केरल में शराब पर प्रतिबंध लगाने का हालिया फ़ैसला पागलपन है. यह उन्माद में लिया गया फ़ैसला है.
मैं केरल के एक कैथोलिक इसाई परिवार से हूँ और हमारे गांव में मेरे समुदाय के लोगों के बीच शराब पीना आम बात है.
हर परिवार के पास ताड़ी या नारियल के खेत हैं. ताड़ी उतारने वाले सुबह-सुबह आ जाते हैं और ताड़ी बेचने ले जाने से पहले एक-दो बोतल हमें दे देते हैं.
नाश्ते में ताड़ी
ताड़ी दिन के वक़्त सड़ता है और शाम तक बीयर की तरह कड़वी बन जाती है, लेकिन सुबह के वक़्त यह मीठी होती है और घर की महिलाएं नाश्ते में इसे बच्चों को देती हैं.
महिलाएं भी इसका सेवन करती हैं. इसमें कुछ भी अजीब नहीं है. लेकिन वक़्त के साथ केरल में मिलावटी ताड़ी ने बाज़ार में अपना क़ब्ज़ा जमा लिया.
इस वजह से पीने के शौक़ीन लोगों ने बार का रुख़ करना शुरू कर दिया है. मैं ऐसा नहीं सोचता हूं कि केरल के लोगों और शराब का कोई विशेष संबंध है.
दक्षिण के अन्य राज्यों और देश के उत्तरी राज्यों में भी पियक्कड़ों की कमी नहीं है, लेकिन यह सच है कि सरकार शराब के व्यवसाय से बहुत पैसा कमाती है.
राज्य का एकाधिकार
राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब के व्यवसाय से आता है. शराब पर प्रतिबंध लगाकर सरकार शराब के कारोबार को गुपचुप तरीक़े से चलने की ओर धकेल देगी और शराब के प्रमाणिक आपूर्तिकर्ता के रूप में राज्य का एकाधिकार हो जाएगा.
बेतहाशा शराब पीने की आदत ने केरल में कई परिवारों को तबाह किया है, लेकिन शराब पर प्रतिबंध लगाना इस समस्या का समाधान नहीं है.
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