर पाया. आज झारखंड में बेहतर शैक्षणिक संस्थाओं की कमी है. यहां के बच्चों को प्लस टू करने के बाद बेंगलुरु, चेन्नई, पुणो या दिल्ली के कॉलेजों में जाना पड़ता है. बेहतर अस्पताल नहीं है. यहां की जमीनी हकीकत को समझना होगा.

प्रधानमंत्री जी, जिस शौचालय के लिए आप अभियान चला रहे हैं, झारखंड में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में 55 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. महिलाओं को शौच के लिए घरों से बाहर जाना पड़ता है और इसी दौरान दुष्कर्म की घटनाएं भी घटती हैं. समस्याएं भरी पड़ी हैं. स्थिति यह है कि जिस राजधानी (रांची) में प्रधानमंत्री आ रहे हैं, वह शहर जाम के लिए प्रसिद्ध है.

शहर की सड़कें पतली हैं. फ्लाइ ओवर तक नहीं बने. कोई योजना भी नहीं है. पानी की निकासी का रास्ता नहीं है. 14 साल में एक नयी राजधानी भी झारखंड नहीं बना सका. खुद की विधानसभा भी नहीं बन पा रही है. इसमें भी अड़ंगा है.

झारखंड के लोगों का भी सपना है कि वे भी अन्य विकसित राज्य की तरह आगे बढ़ें. यह सपना तभी पूरा हो सकता है, जब केंद्र का हाथ झारखंड पर हो. झारखंड में अधूरी पड़ी योजनाओं को पूरा किया जाये, अच्छे संस्थान खुलें, रोजगार के अवसर बढ़े, उद्योग- धंधे लगे. यहां विधानसभा की सीटों की संख्या बढ़े, ताकि स्थिर सरकार बन सके. झारखंड को सही नेतृत्व मिले, सहयोग मिले तो यही झारखंड एक ऐसा राज्य बन सकता है, जिस पर खुद नरेंद्र मोदी भी गर्व करेंगे.

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