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सांस्कृतिक प्रतीकों के सहारे कूटनीति

तोक्यो से ब्रजेश कुमार सिंह संपादक-गुजरात, एबीपी न्यूज एक दिन पहले जापान से करीब दो लाख दस हजार करोड़ रुपये के निवेश का वादा हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार की सुबह तोक्यो के सैक्रेड हार्ट विश्वविद्यालय पहुंचे. मौका था यहां की छात्रओं के साथ संवाद का. तोक्यो की ये यूनिवर्सिटी पूरी तरह से […]

तोक्यो से ब्रजेश कुमार सिंह

संपादक-गुजरात, एबीपी न्यूज

एक दिन पहले जापान से करीब दो लाख दस हजार करोड़ रुपये के निवेश का वादा हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार की सुबह तोक्यो के सैक्रेड हार्ट विश्वविद्यालय पहुंचे. मौका था यहां की छात्रओं के साथ संवाद का. तोक्यो की ये यूनिवर्सिटी पूरी तरह से छात्राओं के लिए है. यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम में छात्राओं और उनके शिक्षकों को हिंदी में संबोधित करते हुए मोदी ने कन्या शिक्षा के लिए किये गये अपने कार्यो का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया, खास तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर चलाये गये कन्या शिक्षा अभियान का. यहां वे इस बात का जिक्र करना भी नहीं भूले कि उनकी मौजूदा कैबिनेट में पचीस फीसदी महिलाएं हैं या फिर ये कि उनकी विदेश मंत्री भी एक महिला हैं.

महिलाओं के बीच मौजूद मोदी उनका दिल जीतने की मुहिम के तहत भारत में देवियों की परंपरा का जिक्र भी कर गये. मोदी ने समझाया कि दुनिया के ज्यादातर देशों में देवताओं की परंपरा ही है. भारत एक ऐसा देश है, जिसमें हर महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए देवी की आराधना की परंपरा है. मसलन शिक्षा के लिए सरस्वती, तो संपत्ति के लिए लक्ष्मी और भोजन के लिए मां अन्नपूर्णा. जाहिर है, ये तमाम उदाहरण सामने रख कर मोदी जापान की छात्राओं और महिलाओं को ये संदेश देने में लगे थे कि भारत में महिलाओं को सम्मान देने की परंपरा कितनी मजबूत है.

मोदी के मौजूदा जापान दौरे में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जहां धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों का सहारा कूटनीतिक कामयाबी हासिल करने के लिए लिया गया. जापान को भारत के और करीब लाने की कवायद में लगे मोदी ने अपने जापान दौरे की शुरु आत ही क्योतो से की. क्योतो को जापान में वही स्थान हासिल है, जो भारत में काशी यानी वाराणसी को. यहां के तोजी मंदिर में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे के साथ जानेवाले मोदी जापान के लोगों को ये याद कराना नहीं भूले कि आखिर भारत के कितने पुराने संबंध जापान से हैं, आखिर जापान में सर्वाधिक प्रचिलत बौद्ध धर्म भारत से ही यहां तक आया.

सेक्रेड हार्ड यूनिवर्सिटी की छात्राओं से संवाद के दौरान मोदी के सामने तीन ऐसे सवाल रखे गये, जिसका सीधे-सीधे जवाब देना उनके लिए कूटनीतिक तौर पर मुश्किल भरा हो सकता था. ऐसे में उन सवालों के घेरे से बाहर निकलने के लिए मोदी ने सांस्कृतिक प्रतीकों का ही सहारा लिया. मसलन एक छात्र ने मोदी से ये पूछा कि परमाणु आप्रसार संधि यानी एनपीटी पर हस्ताक्षर की प्रतिबद्धता के बगैर भारत का जापान से सिविल न्यूक्लियर समझौता हो पाना कैसा रहेगा?

मोदी को पता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने दो शहरों हिरोशिमा और नागासकी पर परमाणु बम की विभीषिका ङोलने वाले जापान के लिए ये मसला कितना संवेदनशील और अहम है. सच्चाई ये भी है कि 2010 से ही भारत जापान से वैसा ही सिविल न्यूक्लियर समझौता कर लेना चाहता है, जैसा 2008 में वो अमेरिका से कर पाया था, बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किये. मोदी से गहरी दोस्ती के बावजूद शिंजो एबे के लिए मुश्किल ये है कि बिना एनपीटी पर भारत के हस्ताक्षर के वो कैसे ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए भारत को परमाणु ईंधन देना कबूल कर लें, अपनी जनता को इसके लिए समझा पाना मुश्किल होगा. ऐसे में छात्र की तरफ से पूछे गये सवाल का सीधा जवाब देने की जगह मोदी ने भगवान बुद्ध का रु ख कर लिया. बौद्ध धर्मावलंबी देश जापान की छात्रओं को मोदी ये समझाते नजर आये कि भारत भगवान बुद्ध के ज्ञान की भूमि है और उनके सबसे महत्वपूर्ण संदेश शांति में यकीन रखता है. मोदी ने छात्रओं समेत पूरे जापान के लोगों को आश्वस्त करना चाहा कि एनपीटी जैसे औपचारिक समझौते के बगैर भी जापान भारत पर भरोसा कर सकता है, क्योंकि अहिंसा भारत के समाज दर्शन में है और ‘वसुधैव कुटुंबकम ’ सबसे प्रमुख सूत्र.

मोदी के सामने एक और टेढ़ा सवाल आया. मसलन चीन के विस्तारवाद के खतरे के सामने भारत और जापान की रणनीति क्या होगी. सोमवार को ही जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ शिखर वार्ता के बाद संयुक्त घोषणापत्र जारी करते हुए मोदी ने भारत और जापान के सामरिक संबंध और मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन चीन का सीधे नाम नहीं लिया. हालांकि ये सबको पता है कि अगर एशिया में भारत और जापान एक-दूसरे के साथ सामरिक तौर पर करीब आने की तैयारी कर रहे हैं, तो इसका लक्ष्य क्या है. जापान के स्थानीय अखबारों में भी चीन के सामने भारत और जापान के संयुक्त सामरिक प्रयास को मोदी की यात्र के महत्वपूर्ण बिंदु के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन मोदी चीन की बात सीधे करना चाह नहीं रहे थे. इसलिए वो सिर्फये कह कर इस मुद्दे से आगे निकल गये कि नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देने की जगह एशिया के दो सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देश, भारत और जापान साथ मिल कर आगे बढ़ेगे, स्थितियां अपने आप बदल जायेंगी.

भारत में पर्यावरण को लेकर पूछे गये एक और सवाल को भी मोदी ने भगवान से जोड़ दिया. मसलन ये कि पर्यावरण को लेकर भारतीय कितने गंभीर हैं. अपने एक चाचा के लकड़ी का धंधा शुरू करने के किस्से का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि कैसे उनकी मां ने इसके लिए रोक दिया था, क्योंकि वो पेड़ को भगवान मानती थीं. मोदी ने यूनिवर्सिटी का छात्रओं को ये समझाने की भी कोशिश कर डाली कि प्रकृति से संवाद भारत के जीवन में है, मसलन चांद हमारे लिए मामा हैं, तो नदियां मां और पेड़ भगवान.

जापान यात्रा के दौरान मोदी की दो तसवीरें लोगों को और ध्यान में आ सकती हैं. मसलन सोमवार को स्कूली छात्रों से मुलाकात के दौरान मोदी का बांसुरी बजाना या फिर मंगलवार को टीसीएस के जापानी कर्मचारियों को पुणो भेजने के कार्यक्र म को लांच करते हुए जापानी ढोल ताइको पूरी तन्मयता से बजाना.

पिछले कुछ दशक में शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों को इस खूबी के साथ इस्तेमाल किया है, वो भी कूटनीतिक मकसद के लिए. अब इंतजार होगा मोदी के अमेरिका दौरे में कूटनीति के कुछ और नये अंदाज का.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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