ताकत की होड़: समंदर का बादशाह बनने चला चीन
सेंट्रल डेस्क कई साल पहले प्रसिद्ध सैन्य विचारक अल्फ्रेड महान ने कहा था कि जो हिंद महासागर पर नियंत्रण कर लेगा, एशिया पर उसका दबदबा होगा. इन दिनों चीन जोर-शोर से यह काम करने में लगा हुआ है. विश्व शक्ति बनने की राह पर चल रहा चीन अपनी समुद्री ताकत को बढ़ा कर भारत और […]
सेंट्रल डेस्क
कई साल पहले प्रसिद्ध सैन्य विचारक अल्फ्रेड महान ने कहा था कि जो हिंद महासागर पर नियंत्रण कर लेगा, एशिया पर उसका दबदबा होगा. इन दिनों चीन जोर-शोर से यह काम करने में लगा हुआ है. विश्व शक्ति बनने की राह पर चल रहा चीन अपनी समुद्री ताकत को बढ़ा कर भारत और अमेरिका दोनों को चुनौती दे रहा है.
अमेरिकी विमानवाहक पोतों जैसी विशालकाय और आश्चर्यजनक चीजें इस धरती पर गिनी-चुनी ही होंगी, लेकिन चीनी तकनीक के आगे ये भी बेबस नजर आ रही हैं. एक लाख टन वजनी, मिसाइलों से लैस ये पोत परमाणु बिजली से चलते हैं. पानी की सतह से इनकी ऊंचाई 20 मंजिला इमारत के बराबर होती है. इनके डेक पर 70 लड़ाकू विमान हमला करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
50 साल से ज्यादा समय से एक हजार फीट लंबे पोतों पर सवार पांच हजार नौसैनिक दुनिया भर में समुद्र पर गश्त करते हैं. लेकिन, अब ये ताकतवर लड़ाकू मशीनें कम से कम प्रशांत महासागर में चीन के तट पर पहले जैसी अजेय नहीं रहीं.
अपनी समुद्री शक्ति में इजाफा करने के उद्देश्य से चीन अत्याधुनिक चलंत मिसाइलें तैनात कर रहा है. 2010 के बाद से चीन ने लंबी दूरी की ये मिसाइलें तैनात कर शक्ति संतुलन बदल दिया है. दोंग फेंग नाम की ये मिसाइलें भारत सहित कई एशियाई देशों के लिए भी खतरा हैं. दोंग फेंग-21डी मिसाइल को ट्रक से छोड़ा जा सकता है. यह समुद्र के ऊपर 1600 किमी उड़ कर अपने लक्ष्य पर प्रहार कर सकती है. चीनी भाषा में दोंग फेंग का मतलब पूर्वी हवा है. इसके बारे में अमेरिकी नौसैनिक ऑपरेशन के प्रमुख एडमिरल जोनाथन ग्रीनर्ट ने पिछले दिनों ‘टाइम’ को बताया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी नौसेना कई वर्ष से डीएफ-21डी का तोड़ ढूंढ़ रही है. चीनियों ने वाकई अच्छा हथियार बनाया है.
चीन का मानना है कि इन मिसाइलों की तैनाती से अमेरिकी नौसेना के वर्चस्व को रोकने में मदद मिलेगी. उल्लेखनीय है कि चीन अपनी जल सीमा के निकट किसी भी विदेशी युद्धपोत को बरदाश्त नहीं कर पा रहा है. भारत और वियतनाम की दक्षिण चीन सागर परियोजना पर भी चीन आंखें दिखा रहा है. चीन का कहना है कि दक्षिणी चीन सागर पर उसकी पूरी संप्रभुता है. इसी दावे के कारण उस इलाके में चीन का वियतनाम, जापान व फिलीपीन्स सहित कई देशों से विवाद है.
पड़ोसी देशों की चिंता बढ़ी : दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिकी नौसेना ने पश्चिमी प्रशांत महासागर को अपनी जागीर समझ रखा था. अमेरिकी युद्धपोत चीन जैसे देशों के तट से तीन मील दूर तक गश्त करते रहे. लेकिन पिछले कुछ वर्षो में हालात कुछ बदले हैं. चीन ने गुपचुप तरीके से अपनी ताकत बढ़ायी है. वह अपनी 50 पनडुब्बियों के बेड़े में हर साल तीन पनडुब्बियां शामिल करता जा रहा है. उसने वर्ष 2000 के बाद से 80 जहाज भी बनाये हैं. चीन का सैन्य खर्च 12,100 अरब रु पये सालाना है. यह अमेरिका के सैनिक खर्च का एक तिहाई है. दिन-ब-दिन चीन की बढ़ती शक्ति से उसके पड़ोसी देशों की भी परेशानी बढ़ने लगी है. दक्षिण और पूर्व चीन सागर में द्वीपों के स्वामित्व को लेकर जापान से उसका विवाद चल रहा है. चीन की तैयारी को देखते हुए मलेशिया, वियतनाम और फिलीपीन्स ने अपना रक्षा बजट बढ़ा दिया है. अमेरिका के सहयोगी दक्षिण कोरिया और ताईवान भी सशंकित हैं. इसी क्रम में, अमेरिका की प्रशांत कमान के प्रमुख एडमिरल सैम लॉकलियर ने पिछले दिनों एक बैठक में कहा था, अब हमारा प्रभुत्व कम हो रहा है. अमेरिकी विमानवाहक पोत महंगे और खर्चीले हो चले हैं.
पड़ोसी देशों की चिंता बढ़ी : अजेय नहीं रह जायेंगे अमेरिकी युद्धपोत
818 अरब 98 करोड़ रुपये के जेराल्ड आर फोर्ड क्लास अमेरिकी युद्धपोत को अजेय माना जाता है. इसमें 970 अरब 64 करोड़ रुपये के एफ -35 फाइटर्स तैनात रहते हैं, जिन्हें दुनिया का सबसे महंगा हथियार माना जाता है. इसके अलावा, यूएसएस जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका के उन युद्धपोतों में से एक है जिसे देख कर दुश्मनों के दांत खट्टे हो सकते हैं. इस युद्धपोत पर कुछ ऐसे लड़ाकू जहाज होते हैं जो किसी भी समय किसी भी परिस्थिति में उड़ान भर कर दुश्मन के हमलों की हवा निकाल सकते हैं. यह युद्धपोत समुद्र का शहंशाह कहा जाता है, जिसकी गति और मारक क्षमता बेजोड़ है. लेकिन इन सबके बावजूद, ये युद्धपोत अब अजेय नहीं रह जायेंगे. अमेरिकी नौसेना के अधिकारियों का मानना है कि चीन की यह नयी मिसाइल पूरे खेल को बिगाड़ सकती है.